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गृहकार्य लिखित ही दिया जाता है। कुछ पढने के लिये या कुछ करके आने के लिये बताया तो विश्वास नहीं है कि पढेंगे या काम करेंगे । पाटी में लिखा हुआ भी नहीं चलेगा क्योंकि शिक्षकने गृहकार्य जाँचा है कि नहीं इसका प्रमाण चाहिये । लिखित सूचना और हस्ताक्षर अनिवार्य बन गये हैं।
 
गृहकार्य लिखित ही दिया जाता है। कुछ पढने के लिये या कुछ करके आने के लिये बताया तो विश्वास नहीं है कि पढेंगे या काम करेंगे । पाटी में लिखा हुआ भी नहीं चलेगा क्योंकि शिक्षकने गृहकार्य जाँचा है कि नहीं इसका प्रमाण चाहिये । लिखित सूचना और हस्ताक्षर अनिवार्य बन गये हैं।
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+
==== अविश्वास का परिणाम ====
 
+
इस अविश्वास का परिणाम कैसा होता है ? शिक्षकों को कहा जाता है कि समय से विद्यालय आना है। आ गये, परन्तु आने से पढाया नहीं जाता है । पूरा समय विद्यालय में रहना होगा, रहे, परन्तु रहने से पढाया नहीं जाता । आपको वर्ष भर में पाठ्यक्रम पूरा करना होगा । हो गया, परन्तु पाठ्यक्रम पूरा होने से पढाया नहीं जाता । आपकी कक्षा का या आपके विषय का परिणाम शत प्रतिशत आना चाहिये । आ गया, परन्तु परिणाम अच्छा आने से पढाया नहीं जाता । परीक्षा तो हमें लेना है, प्रश्नपत्र हमें बनाने हैं, उत्तरपुस्तिका हमें जाँचनी है, अंक हमें देने हैं । शतप्रतिशत परिणाम आने म क्या कठिनाई है ? संचालक जानते हैं, अभिभावक भी जानते हैं परन्तु अब
 
  −
 
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  −
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  −
 
  −
और बातों का स्मरण नहीं होता और
  −
शुंगार आदि की आवश्यकता नहीं लगती ।
  −
 
  −
सुविधा का प्रश्न
  −
 
  −
वर्तमान में ऐसी धारणा बन गई है कि अध्ययन करने
  −
के लिये सुविधा चाहिये । घर से लेकर विद्यालय तक
  −
सर्वत्र अनेक प्रकार की सुविधाओं का विचार होता है
  −
और पढ़ाई का अधिकांश खर्च इन सुविधाओं के
  −
लिये ही होता है । कुछ उदाहरण देखें ...
  −
 
  −
घर से विद्यालय जाने के लिये वाहन चाहिये । यह
  −
बाइसिकल, ओटोरीक्षा, स्कूलबस, कार आदि कोई
  −
भी हो सकता है । वाहन की आवश्यकता क्यों होती
  −
है ? इसलिये कि अब पैदल चलना असंभव लगता
  −
है । वास्तव में घर से विद्यालय पैदल चलकर ही जाना
  −
चाहिये । पाँच से सात वर्ष के छात्र एक किलोमीटर,
  −
आठ से दस वर्ष के छात्र तीन किलोमीटर, दस से
  −
अधिक आयु के छात्र पाँच किलोमीटर और
  −
महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र आठ किलोमीटर
  −
पैदल चलकर विद्यालय जाते हैं तो उसमें कुछ भी
  −
अस्वाभाविक नहीं है। परन्तु आज इसे अत्यंत
  −
अस्वाभाविक माना जाता है । इनके कारण विभिन्न
  −
प्रकार के बताए जाते हैं । जैसे की
  −
 
  −
रास्ते इतने भीड़ भरे होते हैं कि छोटे छात्रों का उन
  −
पर चलना सुरक्षित नहीं होता ।
  −
 
  −
आजकल बच्चों का हरण करने वाले गुंडे भी होते हैं
  −
अत: बच्चों की असुरक्षा बढ़ गई है । उन्हें अकेले
  −
विद्यालय जाने देना उचीत नहीं होता ।
  −
 
  −
एक किलोमीटर से अधिक चलना बड़ों को भी आज
  −
अच्छा नहीं लगता । एक कारण शारीरिक दुर्बलता
  −
 
