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| कुछ लोग ऐसे होते हैं जो केन्द्र सरकार की नौकरी करते हैं इसलिये उनके स्थानांतरण एक राज्य से दूसरे राज्य में होते हैं । ऐसे लोगों की सुविधा हेतु अखिल भारतीय स्तर की संस्थायें चलती हैं। सीबीएसई (सैण्ट्रल बोर्ड ओफ सैकन्डरी एज्यूकेशन) ऐसा ही बोर्ड है । यह मान्यता पूरे देश में चलती है । इसमें हिन्दी और अंग्रेजी ऐसे दो माध्यम होते हैं । अब एक राज्य से दूसरे राज्यमें जाने में कठिनाई नहीं होती। | | कुछ लोग ऐसे होते हैं जो केन्द्र सरकार की नौकरी करते हैं इसलिये उनके स्थानांतरण एक राज्य से दूसरे राज्य में होते हैं । ऐसे लोगों की सुविधा हेतु अखिल भारतीय स्तर की संस्थायें चलती हैं। सीबीएसई (सैण्ट्रल बोर्ड ओफ सैकन्डरी एज्यूकेशन) ऐसा ही बोर्ड है । यह मान्यता पूरे देश में चलती है । इसमें हिन्दी और अंग्रेजी ऐसे दो माध्यम होते हैं । अब एक राज्य से दूसरे राज्यमें जाने में कठिनाई नहीं होती। |
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− | तीसरा आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड होता है जो एक से अधिक देशों में विद्यालयों को मान्यता देता है । इसका उद्देश्य राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की तरह प्रजाजनों की सुविधा देखने का तो नहीं है यह स्पष्ट है । अपना व्यापार कहो तो | + | तीसरा आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड होता है जो एक से अधिक देशों में विद्यालयों को मान्यता देता है । इसका उद्देश्य राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की तरह प्रजाजनों की सुविधा देखने का तो नहीं है यह स्पष्ट है । अपना व्यापार कहो तो व्यापार और मिशन कहो तो मिशन विश्व के अन्य देशों में भी फैलाने का उद्देश्य है । |
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− | दो विचित्र प्रश्र
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− | २०६
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | व्यवस्था में चलने वाली विभिन्न गतिविधियों में काम करने
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− | के अवसर मिलना अर्थात् नौकरी मिलना अथवा उस क्षेत्र
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− | के स्वतन्त्र व्यवसाय हेतु अनुज्ञा मिलना |
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− | मान्यता के विविध स्तर और प्रकार हैं उनमें प्रश्न क्या
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− | है यही देखेंगे । प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों को
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− | मान्यता के लिये तीन स्तरों पर व्यवस्था है -
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− | १, राज्यकी संस्था की, उदाहरण के लिये गुजरात स्टेट बोर्ड
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− | २. केन्द्रीय संस्था की, उदाहरण के लिये सैण्ट्रल बोर्ड ओफ
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− | सेकैण्डरी एज्यूकेशन
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− | ३. आन्तर्राष्ट्रीय संस्था की, उदाहरण के लिये इण्टरनेशनल
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− | बोर्ड
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− | ये भी एक से अधिक होते हैं ।
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− | ऐसे तीन स्तर क्यों होते हैं ?
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− | शिक्षा का विषय राज्य सरकार का है इसलिये राज्य
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− | तो इसकी व्यवस्था करेगा यह स्वाभाविक है। इन
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− | विद्यालयों में साधारण रूप से प्रान्तीय भाषा ही माध्यम
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− | रहती है फिर भी अन्य प्रान्तों के निवासियों की संख्या के
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− | अनुपात में उन भाषा के माध्यमों के विद्यालय भी चलते
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− | हैं । उदाहरण के लिये राज्य की मान्यता वाले अधिकतम
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− | विद्यालय गुजराती माध्यम के होंगे परन्तु तमिल, सिंधी,
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− | उडिया, उर्दू, मराठी माध्यम के विद्यालय भी चलते हैं ।
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− | कुछ लोग ऐसे होते हैं जो केन्द्र सरकार की नौकरी
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− | करते हैं इसलिये उनके स्थानांतरण एक राज्य से दूसरे राज्य में
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− | होते हैं । ऐसे लोगों की सुविधा हेतु अखिल भारतीय स्तर की
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− | संस्थायें चलती हैं । सीबीएसई (सैण्ट्रल बोर्ड ओफ सैकन्डरी
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− | एज्यूकेशन) ऐसा ही बोर्ड है । यह मान्यता पूरे देश में चलती
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− | है । इसमें हिन्दी और अंग्रेजी ऐसे दो माध्यम होते हैं । अब
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− | एक राज्य से दूसरे राज्यमें जानें में कठिनाई नहीं होती ।
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− | तीसरा आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड होता है जो एक से अधिक
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− | देशों में विद्यालयों को मान्यता देता है । इसका उद्देश्य राज्य
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− | सरकार या केन्द्र सरकार की तरह प्रजाजनों की सुविधा
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− | देखने का तो नहीं है यह स्पष्ट है । अपना व्यापार कहो तो
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− | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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− | व्यापार और मिशन कहो तो मिशन विश्व के अन्य देशों में | |
− | भी फैलाने का उद्देश्य है । | |
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− | अब प्रश्न क्या है ?
