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− | अध्याय १८ | + | === अध्याय १८ === |
− | एक सर्वसामान्य प्रश्रोत्तरी
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− | आज के बच्चों पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ? | + | === एक सर्वसामान्य प्रश्रोत्तरी === |
| + | '''प्रश्न १ आज के बच्चों पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ?''' |
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− | समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चों को पीअर्स अर्थात् समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ | + | '''उत्तर''' समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चों को पीअर्स अर्थात् समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ |
− | साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज | + | साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना हमेशा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त करना हमेशा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चों को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है । |
− | आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है | |
− | ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी | |
− | मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना हमेशा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट | |
− | भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर | |
− | बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त | |
− | करना हमेशा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं | |
− | सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये | |
− | यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन | |
− | में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र | |
− | इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी | |
− | वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि | |
− | का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चों को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है । | |
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− | बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ? | + | '''प्रश्न २ बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ?''' |
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− | एक क्षण में समझ लेना चाहिये कि वह वस्तु देनी है कि नहीं । यदि हमारा मत बनता है कि नहीं देनी चाहिये तो | + | '''उत्तर''' एक क्षण में समझ लेना चाहिये कि वह वस्तु देनी है कि नहीं । यदि हमारा मत बनता है कि नहीं देनी चाहिये तो |
| जिद पूरी नहीं करनी चाहिये । | | जिद पूरी नहीं करनी चाहिये । |
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| दो तीन बातों का विचार कर लेना चाहिये । | | दो तीन बातों का विचार कर लेना चाहिये । |
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| १, जिसे हम अनावश्यक मानते हैं वह वास्तव में अनावश्यक है क्या ? | | १, जिसे हम अनावश्यक मानते हैं वह वास्तव में अनावश्यक है क्या ? |
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| जिद न बनने दें । | | जिद न बनने दें । |
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− | रे. यदि वास्तव में वस्तु अनावश्यक है और हम देना नहीं चाहते हैं तो दूढतापूर्वक मना करना और उस पर अन्त
| + | ३. यदि वास्तव में वस्तु अनावश्यक है और हम देना नहीं चाहते हैं तो दूढतापूर्वक मना करना और उस पर अन्त |
| तक डटे रहना चाहिये । यह होना ठीक नहीं है कि दो तीन बार तो मना किया परन्तु और जिद की तो दे | | तक डटे रहना चाहिये । यह होना ठीक नहीं है कि दो तीन बार तो मना किया परन्तु और जिद की तो दे |
| feat | | | feat | |
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− | ¥. दूढतापूर्वक मना करना ही पर्याप्त है । डाँटना, मारना, ताने देना, झुझलाना आदि ठीक नहीं । समझाना ठीक
| + | ४. दूढतापूर्वक मना करना ही पर्याप्त है । डाँटना, मारना, ताने देना, झुझलाना आदि ठीक नहीं । समझाना ठीक |
| है, बच्चे बिलकुल छोटे हैं तो दूसरी ओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं । | | है, बच्चे बिलकुल छोटे हैं तो दूसरी ओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं । |
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− | 343
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− | ............. page-370 .............
| + | '''प्रश्न ३''' '''महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें''' '''?''' |
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| + | '''एक विद्यार्थी का प्रश्न ।''' |
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− | प्रश्न ४
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− | उत्तर
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− | प्रश्न ५
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− | उत्तर
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | प्रश्न ३ महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें ?
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− | एक विद्यार्थी का प्रश्न ।
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| १. सारे विद्यार्थी मिलकर अध्यापकों को पढ़ाने का आग्रह करें कि वे पढाये । विद्यार्थी ऐसा कहें यह तो एक | | १. सारे विद्यार्थी मिलकर अध्यापकों को पढ़ाने का आग्रह करें कि वे पढाये । विद्यार्थी ऐसा कहें यह तो एक |
| सुखद आश्चर्य होगा क्योंकि विद्यार्थी पढ़ते नहीं ऐसा सबका मानना होता है । | | सुखद आश्चर्य होगा क्योंकि विद्यार्थी पढ़ते नहीं ऐसा सबका मानना होता है । |
− | २. नोट्स लेने का, गाइड बुक्स पढने का परामर्श यदि अध्यापक देते हैं तो विनयपूर्वक मना करें । स्वयं पढ़ाने
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− | का ही आग्रह करें ।
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− | ३. एकाध अध्यापक ऐसे हैं तो उन्हें बदलना सरल भी होता है, ठीक भी होता है । सारे अध्यापक ऐसे हैं तो
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− | महाविद्यालय बदलना उचित है ।
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− | ४. विनय न छोडें, आग्रह भी न छोडें । दोनों किया तो स्थिति बदलना निश्चित है ।
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− | माध्यमिक विद्यालयों में पूरे वर्ष का कार्यक्रम सरकार द्वारा भेज दिया जाता है । मुख्याध्यापक के टेबल पर
| |
− | काँच के नीचे वह रहता है । वह पूरा करना ही है और प्रमाणों के साथ उसका वृत्त भी भेजना है । इस स्थिति
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− | में मौलिकता और स्वतन्त्रता कहाँ है ? हम अपनी कल्पना से कुछ भी नहीं कर सकते । क्या करें ?
