Line 320:
Line 320:
कक्षाकक्ष में बैठने की व्यवस्था कैसी है उसके आधार पर अन्य बातों की भी व्यवस्था की जायेंगी । अधिकांश कक्षाकक्षों में बैठने की व्यवस्था टेबल कुर्सी और बेन्च डेस्क पर की जाती है । इस हिसाब से खिडकियों की ऊंचाई ढाई या तीन फीट की रखी जाती है । नीचे भूमि पर बैठकर अध्ययन, भोजन आदि करना है तो खिड़कियों की भूतल से ऊंचाई १० से १२ इंच होनी चाहिये । नियम यह है कि कक्ष में बैठे हुए लोगों को खिड़की से बाहर का दृश्य दिख सके । कई बार तो बाहर का दिखाई न दे इसी उद्देश्य से खिड़कियाँ और भी ऊँचाई पर बनाई जाती हैं । बाहर की दखल न हो और विद्यार्थी भी बाहर न झाँक सर्के ऐसा दुहरा उद्देश्य होता है परन्तु यह उचित नहीं है, शास्त्रीय नहीं है ।
कक्षाकक्ष में बैठने की व्यवस्था कैसी है उसके आधार पर अन्य बातों की भी व्यवस्था की जायेंगी । अधिकांश कक्षाकक्षों में बैठने की व्यवस्था टेबल कुर्सी और बेन्च डेस्क पर की जाती है । इस हिसाब से खिडकियों की ऊंचाई ढाई या तीन फीट की रखी जाती है । नीचे भूमि पर बैठकर अध्ययन, भोजन आदि करना है तो खिड़कियों की भूतल से ऊंचाई १० से १२ इंच होनी चाहिये । नियम यह है कि कक्ष में बैठे हुए लोगों को खिड़की से बाहर का दृश्य दिख सके । कई बार तो बाहर का दिखाई न दे इसी उद्देश्य से खिड़कियाँ और भी ऊँचाई पर बनाई जाती हैं । बाहर की दखल न हो और विद्यार्थी भी बाहर न झाँक सर्के ऐसा दुहरा उद्देश्य होता है परन्तु यह उचित नहीं है, शास्त्रीय नहीं है ।
−
............. page-241 .............
+
==== बैठने की दिशा ====
+
कक्षाकक्ष में सब विद्यार्थी पूर्व की ओर मुँह करके बैठ सकें ऐसी रचना बनानी चाहिये । शिक्षक विद्यार्थियों से कुछ ऊँचाई पर बैठ सके ऐसा मंच बनाना चाहिये । बैठने वालों की ऊँचाई के अनुपात में दीवार पर श्याम फलक होना चाहिये । नकशा, आलेख, चित्र आदि टाँगने की व्यवस्था चाहिये । पृथ्वी का गोला या अन्य सामग्री दिखानी हो तो उसे रखने के लिये उचित स्थान होना चाहिये । घर में हम जिस प्रकार बैठक कक्ष, भोजन कक्ष, रसोई आदि में आवश्यकता और सुविधा के अनुसार रचना और व्यवस्था करते हैं उसी प्रकार विद्यालय के कक्षा कक्षों में तथा अन्य कक्षों में भी करनी चाहिये । छात्र आदि अपने बस्ते विद्यालय में ही रखकर जाने वाले हैं तो उन्हें रखने की भी व्यवस्था चाहिये ।
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
+
==== हवा, प्रकाश, ध्वनि व तापमान ====
+
कक्षाकक्ष में हवा की आवनजावन, तापमान नियन्त्रण, प्रकाश आदि की समुचित व्यवस्था होना अपेक्षित है। कक्षाकक्ष की दीवारों और छतों की चूने से पुताई होना ही अपेक्षित है, सिन्थेटिक रंगों से रंगाई नहीं । दीवारों पर ध्येय वाक्य, चित्र, उपयोगी जानकारी के आलेख लगाने की व्यवस्था चाहिये ।
−
बैठने की दिशा
+