  −
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
  −
 
  −
   
  −
 
  −
है। वे थक जाते हैं । यह कारण सत्य भी है और
  −
मानसिक दुर्बलता का द्योतक भी, क्योंकि चलना
  −
पहले मन को अच्छा नहीं लगता, बाद में शरीर को ।
  −
लोग कहते हैं कि विद्यालय तक चलने में ही यदि
  −
थकान हो जाती है तो फिर पढ़ेंगे कैसे । अत: वाहन
  −
तो अति आवश्यक है । साथ ही समय बर्बाद होता है ।
  −
आज इतना समय है ही नहीं इसलिये वाहन चाहिये ।
  −
ये सारे तर्क जो वाहन की सुविधा के लिये दिये जाते हैं
  −
वे अनुचित हैं क्योंकि हम देखते हैं कि चलने के
  −
अभाव में छात्रों का शारीरिक श्रम नहीं होता है इसका
  −
स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव होता है । छात्र अवस्था से
  −
नहीं चलने की आदत हो जाने से लोग बड़ी आयु में
  −
कार्यालयों में भी चलकर नहीं जाते हैं इसलिये रास्तों
  −
पर वाहनों की भीड़ हो जाती है और असुरक्षा, समय
  −
और पैसों की बरबादी तथा प्रदूषण बढ़ता हैं । ये सर्व
  −
प्रकार की हानि ही है ।
  −
 
  −
जो समय की बरबादी का बहाना बनाते हैं वे अन्य
  −
प्रकार से समय का सदुपयोग करते हैं ऐसा तो दिखाई
  −
नहीं देता है । टीवी, होटल, सैर आदि में इतना समय
  −
व्यतीत होता है कि वास्तव में अध्ययन के लिये
  −
समय ही नहीं बचता है । अत: वाहन की सुविधा
  −
सुविधा है ही नहीं ।
  −
 
  −
शिक्षक, संचालक और अभिभावक कहते हैं कि
  −
छात्रों के लिये सुविधा नहीं होगी तो वे पढ़ने में मन
  −
नहीं लगा सकेंगे । घर में भी पढ़ने के लिये विशेष
  −
कुर्सी टेबल, लेंप आदि की सुविधा चाहिये ।
  −
विद्यालय में भी टेबल कुर्सी नहीं होगी तो पढ़ेंगे कैसे
  −
ऐसा तर्क दिया जाता है ।
  −
 
  −
  −
 
  −
विद्यालय में प्रतियोगितायें
  −
 
  −
प्रतियोगिताओं का शैक्षिक मूल्य क्या है ?
  −
प्रतियोगिताओं का व्यावहारिक मूल्य क्या है ?
  −
प्रतियोगिताओं के प्रति सही दृष्टिकोण कैसे
  −
विकसित करें ?
  −
 
  −
प्रतियोगिता की भावना कम करने के क्‍या उपाय
  −
करें ?
  −
 
  −
प्रतियोगितायें लाभ के स्थान पर हानि कैसे करती
  −
हैं?
  −
  −
 
  −
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  −
 
  −
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
  −
 
  −
६... प्रतियोगितायें लाभकारी बनें इसलिये क्या क्या
  −
करना चाहिये ?
  −
प्रश्नावली से पाप्त उत्तर
  −
 
  −
wa yaad के कुल छः प्रश्न है । इस विषय पर
  −
aga fia, a प्रधानाचार्य, दो संस्थाचालक एवं
  −
इकतालीस अभिभावकों ने अपने मत प्रदर्शित किये ।
  −
१, लगभग ४० प्रतिशत शिक्षक एवं अभिभावक प्रतियोगिता
  −
के शैक्षिक एवं व्यावहारिक मूल्य संबंध मे अनभिज्ञ
  −
है । ४० प्रतिशत लोग शारीरिक मानसिक विकास ऐसा
  −
उत्तर देते है । परंतु उत्तरों से उन्हे कोई अर्थबोध नही
  −
हुआ ऐसा लगता है । बाकी अन्योने स्पर्धा से उत्साह
  −
आत्मविश्वास प्रयत्नशीलता बढती है, आंतरिक गुण
  −
प्रकट होते हैं, लक्ष्य तक पहुंचने का सातत्य आता है,
  −
इस प्रकार से प्रतिपादन किया है ।
  −
स्पर्धा के प्रति योग्य दूष्ठीकोन विकसित करने के लिए
  −
सकारात्मक दृष्टिकोन अपनाना चाहिये यह उत्तर
  −
 