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− | मुख्याध्यापक का प्रश्न
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− | यह बात सही है । कठिनाई भी सही है । इससे होने वाली हानि भी निश्चित है । लोग इन कार्यक्रमों को सम्पन्न करने
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− | में कितनी कृत्रिमता और औपचारिकता बरतते हैं यह भी सब जानते हैं । किसी भी अच्छी बात को अनिवार्य बनाया
| |
− | जाय तो उसका विकृतिकरण हो जाता है और वह निरर्थक बन जाती है यह व्यावहारिक सत्य है ।
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− | प्रथम सरकारीकरण, दूसरा शिक्षकों की विश्वसनीयता की समाप्ति और तीसरा अनिवार्य बनाना ऐसा इसका
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− | क्रम है ।
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− | इससे मुक्ति सरल नहीं है । मुक्ति की अपेक्षा छोड जो दिये गये कार्यक्रम हैं उन्हें प्रामाणिकता पूर्वक करते हुए
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− | विश्वसनीयता बनाना प्रथम बात है, उसके आधार पर कल्पनाशीलता के लिये अवसर माँगना दूसरी बात है जिसका
| |
− | परिणाम अनिवार्यता दूर होना हो सकता है ।
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− | अभिभावक आग्रह करते हैं कि हम गृहकार्य जाँचें, गलतियों का सुधार करें । कक्षा में यदि साठ विद्यार्थी
| |
− | हैं तो यह कैसे हो सकता है ? यह करेंगे तो पढायेंगे कब ?
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− | एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का प्रश्न
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− | यह निजी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का प्रश्न हो सकता है जहाँ ऊँचा शुल्क देकर विद्यार्थी पढने के लिये आते
| |
− | हैं । संचालक शिक्षक और अभिभावकों में परस्पर अविश्वास और ऊँचा शुल्क देने के परिणाम स्वरूप अपेक्षा करने
| |
− | का अधिकार ये दो बातें इसका मूल है । शिक्षकों के लिये अपनी विश्वसनीयता निर्माण करना प्रथम बात है ।
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− | दूसरा, अभिभावकों के साथ बैठकर इस बात पर चर्चा हो कि यह कैसे सम्भव है । उनकी अपेक्षा कितनी
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− | अव्यावहारिक है यह अभिभावकों को बताना चाहिये । संचालकों ने शिक्षकों का पक्ष लेना चाहिये । यदि यह नहीं
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− | किया तो अभिभावकों को और संचालकों को अच्छे शिक्षक नहीं मिलेंगे । अभिभावकों की गृहकार्य जाँचने की
| |
− | अपेक्षा तो पूर्ण होगी परन्तु अच्छी शिक्षा नहीं होगी । अतः संचालक, अभिभावक और शिक्षक इन तीनों ने
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− | समझदारी से काम लेना चाहिये । शिक्षक की भूमिका और दायित्व इसमें मुख्य है । शिक्षा को औपचारिकता मात्र
| |
− | नहीं बनने देना है । इससे शिक्षा का और समाज का नुकसान होगा ।
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− | BaX
| + | २. नोट्स लेने का, गाइड बुक्स पढने का परामर्श यदि अध्यापक देते हैं तो विनयपूर्वक मना करें । स्वयं पढ़ाने का ही आग्रह करें । |
− | �
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− | ............. page-371 ............. | + | ३. एकाध अध्यापक ऐसे हैं तो उन्हें बदलना सरल भी होता है, ठीक भी होता है । सारे अध्यापक ऐसे हैं तो महाविद्यालय बदलना उचित है । |
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− |
| + | ४. विनय न छोडें, आग्रह भी न छोडें । दोनों किया तो स्थिति बदलना निश्चित है । |
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− | उत्तर
| + | '''प्रश्न ४''' '''माध्यमिक विद्यालयों में पूरे वर्ष का कार्यक्रम सरकार द्वारा भेज दिया जाता है । मुख्याध्यापक के टेबल पर |
| + | काँच के नीचे वह रहता है । वह पूरा करना ही है और प्रमाणों के साथ उसका वृत्त भी भेजना है । इस स्थिति में मौलिकता और स्वतन्त्रता कहाँ है ? हम अपनी कल्पना से कुछ भी नहीं कर सकते । क्या करें ?''' |
