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अर्थात् प्रातःकाल उठते ही व्यक्ति समस्त प्रकृति का स्मरण करता है । अर्थात् पंचमहाभूत, प्राणी, वनस्पति और मनुष्य आदि सबसे सम्बन्धित होकर, सबसे अविरोधी रहकर ही भारतीय व्यक्ति अपने सुख और हित की कामना करता है।  
 
अर्थात् प्रातःकाल उठते ही व्यक्ति समस्त प्रकृति का स्मरण करता है । अर्थात् पंचमहाभूत, प्राणी, वनस्पति और मनुष्य आदि सबसे सम्बन्धित होकर, सबसे अविरोधी रहकर ही भारतीय व्यक्ति अपने सुख और हित की कामना करता है।  
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भारत के दीर्घतम आयुष्य ने, और इसी कारण से दीर्घतम इतिहास ने, यह सिद्ध किया है कि जो इस प्रकार
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भारत के दीर्घतम आयुष्य ने, और इसी कारण से दीर्घतम इतिहास ने, यह सिद्ध किया है कि जो इस प्रकार का 'सर्वेषाम् अविरोधेन' विचार और व्यवहार करता है वह चिरंजीव होता है। सनातनता का प्रत्यक्ष उदाहरण ही भारत ने प्रस्तुत किया है।
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इसलिये भारत को आज भी विश्व के सन्दर्भ में विचार करना चाहिये, अपने हित और सुख के साथ साथ विश्व के हित और सुख का विचार करना चाहिये ।
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अपने किसी भी विचार या व्यवहार से जगत का अकल्याण नहीं होना चाहिये यह एक बात है, अपने विचार और व्यवहार से जगत का हित और सुख होना चाहिये यह दूसरी बात है, जगत की किसी भी प्रजा के विचार और व्यवहार से हमारा या किसी का अकल्याण नहीं होना चाहिये यह तीसरी बात है और जगत के किसी भी विचार और व्यवहार से हमारा और दूसरों का कल्याण होना चाहिये यह चौथी बात है।
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इन चारों बातों को ध्यान में रखकर भारत ने हमेशा विचार और व्यवहार किया है। अपने पर होनवाले सांस्कृतिक और भौतिक आक्रमणों को परास्त किया है। स्वयं के व्यवहार में हित और हित के अविरोधी सुख को प्राप्त करने हेतु ज्ञानसाधना और धर्मसाधना की है। धर्म और संस्कृति के वैश्विक स्वरूप की कल्पना की है। अपनी संस्कृति को लेकर विश्व में संचार किया है। विश्व के लगभग सभी देशों में जाकर ज्ञान, संस्कार, कलाकौशल, सभ्यता, शिष्टाचार का प्रसार किया है। विश्वसंचार हेतु भारत ने अपनाया हुआ सूत्र है 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' - विश्व को आर्य बनायें। 'आर्य' संज्ञा श्रेष्ठतावाचक है, जातिवाचक नहीं । अर्थात् भारत ने हमेशा विचार किया है कि हम श्रेष्ठ बनें और विश्व को भी श्रेष्ठ बनायें।
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भारत ने कभी सर्वश्रेष्ठ बनना नहीं चाहा, अर्थात् किसी के साथ स्पर्धा में उतरकर उससे श्रेष्ठ सिद्ध होने का विचार नहीं किया। अतः भारत ने कभी संघर्ष का प्रारम्भ नहीं किया, अपना विचार किसी पर थोपा नहीं, ज्यादती नहीं की, अपने व्यवहार और भावना से अन्यों को भी श्रेष्ठ बनने की प्रेरणा दी।
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कर्तव्य और दायित्व के सन्दर्भ में भारत हमेशा अपना विचार करता है जबकि अधिकार और लाभ के सन्दर्भ में
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