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| + | ===== अब प्रश्न क्या है ? ===== |
| अधिकांश लोगों को राज्य के बोर्ड की मान्यता होना | | अधिकांश लोगों को राज्य के बोर्ड की मान्यता होना |
− | सर्वथा स्वाभाविक है, परन्तु आज सबको, विशेष रूप से | + | सर्वथा स्वाभाविक है, परन्तु आज सबको, विशेष रूप से संचालकों को, केन्द्रीय बोर्ड की मान्यता का आकर्षण बढ रहा है । मातृभाषा में पढ़ने की सुविधा नहीं होने पर भी केन्द्रिय बोर्ड चाहिये । उसके ही समान आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की |
− | संचालकों को, केन्द्रीय बोर्ड की मान्यता का आकर्षण बढ | |
− | रहा है । मातृभाषा में पढ़ने की सुविधा नहीं होने पर भी | |
− | केन्द्रिय बोर्ड चाहिये । उसके ही समान आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की | |
| मान्यता का आकर्षण भी बढ रहा है । | | मान्यता का आकर्षण भी बढ रहा है । |
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− | इसके तर्क कितने ही दिये जाते हों यह आकर्षण | + | इसके तर्क कितने ही दिये जाते हों यह आकर्षण केवल मनोवैज्ञानिक है । भाषा ऐसी बोली जाती है कि केन्द्रियि और आन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मानक ऊँचे होते हं, उनका दायरा अधिक बडा है और इनमें गुणवत्ता अधिक है । ये तर्क सही नहीं हैं । कोई भी शिक्षाशास्त्री इन्हें मान्य नहीं करेगा फिर भी शिक्षाशाखरियों की बात कोई मानने को तैयार नहीं होता । बच्चे को विदेश जाने में आन्तर्रा्ट्रीय बोर्ड सुविधा देता है ऐसा तर्क दिया जाता है । ये सब तर्क ही इतने बेबुनियाद होते हैं कि उनके उत्तर तार्किक पद्धति से |
− | केवल मनोवैज्ञानिक है । भाषा ऐसी बोली जाती है कि | + | देना सम्भव ही नहीं है । एक के बाद एक तर्क का उत्तर देने पर भी वे स्वीकृत नहीं होते क्योंकि उन्हें तर्कनिष्ठ व्यवहार नहीं करना है । इसके चलते बोर्डों की व्यवस्था में, अभिभावकों में और शैक्षिक सामग्री के बाजार में बडी हलचल मची हुई है । |
− | केन्द्रियि और आन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मानक ऊँचे होते हं, | |
− | उनका दायरा अधिक बडा है और इनमें गुणवत्ता अधिक | |
− | है । ये तर्क सही नहीं हैं । कोई भी शिक्षाशास्त्री इन्हें मान्य | |
− | नहीं करेगा फिर भी शिक्षाशाखरियों की बात कोई मानने को | |
− | तैयार नहीं होता । बच्चे को विदेश जाने में आन्तर्रा्ट्रीय बोर्ड | |
− | सुविधा देता है ऐसा तर्क दिया जाता है । ये सब तर्क ही | |
− | इतने बेबुनियाद होते हैं कि उनके उत्तर तार्किक पद्धति से | |
− | देना सम्भव ही नहीं है । एक के बाद एक तर्क का उत्तर | |
− | देने पर भी वे स्वीकृत नहीं होते क्योंकि उन्हें तर्कनिष्ठ | |
− | व्यवहार नहीं करना है । इसके चलते बोर्डों की व्यवस्था में, | |
− | अभिभावकों में और शैक्षिक सामग्री के बाजार में बडी | |
− | हलचल मची हुई है । | |
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− | २. दूसरा प्रश्न है अंग्रेजी माध्यम का |
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− | हमारे राष्ट्रीय हीनता बोध का यह इतना मुखर लक्षण
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− | है कि इसका खुलासा करने की भी आवश्यकता नहीं है ।
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− | विश्व भर के शिक्षाशास्त्री, समझदार व्यक्ति, देशभक्त
| + | ==== २. दूसरा प्रश्न है अंग्रेजी माध्यम का | ==== |
− | लोग कहते हैं कि देश की शिक्षा देश की भाषा में ही होनी