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− | प्रश्न ७ | + | '''मुख्याध्यापक का प्रश्न''' |
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− | उत्तर
| + | यह बात सही है । कठिनाई भी सही है । इससे होने वाली हानि भी निश्चित है । लोग इन कार्यक्रमों को सम्पन्न करने |
| + | में कितनी कृत्रिमता और औपचारिकता बरतते हैं यह भी सब जानते हैं । किसी भी अच्छी बात को अनिवार्य बनाया जाय तो उसका विकृतिकरण हो जाता है और वह निरर्थक बन जाती है यह व्यावहारिक सत्य है । |
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− | प्रश्न ८
| + | प्रथम सरकारीकरण, दूसरा शिक्षकों की विश्वसनीयता की समाप्ति और तीसरा अनिवार्य बनाना ऐसा इसका क्रम है । |
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− | उत्तर :
| + | इससे मुक्ति सरल नहीं है । मुक्ति की अपेक्षा छोड जो दिये गये कार्यक्रम हैं उन्हें प्रामाणिकता पूर्वक करते हुए विश्वसनीयता बनाना प्रथम बात है, उसके आधार पर कल्पनाशीलता के लिये अवसर माँगना दूसरी बात है जिसका परिणाम अनिवार्यता दूर होना हो सकता है । |
| | | |
− | 2८ ५
| + | '''प्रश्न ५ अभिभावक आग्रह करते हैं कि हम गृहकार्य जाँचें, गलतियों का सुधार करें । कक्षा में यदि साठ विद्यार्थी हैं तो यह कैसे हो सकता है ? यह करेंगे तो पढायेंगे कब ?''' |
− | 2 ५.
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− | शिक्षा की दुरवस्था के लिये सब शिक्षक को ही दोषी मानते हैं । क्या हमारे अलावा
| + | '''एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का प्रश्न''' |
− | और कोई दोषी नहीं है ?
| |
− | एक शिक्षक का प्रश्न
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− | इस स्थिति के मूल में जायें तो कहना होगा कि सरकार मुख्य रूप से दोषी है । अंग्रेजों ने शिक्षा का सरकारीकरण
| + | '''उत्तर''' यह निजी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का प्रश्न हो सकता है जहाँ ऊँचा शुल्क देकर विद्यार्थी पढने के लिये आते हैं । संचालक शिक्षक और अभिभावकों में परस्पर अविश्वास और ऊँचा शुल्क देने के परिणाम स्वरूप अपेक्षा करने का अधिकार ये दो बातें इसका मूल है । शिक्षकों के लिये अपनी विश्वसनीयता निर्माण करना प्रथम बात है ।दूसरा, अभिभावकों के साथ बैठकर इस बात पर चर्चा हो कि यह कैसे सम्भव है । उनकी अपेक्षा कितनी अव्यावहारिक है यह अभिभावकों को बताना चाहिये । संचालकों ने शिक्षकों का पक्ष लेना चाहिये । यदि यह नहीं किया तो अभिभावकों को और संचालकों को अच्छे शिक्षक नहीं मिलेंगे । अभिभावकों की गृहकार्य जाँचने की |
− | किया । यह भारत स्वतन्त्र हुआ उससे पूर्व की बात है । जब भारत स्वतन्त्र हुआ तब सरकारीकरण को दूर करना
| + | अपेक्षा तो पूर्ण होगी परन्तु अच्छी शिक्षा नहीं होगी । अतः संचालक, अभिभावक और शिक्षक इन तीनों ने समझदारी से काम लेना चाहिये । शिक्षक की भूमिका और दायित्व इसमें मुख्य है । शिक्षा को औपचारिकता मात्र नहीं बनने देना है । इससे शिक्षा का और समाज का नुकसान होगा । |
− | चाहिये था । उस समय किया होता तो सम्भव हो भी जाता परन्तु अंग्रेजों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के कारण ऐसा | |
− | नहीं हुआ । धीरे धीरे परिस्थिति ऐसी हुई कि अब सरकार उसे मुक्त करना चाहे और शिक्षकों को देना चाहे तो | |
− | शिक्षक ही दायित्व लेने के लिये तैयार नहीं है । सरकार किसके हाथ में दे ? | |
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− | दोषी सब हैं । परन्तु शिक्षक को दायित्व लेना चाहिये तो भी वह लेता नहीं है और शिक्षक के अलावा | + | '''प्रश्न ६ शिक्षा की दुरवस्था के लिये सब शिक्षक को ही दोषी मानते हैं । क्या हमारे अलावा और कोई दोषी नहीं है ?''' |
− | और किसी ने लिया तो शिक्षा की दुरवस्था बदल नहीं सकती । इस स्थिति में शिक्षक नहीं तो और कौन दोषी | |
− | है ? | |
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− | औरों के दोष भी शिक्षक दूर नहीं करेगा तब तक दूर नहीं होंगे । फिर भी यदि शिक्षक करता नहीं है और
| + | '''एक शिक्षक का प्रश्न''' |
− | रोता रहता है तो शिक्षक के अलावा और कौन दोषी है ?