सबसे महत्त्वपूर्ण है ध्वनिव्यवस्था । कक्षा में एक ने बोला सबको सुनाई दे ऐसा तो होना ही चाहिये परन्तु आसपास के कक्षों में उससे व्यवधान न हो यह भी देखना चाहिये । फिर भी कम कमाने वाले का घर छोटा होता है और उस छोटे घर में भी कुशल, बुद्धिमान और गृहप्रेमी लोग आवश्यक व्यवस्थायें बना लेते हैं और आनन्द से सारे व्यवहार करते हैं उसी प्रकार विद्यालय यदि सम्पन्न नहीं है तब भी बुद्धिमान शिक्षक जितने भी संसाधन प्राप्त होते हैं उतने में अच्छी से अच्छी व्यवस्था बना लेते हैं ।
−
कक्षाकक्ष में सब विद्यार्थी पूर्व की ओर मुँह करके
+
कठिनाई केवल एक है, और वह बड़ी है । घर में घर के मालिक, कमाई करनेवाले और घर में रहनेवाले लोग
−
बैठ सकें ऐसी रचना बनानी चाहिये । शिक्षक विद्यार्थियों से
+
अलग अलग नहीं होते, एक ही होते हैं, घरवाले होते हैं । विद्यालय में पैसा खर्च करनेवाले, नौकरी में रखनेवाले और पढाने वाले एक ही नहीं होते, पराये होते हैं । मालिकी भाव से विद्यालय संचालकों का होता है, नौकरी भाव से शिक्षकों का होता है । इसलिये बुद्धिमानी, कुशलता और आत्मीयता का आलम्बन ही नष्ट हो जाता है। सत्य तो यह है कि इस एक व्यवस्था ने अनेक उत्तम स्चनाओं को तहसनहस कर दिया है ।
−
कुछ ऊँचाई पर बैठ सके ऐसा मंच बनाना चाहिये । बैठने
−
वालों की ऊँचाई के अनुपात में दीवार पर श्याम फलक
−
होना चाहिये । नकशा, आलेख, चित्र आदि टाँगने की
−
व्यवस्था चाहिये । पृथ्वी का गोला या अन्य सामग्री
−
दिखानी हो तो उसे रखने के लिये उचित स्थान होना
−
चाहिये । घर में हम जिस प्रकार बैठक कक्ष, भोजन कक्ष,
−
रसोई आदि में आवश्यकता और सुविधा के अनुसार रचना
−
और व्यवस्था करते हैं उसी प्रकार विद्यालय के कक्षा कक्षों
−
में तथा अन्य कक्षों में भी करनी चाहिये । छात्र आदि अपने
−
बस्ते विद्यालय में ही रखकर जाने वाले हैं तो उन्हें रखने
−
की भी व्यवस्था चाहिये ।
−
हवा, प्रकाश, ध्वनि व तापमान
+
क्या महाविद्यालय में विद्यार्थी भूमि पर बैठ सकते हैं ? सामने डेस्क रखकर बैठ सकते हैं ? क्या महाविद्यालय में विद्यार्थी जूते उतारकर बैठ सकते हैं ? हमें लगता है कि नहीं, इतने बडे विद्यार्थी नीचे कैसे बैठेंगे ? लाख रुपये कमाने वाले अध्यापक आसन पर बैठ कर व्याख्यान कैसे दे सकते हैं ?
−
कक्षाकक्ष में हवा की आवनजावन, तापमान
+
परन्तु हमारे तर्क का दोष हम नहीं देख सकते हैं क्या ? नीचे या ऊपर बैठने का आयु या दर्ज के साथ क्या सम्बन्ध है ? सम्बन्ध तो भारतीय और अभारतीय होने का है ? क्या महाविद्यालय के विद्यार्थी और प्राध्यापक अभारतीय हैं ? या सबके सब घुटने के दर्द से परेशान हैं ? या कभी ऐसा विचार ही नहीं किया हैं ?
−
नियन्त्रण, प्रकाश आदि की समुचित व्यवस्था होना
−
अपेक्षित है। कक्षाकक्ष की दीवारों और छतों की चूने से
−
पुताई होना ही अपेक्षित है, सिन््थेटिक रंगों से रंगाई नहीं ।
−
दीवारों पर ध्येय वाक्य, चित्र, उपयोगी जानकारी के
−
आलेख लगाने की व्यवस्था चाहिये ।
−
सबसे महत्त्वपूर्ण है ध्वनिव्यवस्था । कक्षा में एक ने
+
कक्षाकक्ष की ये तो तान्त्रिक बातें हुईं । कक्षाकक्ष का शैक्षिक अर्थ कया है ?
