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जोधपुर युनिवर्सिटी  
 
जोधपुर युनिवर्सिटी  
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इसके अतिरिक्त सभी आई आईटी केंद्र जहां ' ह्यमेनिटिझ' का पर्याय उपलब्ध है वहां यह विषय उपलब्ध है । संपूर्ण देश में कला शाखा एवं मिडिया केंद्रों में जहां अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, समाजशास्त्र, मानववंशशास्त्र (एंथ्रोपोलोजी), अर्थशास्त्र इत्यादि विषयों के पाठ्यक्रमों में इस नयी विद्याशाखा का समावेश किया जाता है अथवा उपरोक्त और इसी प्रकार का लेखन करने वाले अन्य कई प्रमुख विचारकों का लेखन पाठ्यक्रम में उपलब्ध करवाया
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इसके अतिरिक्त सभी आई आईटी केंद्र जहां ' ह्यमेनिटिझ' का पर्याय उपलब्ध है वहां यह विषय उपलब्ध है । संपूर्ण देश में कला शाखा एवं मिडिया केंद्रों में जहां अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, समाजशास्त्र, मानववंशशास्त्र (एंथ्रोपोलोजी), अर्थशास्त्र इत्यादि विषयों के पाठ्यक्रमों में इस नयी विद्याशाखा का समावेश किया जाता है अथवा उपरोक्त और इसी प्रकार का लेखन करने वाले अन्य कई प्रमुख विचारकों का लेखन पाठ्यक्रम में उपलब्ध करवाया जाता है । इस विद्याशाखा का नाम है 'कल्चरल स्टडीझ'
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इस विद्याशाखा का संस्थापक स्टुअर्ट हॉल - (रमंड विलिअम्स और रिचार्ड होगात के साथ ) मुलतः जमैकन था। संपूर्ण जीवन और करिअर ब्रिटन में हआ । वहां के शैक्षिक, राजकीय, सांस्कृतिक, सामाजिक समीकरण और स्थिति में उसने अपने लेखन से परिवर्तन किया । बर्मिंघम सेंटर ऑफ कल्चरल स्टडीझ की स्थापना की।
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शास्त्रीय मार्क्सिझम की लोकप्रिय विचारधारा कि 'पूजीवादी अर्थव्यवस्था' हर तरह की सामाजिक विषमता का मूलभूत कारण है, उसको अधिक व्यापक बनाकर तथा 'सांस्कृतिक आपखुदशाही' (cultural hegemony) सर्वसामान्य लोगों की हर प्रकार की दुरवस्था का मूल कारण है इस विचारधारा का अनुसरण कर के, प्रस्थापित संस्कृति को नकार कर 'सब कल्चर (sub culture) अथवा 'युथ कल्चर (youth culture) का आक्रमक पुरस्कार करने का मार्ग लेकर एक वैकल्पिक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजकीय व्यवस्था निर्माण करने का ध्येय लेकर इस विद्याशाखा की स्थापना की गई थी । अपनी अपनी सभ्यता के अनुसार जो भी शाश्वत, चिरंतन, वैश्विक सांस्कृतिक मूल्य सर्वत्र आधारभूत माने जाते हैं वे सब इन सांस्कृतिक आपखुदवादी समाज नियंत्रकों ने अल्पसामाजिक समूदायों की संस्कृति को नदारद करने के लिये उन पर थोपे हुए मूल्य हैं इस धारणा को प्रखर मान्यता दे कर, जीवन के सभी स्तर के सत्ताकेंद्रों को पहचानकर उनका निरंतर प्रतिकार करते रहना और प्रभावी संस्कृति को दरकिनार कर, युवाओं तथा अल्पसंख्य समूदायों के नवोदित, तात्कालिक, अल्पकालीन एवं विद्रोही रीति रिवाजों को शक्ति प्रदान करते रहने की कार्यपद्धति के पुरस्कर्ता एवं इस विद्याशाखा के प्रति आत्मीयता का अनुभव करनेवाले लेखकों का 'प्रतिकारवादी' लेखन इस विद्याशाखा के अंतर्गत उपलब्ध करवाने की यह कार्यपद्धति है। कल्चरल स्टडीझ' विद्यमान __संस्कृति का अध्ययन करता नहीं है, बल्कि एक संस्कृति का निर्माण करता हैं'इस निकष पर आधारित विद्यमान संस्कृति से संबंध नकारने वाला लेखन पाठ्यक्रममें उपलब्ध करवाया जाता है । 