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इस विश्व के असंख्य सम्प्रदायों में मुख्य दो प्रकार हैं ।
 
इस विश्व के असंख्य सम्प्रदायों में मुख्य दो प्रकार हैं ।
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सम्प्रदायों का एक वर्ग ऐसा है जिसकी मान्यताओं के मूल सूत्र हैं...
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उनका सम्प्रदाय विश्व में सर्वश्रेष्ठ है।
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उनका सम्प्रदाय न केवल सर्वश्रेष्ठ है, वही सत्य है, शेष सारे गलत है।
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जो गलत हैं उन्हें सही सम्प्रदाय अपनाना चाहिये । जो गलत हैं उनकी दुर्गति होगी। उन्हें दुर्गति से बचाना सम्प्रदाय का कर्तव्य है।
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यह कर्तव्य पवित्र है, उसका पालन करना अन्य सम्प्रदायों पर दया करना है।
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दूसरे सम्प्रदायों को अपने सम्प्रदाय में लाने का प्रयास करना चाहिये । यह अपना पवित्र कर्तव्य है।
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दूसरे सम्प्रदाय के लोग अज्ञानी है, असंस्कृत है, अपवित्र हैं, दुष्ट हैं, उन्हे दण्ड देना चाहिये ऐसा अधिकार अपने सम्प्रदाय को है।
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यदि वे अपने सम्प्रदाय में नहीं आते हैं तो उन्हें जीवित रहने का अधिकार नहीं है।
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हमारे सम्प्रदाय की आलोचना करने का किसी का भी अधिकार नहीं है। ऐसा करने वालों को दण्ड दिया जाना चाहिये।
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विश्वभर में केवल अपना ही सम्प्रदाय स्थापित नहीं होता तब तक रुकना नहीं चाहिये।
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सम्प्रदायों के इस वर्ग का मुख्य लक्षण यह है कि वे सहअस्तित्व में नहीं मानते । जो हमारे जैसा नहीं है उसे या तो हमारे जैसा होना चाहिये, नहीं तो हमारा दास बनना चाहिये, नहीं तो मर जाना चाहिये। तीनों बातों में हम उसकी सहायता करेंगे।
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इन परमतअसहिष्णु और सहअस्तित्व में नहीं माननेवाले सम्प्रदायों में इस्लाम और इसाइयत सबसे प्रबल हैं । विश्वभर में अपने मत का प्रचार और प्रसार करने का सिलसिला उनके जन्मकाल से ही शुरू हुआ है।
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सम्प्रदाय का सम्बन्ध भावनाओं के साथ होता है। पवित्रता, सजनता, भक्ति, पूजा, उपासना, साधना, तपश्चर्या आदि बातें इसके साथ जुडी होती हैं। परन्तु ये दोनों अपने सम्प्रदाय का प्रचार करने के लिये अत्याचार की किसी भी
    
==References==
 
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