  −
दिया ।
  −
 
  −
       
  −
 
  −
प्रदर्शित हुआ ।
  −
हार जीत समान है यह भावना निर्माण करे तथा स्पर्धा
  −
निष्पक्ष भाव से और निकोप वातावरण मे हो ऐसा
  −
भी सुझाव आया |
  −
स्पर्धा लाभकारी हो इसलिए उनमे से इर्ष्या और
  −
हिंसाभाव नष्ट करे, अपयश प्राप्त स्पर्धकों को चिडाना
  −
(उपहास करना) बंद करे तथा सभी स्पर्धकों को
  −
पुरस्कार देना ऐसा लिखा है ।
  −
स्पर्धा से होने वाली हानि बताने से बालकों के मन में
  −
न्यूनता की भावना निर्माण होती है इसलिए दूसरों का
  −
विजय सहर्ष स्वीकृत करे ऐसा भाव उत्पन्न करे । बहुत
  −
से लोगोंने प्रतियोगिता का अर्थ परीक्षा ऐसा भी किया |
  −
अभिमत : आजकल शिशु कक्षाओं से लेकर बड़ी
  −
कक्षाओं तक स्पर्धाका आयोजन होता है । यह अत्यंत गलत
  −
बात है । साधारणतः कक्षा ६, ७ के बाद स्पर्धा जीतने का
  −
भाव निर्माण होता है तबसे कुछ मात्रा मे प्रतियोगिता हो
  −
सकती है । विद्यार्थियों में खिलाड़ीवृत्ति निर्माण करे । जीवन
  −
की हारजीत पचाना इससे ही आता है क्रोध इर्ष्या न बढ़े
  −
उसकी सावधानी आचार्य और अभिभावकों के मन में हो ।
  −
भोजन मे जिस मात्रा मे लवण आवश्यक है उसी
  −
मात्रा मे जीवन में स्पर्धा आवश्यक है ।
  −
 
  −
अध्ययन क्षेत्र का एक अवरोध : परस्पर अविश्वास
  −
 
  −
३. . प्रतियोगिता होनी ही चाहिये ऐसा कुछ लोग लिखते
  −
है।
  −
 
  −
¥. प्रतियोगिताए खुले दिल से होनी चाहिए यह भी मत
  −
 
  −
शिक्षक पर भरोसा नहीं है
  −
 
  −
दूसरी कक्षा में पढने वाला सात वर्ष का एक विद्यार्थी
  −
गणित की लिखित परीक्षा देकर घर आया । परीक्षा में
  −
कितने अंक मिलेंगे यह जानने की उत्सुकता विद्यार्थी से
  −
अधिक उसकी माता को थी । अतः माता ने पूछताछ शुरू
  −
की । प्रश्नपत्र के प्रश्न एक के बाद एक पूछती गई और
  −
बालक उत्तर देता गया । सरे प्रश्नों की समाप्ति पर माता ने
  −
निदान किया कि उसे पचास में से अडतालीस अंक प्राप्त
  −
होंगे । वह सन्तुष्ट हुई। परन्तु परीक्षा का परिणाम आया
  −
तब माता ने देखा कि बालक को गणित में दो अंक मिले
  −
थे । माता आघात से पागल हो गई । बार बार बालक से
  −
 
  −
888
  −
 
  −
पूछने लगी कि ऐसा कैसे हुआ । बालक बताने में असमर्थ
  −
था । घुमा फिराकर पूछते पूछते माता ने पूछा कि तुमने उत्तर
  −
पुस्तिका में उत्तर लिखे थे कि नहीं । बालक ने निर्विकार
  −
भाव से कहा कि नहीं लिखा था । माता ने झछ्ला कर पूछा
  −
कि क्यों नहीं लिखा । बालक ने सहजता से कहा कि सब
  −
उत्तर आते थे तब क्यों लिखूँ ।
  −
 
  −
अब इस प्रश्न का कया उत्तर है ? उसने उत्तर पुस्तिका
  −
में क्यों लिखना चाहिये ? शिक्षिका का उत्तर है परीक्षा है तो
  −
लिखना ही चाहिये । परन्तु बालक को परीक्षा कया होती है
  −
इसका ज्ञान नहीं है और परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिये इसकी
  −
परवाह नहीं है। फिर लिखित परीक्षा क्यों होती है ?
  −
  −
 
  −
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  −
 
  −
 
  −
 
  −
शिक्षिका कहती है कि नहीं तो कैसे पता
  −
चलेगा कि उसको गणित आती है कि नहीं । रोज रोज जिसे
  −
पढ़ा रहे हैं उस दूसरी कक्षा के विद्यार्थी को गणित आती है
  −
कि नहीं यह जानने के लिये क्‍या लिखित परीक्षा की
  −
आवश्यकता होती है ? शिक्षिका कहती है कि मुझे तो पता
  −
चलता है परन्तु अभिभावकों को लिखित प्रमाण चाहिये ।
  −
अभिभावकों से पूछो कि लिखित प्रमाण क्यों चाहिये । तब वे
  −
कहते हैं कि शिक्षकों का क्या भरोसा, वे तो कुछ भी कहेंगे ।
  −
हमे तो अपने बालक की चिन्ता करनी ही चाहिये । पते की
  −
बात यही है, शिक्षक पर भरोसा नहीं है ।
  −
 
