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६. क्या हम ऐसी भाषा बोल सकते हैं ?
 
६. क्या हम ऐसी भाषा बोल सकते हैं ?
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* तुम अंग्रेजी भाषा बोलते हो ? तुम्हारे मुँह से दुर्गन्ध आ रही है, जाओ अपना मुँह साफ करके आओ, फिर मुझ से बात करो ।
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* तुम्हारे विवाह की पत्रिका अंग्रेजी में छपी है, मैं विवाह समारोह में नहीं आऊँगा । मुझे अंग्रेजी पसन्द नहीं है ।
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* मेरे साथ बात करनी है ? अंग्रेजी छोडो, मेरी नहीं तो तुम्हारी भाषा में बोलो, में समझने का प्रयास करूँगा । अंग्रेजी ही तुम्हारी भाषा है ? तो मुझे तुमसे ही बात नहीं करनी है ।
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* तुम अंग्रेजी माध्यम में पढे हो ? तो तुम्हें मेरे कार्यालय में नौकरी नहीं मिलेगी । तुम्हारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ रहे हैं ? तुम्हें मेरे कार्यालय में या घर में नौकरी नहीं मिलेगी । मेरे घर के किसी भी समारोह में निमन्त्रण नहीं मिलेगा ।
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* विद्यालय द्वारा आयोजित भाषण या. निबन्ध प्रतियोगिता में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों को सहभागी नहीं होने दिया जायेगा । केवल भाषण या निबन्ध प्रतियोगिता में ही क्यों किसी भी समारोह में सहभागी नहीं होने दिया जायेगा ।
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तुम अंग्रेजी भाषा बोलते हो ? तुम्हारे मुँह से दुर्गन्ध आ रही है, जाओ अपना मुँह साफ करके आओ, फिर मुझ से बात करो ।
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* रोटरी, जेसीझ जैसे संगठन देशी भाषा भाषी लोगों ने बनाने चाहिये और उसमें अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को प्रतिबन्धित करना चाहिये ।  
 
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तुम्हारे विवाह की पत्रिका अंग्रेजी में छपी है, मैं विवाह समारोह में नहीं आऊँगा । मुझे अंग्रेजी पसन्द नहीं है ।
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मेरे साथ बात करनी है ? अंग्रेजी छोडो, मेरी नहीं तो तुम्हारी भाषा में बोलो, में समझने का प्रयास करूँगा । अंग्रेजी ही तुम्हारी भाषा है ? तो मुझे तुमसे ही बात नहीं करनी है ।
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तुम अंग्रेजी माध्यम में पढे हो ? तो तुम्हें मेरे कार्यालय में नौकरी नहीं मिलेगी । तुम्हारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ रहे हैं ? तुम्हें मेरे कार्यालय में या घर में नौकरी नहीं मिलेगी । मेरे घर के किसी भी समारोह में निमन्त्रण नहीं मिलेगा ।
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विद्यालय द्वारा आयोजित भाषण या. निबन्ध प्रतियोगिता में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों को सहभागी नहीं होने दिया जायेगा । केवल भाषण या निबन्ध प्रतियोगिता में ही क्यों किसी भी समारोह में सहभागी नहीं होने दिया जायेगा ।
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रोटरी, जेसीझ जैसे संगठन देशी भाषा भाषी लोगों ने बनाने चाहिये और उसमें अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को प्रतिबन्धित करना चाहिये ।
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भूत को भगाने का सबसे कारगर उपाय उसकी उपेक्षा करना है । उपेक्षा के यहाँ बनाये हैं उससे अधिक अशिष्ट अनेक मार्ग हो सकते हैं । जिसे जो उचित लगे वह अपनाना चाहिये । मुद्दा यह है कि स्वाभिमान मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यक्त होना चाहिये, बौद्धिक से काम नहीं चलेगा ।
 
