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| ७. जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और | | ७. जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और |
− | कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा | + | कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है तो अंग्रेजी अनिवार्य है उन लोगों को सावधान होने की आवश्यकता है । और इनसे भी सावधान होने की आवश्यकता है । इन मार्गों से अंग्रेजीयत हमारे ज्ञानक्षेत्र को, समाऊक्षेत्र को, अर्थक्षेत्र को ग्रस्त कर रही है। हम ज्ञानक्षेत्र को भारतीय बनाना चाहते हैं तो इन क्षेत्रों को भी तो भारतीय बनाना पडेगा । क्या हमें अभी भी समझना बाकी है कि कोपोरेट क्षेत्र ने देश के अर्थतन्त्र को, विश्वविद्यालयों ने देश के ज्ञानक्षेत्र को और मनेनेजमेन्ट क्षेत्र ने मनुष्य को संसाधन बनाकर सांस्कृतिक क्षेत्र को तहसनहस कर दिया है ? इन क्षेत्रों में अंग्रेजी की प्रतिष्ठा है । बडी बडी यन्त्रस्चना ने मनुष्यों को मजदूर बना दिया, पर्यावरण का नाश कर दिया, उस तन्त्रविज्ञान के लिये हम अंग्रेजी का ज्ञान चाहते हैं । अर्थात् राक्षसों की दुनिया में प्रवेश करने के लिये हम उनकी भाषा चाहते हैं । हम बहाना बनाते हैं कि हम उनके ही शख्र से उन्हें समझाकर, उन्हें जीत कर अपना बना लेंगे । उन्हें जीतकर उन्हें अपना लेने का उद्देश्य तो ठीक है |
− | अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त | |
− | करनी है तो अंग्रेजी अनिवार्य है उन लोगों को | |
− | सावधान होने की आवश्यकता है । और इनसे भी | |
− | सावधान होने की आवश्यकता है । इन मार्गों से | |
− | अंग्रेजीयत हमारे ज्ञानक्षेत्र को, समाऊक्षेत्र को, | |
− | अर्थक्षेत्र को ग्रस्त कर रही है। हम ज्ञानक्षेत्र को | |
− | भारतीय बनाना चाहते हैं तो इन क्षेत्रों को भी तो | |
− | भारतीय बनाना पडेगा । क्या हमें अभी भी समझना | |
− | बाकी है कि कोपोरेट क्षेत्र ने देश के अर्थतन्त्र को, | |
− | विश्वविद्यालयों ने देश के ज्ञानक्षेत्र को और | |
− | मनेनेजमेन्ट क्षेत्र ने मनुष्य को संसाधन बनाकर | |
− | सांस्कृतिक क्षेत्र को तहसनहस कर दिया है ? इन | |
− | क्षेत्रों में अंग्रेजी की प्रतिष्ठा है । बडी बडी यन्त्रस्चना | |
− | ने मनुष्यों को मजदूर बना दिया, पर्यावरण का नाश | |
− | कर दिया, उस तन्त्रविज्ञान के लिये हम अंग्रेजी का | |
− | ज्ञान चाहते हैं । अर्थात् राक्षसों की दुनिया में प्रवेश | |
− | करने के लिये हम उनकी भाषा चाहते हैं । हम | |
− | बहाना बनाते हैं कि हम उनके ही शख्र से उन्हें | |
− | समझाकर, उन्हें जीत कर अपना बना लेंगे । उन्हें | |
− | जीतकर उन्हें अपना लेने का उद्देश्य तो ठीक है | |
| क्योंकि वे अपने हैं, परन्तु उन्हें जीतने का मार्ग | | क्योंकि वे अपने हैं, परन्तु उन्हें जीतने का मार्ग |
| ठीक नहीं है यह इतने वर्षों के अनुभव ने सिद्ध कर | | ठीक नहीं है यह इतने वर्षों के अनुभव ने सिद्ध कर |
