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| ==== ४. पर्यावरण संकल्पना को भारतीय बनाना ==== | | ==== ४. पर्यावरण संकल्पना को भारतीय बनाना ==== |
| + | १. यन्त्रवाद और प्लास्टिकवाद के चलते सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण के प्रदूषण की चपेट में आ गया है। सर्वत्र प्राकृतिक संकट बढ गये हैं । वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है । पहाड़ों पर बर्फ पिघल रही हैं, नदियों में बाढ आ रही है। अब यह विश्वस्तर पर चिन्ता का विषय बन गया है। |
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| + | इस संकट का मुकाबला करने के लिये सभायें, सम्मेलन, परिचर्चाओं का आयोजन विश्वस्तर पर हो रहा है। नीतियाँ बनाई जा रही हैं, योजनायें बनती हैं, अभियान छिड रहे हैं, नारे बनाये जा रहे हैं। |
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| + | ३. इन योजनाओं और नीतियों का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। खास बात यह है कि प्रदूषण जिनके कारण से बढ़ राह है ऐसे देश जिनसे नहीं बढ़ रहा है उन्हें पर्यावरण सुरक्षा का उपदेश दे रहे हैं, नीतियों के क्रियान्वयन हेतु बाध्य कर रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को नियन्त्रित कर रहे हैं। वास्तव में यह उल्टी गंगा चल रही है । प्रदूषण कम होने के स्थान पर बढ़ रहा है। |
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| + | ४. मूल में पर्यावरण के प्रदूषण के पश्न को सुलझाने के लिये पर्यावरण की संकल्पना ठीक से समझने की आवश्यकता है। पश्चिम अन्य बातों की तरह पर्यावरण के बारे में भी भौतिक स्तर पर ही देखता है। उसका और उसके प्रभाव में भारत सहित सभी देशों का ध्यान भूमि, जल और वायु के प्रदूषण पर ही केन्द्रित हुआ है। ये पंचमहाभूतों में तीन हैं। इनके प्रदूषण से शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत असर होता है, अनेक प्रकार के नये नये रोग पैदा होते हैं, पुराने रोगों में वृद्धि होती है, ये रोग कर्करोग की प्रकृति के होते हैं, वे असाध्य होते हैं यह बात अब सबके ध्यान में आ रही है। परन्तु प्रदूषणकारी प्रवृत्तियों से परावृत्त होने की शक्ति किसी में नहीं बची है यह भी हम देख रहे हैं। |
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| + | पंचमहाभूतों में और भी दो महाभूत बचे हैं। वे हैं अग्नि और आकाश । इनके प्रदूषण की ओर कुछ लोगों का तो ध्यान गया है परन्तु पर्याप्त मात्रा में नहीं । वास्तव में पूर्व के तीन जितना ही महत्त्व इन दोनों का भी है। उतनी ही गम्भीरता से इनकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिये। |
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| + | ६. आकाश का गुण है शब्द । शब्द अर्थात् ध्वनि । ध्वनि का प्रक्षण कानों की सुनने की क्षमता कम करता है यह तो ठीक है परन्तु मन की एकाग्रता और बुद्धि की सूक्ष्मता पर भी विपरीत असर करता है। कर्कशता, ऊँचापन, बेसूरापन, ध्वनि का प्रदूषण है। मधुरता, सौम्यता और सूरीलापन सुखदायी है। वाहनों की, बोलचाल की, कुछ वाद्ययन्त्रों की ध्वनि कर्कश होती है। ध्वनिवर्धक यन्त्र, तेज संगीत, चीखें और चिल्लाहट प्रदूषणकारी होते हैं । बेसूरापन प्रदूषण करता है यह तो सर्वविदित है । ध्वनिप्रदूषण का मानसिक और बौद्धिक स्तर पर दुष्प्रभाव होता है। |
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| + | अग्नि प्रकाश और उष्मा देता है। रासायनिक और प्लास्टिक से, पेट्रोल और डीझल से, अणुविकिरण से निकलने वाली उष्मा त्वचा, रक्त, नाडी संस्थान आदि पर गहरा दुष्प्रभाव करती है। यह ऊष्मा कितनी अधिक बढ़ गई है यह तो ग्लोबल वोमिंग की चिन्ता से ही पता चलता है । यह ऊष्मा और इन साधनों से ही मिलने वाला प्रकाश अत्यधिक हानिकारक है। |
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| + | परन्तु पर्यावरण केवल पंचमहाभूतों तक सीमित नहीं है। समस्त प्रकृति पंचमहाभूतों के साथ साथ तीन गुणों से भी युक्त है । ये तीन गुण हैं सत्त्व, रज और तम । मनुष्य के व्यक्तित्व में ये मन, बुद्धि और अहंकार के रूप में समाहित हुए हैं। मनुष्य के शरीर में ये कफ, पित्त और वात बनकर समाहित हुए हैं। शरीर के स्तर पर ये त्रिदोष कहे जाते हैं और व्यक्तित्व के स्तर पर अन्तःकरण । सृष्टि में सजीव या निर्जीव एक भी पदार्थ इन तीन गुणों से रहित नहीं होता है। न्यूनाधिक मात्रा में ये तीनों गुण रहते ही है। |
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| + | तीन गुण पंचमहाभूतों से अधिक प्रभावी होते हैं इसलिये उनका प्रदूषण भी अधिक दुष्प्रभाव करता है। वास्तव में पंचमहाभूतों का प्रदूषण भी इनके प्रदूषण से पैदा होता है । पंचमहाभूत स्थूल होते हैं, |
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| ==References== | | ==References== |