भूत को भगाने का सबसे कारगर उपाय उसकी उपेक्षा करना है । उपेक्षा के यहाँ बनाये हैं उससे अधिक अशिष्ट अनेक मार्ग हो सकते हैं । जिसे जो उचित लगे वह अपनाना चाहिये । मुद्दा यह है कि स्वाभिमान मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यक्त होना चाहिये, बौद्धिक से काम नहीं चलेगा ।
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सज्जन, बुद्धिमान, समाजाभिमुख लोगों को इतना कठोर होना अच्छा नहीं लगता । वे इस प्रकार के उपायों को अपनाने को सिद्ध भी नहीं होते और उन्हें मान्यता भी नहीं देते । इसलिये भूत अधिक प्रभावी बनता है । ऐसे सज्जनों के समक्ष कठोर उपाय करने वाले हार जाते हैं और भूत मुस्कुराता है परन्तु सज्जन अपनी सज्जनता छोड़ते ही नहीं । यह अंग्रेजी को परास्त करने के रास्ते में बडा अवरोध है |
 
सज्जन, बुद्धिमान, समाजाभिमुख लोगों को इतना कठोर होना अच्छा नहीं लगता । वे इस प्रकार के उपायों को अपनाने को सिद्ध भी नहीं होते और उन्हें मान्यता भी नहीं देते । इसलिये भूत अधिक प्रभावी बनता है । ऐसे सज्जनों के समक्ष कठोर उपाय करने वाले हार जाते हैं और भूत मुस्कुराता है परन्तु सज्जन अपनी सज्जनता छोड़ते ही नहीं । यह अंग्रेजी को परास्त करने के रास्ते में बडा अवरोध है |
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“हमें अंग्रेजी से विरोध नहीं है, अंग्रेजीपन से विरोध है' ऐसा कहनेवाला एक बहुत बडा वर्ग है । यह वर्ग अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय चलने का विरोध करता है परन्तु मातृभाषा माध्यम के विद्यालयों में अच्छी अंग्रेजी पढ़ाने का आग्रह करता हैं। इस तर्क में दम है ऐसा लगता है परन्तु यह आभासी तर्क है । इसके चलते इस वर्ग को न अंग्रेजी आती है न वे अंग्रेजी को छोड सकते हैं । भूत ताक में रहता है । ऐसे विद्यालय या तो अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में परिवर्तित हो जाते हैं या तो इनमें प्रवेश की संख्या कम हो जाती है। और
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“हमें अंग्रेजी से विरोध नहीं है, अंग्रेजीपन से विरोध है' ऐसा कहनेवाला एक बहुत बडा वर्ग है । यह वर्ग अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय चलने का विरोध करता है परन्तु मातृभाषा माध्यम के विद्यालयों में अच्छी अंग्रेजी पढ़ाने का आग्रह करता हैं। इस तर्क में दम है ऐसा लगता है परन्तु यह आभासी तर्क है । इसके चलते इस वर्ग को न अंग्रेजी आती है न वे अंग्रेजी को छोड सकते हैं । भूत ताक में रहता है । ऐसे विद्यालय या तो अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में परिवर्तित हो जाते हैं या तो इनमें प्रवेश की संख्या कम हो जाती है। और उसकी अआप्रतिष्ठा हो जाती है । न ये अंग्रेजी अपना
 
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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उसकी अआप्रतिष्ठा हो जाती है । न ये अंग्रेजी अपना
   
सकते हैं न विद्यालय को बचा सकते हैं। ये न
 
सकते हैं न विद्यालय को बचा सकते हैं। ये न
 
इधर के रहते हैं न उधर के । फिर भी अंग्रेजी का
 
इधर के रहते हैं न उधर के । फिर भी अंग्रेजी का
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मनोबल गिराते रहते हैं ।
 
मनोबल गिराते रहते हैं ।
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जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और
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७. जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और
 
कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा
 
कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा
 
अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त
 
अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त
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शुरू किया, फिर तीसरी से, फिर पहली से । अब
 
शुरू किया, फिर तीसरी से, फिर पहली से । अब
 
पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में पढाते हैं । अब अंग्रेजी
 
पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में पढाते हैं । अब अंग्रेजी
माध्यम का आग्रह बढ़ा है । यश तो हमें आठवीं से
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माध्यम का आग्रह बढ़ा है । यश तो हमें आठवीं से अंग्रेजी माध्यम नहीं, अंग्रेजी
 
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अंग्रेजी माध्यम नहीं, अंग्रेजी
   
भाषा प्रारम्भ करते थे तब अधिक मिल रहा था ।
 
भाषा प्रारम्भ करते थे तब अधिक मिल रहा था ।
 
फिर क्या हुआ ? हम किसे जीतने के लिये चले
 
फिर क्या हुआ ? हम किसे जीतने के लिये चले
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यह मनोवैज्ञानिक उपाय है ।
 