− | दिया है। हम ही परास्त होते रहे हैं यह क्या | + | दिया है। हम ही परास्त होते रहे हैं यह क्या वास्तविकता नहीं है ? हम कभी तो आठवीं कक्षा से अंग्रेजी पढ़ाना शुरू करते थे । फिर पाँचवीं से शुरू किया, फिर तीसरी से, फिर पहली से । अब पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में पढाते हैं । अब अंग्रेजी माध्यम का आग्रह बढ़ा है । यश तो हमें आठवीं से अंग्रेजी माध्यम नहीं, अंग्रेजी भाषा प्रारम्भ करते थे तब अधिक मिल रहा था । फिर क्या हुआ ? हम किसे जीतने के लिये चले हैं? जिन्हें जीतने की बात कर रहे हैं वह दुनिया तो हमें मूर्ख और पिछडे मानती है क्योंकि हमें अंग्रेजी नहीं आती । कदाचित सज्जनता और अन्य गुर्णों के कारण से हमारा सम्मान भी करती है तब भी अंग्रेजी की बात आते ही चुप हो जाती है । हमारे साथ चर्चा करना नहीं चाहती । क्या हम यह सब जानते नहीं ? अनुभव नहीं करते ? परिस्थिति अधिकाधिक खराब होती जा रही है यह तो हम देख ही रहे हैं। अब हमें अंग्रेजी को नकारने के |
− | वास्तविकता नहीं है ? हम कभी तो आठवीं कक्षा | + | नये अधिक प्रभावी, अधिक सही मार्ग अपनाने की आवश्यकता है । इनमें से एक यहाँ बताया गया है यह मनोवैज्ञानिक उपाय है । |
− | से अंग्रेजी पढ़ाना शुरू करते थे । फिर पाँचवीं से | |
− | शुरू किया, फिर तीसरी से, फिर पहली से । अब | |
− | पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में पढाते हैं । अब अंग्रेजी | |
− | माध्यम का आग्रह बढ़ा है । यश तो हमें आठवीं से अंग्रेजी माध्यम नहीं, अंग्रेजी | |
− | भाषा प्रारम्भ करते थे तब अधिक मिल रहा था । | |
− | फिर क्या हुआ ? हम किसे जीतने के लिये चले | |
− | हैं? जिन्हें जीतने की बात कर रहे हैं वह दुनिया | |
− | तो हमें मूर्ख और पिछडे मानती है क्योंकि हमें | |
− | अंग्रेजी नहीं आती । कदाचित सज्जनता और अन्य | |
− | गुर्णों के कारण से हमारा सम्मान भी करती है तब | |
− | भी अंग्रेजी की बात आते ही चुप हो जाती है । | |
− | हमारे साथ चर्चा करना नहीं चाहती । क्या हम यह | |
− | सब जानते नहीं ? अनुभव नहीं करते ? परिस्थिति | |
− | अधिकाधिक खराब होती जा रही है यह तो हम | |
− | देख ही रहे हैं। अब हमें अंग्रेजी को नकारने के | |
− | नये अधिक प्रभावी, अधिक सही मार्ग अपनाने की | |
− | आवश्यकता है । इनमें से एक यहाँ बताया गया है | |
− | यह मनोवैज्ञानिक उपाय है । | |
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− | ८. जिन बातों के लिये हमें अंग्रेजी की आवश्यकता | + | ८. जिन बातों के लिये हमें अंग्रेजी की आवश्यकता लगती है उन बातों के भारतीय पर्याय निर्माण करना अधिक प्रभावी और अधिक सही उपाय है । |
− | लगती है उन बातों के भारतीय पर्याय निर्माण करना | + | सामर्थ्य के बिना विजय प्राप्त नहीं होती । क्या चिकित्साविज्ञान, तन्त्रविज्ञान, उद्योगतन्त्र, प्रबन्धन भारतीय भाषा में नहीं सीखा जायेगा । लोग तर्क देते हैं कि इन विषयों की पुस्तकें भारतीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं है। तो इन्हें भारतीय भाषाओं में लिखने से कौन रोकता है ? क्या इतने बडे देश में ऐसे विद्वान नहीं मिलेंगे ? अवश्य मिलेंगे । फिर क्यों नहीं लिखते ? अंग्रेजी में उपलब्ध है फिर कया आवश्यकता है ऐसा हम कहते हैं। भारतीय भाषाओं में इन विषयों की पारिभाषिक शब्दावलि उपलब्ध नहीं है ऐसा कहते हैं । यह भी मिथ्या तर्क है क्योंकि शब्दावलि रची जा सकती है । भारतीय भाषाओं की शब्दावलि अतिशय जटिल और कठिन |
− | अधिक प्रभावी और अधिक सही उपाय है । | + | होती है ऐसा कहते हैं । ऐसा कैसे हो सकता है ? यह तो परिचय का प्रश्न है । परिचय बढ़ता जायेगा तो वह सरल और सहज होती जायेगी । हम अनुवाद भी तो कर सकते हैं । |
