यह तथ्य इस बात की ओर संकेत करता है कि अध्ययन काल का विभाजन वर्ष और कक्षाओं के अनुसार
यह तथ्य इस बात की ओर संकेत करता है कि अध्ययन काल का विभाजन वर्ष और कक्षाओं के अनुसार
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नहीं अपितु विषयों और गतिविधियों के अनुसार होना चाहिये और कक्षों की रचना विषयों की आवश्यकताओं का
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नहीं अपितु विषयों और गतिविधियों के अनुसार होना चाहिये और कक्षों की रचना विषयों की आवश्यकताओं का ध्यान रखकर होनी चाहिये।
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अर्थात् विद्यालय में कक्षाकक्ष नहीं अपितु विषय कक्ष होने चाहिये । समय सारिणी विषयों के अनुसार होनी चाहिये । विद्यार्थियों का विभाजन भी विषयों के अनुसार होना चाहिये।
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विषयकक्ष की अधिक चर्चा स्वतन्त्र रूप से करेंगे परन्तु यहाँ इतना कहना आवश्यक है कि सर्व प्रकार की रचनाओं के लिये यान्त्रिक आग्रह छोड देना चाहिये, मानवीय अर्थात् जीवमानता के अनुकूल रचनायें करनी चाहिये।
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अध्ययन अध्यापन जिन्दा व्यक्तियों के द्वारा किया जाने वाला जीवमान कार्य है। इसी प्रकार से सारी रचनायें होना अपेक्षित है।
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भारतीय शिक्षा की पुनर्रचना में यह भी एक महत्त्वपूर्ण आयाम है।