  −
विद्यालय का समय दोपहर में ग्यारह बजे का है ।
  −
समय पर आना है इतने नियम की जानकारी पर्याप्त नहीं
  −
है। समय से आना है इतनी सूचना भी पर्याप्त नहीं है ।
  −
पंजिका में हस्ताक्षर करके समय लिखना है। क्यों ?
  −
विश्वास नहीं है कि समय से आयेंगे । अब पंजिका में
  −
हस्ताक्षर और समय लिखना भी पर्याप्त नहीं है । अंगूठा
  −
दबाने के यन्त्र हैं जिसमें आपकी उपस्थिति दर्ज होती है ।
  −
अर्थात्‌ अभिभावकों को ही नहीं तो संचालकों को भी
  −
शिक्षकों पर विश्वास नहीं है ।
  −
 
  −
शिक्षकों का विद्यार्थियों पर विश्वास नहीं है । पहली
  −
दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों को परीक्षा क्या होती है यही
  −
मालूम नहीं है तो नकल करना क्या होता है यह कैसे
  −
मालूम होगा ? शिक्षक तो पहले ही सूचना देते हैं कि
  −
नकल नहीं करना परन्तु विद्यार्थी इस सूचना का अर्थ नहीं
  −
समझते । निरीक्षण की व्यवस्था तो होती ही है जबकि
  −
उसका कोई अर्थ नहीं होता । विद्यार्थी मित्र भाव से,
  −
सहायता करने की दृष्टि से एकदूसरे से पूछते हैं या बात
  −
करते हैं और निरीक्षक कह देते हैं कि इतनी छोटी आयु में
  −
ही विद्यार्थी नकल करना सीख गये हैं ।
  −
 
  −
गृहकार्य लिखित ही दिया जाता है । कुछ पढ़ने के
  −
लिये या कुछ करके आने के लिये बताया तो विश्वास नहीं
  −
है कि पढेंगे या काम करेंगे । पाटी में लिखा हुआ भी नहीं
  −
चलेगा क्योंकि शिक्षकने गृहकार्य जाँचा है कि नहीं इसका
  −
प्रमाण चाहिये । लिखित सूचना और हस्ताक्षर अनिवार्य बन
  −
गये हैं ।
  −
 
  −
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
  −
 
  −
     
  −
 
  −
अविश्वास का परिणाम
  −
 
  −
  −
 
  −
इस अविश्वास का परिणाम कैसा होता है ? शिक्षकों
  −
को कहा जाता है कि समय से विद्यालय आना है। आ
  −
गये, परन्तु आने से पढाया नहीं जाता है । पूरा समय
  −
विद्यालय में रहना होगा, रहे, परन्तु रहने से पढाया नहीं
  −
जाता । आपको वर्ष भर में पाठ्यक्रम पूरा करना होगा । हो
  −
गया, परन्तु पाठ्यक्रम पूरा होने से पढाया नहीं जाता ।
  −
आपकी कक्षा का या आपके विषय का परिणाम शत
  −
प्रतिशत आना चाहिये । आ गया, परन्तु परिणाम अच्छा
  −
आने से पढाया नहीं जाता । परीक्षा तो हमें लेना है, प्रश्नपत्र
  −
हमें बनाने हैं, उत्तरपुस्तिका हमें जाँचनी है, अंक हमें देने
  −
हैं । शतप्रतिशत परिणाम आने म * क्या कठिनाई है ?
  −
संचालक जानते हैं, अभिभावक भी जानते हैं परन्तु अब
   
क्या उपाय है ? कैसे पकड सकते हैं ? इसलिये दसवीं की
 
क्या उपाय है ? कैसे पकड सकते हैं ? इसलिये दसवीं की
 
या बारहवीं की परीक्षा के लिये ट्यूशन या कोचिंग क्लास
 
या बारहवीं की परीक्षा के लिये ट्यूशन या कोचिंग क्लास
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बोलना सीख जाते हैं ।
 