−
बोला सबको सुनाई दे ऐसा तो होना ही चाहिये परन्तु
−
आसपास के कक्षों में उससे व्यवधान न हो यह भी देखना
−
चाहिये । फिर भी कम कमाने वाले का घर छोटा होता है
−
और उस छोटे घर में भी कुशल, बुद्धिमान और गृहप्रेमी
−
लोग आवश्यक व्यवस्थायें बना लेते हैं और आनन्द से सारे
−
व्यवहार करते हैं उसी प्रकार विद्यालय यदि सम्पन्न नहीं है
−
तब भी बुद्धिमान शिक्षक जितने भी संसाधन प्राप्त होते हैं
−
उतने में अच्छी से अच्छी व्यवस्था बना लेते हैं ।
−
कठिनाई केवल एक है, और वह बड़ी है । घर में घर
+
जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी बैठकर अध्यापन और अध्ययन करते हों वह कक्षाकक्ष है । यह अध्यापक का घर हो सकता है, मन्दिर का बरामदा हो सकता है या वृक्ष की छाया भी हो सकती है । अध्ययन अध्यापन के तरीके के अनुसार कक्षाकक्ष का स्थान बदल सकता है । कहानी सुनना है, इतिहास पढ़ना है, मिट्टी से काम करना है तो वृक्ष के नीचे, बरामदे में या मैदान में कक्षा लग सकती है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के कक्षाकक्ष वृक्षों के नीचे ही होते थे । प्राचीन ऋषिमुनि वृक्षों के नीचे बैठकर ही पढ़ाते थे ।
−
के मालिक, कमाई करनेवाले और घर में रहनेवाले लोग
−
अलग अलग नहीं होते, एक ही होते हैं, घरवाले होते हैं ।
−
विद्यालय में पैसा खर्च करनेवाले, नौकरी में रखनेवाले और
−
र२५
+
==== विषयानुसार कक्ष रचना ====
−
+
यह तथ्य इस बात की ओर संकेत करता है कि अध्ययन काल का विभाजन वर्ष और कक्षाओं के अनुसार
−
+
नहीं अपितु विषयों और गतिविधियों के अनुसार होना चाहिये और कक्षों की रचना विषयों की आवश्यकताओं का
−
−
पढाने वाले एक ही नहीं होते, पराये
−
होते हैं । मालिकी भाव से विद्यालय संचालकों का होता है,
−
नौकरी भाव से शिक्षकों का होता है । इसलिये बुद्धिमानी,
−
कुशलता और आत्मीयता का आलम्बन ही नष्ट हो जाता
−
है। सत्य तो यह है कि इस एक व्यवस्था ने अनेक उत्तम
−
स्चनाओं को तहसनहस कर दिया है ।
−
−
क्या महाविद्यालय में विद्यार्थी भूमि पर बैठ सकते
−
हैं ? सामने डेस्क रखकर बैठ सकते हैं ? क्या महाविद्यालय
−
में विद्यार्थी जूते उतारकर बैठ सकते हैं ? हमें लगता है कि
−
नहीं, इतने बडे विद्यार्थी नीचे कैसे बैठेंगे ? लाख रुपये
−
कमाने वाले अध्यापक आसन पर बैठ कर व्याख्यान कैसे दे
−
सकते हैं ?
−
−
परन्तु हमारे तर्क का दोष हम नहीं देख सकते हैं
−
क्या ? नीचे या ऊपर बैठने का आयु या दर्ज के साथ क्या
−
सम्बन्ध है ? सम्बन्ध तो भारतीय और अभारतीय होने का
−
है ? क्या महाविद्यालय के विद्यार्थी और प्राध्यापक
−
अभारतीय हैं ? या सबके सब घुटने के दर्द से परेशान हैं ?
−
या कभी ऐसा विचार ही नहीं किया हैं ?
−
−
कक्षाकक्ष की ये तो तान्त्रिक बातें हुईं । कक्षाकक्ष
−
का शैक्षिक अर्थ कया है ?
−
−
जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी बैठकर अध्यापन और
−
अध्ययन करते हों वह कक्षाकक्ष है । यह अध्यापक का घर
−
हो सकता है, मन्दिर का बरामदा हो सकता है या वृक्ष की
−
छाया भी हो सकती है । अध्ययन अध्यापन के तरीके के
−
अनुसार कक्षाकक्ष का स्थान बदल सकता है । कहानी
−
सुनना है, इतिहास पढ़ना है, मिट्टी से काम करना है तो वृक्ष
−
के नीचे, बरामदे में या मैदान में कक्षा लग सकती है।
−
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के कक्षाकक्ष वृक्षों के नीचे ही होते
−
थे । प्राचीन ऋषिमुनि वृक्षों के नीचे बैठकर ही पढ़ाते थे ।
−
−
विषयानुसार कक्ष रचना
−
−
यह तथ्य इस बात की ओर संकेत करता है कि
−
अध्ययन काल का विभाजन वर्ष और कक्षाओं के अनुसार
−
नहीं अपितु विषयों और गतिविधियों के अनुसार होना
−
चाहिये और कक्षों की रचना विषयों की आवश्यकताओं का
−
�
............. page-242 .............
............. page-242 .............