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− | आज के विद्यार्थियों में ज्ञान तो ठीक, संस्कार भी दिखाई नहीं देते हैं । संस्कार देने की व्यावहारिक योजना
| |
− | क्या हो सकती है ?
| |
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− | 'एक कार्यकर्ता का प्रश्न | + | '''उत्तर''' इस स्थिति के मूल में जायें तो कहना होगा कि सरकार मुख्य रूप से दोषी है । अंग्रेजों ने शिक्षा का सरकारीकरण किया । यह भारत स्वतन्त्र हुआ उससे पूर्व की बात है । जब भारत स्वतन्त्र हुआ तब सरकारीकरण को दूर करना चाहिये था । उस समय किया होता तो सम्भव हो भी जाता परन्तु अंग्रेजों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के कारण ऐसा नहीं हुआ । धीरे धीरे परिस्थिति ऐसी हुई कि अब सरकार उसे मुक्त करना चाहे और शिक्षकों को देना चाहे तो शिक्षक ही दायित्व लेने के लिये तैयार नहीं है । सरकार किसके हाथ में दे ? |
− | विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने
| |
− | अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी
| |
− | चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है । | |
| | | |
− | संस्कार के लिये संस्कारवर्ग तत्काल योजना हो सकती है । परन्तु तत्काल योजना हमेशा के लिये न बनी
| + | दोषी सब हैं । परन्तु शिक्षक को दायित्व लेना चाहिये तो भी वह लेता नहीं है और शिक्षक के अलावा और किसी ने लिया तो शिक्षा की दुरवस्था बदल नहीं सकती । इस स्थिति में शिक्षक नहीं तो और कौन दोषी है ? |
− | रहे इसलिये मातापिता को अपने बच्चों को संस्कार देने हेतु प्रशिक्षित करना यह होनी चाहिये । मातापिता के लिये
| |
− | प्रशिक्षण हेतु विद्यालयों में योजना होनी चाहिये । इसके साथ साथ वर्तमान विद्यार्थियों को अच्छे मातापिता बनने
| |
− | की शिक्षा का मुख्य शिक्षाक्रम में समावेश होना चाहिये । ज्ञान के लिये शिक्षकों को निवेदन करना चाहिये, आग्रह
| |
− | करना चाहिये । पठनपाठन पद्धति में परिवर्तन करना अति आवश्यक है ।
| |
− | सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आठ वर्ष पढने के बाद भी बच्चों को सादा पढना लिखना भी नहीं
| |
− | आता । बच्चे गन्दे होते हैं, गालियाँ देते हैं । उन्हें मिलने वाला मध्याह्म भोजन सडा हुआ रहता है । ऐसे
| |
− | विद्यालयों में हम अपने बच्चों को कैसे भेज सकते हैं ?
| |
− | यह एक दुश्चक्र है । शिक्षक पढ़ाते नहीं इसलिये हम जाते नहीं । हम जाते नहीं इसलिये शिक्षा अच्छी होती
| |
− | नहीं । हम आग्रह रखते नहीं इसलिये भोजन सडा हुआ होता है । शिक्षक ध्यान देते नहीं इसलिये बच्चे गन्दे और | |
− | गाली देने वाले होते हैं । वे गाली देने वाले मातापिता के ही बच्चे होते हैं इसलिये गाली देना उनका दोष नहीं ।
| |
− | इस दोष को दूर नहीं करना शिक्षकों का दोष है ।
| |
− | उपाय क्या है ?