यह मनोवैज्ञानिक उपाय है ।
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जिन बातों के लिये हमें अंग्रेजी की आवश्यकता
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८. जिन बातों के लिये हमें अंग्रेजी की आवश्यकता
 
लगती है उन बातों के भारतीय पर्याय निर्माण करना
 
लगती है उन बातों के भारतीय पर्याय निर्माण करना
 
अधिक प्रभावी और अधिक सही उपाय है ।
 
अधिक प्रभावी और अधिक सही उपाय है ।
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तो वह सरल और सहज होती जायेगी । हम
 
तो वह सरल और सहज होती जायेगी । हम
 
अनुवाद भी तो कर सकते हैं ।
 
अनुवाद भी तो कर सकते हैं ।
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बात तो यह है कि
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जिस वर्ग के साथ हम अंग्रेजी में संवाद करना चाहते हैं वह वर्ग अंग्रेजी व्यवस्था तन्त्र और अंग्रेजी  जीवनदृष्टि में फसा हुआ है। उस व्यवस्थातन्त्र से उन्हें मुक्त करने का मार्ग उनके साथ अंग्रेजी में संवाद करने का नहीं है, सम्पूर्ण ज्ञानक्षेत्र का भारतीय विकल्प प्रस्थापित करने का है ।
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इस दृष्टि से देखेंगे तो अंग्रेजी का प्रश्न गौण है, शिक्षा का. महत्त्वपूर्ण है। उसी प्रकार से अर्थव्यवस्था और जीवनशैली बदलने का है ।
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अतः हम जीवनव्यवस्था और जीवनशैली, पद्धति और प्रक्रिया, जीवनदृष्टि को भारतीय बनाने का प्रयास करेंगे तभी हम अंग्रेजी के प्रश्न को ठीक से हल कर पायेंगे, किंबहुना तब अंग्रेजी का प्रश्न ही नहीं रहेगा । अंग्रेजी से पैसा, प्रतिष्ठा, संस्कार या ज्ञान नहीं मिलेंगे तो अंग्रेजी की आवश्यकता किसे रहेगी ?
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९. एक ओर तो जीवन व्यवस्थाओं को बदलने का प्रयास करना, दूसरी और अंग्रेजी माध्यम को रोकने का जितना हो सके उतना प्रयास जारी रखना चाहिये । अंग्रेजी के प्रश्न को पूर्ण रूप से छोड़ना
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नहीं चाहिये परन्तु सौ प्रतिशत शक्ति लगाना भी नहीं चाहिये । मूल बातों की ओर अधिक ध्यान देना चाहिये । एक बात और समझ लेनी चाहिये ।
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Ro.
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१०. अंग्रेजी जानने वालों और नहीं जानने वालों की संख्या का अनुपात दस और नब्बे प्रतिशत है। अधिक से अधिक बीस और अस्सी प्रतिशत है । विडम्बना यह है कि ये बीस प्रतिशत लोग ज्ञानक्षेत्र और अन्नक्षेत्र पर पकड जमाये हुए हैं और देश को चलाते हैं । अस्सी प्रतिशत लोग इनके जैसा बनना
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चाहते हैं परन्तु बन नहींपाते । उनके जैसा बनने में एक दृयनीय प्रयास अंग्रेजी माध्यम में पढने का है । यह प्रास्भ से ही अंग्रेजों की चाल रही है। वे समाज के एक वर्ग को अंग्रेजी और अंग्रेजीयत का ज्ञान देकर उनके और भारत के सामान्य जन के मध्य एक सम्पर्क क्षेत्र बनाना चाहते थे। वह सम्पर्क क्षेत्र अब अधिकारी क्षेत्र बन गया है। ये बीस प्रतिशत अंग्रेजी ही नहीं अंग्रेजीयत को भी अपना चुके हैं। अब हमारे सामने प्रश्न है इन अस्सी प्रतिशत सामान्य जन के साथ खड़ा होकर उन्हें देश चलाने के लिये सक्षम बनाना या बीस प्रतिशत देश चलाने वालों को भारतीय बनाकर उन्हें देश चलाने देना। कदाचित अस्सी प्रतिशत को सक्षम बनाना कुल मिलाकर सरल होगा। बीस प्रतिशत को अस्सी प्रतिशत के साथ मिलाना अधिक उचित होगा।
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बात तो यह है कि
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किसी भी स्थिति में भारतीयता के पक्ष में जो लोग काम करते हैं उन्हें अधिक समर्थ बनना होगा। सामर्थ्य के बिना प्रभाव निर्माण नहीं होगा और बिना प्रभाव के किसी भी प्रकार का परिवर्तन होना सम्भव नहीं।
जिस वर्ग के साथ हम अंग्रेजी में संवाद करना
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चाहते हैं वह वर्ग अंग्रेजी व्यवस्था तन्त्र और
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अंग्रेजी  जीवनदृष्टि में ta ent है। उस
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व्यवस्थातन्त्र से उन्हें मुक्त करने का मार्ग उनके साथ
