Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 79: Line 79:     
==== ४. पर्यावरण संकल्पना को भारतीय बनाना ====
 
==== ४. पर्यावरण संकल्पना को भारतीय बनाना ====
१. यन्त्रवाद और प्लास्टिकवाद के चलते सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण के प्रदूषण की चपेट में आ गया है। सर्वत्र प्राकृतिक संकट बढ गये हैं । वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है । पहाड़ों पर बर्फ पिघल रही हैं, नदियों में बाढ आ रही है। अब यह विश्वस्तर पर चिन्ता का विषय बन गया है।  
+
# यन्त्रवाद और प्लास्टिकवाद के चलते सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण के प्रदूषण की चपेट में आ गया है। सर्वत्र प्राकृतिक संकट बढ गये हैं । वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है । पहाड़ों पर बर्फ पिघल रही हैं, नदियों में बाढ आ रही है। अब यह विश्वस्तर पर चिन्ता का विषय बन गया है।
 +
# इस संकट का मुकाबला करने के लिये सभायें, सम्मेलन, परिचर्चाओं का आयोजन विश्वस्तर पर हो रहा है। नीतियाँ बनाई जा रही हैं, योजनायें बनती हैं, अभियान छिड रहे हैं, नारे बनाये जा रहे हैं।
 +
# इन योजनाओं और नीतियों का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। खास बात यह है कि प्रदूषण जिनके कारण से बढ़ राह है ऐसे देश जिनसे नहीं बढ़ रहा है उन्हें पर्यावरण सुरक्षा का उपदेश दे रहे हैं, नीतियों के क्रियान्वयन हेतु बाध्य कर रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को नियन्त्रित कर रहे हैं। वास्तव में यह उल्टी गंगा चल रही है । प्रदूषण कम होने के स्थान पर बढ़ रहा है।
 +
# मूल में पर्यावरण के प्रदूषण के पश्न को सुलझाने के लिये पर्यावरण की संकल्पना ठीक से समझने की आवश्यकता है। पश्चिम अन्य बातों की तरह पर्यावरण के बारे में भी भौतिक स्तर पर ही देखता है। उसका और उसके प्रभाव में भारत सहित सभी देशों का ध्यान भूमि, जल और वायु के प्रदूषण पर ही केन्द्रित हुआ है। ये पंचमहाभूतों में तीन हैं। इनके प्रदूषण से शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत असर होता है, अनेक प्रकार के नये नये रोग पैदा होते हैं, पुराने रोगों में वृद्धि होती है, ये रोग कर्करोग की प्रकृति के होते हैं, वे असाध्य होते हैं यह बात अब सबके ध्यान में आ रही है। परन्तु प्रदूषणकारी प्रवृत्तियों से परावृत्त होने की शक्ति किसी में नहीं बची है यह भी हम देख रहे हैं।
 +
# पंचमहाभूतों में और भी दो महाभूत बचे हैं। वे हैं अग्नि और आकाश । इनके प्रदूषण की ओर कुछ लोगों का तो ध्यान गया है परन्तु पर्याप्त मात्रा में नहीं । वास्तव में पूर्व के तीन जितना ही महत्त्व इन दोनों का भी है। उतनी ही गम्भीरता से इनकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिये।
 +