| + | हमारे राष्ट्रीय हीनता बोध का यह इतना मुखर लक्षण है कि इसका खुलासा करने की भी आवश्यकता नहीं है । |
− | चाहिये, व्यक्ति की शिक्षा उसकी मातृभाषा में ही होनी
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− | चाहिये । मातृभाषा में शिक्षा के असंख्य लाभ और विदेशी
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− | भाषा में शिक्षा लेने की अनेक हानियाँ बताई जाती हैं,
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− | अनेक प्रमाण दिये जाते हैं तो भी लोगों पर उनका प्रभाव
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− | नहीं होता । लोगों का ही अनुसरण सरकार करती है । | |
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| + | विश्व भर के शिक्षाशास्त्री, समझदार व्यक्ति, देशभक्त लोग कहते हैं कि देश की शिक्षा देश की भाषा में ही होनी चाहिये, व्यक्ति की शिक्षा उसकी मातृभाषा में ही होनी चाहिये । मातृभाषा में शिक्षा के असंख्य लाभ और विदेशी भाषा में शिक्षा लेने की अनेक हानियाँ बताई जाती हैं, अनेक प्रमाण दिये जाते हैं तो भी लोगों पर उनका प्रभाव नहीं होता । लोगों का ही अनुसरण सरकार करती है । |
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− | 2८ ५
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− | 2 ५.
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| संचालक अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय | | संचालक अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय |
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| है और भीषण रोग के स्तर पर पहुँच जाती है । | | है और भीषण रोग के स्तर पर पहुँच जाती है । |
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− | अंग्रेजी और अंग्रेजीयत आज ऐसा भीषण मानसिक | + | अंग्रेजी और अंग्रेजीयत आज ऐसा भीषण मानसिक रोग बन गया है । |
− | रोग बन गया है । | + | |
| + | इसके चलते शैक्षिक दृष्टि से भी समस्यायें निर्माण हो रही हैं । मातृभाषा का ज्ञान कम होने लगा है, भाषा को |
| + | महत्त्वपूर्ण विषय मानना बन्द हो गया है, भाषा नहीं आने से भाषाप्रभुत्व, भाषासौन्दर्य, भाषालालित्य आदि अनेक मूल्यवान संकल्पनायें समाप्त हो गई हैं, भाषा नहीं आने से दूसरे विषयों को ग्रहण करना भी रुक गया है और कुल मिलाकर बौद्धिकता का हास हो रहा है, बौद्धिकता का यान्त्रिकीरण हो रहा है । यह मनुष्य से यन्त्र बनने की ओर गति है । |
| + | |
| + | भाषा नहीं आने से संस्कृति से भी सम्बन्धविच्छेद हो रहा है। जब संस्कृति से विमुखता आती है तब सांस्कृतिक वर्णसंकरता आती है । यह मनुष्य से पशुत्व की ओर गति है । |
| + | |
| + | इन दोनों समस्याओं का आधार एक ही है, वह है हमारा हीनताबोध । दोनों समस्याओं का स्वरूप एक ही है, वह है मनोवैज्ञानिक । हीनताबोध भी मनोवैज्ञानिक समस्या ही है। |
| + | |
| + | ===== मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल ===== |
| + | उपाय की दृष्टि से यदि हम बौद्धिक, तार्किक उपाय करेंगे, अनेक वास्तविक प्रमाण देंगे, आंकडे देंगे तो उसका कोई परिणाम नहीं होता है। कल्पना करें कि कोई एक सन्त जिनके लाखों अनुयायी हैं वे यदि अपने सत्संग में अंग्रेजी माध्यम में अपने बच्चों को मत भेजो ऐसा कहेंगे तो लोग मानेंगे ? कदाचित सन्तों को भी लगता है कि नहीं मानेंगे इसलिये वे कहते नहीं हैं। यदि सरकार अंग्रेजी माध्यम को मान्यता न दे तो लोग उसे मत नहीं देंगे इसलिये सरकार भी नहीं कहती । अर्थात् जिनका प्रजामानस पर प्रभाव होता है वे ही यह बात नहीं कह सकते हैं ? क्या वे अंग्रेजी माध्यम होना चाहिये ऐसा मानते हैं ? नहीं होना चाहिये ऐसा मानते हैं ? कदाचित उन्होंने इस प्रश्न पर विचार ही नहीं किया है। |
