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'''प्रश्न ३८ सीधा ही प्रश्न है - क्या आप मोबाइल, कम्प्यूटर और टीवी को अमान्य करते हैं ?'''
 
'''प्रश्न ३८ सीधा ही प्रश्न है - क्या आप मोबाइल, कम्प्यूटर और टीवी को अमान्य करते हैं ?'''
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एक जिज्ञासु का प्रश्र
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'''एक जिज्ञासु का प्रश्र'''
आपने जितना सीधा पूछा उतना ही सीधा बताना है तो कहना होगा कि हाँ इन्हें अमान्य करने से ही बचना सम्भव
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३६८
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आपने जितना सीधा पूछा उतना ही सीधा बताना है तो कहना होगा कि हाँ इन्हें अमान्य करने से ही बचना सम्भव होगा । परन्तु आप कहेंगे मान्य हैं और हम कहेंगे अमान्य हैं इससे न तो कोई खुलासा होगा न हल निकलेगा । इसलिये अमान्य होने के कारण भी बताने होंगे ।
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. इन सबके कारण पर्यावरण का प्रदूषण और स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है जो कैन्सर तक का कारण बनती है । यह एक मात्र कारण भी इन्हें अमान्य करने हेतु पर्याप्त है ।
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पर्व ५ : विविध
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२. हम “'प्राइवसी' को तो बहुत मानते हैं । इसलिये तो निवास के लिये कमरा अलग माँगते हैं । पत्रव्यवहार गोपनीय रखते हैं । हमारे घर “दरवाजा बन्द घर हो गये हैं । इस इण्टरनेट सभ्यता में सब कुछ “एक्स्पोइड' हो गया है, खुला हो गया है । घर गोपनीय बनाने वाले पूर्ण रूप से खुले हो जाना क्यों पसन्द करते हैं ?
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४. इन साधनों से मन की शान्ति, एकाग्रता और चिन्तन की गहराई नष्ट हो गई है । यह पागलपन की और गति करना है । यह हमें चलता है क्या ?
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प्रश्न ३९
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५. हमारी सम्पर्क व्यवस्था, संवाद पद्धति, सूचना पहुँचाने की प्रक्रिया अत्यन्त विशूंखल हो गई है । पूर्व में जो एक पोस्टकार्ड से हो जाता था वह अब बीसों बार सूचना देने से भी नहीं होता ।
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उत्तर
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६. व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता कम हुई है, ध्यान करने की क्षमता भी कम हुई है । मानसिक रूप से हम मारे मारे घूम रहे हैं ।  
 
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प्रश्न ४०
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उत्तर
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होगा । परन्तु आप कहेंगे मान्य हैं और हम कहेंगे अमान्य हैं इससे न तो कोई खुलासा होगा
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न हल निकलेगा । इसलिये अमान्य होने के कारण भी बताने होंगे ।
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१. इन सबके कारण पर्यावरण का प्रदूषण और स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है जो कैन्सर तक का कारण बनती
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है । यह एक मात्र कारण भी इन्हें अमान्य करने हेतु पर्याप्त है ।
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२. हम “'प्राइवसी' को तो बहुत मानते हैं । इसलिये तो निवास के लिये कमरा अलग माँगते हैं । पत्रव्यवहार
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गोपनीय रखते हैं । हमारे घर “दरवाजा बन्द घर हो गये हैं । इस इण्टरनेट सभ्यता में सब कुछ “एक्स्पोइड' हो
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गया है, खुला हो गया है । घर गोपनीय बनाने वाले पूर्ण रूप से खुले हो जाना क्यों पसन्द करते हैं ?
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४. इन साधनों से मन की शान्ति, एकाग्रता और चिन्तन की गहराई नष्ट हो गई है । यह पागलपन की और गति
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करना है । यह हमें चलता है क्या ?
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५. हमारी सम्पर्क व्यवस्था, संवाद पद्धति, सूचना पहुँचाने की प्रक्रिया अत्यन्त विशूंखल हो गई है । पूर्व में जो
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एक पोस्टकार्ड से हो जाता था वह अब बीसों बार सूचना देने से भी नहीं होता ।
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६. व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता कम हुई है, ध्यान करने की क्षमता
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कम हुई है । मानसिक रूप से हम मारे मारे
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घूम रहे हैं ।
      
इन साधनों को अमान्य करने के इतने कारण क्या कम लगते हैं ?
 
इन साधनों को अमान्य करने के इतने कारण क्या कम लगते हैं ?
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सब प्रयोग करते हैं इसलिये वह सही नहीं हो जाता । आज के वातावरण में कोई सुनेगा नहीं यह सही है परन्तु इतने
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सब प्रयोग करते हैं इसलिये वह सही नहीं हो जाता । आज के वातावरण में कोई सुनेगा नहीं यह सही है परन्तु इतने मात्र से वह सही नहीं हो जाता ।
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मात्र से वह सही नहीं हो जाता ।
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'''प्रश्न ३९ जमाने के अनुसार नहीं चलने में क्या व्यावहारिकता है ? भारतीय शिक्षा के नाम पर अथ से इति सब कुछ नकारना कहाँ तक उचित है ? क्या वर्तमान शिक्षा में सब कुछ छोड देने योग्य है ?'''
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जमाने के अनुसार नहीं चलने में क्या व्यावहारिकता है ? भारतीय शिक्षा के नाम पर अथ से इति सब कुछ
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एक प्राध्यापक का प्रश्र
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नकारना कहाँ तक उचित है ? क्या वर्तमान शिक्षा में सब कुछ छोड देने योग्य है ?
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एक प्राध्यापक का प्रश्र
   
भारत में भारतीय शिक्षा होनी चाहिये इतना यदि हमने स्वीकर कर लिया तो सारी की सारी बातें परिवर्तनीय हैं यह
 
भारत में भारतीय शिक्षा होनी चाहिये इतना यदि हमने स्वीकर कर लिया तो सारी की सारी बातें परिवर्तनीय हैं यह
 
भी मानना ही पडेगा ।
 
भी मानना ही पडेगा ।
हमें यदि भोपाल से कन्याकुमारी जाना है परन्तु दिल्ली जाने वाली गाडी में बैठ गये हैं तो कोच बदलना,
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बैठक बदलना, नास्ते के पदार्थ बदलना आदि से काम नहीं चलेगा । हमें गाडी ही बदलनी होगी, इतना ही नहीं
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तो उल्टी दिशा में जाने वाली गाडी में ही बैठना पडेगा ।
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हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की
  −
डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना
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पडेगा । इसी प्रकार यदि भारतीय शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना
  −
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"ST |
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सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो
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हमें यदि भोपाल से कन्याकुमारी जाना है परन्तु दिल्ली जाने वाली गाडी में बैठ गये हैं तो कोच बदलना, बैठक बदलना, नास्ते के पदार्थ बदलना आदि से काम नहीं चलेगा । हमें गाडी ही बदलनी होगी, इतना ही नहीं तो उल्टी दिशा में जाने वाली गाडी में ही बैठना पडेगा ।
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भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ?
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हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना
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पडेगा । इसी प्रकार यदि भारतीय शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना पड़ेगा।
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एक जिज्ञासु का प्रश्न
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'''प्रश्न ४० सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ?'''
कारण यह है कि जो सरकार का काम नहीं है उससे सारी अपेक्षायें की जा रही हैं । वर्तमान लोकतन्त्र में सरकार मना
  −
तो नहीं कर सकती फिर उससे जो बनता है वह करती है । वास्तव में यह तो समाज की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा
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की व्यवस्था करे । समाज में भी यह जिम्मेदारी हर किसीकी नहीं है, शिक्षकों की है
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एक जिज्ञासु का प्रश्न कारण यह है कि जो सरकार का काम नहीं है उससे सारी अपेक्षायें की जा रही हैं । वर्तमान लोकतन्त्र में सरकार मना तो नहीं कर सकती फिर उससे जो बनता है वह करती है । वास्तव में यह तो समाज की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा की व्यवस्था करे । समाज में भी यह जिम्मेदारी हर किसीकी नहीं है, शिक्षकों की है ।
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शिक्षा का बहुत बडा अंश घर में होता है । घर में मातापिता की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चे के स्वास्थ्य, संस्कार, व्यवहारदृक्षता, कौशल, सामाजिकता आदि सिखायें । शेष शिक्षा विद्यालय में होगी जो शिक्षक की जिम्मेदारी है । मातापिता और शिक्षक दोनों यदि अपनी जिम्मेदारी छोड देते हैं तो सरकार की बाध्यता बन जाती है । फिर शिक्षा का वही होगा जो आज हो रहा है ।
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'''प्रश्न ४१ आज समाज में चारों और ऐसा क्या क्या नहीं है जो नई पीढी का विकास अवरुद्ध करता हो ? उसकी
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व्यवस्था कैसे की जा सकती है ?'''
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प्रश्न ४१
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'''एक जनप्रतिनिधि का प्रश्न'''
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उत्तर
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उत्तर १, आज समाज में व्यायामशालायें नहीं हैं जहाँ जाकर तरुण और युवा व्यायाम करें ।
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प्रश्न ४२
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२. आज घरों को आँगन नहीं हैं जहाँ बालअवस्था के बच्चे खेलें । विद्यालयों में मैदान हैं परन्तु खेलने के लिये बच्चों के पास समय नहीं है ।
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उत्तर
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. 'पढाई' पागल कुत्ते की तरह उनके पीछे पडी है ।
 