# आकाश का गुण है शब्द । शब्द अर्थात् ध्वनि । ध्वनि का प्रक्षण कानों की सुनने की क्षमता कम करता है यह तो ठीक है परन्तु मन की एकाग्रता और बुद्धि की सूक्ष्मता पर भी विपरीत असर करता है। कर्कशता, ऊँचापन, बेसूरापन, ध्वनि का प्रदूषण है। मधुरता, सौम्यता और सूरीलापन सुखदायी है। वाहनों की, बोलचाल की, कुछ वाद्ययन्त्रों की ध्वनि कर्कश होती है। ध्वनिवर्धक यन्त्र, तेज संगीत, चीखें और चिल्लाहट प्रदूषणकारी होते हैं । बेसूरापन प्रदूषण करता है यह तो सर्वविदित है । ध्वनिप्रदूषण का मानसिक और बौद्धिक स्तर पर दुष्प्रभाव होता है। 
 +
# अग्नि प्रकाश और उष्मा देता है। रासायनिक और प्लास्टिक से, पेट्रोल और डीझल से, अणुविकिरण से निकलने वाली उष्मा त्वचा, रक्त, नाडी संस्थान आदि पर गहरा दुष्प्रभाव करती है। यह ऊष्मा कितनी अधिक बढ़ गई है यह तो ग्लोबल वोमिंग की चिन्ता से ही पता चलता है । यह ऊष्मा और इन साधनों से ही मिलने वाला प्रकाश अत्यधिक हानिकारक है।
 +
# परन्तु पर्यावरण केवल पंचमहाभूतों तक सीमित नहीं है। समस्त प्रकृति पंचमहाभूतों के साथ साथ तीन गुणों से भी युक्त है । ये तीन गुण हैं सत्त्व, रज और तम । मनुष्य के व्यक्तित्व में ये मन, बुद्धि और अहंकार के रूप में समाहित हुए हैं। मनुष्य के शरीर में ये कफ, पित्त और वात बनकर समाहित हुए हैं। शरीर के स्तर पर ये त्रिदोष कहे जाते हैं और व्यक्तित्व के स्तर पर अन्तःकरण । सृष्टि में सजीव या निर्जीव एक भी पदार्थ इन तीन गुणों से रहित नहीं होता है। न्यूनाधिक मात्रा में ये तीनों गुण रहते ही है। 
 +
# तीन गुण पंचमहाभूतों से अधिक प्रभावी होते हैं इसलिये उनका प्रदूषण भी अधिक दुष्प्रभाव करता है। वास्तव में पंचमहाभूतों का प्रदूषण भी इनके प्रदूषण से पैदा होता है ।  पंचमहाभूत स्थूल होते हैं, तीन गुण सुक्ष्म । सूक्ष्म स्थूल से अधिक प्रभावी होता हैं। 
 +
# भावनाओं का प्रदूषण, उत्तेजनापूर्ण क्रियाशीलता, चंचलता, भागदौड, जल्दबाजी, तेजगति, बढी हुई आवश्यकतायें, नित्य नया चाहिये की अधीरता रजोगुण के अर्थात् मन के प्रदूषण का परिणाम है । लोभ, लालच, लालसा, काम, क्रोध, इर्ष्या, मद, मोह आदि सब इन प्रवृत्तियों के जनक हैं। जगत में आज यह बढ़ गया है यह हम सब जानते हैं।
 +
# गलत बातों को सही सिद्ध करने के प्रयास करना, शोषण और हिंसा के नये नये बहाने ढूँढना और युक्ति प्रयुक्तियाँ अपनाना, शास्त्रों को तोडना मरोडना, अपने पक्ष में शास्त्रों की रचना करना और करवाना सत्त्वगुण का अर्थात् बुद्धि का प्रदूषण है। सर्वत्र वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास करना, एकाधिकार प्राप्त करने की महत्त्वाकांक्षा रखना, अपने आपको नम्बर वन बताना तमोगुण अर्थात् अहंकार का प्रदूषण है। पश्चिम ने ऐसा प्रदूषण अत्यधिक मात्रा में बढाया है इसका अनुभव सारा जगत कर रहा है ।
 +
# पश्चिम अपनी जीवनदृष्टि की मर्यादा के कारण ऐसा कुछ सोच ही नहीं सकता, तब उपाय करना तो उसके लिये नितान्त असम्भव कार्य है। वह केवल समस्या निर्माण कर सकता है, संत्रास फैला सकता है, जगत को संकट में डाल सकता है। उपाय ढूँढना भारत का काम है। भारत को केवल उपाय ही नहीं ढूँढना है उन्हें अपनाना है और पश्चिम को उन्हें अपनाने हेतु बाध्य करना है।
 +
