Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 385: Line 385:  
भारत में शिक्षा भारतीय होनी चाहिये यह जितना स्वाभाविक है उतना ही स्वाभाविक भारत में भारतीय भाषा का प्रचलन होना चाहिये यह है । भारत में जिस प्रकार शिक्षा भारतीय नहीं है उसी प्रकार भारतीय भाषा की प्रतिष्ठा नहीं है। भारत में जिस प्रकार युरोअमेरिका की शिक्षा चल रही है उसी प्रकार अंग्रेजी सबके मानस को प्रभावित कर रही है।
 
भारत में शिक्षा भारतीय होनी चाहिये यह जितना स्वाभाविक है उतना ही स्वाभाविक भारत में भारतीय भाषा का प्रचलन होना चाहिये यह है । भारत में जिस प्रकार शिक्षा भारतीय नहीं है उसी प्रकार भारतीय भाषा की प्रतिष्ठा नहीं है। भारत में जिस प्रकार युरोअमेरिका की शिक्षा चल रही है उसी प्रकार अंग्रेजी सबके मानस को प्रभावित कर रही है।
   −
भारत में अंग्रेजों के साथ अंग्रेजी का प्रवेश हुआ । अंग्रेजों ने शिक्षा को पश्चिमी बनाया उसी प्रकार से समाज के
+
भारत में अंग्रेजों के साथ अंग्रेजी का प्रवेश हुआ । अंग्रेजों ने शिक्षा को पश्चिमी बनाया उसी प्रकार से समाज के उच्चभ्रू वर्ग को अंग्रेजी बोलना सिखाया । साथ ही अंग्रेज बनना भी सिखाया । खानपान, वेशभूषा,  शिष्टाचार, दृष्टिकोण, मनोरंजन आदि अंग्रेजी पद्धति का हो तभी अंग्रेजी बोलना सार्थक है ऐसा समीकरण बैठ गया । देश से अंग्रेज गये परन्तु अंग्रेजीयत रह गई । भारत के राजकीय मानचित्र में अंग्रेज नहीं हैं परन्तु मनोमस्तिष्क में अंग्रेजीयत का साम्राज्य है ।
   −
............. page-224 .............
+
अंग्रेजी भाषा का मोह इस अंग्रेजीयत का ही एक हिस्सा है ।
   −
       
+
जैसे जैसे स्वतन्त्र भारत आगे बढ रहा है अंग्रेजी का मोह भी बढ़ता जा रहा है । लोग मानने लगे हैं कि अंग्रेजी का कोई पर्याय नहीं है । अंग्रेजी विश्वभाषा है और विकास इससे ही होता है। मजदूर, किसान, फेरी वाला, घर में कपडा बर्तन करने वाली नौकरानी भी अपने बच्चों को अंग्रेजी पढाना चाहते हैं क्योंकि वे अपने बच्चों को बडा बनाना चाहते हैं ।
   −
कोई परिणाम नहीं होता है । कल्पना
+
अंग्रेजी भाषा शिक्षा का माध्यम नहीं होनी चाहिये, मातृभाषा ही श्रेष्ठ माध्यम है ऐसा आग्रह करनेवाले लोग
करें कि कोई एक सन्त जिनके लाखों अनुयायी हैं वे यदि
+
समझा समझाकर थक गये हैं, हार गये हैं और समझौते करने के लिये मजबूर हो गये हैं ऐसा व्यामोह छाया हुआ है ।
अपने सत्संग में अंग्रेजी माध्यम में अपने बच्चों को मत
  −
भेजो ऐसा कहेंगे तो लोग मानेंगे ? कदाचित सन्तों को भी
  −
लगता है कि नहीं मानेंगे इसलिये वे कहते नहीं हैं । यदि
  −
सरकार अंग्रेजी माध्यम को मान्यता न दे तो लोग उसे मत
  −
नहीं देंगे इसलिये सरकार भी नहीं कहती । अर्थात्‌ जिनका
  −
प्रजामानस पर प्रभाव होता है वे ही यह बात नहीं कह
  −
सकते हैं ? कया वे अंग्रेजी माध्यम होना चाहिये ऐसा मानते
  −
हैं? नहीं होना चाहिये ऐसा मानते हैं ? कदाचित उन्होंने
  −
इस प्रश्न पर विचार ही नहीं किया है ।
     −
यदि नहीं किया है तो उन्हें विचार करने हेतु निवेदन
+
अपने मोह को भी लोग तर्कों के आधार पर सही बताने का प्रयास करते हैं । ये सब कुतर्क होते हैं परन्तु वे करते ही रहते हैं । एक से बढकर एक प्रभावी तर्क भी असफल हो जाते हैं और मौन हो जाते हैं
करना चाहिये और अपने अनुयायिओं को अंग्रेजी माध्यम से
  −
परावृत करने को कहना चाहिये
     −
मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल मनोवैज्ञानिक पद्धति
+
शासन स्वयं इस मोह से ग्रस्त है, विश्व विद्यालय, धर्माचार्य, उद्योगक्षेत्र सब इस मोह से ग्रस्त हैं। कभी वे ऐसी भाषा बोलते हैं कि लो, अब तो रिक्षावाले और घरनौकर भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भेजना चाहते हैं । मानों अंग्रेजी पढने का अधिकार उनके जैसे श्रेष्ठ लोगों का ही है, रिक्षावालों का या नौकरों का
से ही हो सकता है इतनी एक बात हमारी समझ में आ
+
नहीं । “प्रत्युत्त में ये नौकर और उनका पक्ष लेनेवाले राजकीय पक्ष के लोग अथवा समाजसेवी लोग कहते हैं कि बडे पढ़ते हैं तो छोटे क्यों न पढ़ें, उन्हें भी अधिकार है । इस प्रकार वे भी पढ़ते हैं ।' अपराध छोटे लोगों का नहीं है, तथाकथित बडों का ही है ।
जाय तो हमें अनेक उपाय सूझने लगेंगे । परन्तु अभी तो
  −
समाज के बौद्धिक वर्ग के लोग ही इस ग्रहण से ग्रस्त हैं ।
  −
 