बोलना सीख जाते हैं ।
   −
कई विषयों में प्रोजेक्ट किये जाते हैं। विद्यार्थी
+
कई विषयों में प्रोजेक्ट किये जाते हैं। विद्यार्थी अन्तर्जाल का सहारा लेकर प्रोजेक्ट पूर्ण कर देते हैं । प्रोजेक्ट का प्रयोजन क्या है इससे उन्हें कोई लेना देना नहीं होता । कुछ तैयार करना है तो या तो मातापिता बनाते हैं या किसी से बनवा लिया जाता है । शिक्षक सब जानते हैं परन्तु अंक दे देते हैं क्योंकि अंक कोई पैसे तो हैं नहीं कि
अन्तर्जाल का सहारा लेकर प्रोजेक्ट पूर्ण कर देते हैं ।
+
देने से कम हो जाय । मातापिता भी यह सब जानते हैं परन्तु कोई परवाह नहीं करते ।
प्रोजेक्ट का प्रयोजन क्या है इससे उन्हें कोई लेना देना नहीं
  −
होता । कुछ तैयार करना है तो या तो मातापिता बनाते हैं
  −
या किसी से बनवा लिया जाता है । शिक्षक सब जानते हैं
  −
परन्तु अंक दे देते हैं क्योंकि अंक कोई पैसे तो हैं नहीं कि
  −
देने से कम हो जाय । मातापिता भी यह सब जानते हैं परन्तु
  −
कोई परवाह नहीं करते ।
     −
इस प्रकार मिध्या और आभासी शिक्षा चलती है |
+
==== इस प्रकार मिध्या और आभासी शिक्षा चलती है | ====
 
+
विद्यालय का परिणाम तो अच्छा लाना ही है इसलिये उत्तीर्ण होने के पात्र नहीं हैं ऐसे विद्यार्थियों को भी उत्तीर्ण कर दिया जाता हैं । आठवीं, नौवीं तक आते आते
विद्यालय का परिणाम तो अच्छा लाना ही है
+
विद्यार्थियों को भी इस खेल का पता चल जाता है और वे इसका पूरा फायदा उठाते हैं ।
इसलिये उत्तीर्ण होने के पात्र नहीं हैं ऐसे विद्यार्थियों को भी
  −
उत्तीर्ण कर दिया जाता हैं । आठवीं, नौवीं तक आते आते
  −
विद्यार्थियों को भी इस खेल का पता चल जाता है और वे
  −
इसका पूरा फायदा उठाते हैं ।
      
यह सारा अविश्वास से प्रारम्भ हुआ खेल कोई एकाध
 
यह सारा अविश्वास से प्रारम्भ हुआ खेल कोई एकाध
विद्यालय में नहीं चलता, सार्वत्रिक हो गया है । अविश्वास
+
विद्यालय में नहीं चलता, सार्वत्रिक हो गया है । अविश्वास के चलते बच निकलने के, पकडे नहीं जाने के नित्य नये
  −
 
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  −
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
  −
 
  −
के चलते बच निकलने के, पकडे नहीं जाने के नित्य नये
   
नये मौलिक उपाय खोजे जाते हैं, चतुराई तो बढ़ती है परन्तु
 
नये मौलिक उपाय खोजे जाते हैं, चतुराई तो बढ़ती है परन्तु
 
पढाई नहीं होती | ऐसी शिक्षा से राष्ट्र निर्माण कैसे होगा ?
 