'सभी शाश्वत मूल्य प्रस्थापित की श्रेणी में आते हैं और तत्कालीन, समकालीन संस्कृति पारंपरिक संस्कृतिका प्रतिकार करनेवाली होती होती है । इसलिये उसका पुरस्कार करना और हर तरह की समकालीनता को मान्यता देते रहना यह सांस्कृतिक सता के केंद्रों को समाप्त करने का एकमेव मार्ग है। 'एक मनुष्य की राष्ट्र की संकल्पना का अर्थ है दूसरे मनुष्य का दोजख'इस आशय की शिक्षा सभी विद्यार्थी पिछले तीस वर्षों से भारतीय विश्वविद्यालयों की उपरोक्त विद्याशाखा के माध्यम से ले रहे हैं । माक्र्वाद की परंपरा उसके मूल स्वरूप में कायम रखना ही नहीं तो उसे और अधिक विकसित करने की कार्यपद्धति के आधार पर प्रतिदिन की कक्षाकक्ष शिक्षा में उपरोक्त एवं उनके जैसे सभी समकालीन लेखकों का साहित्य आज के विद्यार्थियों को पढाया जाता है । प्रतिदिन कम से कम ५ से छः घण्टे विद्यार्थी इन विचारों के तथा उन्हें प्रस्तुत करने वाले शिक्षकों के संपर्क में रहते हैं, वही पुस्तकें पढते हैं (इस विषय की असंख्य पुस्तकें इंटरनेट पर विनामूल्य उपलब्ध हैं) और उसी के आधार पर परीक्षा देते हैं । पश्चिम के विश्व की वास्तविकता का अनुभव ले कर उस विषय में किया गया आलोचनात्मक लेखन भारत जैसे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का जतन करने के साथ साथ अपने संपूर्ण विश्व में अपना अलग वैशिष्ट्य कायम रखने वाले देश को सांस्कृतिक द्रष्टि से समाप्त कर वहां फिर एक बार पाश्चात्य विश्व का प्रभाव निर्माण करना यही उनका ध्येय है।
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हॉल अपने लेखन में कहता है कि इस विद्याशाखा के विश्वभर के विद्यार्थियों ने केवल इस तात्विक और सैद्धांतिक प्रावीण्य प्राप्त करने का लक्ष्य न रखते हुए यह बात ध्यानमें रखनी चाहिये कि इस विद्याशाखा की सही सफलता उसकी व्यावहारिक कृतिशीलता में है । अर्थात विद्यार्थियों का ध्येय केवल सैद्धांतिक प्रावीण्य (Theoretical Fluency) प्राप्त करना नहीं, बल्कि पूरे विश्व में जीवन से संबंधित प्रत्येक विषय में 'विकल्प' प्रस्थापित करने का होना चाहिये । इसी हेतु से यह विद्याशाखा 'समकालीन सांस्कृतिक' रीतिरिवाजों को अतिशय महत्त्व देती है। उनके मतानुसार 'समकालीन संस्कृति मुख्य रूप से युवा और किशोरवयीन लडके लडकियों के माध्यम से प्रकट होती है । यह प्रकटीकरण मूलतः पारंपरिक और शाश्वत, कालातीत ऐसे मूल्य एवं आदर्शों के विपरीत स्वरूप का ही होता है । इसलिये किसी भी सभ्यता में सर्वमान्य रीति रिवाजों का पुरस्कार करनेवालों  के मतानुसार सर्वसामान्य रूप से युवानों की संस्कृति मूल्यहीन होती है, कम से कम ऐसा माना तो जाता ही है। दो पीढियों के बीच की इसी विचार भिन्नता का फायदा  ऊठाकर यह विचारधारा 'युथ कल्चर' माननेवालों को सोच समझ कर 'दमनकारी प्रस्थापित संस्कृति का प्रतिकार करने के लिये उकसाया जाता है और सौहार्द, रचनात्मकता, प्रेम, आदरभाव, त्याग और सेवा जैसे मूल्यों के आधार पर परस्पर संबंधित पीढियाँ , समुदाय, समाज, कुटुंब के सदस्य, सगे संबंधी इत्यादि के बीच सत्ता संघर्ष का बीज डालकर 'साधक' सत्य से 'बाधक' अवस्था प्रति ले जाते हैं।
