Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 252: Line 252:  
आप्रत्यक्षरूप से यदि पता चले कि वह विश्वास
 
आप्रत्यक्षरूप से यदि पता चले कि वह विश्वास
 
योग्य नहीं है तो भी सीधा डाँटने से या उसे दूसरों के
 
योग्य नहीं है तो भी सीधा डाँटने से या उसे दूसरों के
समक्ष गिराने से वह विश्वसनीय नहीं बनेगा । उसे अकेले
+
समक्ष गिराने से वह विश्वसनीय नहीं बनेगा । उसे अकेले में विश्वसनीय बनने हेतु समझायें । सभी छात्रों के समक्ष विश्वास करना, विश्वसनीय होना कितना अच्छा होता है, विश्वसनीय नहीं होने से कितनी हानि होती है, विश्वास नहीं करना और दूसरों के लिये विश्वसनीय नहीं होना कितना बुरा है इसकी कहानी, घटना, चर्चा करें । प्रेरणादायी चरित्र बतायें। धीरे धीरे विश्वसनीयता का वातावरण बनता जायेगा ।
 +
 
 +
चौथा चरण है विश्वासभंग नहीं करना । विश्वासभंग करना बहुत बडा नैतिक अपराध है। यह बात बार बार आग्रहपूर्वक बतानी चाहिये । वचनपालन करना कितना महत्त्वपूर्ण है यह बताना चाहिये ।
 +
 
 +
विद्यालय में पुस्तकालय में ताला नहीं लगाना, स्वयं ग्राहक सेवा चलाना, बिना निरीक्षण के परीक्षा का आयोजन करना, अपने विद्यार्थियों में विश्वास व्यक्त करना, आदि प्रयोग करने चाहिये । भारत में पूर्व में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे यह भी बताना ।
 +
 
 +
बडी आयु के विद्यार्थियों के समक्ष समाज में विश्वसनीयता का कैसा संकट निर्माण हुआ है, उससे कितने प्रकार से हानि होती है इसकी चर्चा करनी चाहिये । हमारे विद्यालय में विश्वसनीयता का वातावरण कैसे बना रहेगा इसकी भी चर्चा करनी चाहिये ।
 +
 
 +
==== विश्वास भंग होने पर क्या करना ? ====
 +
अगला चरण है कोई हमारा विश्वासभंग करता है तब क्या करना इसका विचार करना । उसे सीधा कुछ न कहते हुए या शिकायत न करते हुए विश्वासभंग को सह लेना यह पहली बात है। फिर उससे बात करना और विश्वासभंग नहीं करने के लिये समझाना । इन सभी बातों में विश्वास करना और विश्वसनीयता होना अपने बस की बातें हैं। इनका आचरण करना तो सरल है। परन्तु जो विश्वसनीय नहीं है अथवा हमारे साथ विश्वासभंग करता है उससे कैसा व्यवहार करें यह समझना कठिन है। पहली बात तो यह है कि सामने वाला व्यक्ति कितना विश्वसनीय है यह जानना चाहिये । उसकी परीक्षा कैसे करना यह भी सीखना चाहिये । विश्वासभंग करने वाले का क्या करना
 +
 
   −
   
 
  
1,815

edits

Navigation menu