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==== विश्वास भंग होने पर क्या करना ? ====
 
==== विश्वास भंग होने पर क्या करना ? ====
अगला चरण है कोई हमारा विश्वासभंग करता है तब क्या करना इसका विचार करना । उसे सीधा कुछ न कहते हुए या शिकायत न करते हुए विश्वासभंग को सह लेना यह पहली बात है। फिर उससे बात करना और विश्वासभंग नहीं करने के लिये समझाना । इन सभी बातों में विश्वास करना और विश्वसनीयता होना अपने बस की बातें हैं। इनका आचरण करना तो सरल है। परन्तु जो विश्वसनीय नहीं है अथवा हमारे साथ विश्वासभंग करता है उससे कैसा व्यवहार करें यह समझना कठिन है। पहली बात तो यह है कि सामने वाला व्यक्ति कितना विश्वसनीय है यह जानना चाहिये । उसकी परीक्षा कैसे करना यह भी सीखना चाहिये । विश्वासभंग करने वाले का क्या करना
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अगला चरण है कोई हमारा विश्वासभंग करता है तब क्या करना इसका विचार करना । उसे सीधा कुछ न कहते हुए या शिकायत न करते हुए विश्वासभंग को सह लेना यह पहली बात है। फिर उससे बात करना और विश्वासभंग नहीं करने के लिये समझाना । इन सभी बातों में विश्वास करना और विश्वसनीयता होना अपने बस की बातें हैं। इनका आचरण करना तो सरल है। परन्तु जो विश्वसनीय नहीं है अथवा हमारे साथ विश्वासभंग करता है उससे कैसा व्यवहार करें यह समझना कठिन है। पहली बात तो यह है कि सामने वाला व्यक्ति कितना विश्वसनीय है यह जानना चाहिये । उसकी परीक्षा कैसे करना यह भी सीखना चाहिये । विश्वासभंग करने वाले का क्या करना यह भी पुस्तक से नहीं सिखाया जा सकता, व्यवहार से सिखाया जा सकता है। शिक्षकों ने विद्यार्थियों को ये दोनों बातें सिखानी चाहिये । 
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सत्य बोलना, झूठ नहीं बोलना, विश्वास करना, विश्वसनीय होना, विश्वास का भंग नहीं करना आदि बातों से अपने आसपास अच्छाई का वातावरण बनता है। इस वातावरण में और सद्गुण पनपते हैं। सब एकदूसरे से आश्वस्त रहते हैं । पस्पर सद्भाव बना रहता है। सद्भाव से सहयोग बढता है। साथ मिलकर काम करने की अनुकूलता बनती है, स्नेह और सौहर्द बढते हैं । सज्जनता पनपती है। अध्ययन अध्यापन खिलते हैं।
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शिक्षकों और विद्यार्थियों के परस्पर विश्वास के आगे का चरण शिक्षकों और अभिभावकों मे विश्वास का वातावरण निर्माण करने का है। इसके आधार पर वातावरण संस्कारक्षम बनता है। समाज में विश्वास का वातावरण पनपे इस दृष्टि से भी विद्यालय को प्रयत्नशील रहना चाहिये।
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अब प्रश्न यह है कि क्या झूठ बोलना आना ही नहीं चाहिये । विश्वास का भंग करना, झूठा विश्वास दिलाना आदि सब आना ही नहीं चाहिये ?
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ऐसा नहीं है। कोई झूठ बोल रहा है उसका पता ही न चले, कोई विश्वसनीय नहीं है यह जान ही न सके, कोई विश्वास का भंग कर रहा है यह समझ में ही न आये यह तो बुद्धपन की निशानी है। कोई भी गलत काम में हमें जोड सकता है, हम से गलत काम करवा सकता है ।
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में विश्वसनीय बनने हेतु समझायें ।
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==== झूठा भरोसा दिलाना सही है ? ====
सभी छात्रों के समक्ष विश्वास करना, विश्वसनीय होना
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कई बार विश्वास का भंग करना पडता है, झूठा विश्वास दिलाना आवश्यक होता है यह सही है क्या ?
कितना अच्छा होता है, विश्वसनीय नहीं होने से कितनी
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हानि होती है, विश्वास नहीं करना और दूसरों के लिये
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हाँ, कभी झूठा विश्वास दिलाना और विश्वासभंग करना उचित होता है। उदाहरण के लिये जासूसी करते समय ऐसा कपट करना ही होता है । गायको, छोटे बच्चे को, स्त्रियों को बचाने हेतु झूठा विश्वास दिलाना अनुचित नहीं माना जायेगा। अपने स्वार्थ के लिये यह सब करना अपराध है। निर्दोष को बचाने के लिये, देश की रक्षा
विश्वसनीय नहीं होना कितना बुरा है इसकी कहानी,
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घटना, चर्चा करें । प्रेरणादायी चरित्र बतायें । धीरे धीरे
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विश्वसनीयता का वातावरण बनता जायेगा ।
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चौथा चरण है विश्वासभंग नहीं करना । विश्वासभंग
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करना बहुत बडा नैतिक अपराध है । यह बात बार बार
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अग्रहपूर्वक बतानी चाहिये । वचनपालन करना कितना
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महत्त्वपूर्ण है यह बताना चाहिये ।
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विद्यालय में पुस्तकालय में ताला नहीं लगाना, स्वयं
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ग्राहक सेवा चलाना, बिना निरीक्षण के परीक्षा का
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आयोजन करना, अपने विद्यार्थियों में विश्वास व्यक्त करना,
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आदि प्रयोग करने चाहिये । भारत में पूर्व में लोग घरों में
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ताले नहीं लगाते थे यह भी बताना ।
      
बडी आयु के विद्यार्थियों के समक्ष समाज में
 
बडी आयु के विद्यार्थियों के समक्ष समाज में
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