पातंजल योगसूत्र में योग के आठ अंगों का निरूपण है। उसमें पहला ही अंग है यम । यह पाँच प्रकार के हैं। ये हैं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । संकेत यह है कि सम्पूर्ण योगदर्शन का प्रस्थान अहिंसा है। पाँच यमों को देशकाल स्थिति में अपरिवर्तनीय सार्वभौम महाव्रत कहा गया है। अर्थात् व्यक्ति के व्यवहार और समाज की व्यवस्था का मूल आधार अहिंसा है।
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अहिंसा का अर्थ है मन, कर्म, वचन से किसी का अहित नहीं करना । इसका अर्थ सूक्ष्मतापूर्वक समझने की आवश्यकता है । पुत्र के किसी अपराध पर पिता उसे डाँटता है अथवा दण्ड देता है । पुत्र को दुःख होता है । पुत्र को दःखी करना ऊपर से तो हिंसा का कृत्य लगता है, परन्तु बालबुद्धि पुत्र के हित के लिये डाँटना या दण्ड देना पिता का कर्तव्य ही है । उसके हित के लिये जो दण्ड दिया जाता है वह हिंसा नहीं है । इसी प्रकार अपराधी को, आततायी को, दुर्जनों को, दुष्टों को दण्ड देना हिंसा नहीं है यह सर्वविदित है। इसी प्रकार स्वरक्षण के लिये की जाने वाली हिंसा भी हिंसा नहीं है।
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आज हिंसा और अहिंसा की विपरीतता हो गई है। मूल भारतीय सिद्धान्त के अनुसार स्वार्थ के लिये किया गया कोई भी कार्य हिंसा है।
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कभी कभी बालबुद्धि लोग भगवान कृष्ण द्वारा दिये गये युद्ध करने के परामर्श को हिंसा मानते हैं । महाभारत के युद्ध में अठारह अक्षौहिणी सेना का विनाश हआ। इतना विनाशक युद्ध करवाने वाले को अहिंसक कैसे कहा जा सकता है ? परन्तु भगवान कृष्ण को तो योगेश्वर भी कहा गया है। योगेश्वर स्वयं हिंसक कैसे हो सकते हैं ? महाभारत का युद्ध धर्म की रक्षा के लिये किया गया था इसलिये वह हिंसापूर्ण कृत्य नहीं था । हाँ, दुर्योधन के लिये वह हिंसा पूर्ण कृत्य था क्योंकि वह स्वार्थ से प्रेरित था।
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अन्याय, अनीति, स्वार्थ से प्रेरित ऐसा कोई भी कार्य हिंसा है। जो किसी भी रूप में दूसरे का अधिकार छीनता है अहित करता है वह हिंसापूर्ण कृत्य है। इस दृष्टि से वर्तमान अर्थव्यवस्था पराकोटि की हिंसक व्यवस्था है। पर्यावरण का प्रदूषण करने वाला व्यवहार और व्यवस्था - आचरण और व्यवसाय - हिंसा है। प्राणियों के लिये जीवन दूभर बनाने वाला कृत्य हिंसा है। उदाहरण के लिये पक्की सडक पर पक्षी दाना नहीं चुग सकते और पशुओं के पैरों के खुर खराब होते हैं। प्रदूषण के कारण पक्षी, प्लास्टिक के कारण गायें मरती हैं। यह हिंसा है। बीजों को उत्पादन के लिये अक्षम बनाना हिंसा है । खाद्य पदार्थों और औषधियों में मिलावट करना हिंसा है। दूसरों को बेरोजगार बनाना हिंसा है । अर्थात् आज की समृद्धि हिंसक समृद्धि है। इस समृद्धि को उचित बनाने वाला विचार हिंसक है। उसके अनुकूल शिक्षा देना हिंसक शिक्षा है। इसी के पक्ष में न्याय देना हिंसा है। योगशास्त्र में अहिंसा का परिणाम बताते हुए कहा है, 'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः।' अर्थात् अहिंसा में प्रतिष्ठा होने से उसके आसपास का वै शान्त हो जाता है। अर्थात् जो व्यक्ति अहिंसक है उसकी उपस्थिति में एक दूसरे के