# भारतने आदिकाल से प्रदूषण की समस्या ही पैदा न हो इसका उपाय किया है । पंचमहाभूतों को भारत ने देवता माना है। ऋग्वेद के सूक्तों में पृथ्वीसूक्त है, वरुणदेवता, अग्निदेवता, वायुदेवता की स्तुति है। भूमि माता है और आकाश पिता है । देवताओं का हर प्रकार से सम्मान करने की पद्धति बनाई है।
 +
# वेदों का शान्तिपाठ समस्त प्रकृति की शान्ति की कामना करता है। मनुष्य यज्ञ करता है और सारी सृष्टि के देवताओं को उनका हिस्सा देता है । अर्थात् वह केवल स्तुति नहीं तो पुष्टि भी करता है, सन्तर्पण भी करता है। पंचमहाभूतों को देवता मानता है इसलिये पवित्र मानता है और उनकी पवित्रता का भंग करना पाप समझता है।
 +
# इस दर्शन और भावना को कृति में उतारता है। अग्नि में अपवित्र पदार्थ जलाता नहीं है, पानी को गंदा करता नहीं है, पैर रखने के लिये भूमि की क्षमा माँगता है, अपने स्वार्थ के लिये वृक्षों को काटता नहीं है, कर्कश आवाज का निषेध करता है। दुरुपयोग कर किसी भी पदार्थ की अवमानना करता नहीं है। सजीव निर्जीव हर पदार्थ के साथ आत्मीयता का व्यवहार करता है।
 +
# भारत जानता है कि पंचमहाभूतों का प्रदूषण रोकना तो फिर भी सरल है, तीन गुणों को प्रदूषणमुक्त रखना बहुत कठिन काम है। इसलिये भारत ने इनके लिये अधिक गम्भीरतापूर्वक प्रयास किये हैं।
 +
# व्यक्तित्व विकास की हर साधना के साथ सद्गुण और सदाचार को जोडा है, संयम और सेवा को अपनाने का आग्रह किया है । रजोगुण को कम करने हेतु मन को शान्त करने के हजार उपाय बताये हैं।
 +
# मन वश में हुआ तो बुद्धि की विपरीतता का उपाय हो ही जाता है। अहंकार की विनाशकता को जानकर भारत ने सर्व प्रकार से स्पर्धा को निष्कासित किया है । विनयशीलता, परिचर्या, शुश्रुषा, सेवा को महत्त्वपूर्ण गुण माना है। इन गुणों के बिना अनेक श्रेष्ठ बातें मिलेंगी नहीं ऐसा बन्धन निर्माण किया है।
 +
# सम्पन्नता, सामर्थ्य, विद्वत्ता पश्चिम के मनुष्य को उद्दण्डता बरतने का अधिकार देती है। भारत क्षमा, उदारता, विनय, सौजन्य से इनकी शोभा बढाने का परामर्श देता है। पश्चिम प्राप्ति को महत्त्व देता है। भारत प्राप्ति के बाद उसके त्याग को । विकास का मार्ग प्राप्ति और सामर्थ्य को पार करके आगे जाता है।
 +
# भारत की सम्भावनायें बहत हैं । परन्तु भारत का मार्ग भी कठिन है । अपनी ही मूल्यवान बातें उसके लिये परायी सी हो गई है। उन्हें अपनी बनाने के बाद विश्व को भी देने हेतु उसे सिद्ध होना है। सम्भावनाओं को वास्तविकता में परिणत करना है।
   −
इस संकट का मुकाबला करने के लिये सभायें, सम्मेलन, परिचर्चाओं का आयोजन विश्वस्तर पर हो रहा है। नीतियाँ बनाई जा रही हैं, योजनायें बनती हैं, अभियान छिड रहे हैं, नारे बनाये जा रहे हैं।
+
==== ५. अहिंसा का अर्थ ====
 