| |
− | १, इन विद्यालयों को ठीक करना हमारा सामाजिक दायित्व है । हम केवल अपना ही विचार करते हैं इसलिये
| |
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− | सामाजिक जिम्मेदारी से पलायन करते हैं । हमें इन विद्यालयों में अपने बच्चों को भेजना चाहिये ।
| + | '''प्रश्न ७ औरों के दोष भी शिक्षक दूर नहीं करेगा तब तक दूर नहीं होंगे । फिर भी यदि शिक्षक करता नहीं है और रोता रहता है तो शिक्षक के अलावा और कौन दोषी है ? आज के विद्यार्थियों में ज्ञान तो ठीक, संस्कार भी दिखाई नहीं देते हैं । संस्कार देने की व्यावहारिक योजना क्या हो सकती है ?''' |
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− | ३५५
| + | '''एक कार्यकर्ता का प्रश्न''' |
− | �
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| + | विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है । |
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− |
| + | संस्कार के लिये संस्कारवर्ग तत्काल योजना हो सकती है । परन्तु तत्काल योजना हमेशा के लिये न बनी रहे इसलिये मातापिता को अपने बच्चों को संस्कार देने हेतु प्रशिक्षित करना यह होनी चाहिये । मातापिता के लिये प्रशिक्षण हेतु विद्यालयों में योजना होनी चाहिये । इसके साथ साथ वर्तमान विद्यार्थियों को अच्छे मातापिता बनने की शिक्षा का मुख्य शिक्षाक्रम में समावेश होना चाहिये । ज्ञान के लिये शिक्षकों को निवेदन करना चाहिये, आग्रह करना चाहिये । पठनपाठन पद्धति में परिवर्तन करना अति आवश्यक है । |
| | | |
− | LNENLSVAAQBALS
| + | '''प्रश्न ८ सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आठ वर्ष पढने के बाद भी बच्चों को सादा पढना लिखना भी नहीं आता । बच्चे गन्दे होते हैं, गालियाँ देते हैं । उन्हें मिलने वाला मध्याह्म भोजन सडा हुआ रहता है । ऐसे विद्यालयों में हम अपने बच्चों को कैसे भेज सकते हैं ?''' |
− | LV\LNfNLNLN/\
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− | / ९४ ३ ७५/ ४५/४
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− | ९
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− | A २... शिक्षक पढ़ायें ऐसा आग्रह करना चाहिये । अभिभावकों ने मिलकर यदि आग्रह किया तो शिक्षक
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− | प्रश्न ९
| + | यह एक दुश्चक्र है । शिक्षक पढ़ाते नहीं इसलिये हम जाते नहीं । हम जाते नहीं इसलिये शिक्षा अच्छी होती नहीं । हम आग्रह रखते नहीं इसलिये भोजन सडा हुआ होता है । शिक्षक ध्यान देते नहीं इसलिये बच्चे गन्दे और गाली देने वाले होते हैं । वे गाली देने वाले मातापिता के ही बच्चे होते हैं इसलिये गाली देना उनका दोष नहीं । इस दोष को दूर नहीं करना शिक्षकों का दोष है । उपाय क्या है ? |
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− | उत्तर
| + | १, इन विद्यालयों को ठीक करना हमारा सामाजिक दायित्व है । हम केवल अपना ही विचार करते हैं इसलिये सामाजिक जिम्मेदारी से पलायन करते हैं । हमें इन विद्यालयों में अपने बच्चों को भेजना चाहिये । |
| | | |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
| + | २. शिक्षक पढ़ायें ऐसा आग्रह करना चाहिये । अभिभावकों ने मिलकर यदि आग्रह किया तो शिक्षक पढ़ाने लगेंगे क्योंकि वे योग्यता तो रखते ही हैं । हमारे बच्चों के साथ झॉंपडियों के बच्चे भी पढने लगेंगे । |
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− |
| + | ३. झॉपडियों के दो दो बच्चों को हममें से एक एक अभिभावक यदि उनकी जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं तो बडी सेवा होगी । |
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− | पढ़ाने लगेंगे क्योंकि वे योग्यता तो रखते ही हैं । हमारे बच्चों के साथ झॉंपडियों के बच्चे भी पढने लगेंगे ।
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− | ३. झॉपडियों के दो दो बच्चों को हममें से एक एक अभिभावक यदि उनकी जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं तो बडी
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− | सेवा होगी ।
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| ४. सडा हुआ मध्याह्म भोजन तो हमारी देखरेख से तुरन्त ठीक हो सकता है । | | ४. सडा हुआ मध्याह्म भोजन तो हमारी देखरेख से तुरन्त ठीक हो सकता है । |
− | निजी विद्यालयों में ऊँचा शुल्क, वाहन का खर्चा और साधनसामग्री का खर्च बचाकर सरकारी विद्यालयों में अपने
| |
− | बच्चों को पढाना शिक्षा की सेवा है, समाज की सेवा है । हम सेवा क्यों नहीं करेंगे ? समय नहीं है कहना ठीक
| |
− | नहीं है । इस काम को सेवा न मानकर दायित्व ही मानेंगे तो यह काम हो सकता है । शिक्षा को बाजारीकरण का
| |
− | शिकार बनने से भी हम बचा सकते हैं ।
| |
− | जो विद्यालय पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में एक या डेढ़ लाख का शुल्क वसूलते हैं उन्हें
| |
− | सरकार क्यों दण्डित नहीं करती ?