− | सामर्थ्य के बिना विजय प्राप्त नहीं होती । क्या | |
− | चिकित्साविज्ञान, तन्त्रविज्ञान, उद्योगतन्त्र, प्रबन्धन | |
− | भारतीय भाषा में नहीं सीखा जायेगा । लोग तर्क देते | |
− | हैं कि इन विषयों की पुस्तकें भारतीय भाषाओं में | |
− | उपलब्ध नहीं है। तो इन्हें भारतीय भाषाओं में | |
− | लिखने से कौन रोकता है ? क्या इतने बडे देश में | |
− | ऐसे विद्वान नहीं मिलेंगे ? अवश्य मिलेंगे । फिर | |
− | क्यों नहीं लिखते ? अंग्रेजी में उपलब्ध है फिर कया | |
− | आवश्यकता है ऐसा हम कहते हैं। भारतीय | |
− | भाषाओं में इन विषयों की पारिभाषिक शब्दावलि | |
− | उपलब्ध नहीं है ऐसा कहते हैं । यह भी मिथ्या तर्क | |
− | है क्योंकि शब्दावलि रची जा सकती है । भारतीय | |
− | भाषाओं की शब्दावलि अतिशय जटिल और कठिन | |
− | होती है ऐसा कहते हैं । ऐसा कैसे हो सकता है ? | |
− | यह तो परिचय का प्रश्न है । परिचय बढ़ता जायेगा | |
− | तो वह सरल और सहज होती जायेगी । हम | |
− | अनुवाद भी तो कर सकते हैं । | |
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| बात तो यह है कि | | बात तो यह है कि |
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| ११. ज्ञानक्षेत्र को और अर्थक्षेत्र को केवल भारतीय भाषा में प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं है, भारतीय दृष्टि और पद्धति से पर्याय देना अधिक आवश्यक है। उदाहरण के लिये बडे यन्त्रों वाला कारखाना भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं सकता । दूध की डेअरी भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं सकती, फिर डेअरी उद्योग और डेअरी विज्ञान की बात ही कहाँ रहेगी ? प्लास्टिक उद्योग सांस्कृतिक क्षेत्र और अर्थक्षेत्र दोनों में निषिद्ध है। मिक्सर, ग्राइण्डर, माइक्रोवेव को आहार और आरोग्य शास्त्र अमान्य करता है, फिर इनके कारखाने और इनको बनाने की विद्या कैसे चलेगी ? मैनेजमेण्ट के वर्तमान को मानवधर्मशास्त्र अमान्य करता है, या तो उन्हें भारतीय बनना होगा या तो बन्द करना होगा । हममें भारतीय पर्याय बनाने का सामर्थ्य होना चाहिये। | | ११. ज्ञानक्षेत्र को और अर्थक्षेत्र को केवल भारतीय भाषा में प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं है, भारतीय दृष्टि और पद्धति से पर्याय देना अधिक आवश्यक है। उदाहरण के लिये बडे यन्त्रों वाला कारखाना भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं सकता । दूध की डेअरी भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं सकती, फिर डेअरी उद्योग और डेअरी विज्ञान की बात ही कहाँ रहेगी ? प्लास्टिक उद्योग सांस्कृतिक क्षेत्र और अर्थक्षेत्र दोनों में निषिद्ध है। मिक्सर, ग्राइण्डर, माइक्रोवेव को आहार और आरोग्य शास्त्र अमान्य करता है, फिर इनके कारखाने और इनको बनाने की विद्या कैसे चलेगी ? मैनेजमेण्ट के वर्तमान को मानवधर्मशास्त्र अमान्य करता है, या तो उन्हें भारतीय बनना होगा या तो बन्द करना होगा । हममें भारतीय पर्याय बनाने का सामर्थ्य होना चाहिये। |
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− | अंग्रेजी के प्रश्न का दायरा बहुत व्यापक है। विचार उस दायरे का करना होगा। | + | अंग्रेजी के प्रश्न का दायरा बहुत व्यापक है। विचार उस दायरे का करना होगा। |
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− | 8.