पढाई नहीं होती | ऐसी शिक्षा से राष्ट्र निर्माण कैसे होगा ?
   −
व्यवहार का नियम भी है कि अच्छाई नियम, कानून,
+
व्यवहार का नियम भी है कि अच्छाई नियम, कानून, भय, स्वार्थ, अविश्वास, चतुराई, अप्रामाणिकता, जबरदस्ती, दबाव, अनिवार्यता आदि के साथ नहीं रहती । इन सभी तत्त्वों से प्रेरित होकर किया गया कोई भी अच्छा दीखने वाला काम अच्छा नहीं होता, उसमें अच्छाई का आभास
भय, स्वार्थ, अविश्वास, चतुराई, अप्रामाणिकता, जबरदस्ती,
+
होता है और आभासी अच्छाई मिथ्या परिणाम देनेवाली होती है, ठोस नहीं ।
दबाव, अनिवार्यता आदि के साथ नहीं रहती । इन सभी
  −
तत्त्वों से प्रेरित होकर किया गया कोई भी अच्छा दीखने
  −
वाला काम अच्छा नहीं होता, उसमें अच्छाई का आभास
  −
होता है और आभासी अच्छाई मिथ्या परिणाम देनेवाली
  −
होती है, ठोस नहीं ।
     −
WOH, MIA, AM, Fea, Aaa a
+
स्वेच्छा, स्वतंत्रता, सद्द्भाव, सह्दयता, सज्जनता से ही शिक्षा जैसा अच्छा काम हो सकता है । जैसे ही कपट की गन्ध लगी, शिक्षा गायब हो जाती है । फिर शिक्षा की देह रह जाती है, प्राण नहीं । अतः प्रथम विश्वास की स्थापना करनी होगी ।
ही शिक्षा जैसा अच्छा काम हो सकता है । जैसे ही कपट
  −
की गन्ध लगी, शिक्षा गायब हो जाती है । फिर शिक्षा की
  −
देह रह जाती है, प्राण नहीं । अतः प्रथम विश्वास की
  −
स्थापना करनी होगी ।
     −
संचालक का शिक्षकों पर विश्वास, शिक्षक का
+
संचालक का शिक्षकों पर विश्वास, शिक्षक का संचालक पर विश्वास, शिक्षक का विद्यार्थी पर और विद्यार्थी का शिक्षक पर विश्वास, अभिभावकों का शिक्षक पर और शिक्षक का अभिभावकों पर विश्वास होना अनिवार्य है ।
संचालक पर विश्वास, शिक्षक का विद्यार्थी पर और विद्यार्थी
  −
का शिक्षक पर विश्वास, अभिभावकों का शिक्षक पर और
  −
शिक्षक का अभिभावकों पर विश्वास होना अनिवार्य है ।
     −
विश्वसनीयता का संकट गहरा है
+
==== विश्वसनीयता का संकट गहरा है ====
 +
इस दृष्टि से दो प्रकार का प्रशिक्षण आवश्यक है । एक है विश्वास करने की शक्ति सम्पादन करना, दूसरा विश्वसनीय बनना । आज के समय में दोनों ही बहुत दुर्लभ हैं ।
   −
इस दृष्टि से दो प्रकार का प्रशिक्षण आवश्यक है ।
+
एक बार शिक्षकों के प्रशिक्षण वर्ग में एक प्रयोग किया गया । सबको कहा गया कि ऐसे दस व्यक्तियों के नाम लिखो जिनके बारे में आपको विश्वास है कि () वे पीठ पीछे आपकी निन्‍दा नहीं करेंगे, (२) वे आपका अहित नहीं करेंगे और (३) आपको कभी किसी बात में
एक है विश्वास करने की शक्ति सम्पादन करना, दूसरा
  −
विश्वसनीय बनना । आज के समय में दोनों ही बहुत
  −
दुर्लभ हैं ।
  −
 
  −
एक बार शिक्षकों के प्रशिक्षण वर्ग में एक प्रयोग
  −
किया गया । सबको कहा गया कि ऐसे दस व्यक्तियों के
  −
नाम लिखो जिनके बारे में आपको विश्वास है कि (४१) वे
  −
पीठ पीछे आपकी निन्‍्दा नहीं करेंगे, (२) वे आपका
  −
अहित नहीं करेंगे और (३) आपको कभी किसी बात में
   
धोखा नहीं देंगे ।
 
धोखा नहीं देंगे ।
   Line 436: Line 156:  
ऐसे दस व्यक्तियों के नाम लिखो जिन्हें इन्हीं तीन
 
