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| इन परमतअसहिष्णु और सहअस्तित्व में नहीं माननेवाले सम्प्रदायों में इस्लाम और इसाइयत सबसे प्रबल हैं । विश्वभर में अपने मत का प्रचार और प्रसार करने का सिलसिला उनके जन्मकाल से ही शुरू हुआ है। | | इन परमतअसहिष्णु और सहअस्तित्व में नहीं माननेवाले सम्प्रदायों में इस्लाम और इसाइयत सबसे प्रबल हैं । विश्वभर में अपने मत का प्रचार और प्रसार करने का सिलसिला उनके जन्मकाल से ही शुरू हुआ है। |
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− | सम्प्रदाय का सम्बन्ध भावनाओं के साथ होता है। पवित्रता, सजनता, भक्ति, पूजा, उपासना, साधना, तपश्चर्या आदि बातें इसके साथ जुडी होती हैं। परन्तु ये दोनों अपने सम्प्रदाय का प्रचार करने के लिये अत्याचार की किसी भी | + | सम्प्रदाय का सम्बन्ध भावनाओं के साथ होता है। पवित्रता, सजनता, भक्ति, पूजा, उपासना, साधना, तपश्चर्या आदि बातें इसके साथ जुडी होती हैं। परन्तु ये दोनों अपने सम्प्रदाय का प्रचार करने के लिये अत्याचार की किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। लालच, भय, छल, शोषण, अत्याचार, मारपीट, गुलामी और मृत्युदण्ड - कुछ भी करने में उन्हें संकोच नहीं है । विगत एक हजार वर्षों में देश के देश या तो इस्लाम अथवा इसाइ मतावलम्बी बन चुके हैं । भारत में इन दोनों ने कितना उधम मचा रखा है इसका अनुभव हम कर ही रहे हैं। |
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| + | अपने सम्प्रदाय के प्रचार के साथ साथ अन्य सम्प्रदायों को हानि पहुँचाना भी चल रहा है। इस्लाम मूर्तिपूजा में नहीं मानता इसलिये वह कहता है कि जगत में किसी को भी मूर्तिपूजा नहीं करनी चाहिये । जगत में अन्य सम्प्रदायों के मन्दिरों को, उनकी मूर्तियों को तोडना, उनका 'परम कर्तव्य' है। इसाइयों ने आफ्रिका, अमेरिका, |
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| + | ऑस्ट्रेलिया और भारत में जो निघृण कारनामे किये हैं वे भी मशहूर हैं । सोमनाथ, काशी, मथुरा, अयोध्या - भारत में ही कितने उदाहरण इस्लाम के हैं। गोवा का इतिहास इसाइयत के कारनामों से भरा हुआ है । इतना ही है कि हम इसे याद करना नहीं चाहते, जानना नहीं चाहते । जो भारत की है वही स्थिति विश्व के अन्य देशों की है। |
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| + | साम्प्रदायिक असहिष्णुता का यह सिलसिला विश्व के लिये बहुत घातक सिद्ध हो रहा है। भारत को इसका इलाज ढूँढना होगा, केवल अपने लिये नहीं, समस्त विश्व के लिये क्योंकि यह जरा भी न्याय्य नहीं है। |
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| + | विशेष बात यह है कि इन दोनों के लिये भारत में धर्मान्तरण बहुत कठिन सिद्ध हो रहा है। दोनों के तरीके उनके स्वभाव के अनुरूप अलग अलग हैं, परन्तु प्रयास आज भी हो रहे हैं । इस्लाम प्रकट हिंसा, जोरतलबी और आतंकवाद का सहारा लेता है जबकि इसाइयत लोभ, लालच, चिकित्सा, छल आदि का । भारत में वनवासी, दलित, पिछडे कहे जाने वाले लोगों में 'सेवा' के माध्यम से तो अमीर, नगरवासी, शिक्षित लोगों में 'शिक्षा' के माध्यम से निधार्मिकता फैलाने के प्रायस होते हैं । एक का स्वरूप भौतिक है, दूसरे का मानसिक । परन्तु इतने शतकों से प्रयास चलते रहने के बाद भी अभी भारत पूर्ण रूप से धर्मान्तरित नहीं हुआ है । यही भारत की शक्ति है और विश्व की आशा। |
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