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=== ५. भारत का विश्वकल्याणकारी मानस ===
 
=== ५. भारत का विश्वकल्याणकारी मानस ===
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हम जब भी कोई शुभ कार्य करते हैं तब प्रथम संकल्प करते हैं। शुभ कार्य हम रोज करते हैं। अपने इष्टदेवता, कुलदेवता या ग्रामदेवता की प्रतिदिन होने वाली पूजा, सन्ध्यावन्दन, अग्निहोत्र आदि नित्य होने वाले शुभ कार्य हैं। यह संकल्प इस प्रकार है...
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अद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशति - तमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे एक वृन्दः सप्तनवति कोटिः नवविंशति लक्षः नवचत्वारिंशतसहस्रः सप्तदशाधिक संवत्सरे चैत्र मासे शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां तिथौ भानुवासरे शुभमुहूर्ते जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तन्तर्गते प्रभासक्षेत्रे कर्णावती जनपदे बोडकदेवनगरे पुनरुत्थान विद्यापीठे चराचर श्रेयपे यसाधनार्थे अस्माभिः ज्ञानयज्ञः क्रियते ।
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अर्थात्
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यह संकल्प हमारे इतिहास और भूगोल के सन्दर्भो को दर्शानेवाला है । हम सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज के इस क्षण तक के काल का नित्य स्मरण करते हैं । हम सम्पूर्ण जम्बूद्वीप, अर्थात् एशिया महाद्वीप से लेकर जहाँ बैठे हैं वहाँ तक के स्थान को स्मरण करते हैं । देश और काल के साथ साथ हम जो शुभकार्य कर रहे हैं उसका उद्देश्य भी स्पष्ट रूप से बोलते हैं।
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इस संकल्प का संकेत यह है कि हम अपने आपको सम्पूर्ण सृष्टि और सनातन काल के साथ जोडे रखते हैं । हम जानते हैं कि हमारे किसी भी कार्य का परिणाम वैश्विक होगा। यह सृष्टिनियम है। यह भौतिक विज्ञान का भी नियम है और अध्यात्मविज्ञान का भी । सृष्टि के किसी भी कोने में किये गये विचार, इच्छा या कृति का परिणाम विश्वव्यापी ही होता है । इस नियम का भी हम रोज स्मरण करते हैं।
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तात्पर्य यह है कि भारतीयों का विचार और व्यवहार हमेशा से वैश्विक ही रहा है। हम अपने निजी सुख और हित की कामना भी विश्व के अविरोधी बनकर ही करते हैं। केवल अविरोधी नहीं तो विश्व के सुख और हित के लिये भी करते हैं।
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यहाँ कोई प्रश्न कर सकता है कि इस संकल्प में जम्बूद्वीप की ही बात की गई है, सम्पूर्ण सृष्टि की नहीं ।
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जम्बूद्वीप आज का एशिया महाद्वीप है। तो क्या पृथ्वी के शेष महाद्वीपों से हमारा सम्बन्ध नहीं है ?
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यह वैदिक काल का मन्त्र है। हो सकता है कि यह ऐसा काल है जब जम्बूद्वीप के अलावा एक भी द्वीप पर मनुष्य का निवास ही न हो । क्रमशः भारत से ही लोग अन्य द्वीपों पर जाकर बसे हो । अर्थात् यह कल्पना का विषय है, और कदाचित शोध का भी, कि भारत में जब संस्कृति का इतना अधिक विकास हुआ था तब विश्व के शेष महाद्वीपों की स्थिति क्या थी । दूसरा संकेत यह भी हो सकता है कि सम्पूर्ण जम्बूद्वीप सांस्कृतिक दृष्टि से एक है इसलिये हम अपने आपको जम्बूद्वीप निवासी कहते हैं।
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यह वैदिक मन्त्र है । दूसरा पौराणिक कथन भी स्मरण करने योग्य है । प्रातःकाल उठकर स्मरण किया जाता है... <blockquote>सप्तार्णवा सप्तकुला चलाश्च</blockquote><blockquote>सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त । </blockquote><blockquote>सप्तस्वराः सप्तरसातलानि</blockquote><blockquote>कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।। </blockquote><blockquote>पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथावः</blockquote><blockquote>स्पर्शी च वायुर्व्वलनं च तेजः । </blockquote><blockquote>नभः सशब्दं महता सहैव</blockquote><blockquote>कुर्वन्तु सर्वे मम सुभप्रभातम् ।।</blockquote>अर्थात्
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सात समुद्र, सात पर्वत, सात ऋषि (आकाश के सप्तर्षि नक्षत्र), सात द्वीपों के सात वन, सात स्वर, सात रसातल मेरे प्रभात को अच्छा करें।
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गन्धवती पृथ्वी, रसयुक्त जल, स्पर्शगुण युक्त वायु, उष्णता और प्रकाश देने वाला तेज और शब्दगुणवाला आकाश मेरे प्रभात को अच्छा करें।
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अर्थात् प्रातःकाल उठते ही व्यक्ति समस्त प्रकृति का स्मरण करता है । अर्थात् पंचमहाभूत, प्राणी, वनस्पति और मनुष्य आदि सबसे सम्बन्धित होकर, सबसे अविरोधी रहकर ही भारतीय व्यक्ति अपने सुख और हित की कामना करता है।
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भारत के दीर्घतम आयुष्य ने, और इसी कारण से दीर्घतम इतिहास ने, यह सिद्ध किया है कि जो इस प्रकार
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