| |
− | एक अभिभावक का प्रश्र
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− |
| |
− | ऐसा प्रश्न यदि समाज सेवा करने वाला कार्यकर्ता पूछता है तब तो उसका उत्तर और प्रकार से दिया जा सकता है
| |
− | परन्तु आप अभिभावक होकर पूछ रहे हैं इसलिये प्रथम तो आपको ही दण्डित करना चाहिये । ऐसे विद्यालय
| |
− | आपके सहयोग से चलते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है फिर आप क्यों अपने बच्चे
| |
− | को भेजते हैं । प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क भी चलते हैं और कम शुल्क में भी चलते हैं । उसमें शिक्षा डेढड लाख
| |
− | वाले विद्यालयों से कम गुणवत्ता की होती है ऐसा तो नहीं है । फिर आप डेढ लाख वालों का चयन क्यों करते
| |
− | हैं ? वे आपको बाध्य तो नहीं करते । आप ही तो अपनी प्रतिष्ठा के लिये वहाँ भेजते हैं ।
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− |
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− | इनका दोष अवश्य है परन्तु इन्हें सरकार दण्डित नहीं कर सकती । इन्हें अभिभावक ही अपने बच्चों को न
| |
− | भेजकर दण्डित कर सकते हैं ।
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− |
| |
− | आप अपवाद स्वरूप अभिभावक हैं तो ऐसा कहते हैं । बाकी तो ख़ुशी ख़ुशी भेजते हैं, गर्व अनुभव करते
| |
− | हैं और स्थिति यह है कि प्रवेश के लिये कठिनाई हो जाती है । संचालक और अभिभावक मिलकर यह बाजार
| |
− | चलता है ।
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− |
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− | आप यदि सामाजिक कार्यकर्ता, सन्निष्ठ शिक्षक या सज्जन नागरिक हैं तो प्रश्न का विचार अलग प्रकार से
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− | किया जा सकता है ।
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− |
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− | ऐसे विद्यालय शिक्षाक्षेत्र को प्रदूषित तो करते हैं परन्तु इसे रोकने की क्षमता सरकार में नहीं है, समाज में
| |
− | है । समाज के समझदार और सेवाभावी लोगों ने, शिक्षकों ने, शिक्षासंस्थाओं ने मिलकर समाज प्रबोधन हेतु
| |
− | आन्दोलन चलाना चाहिये । यह आन्दोलन ऐसे विद्यालयों के अथवा उनमें अपने बच्चों को भेजने वालों के
| |
− | विरुद्ध नहीं होना चाहिये । अपितु ऐसे विद्यालय होना ठीक नहीं है ऐसी समझ बनाने हेतु होना चाहिये । जब
| |
− | व्यापक समझ बननी है और निःशुल्क तथा कमशुल्क वाले विद्यालय अच्छे हैं और इनके होते हुए भी देढ लाख
| |
− | वाले विद्यालयों में जो लोग अपने बच्चों को भेजते हैं वे नासमझ हैं ऐसा वातावरण बनता है तब स्थिति ठीक होने
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− | लगती है । इन विद्यालयों में अपने बच्चों को भेज नहीं सकते इसलिये भेजनेवालों की ईर्ष्या करते हैं वे सही नहीं
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− | हैं । उनके कारण स्थिति ठीक नहीं होती । यह समाज का एक मनोवैज्ञानिक प्रश्न है और वह मनोवैज्ञानिक पद्धति
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− | से ही सुलझाया जा सकता है ।
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− | ३५६
| + | निजी विद्यालयों में ऊँचा शुल्क, वाहन का खर्चा और साधनसामग्री का खर्च बचाकर सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढाना शिक्षा की सेवा है, समाज की सेवा है । हम सेवा क्यों नहीं करेंगे ? समय नहीं है कहना ठीक नहीं है । इस काम को सेवा न मानकर दायित्व ही मानेंगे तो यह काम हो सकता है । शिक्षा को बाजारीकरण का शिकार बनने से भी हम बचा सकते हैं । |
− | �
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− | ............. page-373 .............