ऐसे दस व्यक्तियों के नाम लिखो जिन्हें इन्हीं तीन
   −
 
+
बातों में आप पर विश्वास है ऐसा आपको लगता है ।
 
  −
२०१
  −
 
  −
     
  −
 
  −
बातों में आप पर विश्वास है ऐसा
  −
आपको लगता है ।
      
ऐसे नाम लिखना भी कठिन हो गया ।
 
ऐसे नाम लिखना भी कठिन हो गया ।
   −
आश्चर्य की और आश्वस्त करने की बात तो यह थी
+
आश्चर्य की और आश्वस्त करने की बात तो यह थी कि वे ऐसे नाम भी नहीं लिख सके ।
कि वे ऐसे नाम भी नहीं लिख सके ।
     −
आश्यस्ति इस बात की कि कम से कम उन्होंने झूठ
+
आश्यस्ति इस बात की कि कम से कम उन्होंने झूठ तो नहीं लिखा ।
तो नहीं लिखा ।
     −
परन्तु यह प्रयोग दर्शाता है कि विश्वास करने का और
+
परन्तु यह प्रयोग दर्शाता है कि विश्वास करने का और विश्वसनीयता का संकट कितना गहरा है । और जब तक अविश्वास है शिक्षा कैसे हो पायेगी ?
विश्वसनीयता का संकट कितना गहरा है । और जब तक
  −
अविश्वास है शिक्षा कैसे हो पायेगी ?
     −
कभी कभी तो लोग कह देते हैं कि आज के जमाने
+
कभी कभी तो लोग कह देते हैं कि आज के जमाने में विश्वास का कोई वजूद नहीं है । विश्वास से काम नहीं हो सकता । जमाना खराब हो गया है । अतः नियम तो बनाने ही पड़ेंगे और जाँच पड़ताल भी करनी पडेगी । निरीक्षण की व्यवस्था नहीं रही तो कोई नकल किये बिना रहेगा नहीं । पुलीस नहीं रहा तो ट्राफिक के नियमों का पालन कौन करेगा ? बिना जाँच रखे अनुशासन कैसे रहेगा ? इसलिये विश्वास का आग्रह छोडो ।
में विश्वास का कोई वजूद नहीं है । विश्वास से काम नहीं हो
  −
सकता । जमाना खराब हो गया है । अतः नियम तो बनाने
  −
ही पड़ेंगे और जाँच पड़ताल भी करनी पडेगी । निरीक्षण की
  −
व्यवस्था नहीं रही तो कोई नकल किये बिना रहेगा नहीं ।
  −
पुलीस नहीं रहा तो ट्राफिक के नियमों का पालन कौन
  −
करेगा ? बिना जाँच रखे अनुशासन कैसे रहेगा ? इसलिये
  −
विश्वास का आग्रह छोडो ।
     −
परन्तु विश्वास और श्रद्धा के बिना कोई भी अच्छा काम
+
परन्तु विश्वास और श्रद्धा के बिना कोई भी अच्छा काम सम्भव नहीं है । अच्छाई के आधार पर ही दुनिया चलती है, कानून के आधार पर नहीं । रास्ते पर चलते हुए कोई दुर्घटना देखी और कोई व्यक्ति बहुत गम्भीर रूप से घायल हो गया है वह भी देखा । उस समय रुकना, उसकी सहायता करना उसे अस्पताल पहुँचाना कानून से बन्धनकारक नहीं है तो भी लोग होते हैं जो अपना काम छोड़कर घायल व्यक्ति की सहायता करते हैं । ठण्ड में ठिठुरने वाले खुले में सोये गरीब
सम्भव नहीं है । अच्छाई के आधार पर ही दुनिया चलती है,
+
लोगों को कम्बल ओढाने वाले अच्छे लोग होते ही हैं । गरीब विद्यार्थियों को पढाई के लिये सहायता करने वाले दानी लोग होते ही हैं । ये सब नियम, कानून, बन्धन, मजबूरी, भय
कानून के आधार पर नहीं । रास्ते पर चलते हुए कोई दुर्घटना
+
या स्वार्थ से प्रेरित होकर यह काम नहीं करते । उनके हृदय में जो अच्छाई होती है उससे प्रेरित होकर ही करते हैं । मनुष्यों
देखी और कोई व्यक्ति बहुत गम्भीर रूप से घायल हो गया है
+
के हृदयों में जो अच्छाई है उसीसे दुनिया चलती है । इस अच्छाई का नाश अविश्वास से होता है । इसलिये कुछ भौतिक स्वरूप की कीमत चुकाकर भी विश्वास का जतन
वह भी देखा । उस समय रुकना, उसकी सहायता करना उसे
  −
अस्पताल पहुँचाना कानून से बन्धनकारक नहीं है तो भी
  −
लोग होते हैं जो अपना काम छोड़कर घायल व्यक्ति की
  −
सहायता करते हैं । ठण्ड में ठिठुरने वाले खुले में सोये गरीब
  −
लोगों को कम्बल ओढाने वाले अच्छे लोग होते ही हैं ।
  −
गरीब विद्यार्थियों को पढाई के लिये सहायता करने वाले दानी
  −
लोग होते ही हैं । ये सब नियम, कानून, बन्धन, मजबूरी, भय
  −
या स्वार्थ से प्रेरित होकर यह काम नहीं करते । उनके हृदय में
  −
जो अच्छाई होती है उससे प्रेरित होकर ही करते हैं । मनुष्यों
  −
के हृदयों में जो अच्छाई है उसीसे दुनिया चलती है । इस
  −
अच्छाई का नाश अविश्वास से होता है । इसलिये कुछ
  −
भौतिक स्वरूप की कीमत चुकाकर भी विश्वास का जतन
   
करना चाहिये ।
 
करना चाहिये ।
  −
  −
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
  −
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विश्वास का जतन करना
  −
  −
 
