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विद्यालय का समय दोपहर में ग्यारह बजे का है। समय पर आना है इतने नियम की जानकारी पर्याप्त नहीं है। समय से आना है इतनी सूचना भी पर्याप्त नहीं है। पंजिका में हस्ताक्षर करके समय लिखना है। क्यों ? विश्वास नहीं है कि समय से आयेंगे। अब पंजिका में हस्ताक्षर और समय लिखना भी पर्याप्त नहीं है। अंगूठा दबाने के यन्त्र हैं जिसमें आपकी उपस्थिति दर्ज होती है । अर्थात् अभिभावकों को ही नहीं तो संचालकों को भी शिक्षकों पर विश्वास नहीं है।
 
विद्यालय का समय दोपहर में ग्यारह बजे का है। समय पर आना है इतने नियम की जानकारी पर्याप्त नहीं है। समय से आना है इतनी सूचना भी पर्याप्त नहीं है। पंजिका में हस्ताक्षर करके समय लिखना है। क्यों ? विश्वास नहीं है कि समय से आयेंगे। अब पंजिका में हस्ताक्षर और समय लिखना भी पर्याप्त नहीं है। अंगूठा दबाने के यन्त्र हैं जिसमें आपकी उपस्थिति दर्ज होती है । अर्थात् अभिभावकों को ही नहीं तो संचालकों को भी शिक्षकों पर विश्वास नहीं है।
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शिक्षकों का विद्यार्थियों पर विश्वास नहीं है। पहली दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों को परीक्षा क्या होती है यही मालूम नहीं है तो नकल करना क्या होता है यह कैसे मालूम होगा ? शिक्षक तो पहले ही सूचना देते हैं कि नकल नहीं करना परन्तु विद्यार्थी इस सूचना का अर्थ नहीं समझते । निरीक्षण की व्यवस्था तो होती ही है जबकि उसका कोई अर्थ नहीं होता। विद्यार्थी मित्र भाव से, सहायता करने की दृष्टि से एकदूसरे से पूछते हैं या बात करते हैं और निरीक्षक कह देते हैं कि इतनी छोटी आयु में ही विद्यार्थी नकल करना सीख गये हैं ।
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गृहकार्य लिखित ही दिया जाता है। कुछ पढने के लिये या कुछ करके आने के लिये बताया तो विश्वास नहीं है कि पढेंगे या काम करेंगे । पाटी में लिखा हुआ भी नहीं चलेगा क्योंकि शिक्षकने गृहकार्य जाँचा है कि नहीं इसका प्रमाण चाहिये । लिखित सूचना और हस्ताक्षर अनिवार्य बन गये हैं।
    
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