# आन्तर्राष्ट्रीय मानक ऐसे होने चाहिये जो विश्व के सभी देशों को समान रूप से लागू हो ।
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# वे ऐसे होने चाहिये जो विश्व के किसी भी देश के हित के विरोधी न हों।
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# वे ऐसे होने चाहिये जिनका अस्वीकार विश्व का कोई भी देश न कर सके । उदाहरण के लिये मनुष्य के स्वास्थ्य की हानि न करे यह औषधिनिर्माण की शर्त रखना सबके लिये स्वीकार्य ही होना चाहिये ।
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# वे ऐसे होने चाहिये जो विश्व के सभी सम्प्रदायों से परे हों परन्तु एक भी सम्प्रदाय के विरोधी न हों ।
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# वे ऐसे होने चाहिये जिन्हें सभी देश विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिये लक्ष्य के रूप में स्वीकार करें।
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# वे ऐसे होने चाहिये जिसमें ज्ञान संस्कार, चरित्र, कर्तव्य स्वार्थकेन्द्री न हों और अर्थ से नापे न जाते हों।
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# वे ऐसे नहीं होने चाहिये जिससे एक देश को दूसरे देश अथवा देशों को दबाने का अवसर मिल सके।
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# आन्तर्राष्ट्रीय मानक किसी एक देश द्वारा बनाये गये नहीं अपितु सबने मिलकर बनाये हुए होने चाहिये ।
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# वे ऐसे लोगों के द्वारा बनने चाहिये जो पूरे विश्व को एक मानते हों और स्वयं निःस्वार्थ हो ।
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# विद्वान, बुद्धिमान, हृदयवान, पवित्र और करुणापूर्ण अन्तःकरण से बने मानक ही वैश्विक हो सकते हैं। सत्ता या धन के प्रभाव से दबे हुए लोगों द्वारा बनाये गये नहीं।