  −
मनोवैज्ञानिक पद्धतियाँ क्‍या होती हैं इसका विस्तृत
  −
निरूपण करने का यहाँ औचित्य नहीं है क्योंकि वे असंख्य
  −
होती हैं । सामान्य लोगों को भी ये सूझ सकती हैं और
  −
सामान्य लोग इसका प्रभाव भी जानते हैं ।
  −
 
  −
विद्यालय यदि ऐसी पद्धतियाँ अपनाना शुरू कर दें,
  −
इन्हें चालना दें तो हम इन समस्याओं से निजात पा सकते
  −
हैं । साहस करने की आवश्यकता है ।
  −
 
  −
शिक्षा का माध्यम और भाषा का प्रश्न
  −
 
  −
भारत में शिक्षा भारतीय होनी चाहिये यह जितना
  −
स्वाभाविक है उतना ही स्वाभाविक भारत में भारतीय भाषा
  −
का प्रचलन होना चाहिये यह है । भारत में जिस प्रकार शिक्षा
  −
भारतीय नहीं है उसी प्रकार भारतीय भाषा की प्रतिष्ठा नहीं
  −
है । भारत में जिस प्रकार युरो अमेरिका की शिक्षा चल रही है
  −
उसी प्रकार अंग्रेजी सबके मानस को प्रभावित कर रही है ।
  −
 
  −
भारत में अंग्रेजों के साथ अंग्रेजी का प्रवेश हुआ ।
  −
अंग्रेजों ने शिक्षा को पश्चिमी बनाया उसी प्रकार से समाज के
  −
 
  −
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
  −
 
  −
 
  −
 
  −
उच्चभ्रू वर्ग को अंग्रेजी बोलना सिखाया । साथ ही अंग्रेज
  −
बनना भी सिखाया । खानपान, वेशभूषा,  शिष्टाचार,
  −
दृष्टिकोण, मनोरंजन आदि अंग्रेजी पद्धति का हो तभी अंग्रेजी
  −
बोलना सार्थक है ऐसा समीकरण बैठ गया । देश से अंग्रेज
  −
गये परन्तु अंग्रेजीयत रह गई । भारत के राजकीय मानचित्र
  −
में अंग्रेज नहीं हैं परन्तु मनोमस्तिष्क में अंग्रेजीयत का
  −
साम्राज्य है ।
  −
 
  −
अंग्रेजी भाषा का मोह इस अंग्रेजीयत का ही एक
  −
हिस्सा है ।
  −
 
  −
जैसे जैसे स्वतन्त्र भारत आगे बढ रहा है अंग्रेजी का
  −
मोह भी बढ़ता जा रहा है । लोग मानने लगे हैं कि अंग्रेजी
  −
का कोई पर्याय नहीं है । अंग्रेजी विश्वभाषा है और विकास
  −
इससे ही होता है। मजदूर, किसान, फेरी वाला, घर में
  −
कपडा बर्तन करने वाली नौकरानी भी अपने बच्चों को
  −
अंग्रेजी पढाना चाहते हैं क्योंकि वे अपने बच्चों को बडा
  −
बनाना चाहते हैं ।
  −
 
  −
अंग्रेजी भाषा शिक्षा का माध्यम नहीं होनी चाहिये,
  −
मातृभाषा ही श्रेष्ठ माध्यम है ऐसा आग्रह करनेवाले लोग
  −
समझा समझाकर थक गये हैं, हार गये हैं और समझौते करने
  −
के लिये मजबूर हो गये हैं ऐसा व्यामोह छाया हुआ है ।
  −
 
  −
अपने मोह को भी लोग तर्कों के आधार पर सही
  −
बताने का प्रयास करते हैं । ये सब कुतर्क होते हैं परन्तु वे
  −
करते ही रहते हैं । एक से बढकर एक प्रभावी तर्क भी
  −
असफल हो जाते हैं और मौन हो जाते हैं ।
  −
 
  −
शासन स्वयं इस मोह से ग्रस्त है, विश्व विद्यालय,
  −
धर्माचार्य, उद्योगक्षेत्र सब इस मोह से ग्रस्त हैं। कभी वे
  −
ऐसी भाषा बोलते हैं कि लो, अब तो रिक्षावाले और
  −
घरनौकर भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों
  −
में भेजना चाहते हैं । मानों अंग्रेजी पढने का अधिकार उनके
  −
जैसे श्रेष्ठ लोगों का ही है, रिक्षावालों का या नौकरों का
  −
नहीं । “प्रत्युत्त में ये नौकर और उनका पक्ष लेनेवाले
  −
राजकीय पक्ष के लोग अथवा समाजसेवी लोग कहते हैं कि
  −
बडे पढ़ते हैं तो छोटे क्यों न पढ़ें, उन्हें भी अधिकार है ।
  −
इस प्रकार वे भी पढ़ते हैं ।' अपराध छोटे लोगों का नहीं
  −
है, तथाकथित बडों का ही है ।
  −
      
............. page-225 .............
 
............. page-225 .............
1,815

edits

Navigation menu