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इस विद्याशाखा को 'कल्चरल स्टडीझ' नाम देने के पीछे एक विशेष सैद्धांतिक कारण है ।महाविद्यालयीन विद्यार्थियों में, युवकों में साम्यवादी विचारों की लोकप्रियता बढाने का अवसर समविचारी प्राध्यापकों को देने वाली विद्याशाखा का नाम 'कल्चरल अर्थात 'सांस्कृतिक रखने का कारण समज लेना अत्यंत आवश्यक है । विश्व की सभी सभ्यताओं के एवं देशों के सामाजिक और सांस्कृतिक तथ्यों का अध्ययन करने वाले पारंपरिक सामाजिक शास्त्र याने 'समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मानववंश शास्त्र, इतिहास और राज्यशास्त्र'। इन सभी विद्याशाखाओं के अंतर्गत सामान्यतः किये गये १५०० जितने सामाजिक अनुसंधानों में पाश्चात्य बुद्धिजीवियों का तथा 'क्लासिकल मार्क्सिझम, का वर्चस्व रहा था । सभी सामाजिक, राजकीय सिद्धांतों को शास्त्रीय स्वरूप के मार्क्सवाद का आधार था । एकांगी स्वरूप के 'पूंजीवादी औद्योगिकता'के तर्क के आधार पर संपूर्ण विश्व में रहे 'वैविध्यपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक तथ्यों का अध्ययन एवं अनुसंधान ऐसा इन विचारों का स्वरूप होने के परिणाम स्वरूप 'मार्क्सप्रणीत विचारों की अपरिहार्यता निर्माण हुई और वैचारिक अभिसरण की प्रक्रिया में स्थिरता आई । परिणामतः जाने अनजाने 'उदारवाद'का पुरस्कार करनेवाला मार्क्सवाद कालांतर में 'सैद्धांतिक साँचे में अटक जाने के कारण संकुचित हो गया और वैश्विक स्तर पर की भिन्न संस्कृति, और समाज के वास्तविक आकलन की प्रक्रिया में कालबाह्य सिद्ध होने लगा । मार्क्सवाद की अपरिहार्यता से कालबाह्यता तक की उसकी यात्रा की परिणति उसके समाप्त होने में न हो इस लिये तथा उसकी उपयोगिता कायम रखने के लिये उसे कालानुरूप, समाज, स्थान, व्यक्ति, समूह, और देश काल सापेक्ष बनाकर एक ऐसी विद्याशाखा में मार्क्सवाद का समावेश किया गया जो कि मार्क्सवाद के प्रति संपूर्ण निष्ठा, केवल अनुनय की 'सापेक्षता'की पद्धति से कार्य करने का अवसर देगी । जिस में बाह्य रूप से तो 'वैचारिक सापेक्षता अथवा उदारता का स्वीकार हुआ होगा परंतु मूल साम्यवादी रचना अबाधित ही रहेगी । इस प्रकार का उपर से शैक्षिक परंतु वास्तव में राजकीय कार्य करना केवल शिक्षा के, प्रबोधन के माध्यम से ही हो सकता है, वही परिणामकारक है यही बात सामने रखकर इस विद्याशाखा का जन्म हुआ । पूर्व प्रस्थापित सामाजिक शास्त्रों के एकांगी और प्रवंचक 'वस्तुनिष्ठ'वैचारिकता के परिणामहीन होने से साम्यवाद की जो हानि हुई थी उसकी भरपाई करने के लिये 'नये पर्याय'का निर्माण कर वैकल्पिक राजकीय सत्ता की राजनीति में सहभागी होने के उद्देश्य से पूरक सामाजिक परिस्थिति अनिवार्य होने से, उसे सहज स्वीकार्य ऐसा नाम कल्चरल स्टडीझ' (सांस्कृतिक अध्ययन') दिया गया ।
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संपूर्ण रूप से साम्यवादी, मार्क्सवादी संरचना रखनेवाली कल्चरल स्टडीझ की विद्याशाखा पूरे विश्व के जो भी देशों के विश्वविद्यालय अथवा संशोधन केंद्रों में सीखाई जाती है, उन सभी देशों में 'वहाँ के 'राष्ट्रवाद' को सिर से पाँव तक छेद कर, मार्क्सवाद के, साम्यवाद के गृहितों को, तर्कों को बुद्धिप्रमाण्यवादी, तर्कशुद्ध वैज्ञानिक ऐसी प्रतिष्ठा प्राप्त करा कर शैक्षिक पाठ्यक्रम के रूप में अध्ययन के लिये उपलब्ध करवाया जाता हैं । १९१० से १९३० के दौरान इटली की 'कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष अन्तोनिओ ग्रामची ( -पींपळे ऋवशीलळ) के क्लासिकल
    
==References==
 
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