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अंग्रेजी में संवाद करने का नहीं है, सम्पूर्ण ज्ञानक्षेत्र
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का भारतीय विकल्प प्रस्थापित करने का है ।
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इस दृष्टि से देखेंगे तो अंग्रेजी का प्रश्न गौण है,
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११. ज्ञानक्षेत्र को और अर्थक्षेत्र को केवल भारतीय भाषा में प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं है, भारतीय दृष्टि और पद्धति से पर्याय देना अधिक आवश्यक है। उदाहरण के लिये बडे यन्त्रों वाला कारखाना भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं सकता । दूध की डेअरी भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं सकती, फिर डेअरी उद्योग और डेअरी विज्ञान की बात ही कहाँ रहेगी ? प्लास्टिक उद्योग सांस्कृतिक क्षेत्र और अर्थक्षेत्र दोनों में निषिद्ध है। मिक्सर, ग्राइण्डर, माइक्रोवेव को आहार और आरोग्य शास्त्र अमान्य करता है, फिर इनके कारखाने और इनको बनाने की विद्या कैसे चलेगी ? मैनेजमेण्ट के वर्तमान को मानवधर्मशास्त्र अमान्य करता है, या तो उन्हें भारतीय बनना होगा या तो बन्द करना होगा हममें भारतीय पर्याय बनाने का सामर्थ्य होना चाहिये।
शिक्षा का. महत्त्वपूर्ण है। उसी प्रकार से
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अर्थव्यवस्था और जीवनशैली बदलने का है ।
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अतः हम जीवनव्यवस्था और जीवनशैली, पद्धति
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अंग्रेजी के प्रश्न का दायरा बहुत व्यापक है। विचार उस दायरे का करना होगा।
और प्रक्रिया, जीवनदृष्टि को भारतीय बनाने का
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प्रयास करेंगे तभी हम अंग्रेजी के प्रश्न को ठीक से
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हल कर पायेंगे, किंबहुना तब अंग्रेजी का प्रश्न ही
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नहीं रहेगा । अंग्रेजी से पैसा, प्रतिष्ठा, संस्कार या
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ज्ञान नहीं मिलेंगे तो अंग्रेजी की आवश्यकता किसे
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रहेगी ?
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एक ओर तो जीवन व्यवस्थाओं को बदलने का
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प्रयास करना, दूसरी और अंग्रेजी माध्यम को रोकने
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का जितना हो सके उतना प्रयास जारी रखना
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चाहिये । अंग्रेजी के प्रश्न को पूर्ण रूप से छोड़ना
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नहीं चाहिये परन्तु सौ प्रतिशत शक्ति लगाना भी
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नहीं चाहिये । मूल बातों की ओर अधिक ध्यान
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देना चाहिये ।
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एक बात और समझ लेनी चाहिये । अंग्रेजी जानने
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वालों और नहीं जानने वालों की संख्या का
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अनुपात दस और नब्बे प्रतिशत है। अधिक से
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अधिक बीस और अस्सी प्रतिशत है । विडम्बना
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यह है कि ये बीस प्रतिशत लोग ज्ञानक्षेत्र और
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saa पर पकड जमाये हुए हैं और देश को
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चलाते हैं । अस्सी प्रतिशत लोग इनके जैसा बनना
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चाहते हैं परन्तु बन नहींपाते । उनके जैसा बनने में
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एक दृयनीय प्रयास अंग्रेजी माध्यम में पढने का है ।
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यह प्रास्भ से ही अंग्रेजों की चाल रही है। वे
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समाज के एक वर्ग को अंग्रेजी और अंग्रेजीयत का
      
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