| + | '''प्रश्न ९ जो विद्यालय पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में एक या डेढ़ लाख का शुल्क वसूलते हैं उन्हें सरकार क्यों दण्डित नहीं करती ?''' |
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− | पर्व ५ : विविध
| + | '''एक अभिभावक का प्रश्र''' |
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| + | ऐसा प्रश्न यदि समाज सेवा करने वाला कार्यकर्ता पूछता है तब तो उसका उत्तर और प्रकार से दिया जा सकता है परन्तु आप अभिभावक होकर पूछ रहे हैं इसलिये प्रथम तो आपको ही दण्डित करना चाहिये । ऐसे विद्यालय आपके सहयोग से चलते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है फिर आप क्यों अपने बच्चे को भेजते हैं । प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क भी चलते हैं और कम शुल्क में भी चलते हैं । उसमें शिक्षा डेढड लाख वाले विद्यालयों से कम गुणवत्ता की होती है ऐसा तो नहीं है । फिर आप डेढ लाख वालों का चयन क्यों करते हैं ? वे आपको बाध्य तो नहीं करते । आप ही तो अपनी प्रतिष्ठा के लिये वहाँ भेजते हैं । |
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− | प्रश्न १०
| + | इनका दोष अवश्य है परन्तु इन्हें सरकार दण्डित नहीं कर सकती । इन्हें अभिभावक ही अपने बच्चों को न भेजकर दण्डित कर सकते हैं । |
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− | उत्तर
| + | आप अपवाद स्वरूप अभिभावक हैं तो ऐसा कहते हैं । बाकी तो ख़ुशी ख़ुशी भेजते हैं, गर्व अनुभव करते हैं और स्थिति यह है कि प्रवेश के लिये कठिनाई हो जाती है । संचालक और अभिभावक मिलकर यह बाजार चलता है । |
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− | प्रश्न ११ | + | आप यदि सामाजिक कार्यकर्ता, सन्निष्ठ शिक्षक या सज्जन नागरिक हैं तो प्रश्न का विचार अलग प्रकार से किया जा सकता है । |
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− | उत्तर
| + | ऐसे विद्यालय शिक्षाक्षेत्र को प्रदूषित तो करते हैं परन्तु इसे रोकने की क्षमता सरकार में नहीं है, समाज में है । समाज के समझदार और सेवाभावी लोगों ने, शिक्षकों ने, शिक्षासंस्थाओं ने मिलकर समाज प्रबोधन हेतु आन्दोलन चलाना चाहिये । यह आन्दोलन ऐसे विद्यालयों के अथवा उनमें अपने बच्चों को भेजने वालों के विरुद्ध नहीं होना चाहिये । अपितु ऐसे विद्यालय होना ठीक नहीं है ऐसी समझ बनाने हेतु होना चाहिये । जब व्यापक समझ बननी है और निःशुल्क तथा कमशुल्क वाले विद्यालय अच्छे हैं और इनके होते हुए भी देढ लाख वाले विद्यालयों में जो लोग अपने बच्चों को भेजते हैं वे नासमझ हैं ऐसा वातावरण बनता है तब स्थिति ठीक होने लगती है । इन विद्यालयों में अपने बच्चों को भेज नहीं सकते इसलिये भेजनेवालों की ईर्ष्या करते हैं वे सही नहीं हैं । उनके कारण स्थिति ठीक नहीं होती । यह समाज का एक मनोवैज्ञानिक प्रश्न है और वह मनोवैज्ञानिक पद्धति से ही सुलझाया जा सकता है । |
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− | प्रश्न १२ | + | '''प्रश्न १० पढाई पूरी होने के बाद विद्यार्थियों को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की है । वह यदि अपनी जिम्मेदारी पूर्ण न करें तो कहाँ शिकायत कर सकते हैं ?''' |
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− | उत्तर | + | '''उत्तर''' समझदारी पूर्वक किसी भी प्रश्न का विचार करना हरेक की जिम्मेदारी है । हरेक को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है । सरकार यदि ऐसा करती है तो वह केवल चुनावी घोषणा है जो मिथ्या है । सरकार भी यह जानती है । थोडा विचार करेंगे तो ध्यान में आयेगा कि हम यन्त्रों का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग करते जायेंगे तो मनुष्य के लिये काम ही नहीं रहेगा । फिर नौकरियाँ ही नहीं होंगी । इस स्थिति में सरकार तो क्या कोई भी नौकरी नहीं दे सकता । हाँ, सरकार बेरोजगारी भत्ता दे सकती है परन्तु वह नौकरी नहीं, भीख होगी । इससे तो दुर्गति होगी । |
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− | पढाई पूरी होने के बाद विद्यार्थियों को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की है । वह
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− | यदि अपनी जिम्मेदारी पूर्ण न करें तो कहाँ शिकायत कर सकते हैं ?