  −
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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शिक्षा का बहुत बडा अंश घर में होता है । घर में मातापिता की जिम्मेदारी है कि अपने
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बच्चे के स्वास्थ्य, संस्कार, व्यवहारदृक्षता, कौशल, सामाजिकता आदि सिखायें । शेष शिक्षा विद्यालय में होगी जो
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शिक्षक की जिम्मेदारी है । मातापिता और शिक्षक दोनों यदि अपनी जिम्मेदारी छोड देते हैं तो सरकार की बाध्यता
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बन जाती है । फिर शिक्षा का वही होगा जो आज हो रहा है ।
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आज समाज में चारों और ऐसा क्या क्या नहीं है जो नई पीढी का विकास अवरुद्ध करता हो ? उसकी
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व्यवस्था कैसे की जा सकती है ?
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एक जनप्रतिनिधि का प्रश्न
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५१, आज समाज में व्यायामशालायें नहीं हैं जहाँ जाकर तरुण और युवा व्यायाम करें ।
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. आज घरों को आँगन नहीं हैं जहाँ बालअवस्था के बच्चे खेलें । विद्यालयों में मैदान हैं परन्तु खेलने के लिये
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बच्चों के पास समय नहीं है । 'पढाई' पागल कुत्ते की तरह उनके पीछे पडी है ।
   
. घर में एक से अधिक बच्चे नहीं है जिससे उनकी परिवारभावना का विकास हो ।
 
. घर में एक से अधिक बच्चे नहीं है जिससे उनकी परिवारभावना का विकास हो ।
.. करने के लिये कोई काम नहीं है जिससे उनकी कार्यकुशलता और स्वतन्त्र बुद्धि का विकास at |
  −
.. ऐसा उत्तम मनोरंजन नहीं है जिससे उनके सौन्दर्यबोध और रसिकता का विकास हो ।
  −
.. ऐसे रेत और मिट्टी के रास्ते नहीं है और भीड से मुक्त स्थान नहीं हैं जहां वे मुक्त आवनजावन कर सकें ।
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.. ऐसा भोजन भी नहीं है जिससे उनके शरीर और मन अच्छे बनें ।
  −
वास्तव में आज के विद्यार्थी विकास के अनेक अवसरों से वंचित हैं । पैसा खर्च करके हमने ये सारी बातें उनसे
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छीन ली हैं ।
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हमारा बालक क्या बनेगा यह कौन निश्चित कर सकता है ? हम, शिक्षक, बालक स्वयं या सरकार ? यदि
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हमें करना है तो हम कैसे करेंगे?
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८ ८ FS K xa
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४. करने के लिये कोई काम नहीं है जिससे उनकी कार्यकुशलता और स्वतन्त्र बुद्धि का विकास हो |
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एक माता का प्रश्र
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५. ऐसा उत्तम मनोरंजन नहीं है जिससे उनके सौन्दर्यबोध और रसिकता का विकास हो ।
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प्रथम अधिकार और जिम्मेदारी मातापिता की है । उन्हें प्रथम कल्पना करनी चाहिये कि वे कैसा बालक चाहते
+
६. ऐसे रेत और मिट्टी के रास्ते नहीं है और भीड से मुक्त स्थान नहीं हैं जहां वे मुक्त आवनजावन कर सकें
हैं । उदाहरण के लिये अच्छा चाहिये, स्वस्थ चाहिये, बुद्धिमान चाहिये ऐसा तो सभी मातापिता चाहेंगे ही
     −
वह बडा होकर अपनी गृहस्थी बसायेगा, खूब पैसा कमायेगा और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा ऐसा भी
+
७. ऐसा भोजन भी नहीं है जिससे उनके शरीर और मन अच्छे बनें । वास्तव में आज के विद्यार्थी विकास के अनेक अवसरों से वंचित हैं । पैसा खर्च करके हमने ये सारी बातें उनसे छीन ली हैं ।  
चाहेंगे
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यह चाह अच्छी है । केवल इसके लिये जो कुछ करना आवश्यक है वह करने से ही हमारी ae A
+
'''प्रश्न ४२ हमारा बालक क्या बनेगा यह कौन निश्चित कर सकता है ? हम, शिक्षक, बालक स्वयं या सरकार ? यदि हमें करना है तो हम कैसे करेंगे?'''
स्वरूप धारण कर सकती है |
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रही बात अथर्जिन की । अथर्जिन हेतु कैसा व्यवसाय करेगा, उस व्यवसाय के लिये कौन सी शिक्षा प्राप्त
+
'''एक माता का प्रश्र'''
करेगा यह तय करने के लिये बालक को आसक्ति छोड़कर जानना होगा । जानने के लिये अनेक जानकार लोग
  −
हमारी सहायता कर सकते हैं । शिक्षक भी सहायक बन सकते हैं । बालक को यदि निश्चित करना है तो उसे
  −
निश्चित करने की क्या प्रक्रिया होती है यह सिखाना होगा । आज तो सतन्नह वर्ष के तरुण भी कुछ भी निश्चित नहीं
  −
कर पाते हैं और मित्र करते हैं वही करते हैं । सत्रह वर्ष में तो वास्तव में अथार्जिन शुरू हो जाना चाहिये । करिअर
  −
वास्तव में दस वर्ष की आयु में निश्चित हो जानी चाहिये और उसके लिये उचित शिक्षा भी शुरू हो जानी चाहिये ।
     −
आज तो हम कुछ भी निश्चित नहीं करते सब कुछ हो जाता है और हम असहाय होकर देखते रहते हैं,
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'''उत्तर''' प्रथम अधिकार और जिम्मेदारी मातापिता की है उन्हें प्रथम कल्पना करनी चाहिये कि वे कैसा बालक चाहते हैं । उदाहरण के लिये अच्छा चाहिये, स्वस्थ चाहिये, बुद्धिमान चाहिये ऐसा तो सभी मातापिता चाहेंगे ही
दुःखी होते रहते हैं
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वह बडा होकर अपनी गृहस्थी बसायेगा, खूब पैसा कमायेगा और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा ऐसा भी चाहेंगे ।
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पर्व ५ : विविध
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यह चाह अच्छी है । केवल इसके लिये जो कुछ करना आवश्यक है वह करने से ही हमारी चाह मृत स्वरूप धारण कर सकती है |
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रही बात अथर्जिन की । अथर्जिन हेतु कैसा व्यवसाय करेगा, उस व्यवसाय के लिये कौन सी शिक्षा प्राप्त करेगा यह तय करने के लिये बालक को आसक्ति छोड़कर जानना होगा । जानने के लिये अनेक जानकार लोग हमारी सहायता कर सकते हैं । शिक्षक भी सहायक बन सकते हैं । बालक को यदि निश्चित करना है तो उसे निश्चित करने की क्या प्रक्रिया होती है यह सिखाना होगा । आज तो सतन्नह वर्ष के तरुण भी कुछ भी निश्चित नहीं कर पाते हैं और मित्र करते हैं वही करते हैं । सत्रह वर्ष में तो वास्तव में अथार्जिन शुरू हो जाना चाहिये । करिअर वास्तव में दस वर्ष की आयु में निश्चित हो जानी चाहिये और उसके लिये उचित शिक्षा भी शुरू हो जानी चाहिये ।
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प्रश्न ४३
+
आज तो हम कुछ भी निश्चित नहीं करते । सब कुछ हो जाता है और हम असहाय होकर देखते रहते हैं, दुःखी होते रहते हैं।
    