| + | |
| + | यदि नहीं किया है तो उन्हें विचार करने हेतु निवेदन करना चाहिये और अपने अनुयायिओं को अंग्रेजी माध्यम से परावृत करने को कहना चाहिये। |
| | | |
− | इसके चलते शैक्षिक दृष्टि से भी समस्यायें निर्माण हो
| + | मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल मनोवैज्ञानिक पद्धति से ही हो सकता है इतनी एक बात हमारी समझ में आ जाय तो हमें अनेक उपाय सूझने लगेंगे। परन्तु अभी तो समाज के बौद्धिक वर्ग के लोग ही इस ग्रहण से ग्रस्त हैं। |
− | रही हैं । मातृभाषा का ज्ञान कम होने लगा है, भाषा को
| |
− | महत्त्वपूर्ण विषय मानना बन्द हो गया है, भाषा नहीं आने
| |
− | से भाषाप्रभुत्व, भाषासौन्दर्य, भाषालालित्य आदि अनेक
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− | मूल्यवान संकल्पनायें समाप्त हो गई हैं, भाषा नहीं आने से
| |
− | दूसरे विषयों को ग्रहण करना भी रुक गया है और कुल
| |
− | मिलाकर बौद्धिकता का हास हो रहा है, बौद्धिकता का
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− | यान्त्रिकीरण हो रहा है । यह मनुष्य से यन्त्र बनने की ओर
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− | गति है ।
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− | भाषा नहीं आने से संस्कृति से भी सम्बन्धविच्छेद
| + | मनोवैज्ञानिक पद्धतियाँ क्या होती हैं इसका विस्तृत निरूपण करने का यहाँ औचित्य नहीं है क्योंकि वे असंख्य होती हैं । सामान्य लोगों को भी ये सूझ सकती हैं और सामान्य लोग इसका प्रभाव भी जानते हैं । |
− | हो रहा है। जब संस्कृति से विमुखता आती है तब
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− | सांस्कृतिक वर्णसंकरता आती है । यह मनुष्य से पशुत्व की
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− | ओर गति है ।
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− | इन दोनों समस्याओं का आधार एक ही है, वह है | + | विद्यालय यदि ऐसी पद्धतियाँ अपनाना शुरू कर दें, इन्हें चालना दें तो हम इन समस्याओं से निजात पा सकते हैं । साहस करने की आवश्यकता है। |
− | हमारा हीनताबोध । दोनों समस्याओं का स्वरूप एक ही है,
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− | वह है मनोवैज्ञानिक । हीनताबोध भी मनोवैज्ञानिक समस्या
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− | ही है।
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− | मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल
| + | ===== शिक्षा का माध्यम और भाषा का प्रश्न ===== |
| + | भारत में शिक्षा भारतीय होनी चाहिये यह जितना स्वाभाविक है उतना ही स्वाभाविक भारत में भारतीय भाषा का प्रचलन होना चाहिये यह है । भारत में जिस प्रकार शिक्षा भारतीय नहीं है उसी प्रकार भारतीय भाषा की प्रतिष्ठा नहीं है। भारत में जिस प्रकार युरोअमेरिका की शिक्षा चल रही है उसी प्रकार अंग्रेजी सबके मानस को प्रभावित कर रही है। |
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− | उपाय की दृष्टि से यदि हम बौद्धिक, तार्किक उपाय
| + | भारत में अंग्रेजों के साथ अंग्रेजी का प्रवेश हुआ । अंग्रेजों ने शिक्षा को पश्चिमी बनाया उसी प्रकार से समाज के |
− | करेंगे, अनेक वास्तविक प्रमाण देंगे, आंकडे देंगे तो उसका
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