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− | समझदारी पूर्वक किसी भी प्रश्न का विचार करना हरेक की जिम्मेदारी है । हरेक को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार | |
− | की नहीं है । सरकार यदि ऐसा करती है तो वह केवल चुनावी घोषणा है जो मिथ्या है । सरकार भी यह जानती है । | |
− | थोडा विचार करेंगे तो ध्यान में आयेगा कि हम यन्त्रों का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग करते जायेंगे तो मनुष्य के लिये | |
− | काम ही नहीं रहेगा । फिर नौकरियाँ ही नहीं होंगी । इस स्थिति में सरकार तो क्या कोई भी नौकरी नहीं दे सकता । | |
− | हाँ, सरकार बेरोजगारी भत्ता दे सकती है परन्तु वह नौकरी नहीं, भीख होगी । इससे तो दुर्गति होगी । | |
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− | हाँ, सरकार की यह जिम्मेदारी अवश्य है कि सबको अथर्जिन हेतु काम मिले । काम और नोकरी में अन्तर | + | हाँ, सरकार की यह जिम्मेदारी अवश्य है कि सबको अथर्जिन हेतु काम मिले । काम और नोकरी में अन्तर है । प्रथम तो यह समझना चाहिये कि लोग काम नहीं माँग रहे हैं, नौकरी माँग रहे हैं । जिन्हें काम करना है उन्हें काम तो मिल ही जाता है । यदि हम विद्यालयों में और घरों में काम और काम करना सिखाने लगें, स्वमान जाग्रत करें तो सरकार निरपेक्ष अथर्जिन की अच्छी व्यवस्था देखते ही देखते बन सकती है क्योंकि भारत के रक्त में इस व्यवस्था के संस्कार हैं । नोकरी नहीं मिलना यह संकट नहीं है, बच्चों को निरुद्यमी बनाना और काम करने लायक ही नहीं बनाना संकट है । सही समृद्धि तो उद्यमशीलता के साथ रहती है, और रहती ही है । |
− | है । प्रथम तो यह समझना चाहिये कि लोग काम नहीं माँग रहे हैं, नौकरी माँग रहे हैं । जिन्हें काम करना है उन्हें | |
− | काम तो मिल ही जाता है । यदि हम विद्यालयों में और घरों में काम और काम करना सिखाने लगें, स्वमान जाग्रत | |
− | करें तो सरकार निरपेक्ष अथर्जिन की अच्छी व्यवस्था देखते ही देखते बन सकती है क्योंकि भारत के रक्त में इस | |
− | व्यवस्था के संस्कार हैं । नोकरी नहीं मिलना यह संकट नहीं है, बच्चों को निरुद्यमी बनाना और काम करने लायक | |
− | ही नहीं बनाना संकट है । सही समृद्धि तो उद्यमशीलता के साथ रहती है, और रहती ही है । | |
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| शिक्षा लोगों को इस दिशा में अग्रसर होने को प्रेरित करे और उद्यम सिखायें यही इस प्रश्न का उत्तर है । | | शिक्षा लोगों को इस दिशा में अग्रसर होने को प्रेरित करे और उद्यम सिखायें यही इस प्रश्न का उत्तर है । |
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| 3. प्रतिदिन एक घण्टा मैदानमें खेलना । | | 3. प्रतिदिन एक घण्टा मैदानमें खेलना । |