उत्तर
 
उत्तर
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प्रश्न दंड
+
'''प्रश्न ४३ पन्द्रह सोलह वर्ष के बच्चे आत्महत्या करते हैं । उन्हें कैसे बचायें ?'''
उत्तर
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Wa ve
+
'''एक अभिभावक का प्रश्न'''
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उत्तर
+
'''उत्तर''' इसका कारण मानसिक दुर्बलता है और मातापिता उसके लिये जिम्मेदार हैं । जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आयें, मन की इच्छा पूरी न हो, समस्या से घिर जायें और मार्ग न दिखाई दे तो भी हिम्मत नहीं हारना, निराश नहीं होना, धैर्यपूर्वक मुसीबतों का सामना करना सिखाना चाहिये । मातापिता कुछ भी सिखाते नहीं, उल्टे हर बात में सब कुछ
 
  −
पन्द्रह सोलह वर्ष के बच्चे आत्महत्या करते हैं । उन्हें कैसे बचायें ?
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एक अभिभावक HT TA
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  −
इसका कारण मानसिक दुर्बलता है और मातापिता उसके लिये जिम्मेदार हैं । जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आयें,
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मन की इच्छा पूरी न हो, समस्या से घिर जायें और मार्ग न दिखाई दे तो भी हिम्मत नहीं हारना, निराश नहीं होना,
  −
धैर्यपूर्वक मुसीबतों का सामना करना सिखाना चाहिये । मातापिता कुछ भी सिखाते नहीं, उल्टे हर बात में सब कुछ
   
चाहिये उससे भी अधिक मिलता है, आराम है, सुविधा है, सुरक्षा है । दूसरी और उनकी रुचि, क्षमता आदि से पूर्ण
 
चाहिये उससे भी अधिक मिलता है, आराम है, सुविधा है, सुरक्षा है । दूसरी और उनकी रुचि, क्षमता आदि से पूर्ण
बेखबर रहकर ऊँची अपेक्षायें रखी जाती हैं । हमें लगता है कि पैसे से खरीदी जाने वाली सब व्यवस्था कर देने से
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बेखबर रहकर ऊँची अपेक्षायें रखी जाती हैं । हमें लगता है कि पैसे से खरीदी जाने वाली सब व्यवस्था कर देने से परीक्षा में अधिक अंक मिल ही जायेंगे । इन सबसे परेशान होकर उनके लिये बचने का कोई उपाय ही नहीं रहता और वे आत्महत्या करते हैं ।
परीक्षा में अधिक अंक मिल ही जायेंगे । इन सबसे परेशान होकर उनके लिये बचने का कोई उपाय ही नहीं रहता और
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वे आत्महत्या करते हैं ।
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वास्तव में उन्हें कठिनाई, समस्या, कष्ट आदि का अनुभव मिलना चाहिये, तात्त्विक और व्यावहारिक बुद्धि
+
वास्तव में उन्हें कठिनाई, समस्या, कष्ट आदि का अनुभव मिलना चाहिये, तात्त्विक और व्यावहारिक बुद्धि कसी जानी चाहिये, मन की शिक्षा होनी चाहिये । ऐसा होगा तभी वे सम्हलेंगे । नहीं तो आत्महत्या न करें तो भी तनाव, हताशा, उत्तेजना आदि तो रहता ही है । रक्तचाप, मधुप्रमेह और हृदयाघात की बिमारियाँ बढने का कारण यही है । जो आत्महत्या नहीं करते वे इन रोगों से ग्रस्त हो जाते है ।
कसी जानी चाहिये, मन की शिक्षा होनी चाहिये । ऐसा होगा तभी वे सम्हलेंगे । नहीं तो आत्महत्या न करें तो भी
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तनाव, हताशा, उत्तेजना आदि तो रहता ही है । रक्तचाप, मधुप्रमेह और हृदयाघात की बिमारियाँ बढने का कारण
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यही है । जो आत्महत्या नहीं करते वे इन रोगों से ग्रस्त हो जाते है ।
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मातापिता होकर बहुत कुछ करना होता है । केवल पैसे से सबकुछ नहीं मिल जाता यह बात अच्छी तरह
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मातापिता होकर बहुत कुछ करना होता है । केवल पैसे से सबकुछ नहीं मिल जाता यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिये ।
से समझ लेनी चाहिये ।
      
बच्चे हमारी ही नहीं तो समाज की मूल्यवान सम्पत्ति हैं । उस सम्पत्ति का जतन करना चाहिये ।
 
बच्चे हमारी ही नहीं तो समाज की मूल्यवान सम्पत्ति हैं । उस सम्पत्ति का जतन करना चाहिये ।
क्या वास्तव में संस्कृत पढने की आवश्यकता है ? यदि हाँ तो विद्यालय में वह कैसे पढाई जाय ?
  −
भारतीयों के लिये संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है । इसके कई कारण हैं जिनमें दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । भारतीय
  −
ज्ञानधारा जिन ग्रन्थों में सुरक्षित है वे सब संस्कृत में रचे गये हैं । उनका प्रत्यक्ष पठन कर सकें इस लिये संस्कृत
  −
पढना आवश्यक है । एक भारतीय को अपनी ही ज्ञानधारा का परिचय न हो यह कैसे सम्भव है ? वह शिक्षित ही
  −
कैसे कहा जायेगा ? दूसरा, भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है । अपनी मातृभाषा को उत्तम स्तर की
  −
बनाने हेतु संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है । हर कोई चाहेगा कि वह अपनी भाषा का प्रयोग उत्तम पद्धति से
  −
कर सके ।
     −
संस्कृत तो क्या, जगत की कोई भी भाषा प्रथम बोलनी होती है । संस्कृत का प्रारम्भ भी संस्कृत बोलने से
+
'''प्रश्न ४४ क्या वास्तव में संस्कृत पढने की आवश्यकता है ? यदि हाँ तो विद्यालय में वह कैसे पढाई जाय ?'''
होता है । शिशु अवस्था से ही संस्कृत बोलने का अभ्यास शुरू करना चाहिये । जब पढ़ने लिखने का क्रम आता
  −
है तब लिपि सीखने की आयु में प्रथम लिपि और बाद में पठन शुरू करना चाहिये । अच्छा बोलना और पढना
  −
अच्छी तरह अवगत होने के बाद लेखन शुरू करना चाहिये । पढने हेतु सुन्दर, ललित और शास्त्रीय वाड़्य या तो
  −
एकत्रित करना चाहिये, नहीं तो निर्माण करना चाहिये । संस्कृत का अध्ययन शुरू करने से पूर्व, अपरिचय के
  −
कारण से जो ग्रन्थियाँ होती है वे अध्ययन शुरू करने के बाद शीघ्र ही छूट जाती है और आनन्द का अनुभव होता
  −
है।
  −
क्या विद्यालय जाना इतना अनिवार्य है कि उसे संविधान के अन्तर्गत अनिवार्य बनाया जाता है और
  −
सबको निःशुल्क पढाने हेतु अभियान चलाया जाता है ?
  −
सबके लिये शिक्षा आवश्यक है । शिक्षा ज्ञानप्राप्ति का मार्ग है इसलिये सबके लिये आवश्यक है । परन्तु यह
  −
स्वेच्छा और स्वतन्त्रता से ही ग्रहण की जा सकती है, अनिवार्य बनाने से नहीं । निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा
  −
यह सरकार का नियम है । शिक्षा निःशुल्क होना तो ठीक ही है परन्तु अनिवार्य बनाना सम्भव नहीं होता । जिसे
     −
३७१
+
'''उत्तर''' भारतीयों के लिये संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है । इसके कई कारण हैं जिनमें दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । भारतीय
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ज्ञानधारा जिन ग्रन्थों में सुरक्षित है वे सब संस्कृत में रचे गये हैं । उनका प्रत्यक्ष पठन कर सकें इस लिये संस्कृत पढना आवश्यक है । एक भारतीय को अपनी ही ज्ञानधारा का परिचय न हो यह कैसे सम्भव है ? वह शिक्षित ही कैसे कहा जायेगा ? दूसरा, भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है । अपनी मातृभाषा को उत्तम स्तर की बनाने हेतु संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है । हर कोई चाहेगा कि वह अपनी भाषा का प्रयोग उत्तम पद्धति से कर सके ।
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संस्कृत तो क्या, जगत की कोई भी भाषा प्रथम बोलनी होती है । संस्कृत का प्रारम्भ भी संस्कृत बोलने से होता है । शिशु अवस्था से ही संस्कृत बोलने का अभ्यास शुरू करना चाहिये । जब पढ़ने लिखने का क्रम आता है तब लिपि सीखने की आयु में प्रथम लिपि और बाद में पठन शुरू करना चाहिये । अच्छा बोलना और पढन अच्छी तरह अवगत होने के बाद लेखन शुरू करना चाहिये । पढने हेतु सुन्दर, ललित और शास्त्रीय वाड़्य या तो एकत्रित करना चाहिये, नहीं तो निर्माण करना चाहिये । संस्कृत का अध्ययन शुरू करने से पूर्व, अपरिचय के कारण से जो ग्रन्थियाँ होती है वे अध्ययन शुरू करने के बाद शीघ्र ही छूट जाती है और आनन्द का अनुभव होता है।
   −
       
+
'''प्रश्न ४५ क्या विद्यालय जाना इतना अनिवार्य है कि उसे संविधान के अन्तर्गत अनिवार्य बनाया जाता है और
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सबको निःशुल्क पढाने हेतु अभियान चलाया जाता है ?'''
   −
WA ve
+
सबके लिये शिक्षा आवश्यक है । शिक्षा ज्ञानप्राप्ति का मार्ग है इसलिये सबके लिये आवश्यक है । परन्तु यह
 
+
स्वेच्छा और स्वतन्त्रता से ही ग्रहण की जा सकती है,अनिवार्य बनाने से नहीं । निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा यह सरकार का नियम है । शिक्षा निःशुल्क होना तो ठीक ही है परन्तु अनिवार्य बनाना सम्भव नहीं होता । जिस पढ़ाना है उसके मन में इच्छा जगाना ही महत्त्वपूर्ण कार्य है । दूसरा, शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये उस
उत्तर
  −
 
  −
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
  −
 
  −
पढ़ाना है उसके मन में इच्छा जगाना ही महत्त्वपूर्ण कार्य है । दूसरा, शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये उस
   
तत्त्व को लेकर वह निःशुल्क नहीं की गई है । जिसे हम अनिवार्य बना रहे हैं उसे निःशुल्क बनाने की बाध्यता
 
तत्त्व को लेकर वह निःशुल्क नहीं की गई है । जिसे हम अनिवार्य बना रहे हैं उसे निःशुल्क बनाने की बाध्यता
 
हो जाती है इसलिये उसे निःशुल्क रखा गया है । इस प्रकार निःशुल्क और अनिवार्य इन दोनों तत्त्वों में दृष्टिकोण
 
हो जाती है इसलिये उसे निःशुल्क रखा गया है । इस प्रकार निःशुल्क और अनिवार्य इन दोनों तत्त्वों में दृष्टिकोण
 
ठीक नहीं होने से अभियान में यश प्राप्त नहीं होता है ।
 
ठीक नहीं होने से अभियान में यश प्राप्त नहीं होता है ।
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निःशुल्क और अनिवार्य होने के कारण से ही विद्यालय जाना भी अनिवार्य बन जाता है । व्यवस्था से
+
निःशुल्क और अनिवार्य होने के कारण से ही विद्यालय जाना भी अनिवार्य बन जाता है । व्यवस्था से अनिवार्य बनाई गई बात धीरे धीरे मानस में भी स्थापित हो जाती है । इसका परिणाम यह है कि व्यवस्था और मानसिकता दोनों प्रकार से शिक्षा के लिये विद्यालय अनिवार्य बन गया है । तात्तविक दृष्टि से, शैक्षिक दृष्टि से या व्यावहारिक दृष्टि से विद्यालय जाना अनिवार्य नहीं है । आज कुछ मात्रा में विद्यालय की व्यवस्था की अनिवार्यता समाप्त भी कर दी गई है तथापि सबके मानस में अब विद्यालय जाना अनिवार्य बन गया है ।
अनिवार्य बनाई गई बात धीरे धीरे मानस में भी स्थापित हो जाती है । इसका परिणाम यह है कि व्यवस्था और
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मानसिकता दोनों प्रकार से शिक्षा के लिये विद्यालय अनिवार्य बन गया है । तात्तविक दृष्टि से, शैक्षिक दृष्टि से या
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व्यावहारिक दृष्टि से विद्यालय जाना अनिवार्य नहीं है । आज कुछ मात्रा में विद्यालय की व्यवस्था की अनिवार्यता
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समाप्त भी कर दी गई है तथापि सबके मानस में अब विद्यालय जाना अनिवार्य बन गया है ।
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जिस प्रकार विद्यालय जाने का अभियान चलाने की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से अब विद्यालय
+
जिस प्रकार विद्यालय जाने का अभियान चलाने की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से अब विद्यालय जाना अनिवार्य नहीं है इस विषय में भी प्रबोधन की आवश्यकता है ।
जाना अनिवार्य नहीं है इस विषय में भी प्रबोधन की आवश्यकता है ।
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परन्तु विद्यालय जाने और नहीं जाने से शिक्षा होगी या नहीं होगी यह निश्चित नहीं है । आज के निःशुल्क,
+
परन्तु विद्यालय जाने और नहीं जाने से शिक्षा होगी या नहीं होगी यह निश्चित नहीं है । आज के निःशुल्क, सस्ते या महँगे विद्यालयों की स्थिति को देखते हुए लगता है कि शिक्षा पढने पढ़ाने से होती है, विद्यालय जाने या नहीं जाने से नहीं । इसलिये प्रेरणा और आग्रह पढने पढ़ाने पर होना चाहिये । पढने पढ़ाने का उद्देश्य बन जाने के
सस्ते या महँगे विद्यालयों की स्थिति को देखते हुए लगता है कि शिक्षा पढने पढ़ाने से होती है, विद्यालय जाने या
  −
नहीं जाने से नहीं । इसलिये प्रेरणा और आग्रह पढने पढ़ाने पर होना चाहिये । पढने पढ़ाने का उद्देश्य बन जाने के
   
बाद विद्यालय में पढ़ना है कि विद्यालय से बाहर इसका विचार हो सकता है । शिक्षा का बाहरी नहीं अन्तस्तत्व
 
बाद विद्यालय में पढ़ना है कि विद्यालय से बाहर इसका विचार हो सकता है । शिक्षा का बाहरी नहीं अन्तस्तत्व
 
महत्त्वपूर्ण होता है ।
 
महत्त्वपूर्ण होता है ।
    
शिक्षा जहाँ होती है वह विद्यालय होता है, विद्यालय का भवन या उपस्थिति, शुल्क, सुविधायें आदि जहाँ
 
शिक्षा जहाँ होती है वह विद्यालय होता है, विद्यालय का भवन या उपस्थिति, शुल्क, सुविधायें आदि जहाँ
होते हैं वह विद्यालय नहीं होता । ये तो सारे भौतिक आयाम हैं । उनकी सार्थकता तभी बनती है जब पढने पढ़ाने
+
होते हैं वह विद्यालय नहीं होता । ये तो सारे भौतिक आयाम हैं । उनकी सार्थकता तभी बनती है जब पढने पढ़ाने का कार्य सार्थक रूप में होता है । अतः आज के सन्दर्भ में प्रथम तो पढ़ने पढ़ाने की चर्चा करनी चाहिये, बाद में व्यवस्थाओं की ।
का कार्य सार्थक रूप में होता है । अतः आज के सन्दर्भ में प्रथम तो पढ़ने पढ़ाने की चर्चा करनी चाहिये, बाद में
  −
व्यवस्थाओं की ।
     −
जिस प्रकार मकान को घर संज्ञा तभी प्राप्त होती है जब उस मकान में रहनेवाले लोग परिवार के रूप में
+
जिस प्रकार मकान को घर संज्ञा तभी प्राप्त होती है जब उस मकान में रहनेवाले लोग परिवार के रूप में रहते हैं, उसी प्रकार से मकान को विद्यालय की संज्ञा तभी प्राप्त होती है । जब वहाँ पढने पढाने का कार्य होता
रहते हैं, उसी प्रकार से मकान को विद्यालय की संज्ञा तभी प्राप्त होती है । जब वहाँ पढने पढाने का कार्य होता
   
हो । इसलिये विद्यालय जाने नहीं जाने की नहीं अपितु पढने पढाने की चर्चा करनी चाहिये ।
 
हो । इसलिये विद्यालय जाने नहीं जाने की नहीं अपितु पढने पढाने की चर्चा करनी चाहिये ।
एक व्यावहारिक कठिनाई ऐसी है कि अनेक बार जो बात जिसे बतानी है उसे बताने के स्थान पर दूसरों को
  −
ही बताई जाती है । अभिभावक सम्मेलनों में मातापिता को जो बताना चाहिये वह दादादादी को बताया
  −
जाता है । घर में दादादादी की बात मातापिता मानते ही नहीं है । मातापिता को सीधे सीधे बताने की क्या
  −
व्यवस्था है ?
  −
  −
'एक समाजसेवी प्रौढ प्रश्न
  −
आप की बात विचार करने योग्य है । बताना तो मातापिता को ही चाहिये । वे ही जिम्मेदार भी हैं और निर्णय
  −
करनेवाले भी हैं ।
  −
  −
स्थिति यह है कि मातापिता अत्यन्त व्यस्त होते हैं । उन्हें विचार करने का समय ही नहीं मिलता । पूर्व
  −
पीढी का जमाना अब नहीं रहा और उन्हें आज के जमाने की समझ नहीं है ऐसा उन्हें लगता है इसलिये दादादादी
  −
की बात वे नहीं मानते । वे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं इण्टरनेट से अंग्रेजी में लिखी गई पाश्चात्य लेखकों की पुस्तकों
  −
a | वहाँ जो बताया जाता है वह हम जो कहते हैं उससे सर्वथा भिन्न होता है । उनका विश्वास उन बातों पर ही
  −
होता है, हमारी बातों पर नहीं ।
  −
  −
३७२
  −
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+
'''प्रश्न ४६  एक व्यावहारिक कठिनाई ऐसी है कि अनेक बार जो बात जिसे बतानी है उसे बताने के स्थान पर दूसरों को ही बताई जाती है । अभिभावक सम्मेलनों में मातापिता को जो बताना चाहिये वह दादादादी को बताया जाता है । घर में दादादादी की बात मातापिता मानते ही नहीं है । मातापिता को सीधे सीधे बताने की क्या व्यवस्था है ?'''
   −
पर्व ५ : विविध
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एक समाजसेवी प्रौढ प्रश्न
   −
 
+
उत्तर आप की बात विचार करने योग्य है । बताना तो मातापिता को ही चाहिये । वे ही जिम्मेदार भी हैं और निर्णय करनेवाले भी हैं ।
    +
स्थिति यह है कि मातापिता अत्यन्त व्यस्त होते हैं । उन्हें विचार करने का समय ही नहीं मिलता । पूर्व पीढी का जमाना अब नहीं रहा और उन्हें आज के जमाने की समझ नहीं है ऐसा उन्हें लगता है इसलिये दादादादी की बात वे नहीं मानते । वे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं इण्टरनेट से अंग्रेजी में लिखी गई पाश्चात्य लेखकों की पुस्तकोंसे | वहाँ जो बताया जाता है वह हम जो कहते हैं उससे सर्वथा भिन्न होता है । उनका विश्वास उन बातों पर ही
 +
होता है, हमारी बातों पर नहीं।
 
फिर उपाय क्‍या है ?
 
फिर उपाय क्‍या है ?
   −
प्रश्न ४७
+
पहली बात यह है कि हमें अपनी बात पर श्रद्धा बढानी होगी । श्रद्धा का सामर्थ्य बढाना होगा । चाह भी बढानी होगी । धैर्य बढाना होगा । दूसरी बात यह है कि समझाने के प्रयास भी बढ़ाने होंगे । समझाने की पद्धति
 
+
बदलनी होगी । तीसरी बात यह है कि अनेक मुखों से एक ही बात बार बार बतानी होगी । केवल हमारे बताने से नहीं होगा ।
उत्तर
  −
 
  −
WA ४८
     −
उत्तर
+
कुछ तो युवा मातापिता होते हैं जो हमारी बात मानते हैं, समझते हैं और आचरण में भी लाते हैं । अन्य युवाओं को समझाने का काम ऐसे युवा मातापिता कर सकते हैं ।
   −
प्रश्न ४९
+
अनेक प्रकार के तर्को से युक्त, उदाहरणों से युक्त साहित्य विपुल मात्रा में प्रस्तुत करने से भी कुछ परिणाम हो सकता है ।
   −
उत्तर
+
'''प्रश्न ४७ आज चारों ओर जब विपरीत प्रवाह ही चल रहा है तब ये सर्वथा देशी पद्धतियाँ कैसे चलने वाली हैं ? क्या बीच का रास्ता नहीं है ?'''
   −
पहली बात यह है कि हमें अपनी बात पर श्रद्धा बढानी होगी श्रद्धा का सामर्थ्य बढाना होगा चाह भी
+
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बताने वाले ने समझौते की बात नहीं करनी चाहिये बताने वाले ने सही बातें बतानी चाहिये । वर्तमान परिस्थिति में वे बहुत विपरीत या अव्यावहारिक लग सकती हैं । परन्तु व्यावहारिकता का विचार कर आधी अधूरी बातें नहीं बतानी चाहिये बीच के रास्ते तो लोग स्वयं निकाल लेते हैं । बीच के रास्ते निकालने भी पड़ते हैं परन्तु बीच के रास्ते निकालते समय क्या सही है और क्या नहीं इसके मापदण्ड तो सामने रहने ही चाहिये ऐसे मापदण्ड सामने रहने से प्रयत्नों की दिशा सही रहती है आज स्थिति ऐसी है कि जो सही करना चाहते हैं उनके सामने भी आदर्श नहीं है, जानकारी भी नहीं है हमें प्रथम तो सही जानकारी देनी चाहिये और साथ में उदाहरण भी प्रस्तुत करने चाहिये
बढानी होगी धैर्य बढाना होगा । दूसरी बात यह है कि समझाने के प्रयास भी बढ़ाने होंगे समझाने की पद्धति
  −
बदलनी होगी तीसरी बात यह है कि अनेक मुखों से एक ही बात बार बार बतानी होगी केवल हमारे बताने से
  −
नहीं होगा
     −
कुछ तो युवा मातापिता होते हैं जो हमारी बात मानते हैं, समझते हैं और आचरण में भी लाते हैं । अन्य
+
'''प्रश्न ४८ हमने एक उक्ति सुनी है, “सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्थ त्यजति पण्डित:' अर्थात्‌ जब सब कुछ नष्ट होने कि स्थिति
युवाओं को समझाने का काम ऐसे युवा मातापिता कर सकते हैं ।
+
है तब कुछ आग्रह छोड देने चाहिये । प्रत्यक्ष में यह कैसे किया जाय ?'''
 
  −
अनेक प्रकार के तर्को से युक्त, उदाहरणों से युक्त साहित्य विपुल मात्रा में प्रस्तुत करने से भी कुछ परिणाम
  −
हो सकता है ।
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  −
आज चारों ओर जब विपरीत प्रवाह ही चल रहा है तब ये सर्वथा देशी पद्धतियाँ कैसे चलने वाली हैं ?
  −
क्या बीच का रास्ता नहीं है ?
  −
 
  −
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बताने वाले ने समझौते की बात नहीं करनी चाहिये । बताने वाले ने सही बातें बतानी
  −
चाहिये । वर्तमान परिस्थिति में वे बहुत विपरीत या अव्यावहारिक लग सकती हैं । परन्तु व्यावहारिकता का विचार
  −
कर आधी अधूरी बातें नहीं बतानी चाहिये । बीच के रास्ते तो लोग स्वयं निकाल लेते हैं । बीच के रास्ते
  −
निकालने भी पड़ते हैं । परन्तु बीच के रास्ते निकालते समय क्या सही है और क्या नहीं इसके मापदण्ड तो सामने
  −
रहने ही चाहिये । ऐसे मापदण्ड सामने रहने से प्रयत्नों की दिशा सही रहती है । आज स्थिति ऐसी है कि जो सही
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करना चाहते हैं उनके सामने भी आदर्श नहीं है, जानकारी भी नहीं है । हमें प्रथम तो सही जानकारी देनी चाहिये
  −
और साथ में उदाहरण भी प्रस्तुत करने चाहिये ।
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हमने एक उक्ति सुनी है, “सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्थ त्यजति पण्डित:' अर्थात्‌ जब सब कुछ नष्ट होने कि स्थिति
  −
है तब कुछ आग्रह छोड देने चाहिये । प्रत्यक्ष में यह कैसे किया जाय ?
      
वास्तव में सारे व्यवहारशास्त्र देशकालपरिस्थिति को देखकर ही ऐसे व्यवहार करना चाहिये यह बताते हैं । परन्तु
 
वास्तव में सारे व्यवहारशास्त्र देशकालपरिस्थिति को देखकर ही ऐसे व्यवहार करना चाहिये यह बताते हैं । परन्तु
ऐसे व्यवहार के भी कुछ मानक होते हैं । जो विचारशील, निःस्वार्थ, सबका भला चाहने वाले, लोगों की क्षमता
+
ऐसे व्यवहार के भी कुछ मानक होते हैं । जो विचारशील, निःस्वार्थ, सबका भला चाहने वाले, लोगों की क्षमता और मर्यादा जानने वाले, ज्ञानवान लोग होते हैं वे इन सब बातों का विचार करके ही परामर्श देते हैं । ऐसे परामर्शक हमारे पास होने चाहिये । हमें तय भी कर लेना चाहिये कि हमारे परामर्शक कौन हैं । उनकी बात माननी चाहिये । आज कठिनाई यह है कि हमें ऐसे परामर्शक नहीं चाहिये होते हैं जो सही बात बतायें । हमें ऐसे चाहिये
और मर्यादा जानने वाले, ज्ञानवान लोग होते हैं वे इन सब बातों का विचार करके ही परामर्श देते हैं । ऐसे
  −
परामर्शक हमारे पास होने चाहिये । हमें तय भी कर लेना चाहिये कि हमारे परामर्शक कौन हैं । उनकी बात माननी
  −
चाहिये । आज कठिनाई यह है कि हमें ऐसे परामर्शक नहीं चाहिये होते हैं जो सही बात बतायें । हमें ऐसे चाहिये
   
होते हैं जो हम चाहते हैं वह बतायें । आजकल ऐसे शिक्षक, ऐसे पण्डित, ऐसे डॉक्टर, ऐसे परामर्शक, ऐसे साधु
 
होते हैं जो हम चाहते हैं वह बतायें । आजकल ऐसे शिक्षक, ऐसे पण्डित, ऐसे डॉक्टर, ऐसे परामर्शक, ऐसे साधु
 
मिल भी जाते हैं । इसी कारण से समाज संकट में पड गया है । इस स्थिति में हमें अपनी समझ बढानी होगी |
 
मिल भी जाते हैं । इसी कारण से समाज संकट में पड गया है । इस स्थिति में हमें अपनी समझ बढानी होगी |
   −
बाहर का खाना नहीं, प्लास्टिक की बोतल का पानी पीना नहीं, सिन्थेटिक वस्त्र पहनना नहीं, प्रात: जल्दी
+
प्रश्न ४९ बाहर का खाना नहीं, प्लास्टिक की बोतल का पानी पीना नहीं, सिन्थेटिक वस्त्र पहनना नहीं, प्रात: जल्दी उठना ये सब कितनी कठिन बातें हैं । आज के जमाने में यह सब कैसे सम्भव है ?
उठना ये सब कितनी कठिन बातें हैं । आज के जमाने में यह सब कैसे सम्भव है ?
+
 
कठिन और सरल होना तो मनःस्थिति पर निर्भर करता है । जो भी हमें जँच जाता है उसे व्यवहारिक बनाने की
+
उत्तर कठिन और सरल होना तो मनःस्थिति पर निर्भर करता है । जो भी हमें जँच जाता है उसे व्यवहारिक बनाने की अनुकूलता हम बना ही लेते हैं ।
अनुकूलता हम बना ही लेते हैं ।
      
जो बात आज के जमाने में नाम पर हमें अव्यावहारिक लगती है वे तो वैज्ञानिक तथ्य हैं और सांस्कृतिक
 
जो बात आज के जमाने में नाम पर हमें अव्यावहारिक लगती है वे तो वैज्ञानिक तथ्य हैं और सांस्कृतिक
सत्य हैं । उन्हें छोडने के स्थान पर हमें उनके अनुकूल हमारी व्यवस्थायें बदलनी चाहिये । इतनी एक बात हमारी
+
सत्य हैं । उन्हें छोडने के स्थान पर हमें उनके अनुकूल हमारी व्यवस्थायें बदलनी चाहिये । इतनी एक बात हमारी समझ में आ जाती है तो सरल और कठिन का प्रश्न ही नहीं रह जाता ।
समझ में आ जाती है तो सरल और कठिन का प्रश्न ही नहीं रह जाता ।
     −
३७३
+
'''प्रश्न ५० शिक्षा के अनेक प्रश्न ऐसे हैं जो बुरी तरह से उलझ गये हैं । सरकार, संचालक, शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी शिक्षा से सम्बन्धित वर्ग हैं । इनमें सर्वप्रथम किसे ठीक करने का
+
प्रयास करना चाहिये ?'''
   −
............. page-390 .............
+
शिक्षा के विभिन्न प्रश्नों के लिये विभिन्न वर्गों के साथ बात करनी चाहिये । उदाहरण के लिये शिक्षानीति की बात सरकार से, विद्यालय की व्यवस्थाओं की बात संचालकों से, अध्यापन पद्धतियों की बात शिक्षकों से, बालकों के संगोपन की बात अभिभावकों से और विनयशील आचरण की बात विद्यार्थियों से करनी चाहिये ।
   −
       
+
फिर भी शिक्षाविषयक किसी भी प्रश्न की चर्चा करने का केन्द्रवर्ती स्थान शिक्षक ही है । समस्या और समस्या के निराकरण का प्रारम्भ बिन्दु शिक्षक है । वह यदि बातों को ठीक से समझता है तो समस्‍यायें सुलझने लगती है ।
   −
उत्तर
+
प्रश्न ५१ आज के युवा ब्रह्मचर्य का पालन कर सकें ऐसी स्थिति ही नहीं है । इसका परिणाम तो बहुत विपरीत होता है, परन्तु बचने का उपाय क्या है ?
   −
प्रश्न ५१
+
उत्तर  विषय तो कठिन है ही । मन पर चारों ओर से भीषण आक्रमण होते हैं । मन को सम्हालने की शक्ति नहीं है । मन की शक्ति बढ़े ऐसे कोई उपाय नहीं किये जाते । छोटी आयु से उपाय नहीं किये जाते इसलिये युवावस्था तक पहुँचते पहुँचते बातें अधिक कठिन हो जाती हैं । इसके तत्काल और दीर्घकालीन दोनों उपाय करने चाहिये ?
   −
उत्तर
+
(१) कक्षाकक्षों में उपस्थिति अनिवार्य होना ।
   −
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
+
(२) युवा विद्यार्थियों के लिये भी गृहकार्य देना और उसे अनिवार्य बनाना ।
   −
WH Go शिक्षा के अनेक प्रश्न ऐसे हैं जो बुरी तरह से उलझ गये हैं । सरकार, संचालक,
+
(3) अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत परामर्श देना
शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी शिक्षा से सम्बन्धित वर्ग हैं । इनमें सर्वप्रथम किसे ठीक करने का
  −
प्रयास करना चाहिये ?
  −
शिक्षा के विभिन्न प्रश्नों के लिये विभिन्न वर्गों के साथ बात करनी चाहिये । उदाहरण के लिये शिक्षानीति की बात
  −
सरकार से, विद्यालय की व्यवस्थाओं की बात संचालकों से, अध्यापन पद्धतियों की बात शिक्षकों से, बालकों के
  −
संगोपन की बात अभिभावकों से और विनयशील आचरण की बात विद्यार्थियों से करनी चाहिये
     −
फिर भी शिक्षाविषयक किसी भी प्रश्न की चर्चा करने का केन्द्रवर्ती स्थान शिक्षक ही है । समस्या और
  −
समस्या के निराकरण का प्रारम्भ बिन्दु शिक्षक है । वह यदि बातों को ठीक से समझता है तो समस्‍यायें सुलझने
  −
लगती है ।
  −
आज के युवा ब्रह्मचर्य का पालन कर सकें ऐसी स्थिति ही नहीं है । इसका परिणाम तो बहुत विपरीत होता
  −
है, परन्तु बचने का उपाय क्या है ?
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विषय तो कठिन है ही । मन पर चारों ओर से भीषण आक्रमण होते हैं । मन को सम्हालने की शक्ति नहीं है । मन
  −
की शक्ति बढ़े ऐसे कोई उपाय नहीं किये जाते । छोटी आयु से उपाय नहीं किये जाते इसलिये युवावस्था तक
  −
पहुँचते पहुँचते बातें अधिक कठिन हो जाती हैं । इसके तत्काल और दीर्घकालीन दोनों उपाय करने चाहिये ?
  −
(१) कक्षाकक्षों में उपस्थिति अनिवार्य होना ।
  −
(२) युवा विद्यार्थियों के लिये भी गृहकार्य देना और उसे अनिवार्य बनाना ।
  −
(3) अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत परामर्श देना ।
   
(४) विद्यार्थियों के अभिभावकों के साथ अध्यापकों का सम्पर्क होना ।
 
(४) विद्यार्थियों के अभिभावकों के साथ अध्यापकों का सम्पर्क होना ।
(५) व्यायाम अनिवार्य बनाना ।
+
 
साथ ही प्रबोधनात्मक आग्रह बढ़ने चाहिये जैसे कि
+
(५) व्यायाम अनिवार्य बनाना । साथ ही प्रबोधनात्मक आग्रह बढ़ने चाहिये जैसे कि  
 +
 
 
(१) बाइकसवारी छोड़कर साइकिल का प्रयोग करना ।
 
(१) बाइकसवारी छोड़कर साइकिल का प्रयोग करना ।
 +
 
(२) तंग कपडों का त्याग करना ।
 
(२) तंग कपडों का त्याग करना ।
 +
 
(३) मनोरंजन और अध्ययन का सन्तुलन बनाना ।
 
(३) मनोरंजन और अध्ययन का सन्तुलन बनाना ।
 +
 
(४) अधथर्जिन और गृहस्थाश्रम के बारे में विचार करना ।
 
(४) अधथर्जिन और गृहस्थाश्रम के बारे में विचार करना ।
 +
 
(५) विनयशील होना ।
 
(५) विनयशील होना ।
   −
आज देखा यह जाता है कि युवा विद्यार्थियों के मातापिता चिन्तित भी हैं और अज्ञान भी । महाविद्यालयों
+
आज देखा यह जाता है कि युवा विद्यार्थियों के मातापिता चिन्तित भी हैं और अज्ञान भी । महाविद्यालयों ने अभिभावकों के साथ संवाद की व्यवस्था बनानी चाहिये । अध्यापक और मातापिता दोनों ने मिलकर विद्यार्थियों
ने अभिभावकों के साथ संवाद की व्यवस्था बनानी चाहिये । अध्यापक और मातापिता दोनों ने मिलकर विद्यार्थियों
   
के चरित्र के बारे में चिन्तन और उपाय करने चाहिये ।
 
के चरित्र के बारे में चिन्तन और उपाय करने चाहिये ।
   −
महाविद्यालयों में युवाओं के लिये योगवर्गों और चिन्तनवर्गों का आयोजन होना चाहिये । बिना कोई प्रयास
+
महाविद्यालयों में युवाओं के लिये योगवर्गों और चिन्तनवर्गों का आयोजन होना चाहिये । बिना कोई प्रयास किये इन वर्गों में उपस्थिति नहीं रहेगी । अतः उपस्थिति के लिये सम्पर्क और आग्रह बनाना चाहिये । परीक्षा में अंक मिलने के आमिष या आदेश या दण्ड के भय का प्रयोग नहीं करना चाहिये । स्वेच्छा और स्वतन्त्रतापूर्वक की उपस्थिति का ही महत्त्व है । ऐसे प्रयासों से महाविद्यालयों का प्रभाव बढ़ेगा । बौद्धिकवर्गों के विषयों का चयन सावधानीपूर्वक करना चाहिये । हमारा उद्देश्य युवाओं के चरित्र का विकास करना है यह स्मरण में रखना चाहिये ।
किये इन वर्गों में उपस्थिति नहीं रहेगी । अतः उपस्थिति के लिये सम्पर्क और आग्रह बनाना चाहिये । परीक्षा में
  −
अंक मिलने के आमिष या आदेश या दण्ड के भय का प्रयोग नहीं करना चाहिये । स्वेच्छा और स्वतन्त्रतापूर्वक
  −
की उपस्थिति का ही महत्त्व है । ऐसे प्रयासों से महाविद्यालयों का प्रभाव बढ़ेगा ।
  −
बौद्धिकवर्गों के विषयों का चयन सावधानीपूर्वक करना चाहिये । हमारा उद्देश्य युवाओं के चरित्र का विकास करना
  −
है यह स्मरण में रखना चाहिये ।
     −
३७४
+
'''प्रश्न ५२ युवाओं में युवक और युवती दोनों का समावेश होता है । चिन्ता दोनों की करनी
+
चाहिये यह बात सच है । परन्तु आज तो युवतियों की चिन्ता करने की अधिक आवश्यकता लगती है । इसका क्या करें ?'''
   −
............. page-391 .............
+
आपकी बात सही है । हम कल्पना करते हैं उससे भी युवतियों का प्रश्न अधिक गम्भीर है । युवतियों के सामने
 
+
युवक की बराबरी करने की बडी चुनौती है । यह चुनौती उन्होंने स्वयं ही स्वीकार कर ली हैं । उन्हें इस चुनौती को स्वीकार करने हेतु समाज ने ही बाध्य किया है । पुरुष करता है वह सब कर दिखाने पर ही स्त्री को सम्मानित किया जाता है । ख्री को पुरुष जैसा बनने के अर्थात्‌ अपना विकास करने के, सारे अवसर दिये जाते हैं । ऐसे अवसर देने में तो कोई बुराई नहीं है परन्तु पुरुष जैसा बनने में ही विकास है यह कहने में बहुत बडा दोष है । जिस समाज ने स्त्री को स्त्री के रूप में हेय माना, नीचा माना, अविकसित माना उस समाज का बडा दोष है । इसलिये युवतियों को सही मार्ग दिखाने से पूर्व समाज के स्तर पर चिन्तन बदलने की आवश्यकता है । यह मार्ग भी कम उलझा हुआ नहीं है । जो भी उपाय करना है वह सामाजिक स्तर पर ही करना होगा ।
पर्व ५ : विविध
  −
 
  −
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प्रश्न ५२
  −
 
  −
उत्तर
  −
 
  −
प्रश्न ५३
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उत्तर
     −
प्रश्न पड
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युवा वर्ग के लिये आदेश का मार्ग तो है ही नहीं । संवाद का ही मार्ग है । समाजप्रबोधन के साथ साथ युवाओं से संवाद का मार्ग भी अपनाना चाहिये ।
   −
उत्तर
+
समाज और संस्कृति चिन्तन के ये विषय हैं । विश्वविद्यालयों के समाजशास्त्र विभाग के ये महत्त्वपूर्ण विषय बनने चाहिये ।
   −
युवाओं में युवक और युवती दोनों का समावेश होता है । चिन्ता दोनों की करनी
+
'''प्रश्न ५३ सम्पूर्ण विद्यार्थी वर्ग को आज किन बातों से मुक्त करने की और बचाने की आवश्यकता है ?'''
चाहिये यह बात सच है । परन्तु आज तो युवतियों की चिन्ता करने की अधिक आवश्यकता लगती है
  −
इसका क्या करें ?
  −
आपकी बात सही है । हम कल्पना करते हैं उससे भी युवतियों का प्रश्न अधिक गम्भीर है । युवतियों के सामने
  −
युवक की बराबरी करने की बडी चुनौती है । यह चुनौती उन्होंने स्वयं ही स्वीकार कर ली हैं । उन्हें इस चुनौती
  −
को स्वीकार करने हेतु समाज ने ही बाध्य किया है । पुरुष करता है वह सब कर दिखाने पर ही स्त्री को सम्मानित
  −
किया जाता है । ख्री को पुरुष जैसा बनने के अर्थात्‌ अपना विकास करने के, सारे अवसर दिये जाते हैं । ऐसे
  −
अवसर देने में तो कोई बुराई नहीं है परन्तु पुरुष जैसा बनने में ही विकास है यह कहने में बहुत बडा दोष है ।
  −
जिस समाज ने स्त्री को स्त्री के रूप में हेय माना, नीचा माना, अविकसित माना उस समाज का बडा दोष है ।
  −
इसलिये युवतियों को सही मार्ग दिखाने से पूर्व समाज के स्तर पर चिन्तन बदलने की आवश्यकता है । यह मार्ग भी
  −
कम उलझा हुआ नहीं है । जो भी उपाय करना है वह सामाजिक स्तर पर ही करना होगा ।
     −
युवा वर्ग के लिये आदेश का मार्ग तो है ही नहीं । संवाद का ही मार्ग है । समाजप्रबोधन के साथ साथ
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उत्तर  व्यवहारदृक्ष लोग कहते हैं कि अपने प्रयासों में यशस्वी होना है तो सरल बातों की ओर पहले ध्यान देना चाहिये । ऐसा करने से कठिन बातें क्रमशः सरल होती जाती हैं ।
युवाओं से संवाद का मार्ग भी अपनाना चाहिये ।
  −
समाज और संस्कृति चिन्तन के ये विषय हैं । विश्वविद्यालयों के समाजशास्त्र विभाग के ये महत्त्वपूर्ण विषय बनने
  −
चाहिये ।
  −
सम्पूर्ण विद्यार्थी वर्ग को आज किन बातों से मुक्त करने की और बचाने की आवश्यकता है ?
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व्यवहारदृक्ष लोग कहते हैं कि अपने प्रयासों में यशस्वी होना है तो सरल बातों की ओर पहले ध्यान देना चाहिये ।
  −
ऐसा करने से कठिन बातें क्रमशः सरल होती जाती हैं ।
     −
इसलिये सर्वस्तरों पर प्रथम तो स्पर्धा बहिष्कृत करना चाहिये । इस विषय की शास्त्रीय चर्चा करने का यह
+
इसलिये सर्वस्तरों पर प्रथम तो स्पर्धा बहिष्कृत करना चाहिये । इस विषय की शास्त्रीय चर्चा करने का यह समय नहीं है, परन्तु स्पर्धा बडा अनिष्ट है यह मानना चाहिये ।
समय नहीं है, परन्तु स्पर्धा बडा अनिष्ट है यह मानना चाहिये ।
     −
दूसरी बात अनिवार्यताओं को कम करने की है । स्वेच्छा और स्वतन्त्रता के बातावरण में अनेक आवश्यक
+
दूसरी बात अनिवार्यताओं को कम करने की है । स्वेच्छा और स्वतन्त्रता के बातावरण में अनेक आवश्यक बातों का आग्रह बढाना चाहिये ।
बातों का आग्रह बढाना चाहिये ।
      
विद्यार्थियों में विश्वास व्यक्त करना भी आवश्यक है । विश्वास के साथ सदूभाव भी होना चाहिये ।
 
विद्यार्थियों में विश्वास व्यक्त करना भी आवश्यक है । विश्वास के साथ सदूभाव भी होना चाहिये ।
   −
बिना किसी लालच, स्वार्थ या भय से अनेक आवश्यक बातें की जाती हैं, की जानी चाहिये ऐसा
+
बिना किसी लालच, स्वार्थ या भय से अनेक आवश्यक बातें की जाती हैं, की जानी चाहिये ऐसा वातावरण, विद्यालयों में बनाना चाहिये और घरों में बनाने हेतु विद्यालयों ने मार्गदर्शन करना चाहिये ।
वातावरण, विद्यालयों में बनाना चाहिये और घरों में बनाने हेतु विद्यालयों ने मार्गदर्शन करना चाहिये ।
     −
विद्यार्थियों को अकर्मण्यता से बचाना चाहिये । शरीर, मन, बुद्धि को सक्रिय बनाने से ही सही विकास होता
+
विद्यार्थियों को अकर्मण्यता से बचाना चाहिये । शरीर, मन, बुद्धि को सक्रिय बनाने से ही सही विकास होता है यह समझने और समझाने की आवश्यकता है ।
है यह समझने और समझाने की आवश्यकता है ।
      
विद्यार्थियों को गैरजिम्मेदारी से बचाना चाहिये ।
 
विद्यार्थियों को गैरजिम्मेदारी से बचाना चाहिये ।
   −
विद्यार्थियों को बौद्धिक स्वावलम्बन सिखाना चाहिये । बौद्धिक परावलम्बन बड़ों बडों का रोग है ।
+
विद्यार्थियों को बौद्धिक स्वावलम्बन सिखाना चाहिये । बौद्धिक परावलम्बन बड़ों बडों का रोग है । विद्यार्थियों को यह न लग जाय इसका ध्यान रखना चाहिये ।  
विद्यार्थियों को यह न लग जाय इसका ध्यान रखना चाहिये ।
  −
ऐसी पाँच बातें बताइये जो हमें कठोरतापूर्वक हमारे दस से पन्द्रह वर्षों के बच्चों के लिये लागू करनी
  −
चाहिये ।
  −
१, होटेलिंग शत प्रतिशत बन्द |
  −
2. ट्यूशन और गाईड बुक्स बन्द |
     −
३७५
+
प्रश्न ५४ ऐसी पाँच बातें बताइये जो हमें कठोरतापूर्वक हमारे दस से पन्द्रह वर्षों के बच्चों के लिये लागू करनी चाहिये ।
     −
............. page-392 .............
+
१, होटेलिंग शत प्रतिशत बन्द |
   −
 
+
2. ट्यूशन और गाईड बुक्स बन्द |
   −
प्रश्न ५५
+
3. प्रतिदिन एक घण्टा मैदानमें खेलना ।
 
  −
उत्तर
  −
 
  −
प्रश्न ५६
  −
 
  −
उत्तर
  −
 
  −
प्रश्न ५७
  −
 
  −
उत्तर
  −
प्रश्न ५८
     −
उत्तर
+
४. प्रतिदिन एक घंटा घर का कोई भी काम जिम्मेदारी से करना।
प्रश्न ५९
     −
उत्तर
+
. सूती कपडे पहनना।
प्रश्न ६०
  −
उत्तर
  −
 
  −
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
  −
 
  −
 
  −
 
  −
3. प्रतिदिन एक घण्टा मैदानमें खेलना ।
  −
४. प्रतिदिन एक goer ax ar als भी काम जिम्मेदारी से करना ।
  −
७५. सूती कपडे पहनना ।
      
ऐसी पाँच बातें बताइयें जो हमें माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों से अनिवार्य रूप से करवानी चाहिये ।
 
ऐसी पाँच बातें बताइयें जो हमें माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों से अनिवार्य रूप से करवानी चाहिये ।
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