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | ज्ञान देकर उनके और भारत के सामान्य जन के
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− | मध्य एक सम्पर्क क्षेत्र बनाना चाहते थे । वह
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− | सम्पर्क क्षेत्र अब अधिकारी क्षेत्र बन गया है | ये
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− | बीस प्रतिशत अंग्रेजी ही नहीं अंग्रेजीयत को भी
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− | अपना चुके हैं। अब हमारे सामने प्रश्न है इन
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− | अस्सी प्रतिशत सामान्य जन के साथ खडा होकर
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− | उन्हें देश चलाने के लिये सक्षम बनाना या बीस
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− | प्रतिशत देश चलाने वालों को भारतीय बनाकर उन्हें
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− | देश चलाने देना । कदाचित अस्सी प्रतिशत को
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− | सक्षम बनाना कुल मिलाकर सरल होगा । बीस
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− | प्रतिशत को अस्सी प्रतिशत के साथ मिलाना
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− | अधिक उचित होगा ।
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− | किसी भी स्थिति में भारतीयता के पक्ष में जो
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− | लोग काम करते हैं उन्हें अधिक समर्थ बनना
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− | होगा । सामर्थ्य के बिना प्रभाव निर्माण नहीं होगा
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− | और बिना प्रभाव के किसी भी प्रकार का परिवर्तन
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− | होना सम्भव नहीं ।
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− | ज्ञानक्षेत्र को और अर्थक्षेत्र को केवल भारतीय भाषा
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− | में प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं है, भारतीय दृष्टि और
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− | पद्धति से पर्याय देना अधिक आवश्यक है ।
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− | उदाहरण के लिये बडे यन्त्रों वाला. कारखाना
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− | भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं सकता । दूध
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− | की डेअरी भारतीय अर्थव्यवस्था में बैठ ही नहीं
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− | सकती, फिर डेअरी उद्योग और डेअरी विज्ञान की
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− | बात ही कहाँ रहेगी ? प्लास्टिक उद्योग सांस्कृतिक
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− | क्षेत्र और अर्थक्षेत्र दोनों में निषिद्ध है। मिक्सर,
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− | ग्राइण्डर, माइक्रोवेव को आहार और आरोग्य शास्त्र
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− | अआअमान्य करता है, फिर इनके कारखाने और इनको
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− | बनाने की विद्या कैसे चलेगी ? मैनेजमेण्ट के
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− | वर्तमान को मानवधर्मशास्त्र अमान्य करता है, या तो
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− | उन्हें भारतीय बनना होगा या तो बन्द करना होगा ।
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− | हममें भारतीय पर्याय बनाने का सामर्थ्य होना
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− | चाहिये ।
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− | अंग्रेजी के प्रश्न का दायरा बहुत व्यापक है।
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− | विचार उस दायरे का करना होगा ।
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