  −
. इन योजनाओं और नीतियों का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। खास बात यह है कि प्रदूषण जिनके कारण से बढ़ राह है ऐसे देश जिनसे नहीं बढ़ रहा है उन्हें पर्यावरण सुरक्षा का उपदेश दे रहे हैं, नीतियों के क्रियान्वयन हेतु बाध्य कर रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को नियन्त्रित कर रहे हैं। वास्तव में यह उल्टी गंगा चल रही है । प्रदूषण कम होने के स्थान पर बढ़ रहा है।
  −
 
  −
४. मूल में पर्यावरण के प्रदूषण के पश्न को सुलझाने के लिये पर्यावरण की संकल्पना ठीक से समझने की आवश्यकता है। पश्चिम अन्य बातों की तरह पर्यावरण के बारे में भी भौतिक स्तर पर ही देखता है। उसका और उसके प्रभाव में भारत सहित सभी देशों का ध्यान भूमि, जल और वायु के प्रदूषण पर ही केन्द्रित हुआ है। ये पंचमहाभूतों में तीन हैं। इनके प्रदूषण से शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत असर होता है, अनेक प्रकार के नये नये रोग पैदा होते हैं, पुराने रोगों में वृद्धि होती है, ये रोग कर्करोग की प्रकृति के होते हैं, वे असाध्य होते हैं यह बात अब सबके ध्यान में आ रही है। परन्तु प्रदूषणकारी प्रवृत्तियों से परावृत्त होने की शक्ति किसी में नहीं बची है यह भी हम देख रहे हैं।
  −
 
  −
पंचमहाभूतों में और भी दो महाभूत बचे हैं। वे हैं अग्नि और आकाश । इनके प्रदूषण की ओर कुछ लोगों का तो ध्यान गया है परन्तु पर्याप्त मात्रा में नहीं । वास्तव में पूर्व के तीन जितना ही महत्त्व इन दोनों का भी है। उतनी ही गम्भीरता से इनकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  −
 
  −
६. आकाश का गुण है शब्द । शब्द अर्थात् ध्वनि । ध्वनि का प्रक्षण कानों की सुनने की क्षमता कम करता है यह तो ठीक है परन्तु मन की एकाग्रता और बुद्धि की सूक्ष्मता पर भी विपरीत असर करता है। कर्कशता, ऊँचापन, बेसूरापन, ध्वनि का प्रदूषण है। मधुरता, सौम्यता और सूरीलापन सुखदायी है। वाहनों की, बोलचाल की, कुछ वाद्ययन्त्रों की ध्वनि कर्कश होती है। ध्वनिवर्धक यन्त्र, तेज संगीत, चीखें और चिल्लाहट प्रदूषणकारी होते हैं । बेसूरापन प्रदूषण करता है यह तो सर्वविदित है । ध्वनिप्रदूषण का मानसिक और बौद्धिक स्तर पर दुष्प्रभाव होता है। 
  −
 
  −
अग्नि प्रकाश और उष्मा देता है। रासायनिक और प्लास्टिक से, पेट्रोल और डीझल से, अणुविकिरण से निकलने वाली उष्मा त्वचा, रक्त, नाडी संस्थान आदि पर गहरा दुष्प्रभाव करती है। यह ऊष्मा कितनी अधिक बढ़ गई है यह तो ग्लोबल वोमिंग की चिन्ता से ही पता चलता है । यह ऊष्मा और इन साधनों से ही मिलने वाला प्रकाश अत्यधिक हानिकारक है।
  −
 
  −
परन्तु पर्यावरण केवल पंचमहाभूतों तक सीमित नहीं है। समस्त प्रकृति पंचमहाभूतों के साथ साथ तीन गुणों से भी युक्त है । ये तीन गुण हैं सत्त्व, रज और तम । मनुष्य के व्यक्तित्व में ये मन, बुद्धि और अहंकार के रूप में समाहित हुए हैं। मनुष्य के शरीर में ये कफ, पित्त और वात बनकर समाहित हुए हैं। शरीर के स्तर पर ये त्रिदोष कहे जाते हैं और व्यक्तित्व के स्तर पर अन्तःकरण । सृष्टि में सजीव या निर्जीव एक भी पदार्थ इन तीन गुणों से रहित नहीं होता है। न्यूनाधिक मात्रा में ये तीनों गुण रहते ही है।
  −
 
  −
तीन गुण पंचमहाभूतों से अधिक प्रभावी होते हैं इसलिये उनका प्रदूषण भी अधिक दुष्प्रभाव करता है। वास्तव में पंचमहाभूतों का प्रदूषण भी इनके प्रदूषण से पैदा होता है । पंचमहाभूत स्थूल होते हैं,
      
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu