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बात तो यह है कि सामने वाला व्यक्ति कितना विश्वसनीय
 
बात तो यह है कि सामने वाला व्यक्ति कितना विश्वसनीय
 
है यह जानना चाहिये । उसकी परीक्षा कैसे करना यह भी
 
है यह जानना चाहिये । उसकी परीक्षा कैसे करना यह भी
सीखना चाहिये । विश्वासभंग करने वाले का क्या करना
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सीखना चाहिये । विश्वासभंग करने वाले का क्या करना यह भी पुस्तक से नहीं सिखाया जा सकता, व्यवहार से सिखाया जा सकता है। शिक्षकों ने विद्यार्थियों को ये दोनों बातें सिखानी चाहिये ।
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सत्य बोलना, झूठ नहीं बोलना, विश्वास करना, विश्वसनीय होना, विश्वास का भंग नहीं करना आदि बातों से अपने आसपास अच्छाई का वातावरण बनता है। इस वातावरण में और सद्गुण पनपते हैं। सब एकदूसरे से आश्वस्त रहते हैं। पस्पर सद्भाव बना रहता है । सद्भाव से सहयोग बढता है। साथ मिलकर काम करने की अनुकूलता बनती है, स्नेह और सौहर्द बढते हैं । सज्जनता पनपती है। अध्ययन अध्यापन खिलते हैं।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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शिक्षकों और विद्यार्थियों के परस्पर विश्वास के आगे का चरण शिक्षकों और अभिभावकों मे विश्वास का वातावरण निर्माण करने का है। इसके आधार पर वातावरण संस्कारक्षम बनता है। समाज में विश्वास का वातावरण पनपे इस दृष्टि से भी विद्यालय को प्रयत्नशील रहना चाहिये। अब प्रश्न यह है कि क्या झूठ बोलना आना ही नहीं चाहिये । विश्वास का भंग करना, झूठा विश्वास दिलाना आदि सब आना ही नहीं चाहिये ?
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यह भी पुस्तक से नहीं सिखाया जा सकता, व्यवहार से
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अब प्रश्न यह है कि क्या झूठ बोलना आना ही नहीं चाहिये । विश्वास का भंग करना, झूठा विश्वास दिलाना आदि सब आना ही नहीं चाहिये ?
सिखाया जा सकता है । शिक्षकों ने विद्यार्थियों को ये
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दोनों बातें सिखानी चाहिये
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सत्य बोलना, झूठ नहीं बोलना, विश्वास करना,
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ऐसा नहीं है। कोई झूठ बोल रहा है उसका पता ही न चले, कोई विश्वसनीय नहीं है यह जान ही न सके, कोई विश्वास का भंग कर रहा है यह समझ में ही न आये यह तो बुद्धपन की निशानी है। कोई भी गलत काम में हमें जोड सकता है, हम से गलत काम करवा सकता है। झूठा भरोसा दिलाना सही है ?
विश्वसनीय होना, विश्वास का भंग नहीं करना आदि बातों
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से अपने आसपास अच्छाई का वातावरण बनता है । इस
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वातावरण में और सदूगुण पनपते हैं । सब एकदूसरे से
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आश्वस्त रहते हैं । पस्पर सद्भाव बना रहता है । सद्भाव
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से सहयोग बढ़ता है। साथ मिलकर काम करने की
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अनुकूलता बनती है, स्नेह और सौहर्द बढते हैं । सज्जनता
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पनपती है । अध्ययन अध्यापन खिलते हैं ।
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शिक्षकों और विद्यार्थियों के परस्पर विश्वास के आगे
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==== झूठा भरोसा दिलाना सही है ? ====
का चरण शिक्षकों और अभिभावकों मे विश्वास का
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कई बार विश्वास का भंग करना पडता है, झूठा विश्वास दिलाना आवश्यक होता है यह सही है क्या ?
वातावरण निर्माण करने का है। इसके आधार पर
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वातावरण संस्कारक्षम बनता है। समाज में विश्वास का
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वातावरण पनपे इस दृष्टि से भी विद्यालय को प्रयत्नशील
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रहना चाहिये ।
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अब प्रश्न यह है कि क्‍या झूठ बोलना आना ही
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हाँ, कभी झूठा विश्वास दिलाना और विश्वासभंग करना उचित होता है। उदाहरण के लिये जासूसी करते समय ऐसा कपट करना ही होता है । गायको, छोटे बच्चे को, स्त्रियों को बचाने हेतु झूठा विश्वास दिलाना अनुचित नहीं माना जायेगा। अपने स्वार्थ के लिये यह सब करना अपराध है। निर्दोष को बचाने के लिये, देश की रक्षा
नहीं चाहिये विश्वास का भंग करना, झूठा विश्वास
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दिलाना आदि सब आना ही नहीं चाहिये ?
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ऐसा नहीं है। कोई झूठ बोल रहा है उसका पता
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कई बार विश्वास का भंग करना पडता है, झूठा विश्वास दिलाना आवश्यक होता है यह सही है क्या ?
ही न चले, कोई विश्वसनीय नहीं है यह जान ही न सके,
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कोई विश्वास का भंग कर रहा है यह समझ में ही न आये
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यह तो बुद्धपन की निशानी है । कोई भी गलत काम में
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हमें जोड सकता है, हम से गलत काम करवा सकता है
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झूठा भरोसा दिलाना सही है ?
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हाँ, कभी झूठा विश्वास दिलाना और विश्वासभंग करना उचित होता है। उदाहरण के लिये जासूसी करते समय ऐसा कपट करना ही होता है । गायको, छोटे बच्चे को, स्त्रियों को बचाने हेतु झूठा विश्वास दिलाना अनुचित नहीं माना जायेगा। अपने स्वार्थ के लिये यह सब करना अपराध है। निर्दोष को बचाने के लिये, देश की रक्षा
 
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कई बार विश्वास का भंग करना पडता है, झूठा
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विश्वास दिलाना आवश्यक होता है यह सही है कया ?
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हाँ, कभी झूठा विश्वास दिलाना और विश्वासभंग
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करना उचित होता है । उदाहरण के लिये जासूसी करते
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समय ऐसा कपट करना ही होता है । गायको, छोटे बच्चे
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al, feat at aa हेतु झूठा विश्वास दिलाना अनुचित
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नहीं माना जायेगा । अपने स्वार्थ के लिये यह सब करना
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अपराध है । निर्दोष को बचाने के लिये, देश की रक्षा
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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करने के लिये यह सब करना अपराध नहीं है । हम उनका मानसिक मूल पकड नहीं
 
करने के लिये यह सब करना अपराध नहीं है । हम उनका मानसिक मूल पकड नहीं
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