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भारत ने कभी सर्वश्रेष्ठ बनना नहीं चाहा, अर्थात् किसी के साथ स्पर्धा में उतरकर उससे श्रेष्ठ सिद्ध होने का विचार नहीं किया। अतः भारत ने कभी संघर्ष का प्रारम्भ नहीं किया, अपना विचार किसी पर थोपा नहीं, ज्यादती नहीं की, अपने व्यवहार और भावना से अन्यों को भी श्रेष्ठ बनने की प्रेरणा दी।
 
भारत ने कभी सर्वश्रेष्ठ बनना नहीं चाहा, अर्थात् किसी के साथ स्पर्धा में उतरकर उससे श्रेष्ठ सिद्ध होने का विचार नहीं किया। अतः भारत ने कभी संघर्ष का प्रारम्भ नहीं किया, अपना विचार किसी पर थोपा नहीं, ज्यादती नहीं की, अपने व्यवहार और भावना से अन्यों को भी श्रेष्ठ बनने की प्रेरणा दी।
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कर्तव्य और दायित्व के सन्दर्भ में भारत हमेशा अपना विचार करता है जबकि अधिकार और लाभ के सन्दर्भ में
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कर्तव्य और दायित्व के सन्दर्भ में भारत हमेशा अपना विचार करता है जबकि अधिकार और लाभ के सन्दर्भ में सम्पूर्ण विश्व का | विचार और व्यवहार का यह समायोजन भारत की विशाल बुद्धि और दीर्घदृष्टि का परिचय देता है।<blockquote>मनुस्मृति का यह सन्दर्भ देखने योग्य है, एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः ।</blockquote><blockquote>स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ।।</blockquote>अर्थात्
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इस देश में प्रथम जन्मे हुए लोगों से पृथ्वी के सर्व मनुष्य अपने अपने चरित्र की शिक्षा ग्रहण करें।
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वर्तमान सन्दर्भ में भी भारत को इस कथन को स्मरण में रखते हुए अपनी स्थिति को ठीक करने की आवश्यकता है।
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=== ६. आंतराष्ट्रीय मानक कैसे होने चाहीये ! ===
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