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  −
अविश्वास का प्रारम्भ ऐसे होता है । इन मातापिता ने
  −
किया ऐसा व्यवहार तो लोग हमेशा करते हैं, निर्दोषता से
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करते हैं । इसे झूठ नहीं कहते, व्यवहार कहते हैं । परन्तु
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इससे विश्वसनीयता गँवाते हैं और विश्वास नहीं करना
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सिखाते हैं ।
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एक व्यापारी पिता की कथा पढ़ी थी । अपने छोटे
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पुत्र को वह ऊँचाई से छलाँग लगाने के लिये प्रेरित कर रहे
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थे । पुत्र डर रहा था । पिता बार बार कह रहे थे कि मैं हूँ,
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तुम्हें गिरने नहीं दूँगा, झेल लूँगा । तीन चार बार ऐसा सुनने
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छोटे बच्चे स्वभाव से विश्वास करने वाले ही होते. पर एक बार पुत्रने अपने भय पर काबू पाकर छलाँग
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हैं। बडे होते होते विश्वास करना छोड देते हैं । इसका. लगाई । पिताने नहीं पकडा और गिरने दिया । ऐसा क्यों
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कारण उसके आसपास के बडे ही होते हैं । वे झूठ बोलते. किया यह पूछनें पर पिताने बताया कि वह व्यापारी का पुत्र
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हैं, बच्चों के विश्वास का भंग करते हैं । इससे झूठ बोलना. है व्यापार में सगे बाप पर भी विश्वास नहीं करना सिखा
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विश्वास-अविश्वास के मामले में इन पहलुओं का
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विचार करना चाहिये...
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१, विश्वास करना
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२. विश्वास करना सिखाना
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३. विश्वसनीयता बनाना
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४. विश्वसनीय बनना
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१, विश्वास भंग नहीं करना
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और विश्वास नहीं करना दोनों बातों के संस्कार होते हैं । रहा हैँ।
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एक परिवार में छोटा बेटा, मातापिता और दादीमाँ यह अनाडीपन की हद है ।
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ऐसे चार लोग होते थे | रात्रि में भोजन आदि से निपटकर तात्पर्य यह है कि ऐसी सैंकड़ों छोटी छोटी बातें होती
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पतिपत्नी कुछ चलने के लिये जाते थे । उस समय छोटा हैं जिससे बच्चे विश्वास नहीं करना सीख जाते हैं, और फिर
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बालक भी साथ जाना चाहता था । उसे साथ लेकर घूमने किसी का विश्वास नहीं करते ।
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जाना मातापिता को सुविधाजनक नहीं लगता था । वह
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चल नहीं सकता था, उसे उठाना पड़ेगा । वह रास्ते में ही... बच्चे मन के सच्चे
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सो जाता था । इसलिये उन्होंने सोचा कि वह सो जायेगा बच्चे स्वभाव से झूठ नहीं बोलते परन्तु बडे 'झूठ मत
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फिर जायेंगे । दादीमां ने ही यह उपाय सुझाया था । परन्तु बोलो”, 'झूठ मत बोलो' कहा करते हैं अथवा “तुम जूठ
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बालक ने सुन लिया । इसलिये वह मातापिता नहीं सोते थे. ब्लोलते हो' ऐसा आरोप लगाया करते हैं । यह सुनते सुनते
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तब तक सोने के लिये भी तैयार नहीं था । फिर माता कपडे . वे झूठ बोलना सीख जाते हैं और विश्वसनीयता गँवाते हैं ।
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बदल लेती, साथ में सुलाती और कहानी बताती । बालक अनेक बार बडे ही उन्हें झूठ बोलना सिखाते हैं ।
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सो जाता तब फिर दोनों घूमने के लिये जाते । कुछ दिन यह आसपास लोग एकदूसरे से झूठ बोल रहे हैं यह देखते हैं।
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क्रम ठीक चला । एक दिन बालक पूरा नहीं सोया था और . स्वयं झूठ बोलते हैं इसलिये दूसरे भी बोलते होंगे ऐसा
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माता को लगा कि सो गया, तब वे दोनों घूमने गये । इधर. समझकर विश्वास नहीं करते । इस वातावरण में वे अपने
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कहानी की आवाज बन्द हो गई इसलिये बालक जागा ।.. आप विश्वसनीय नहीं रहना और विश्वास नहीं करना सीख
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उसने देखा कि माँ नहीं है । वह रोने लगा । दादीमाँ ने कहा... जाते हैं ।
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कि घूमने गये हैं, अभी आ जायेंगे । बालक और जोर से झूठ बोलना सिखाने के लिये टीवी और मोबाइल तो
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रोने लगा । थोडी ही देर में मातापिता आ गये । बालक ने हैं ही । असंख्य उदाहरण झूठ बोलने के देखने सुनने को
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यह नहीं पूछा कि मुझे छोडकर क्यों गये । उसने पूछा कि... मिलते हैं । झूठ बोलना बुरा नहीं है यही उनके मन में बैठ
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मुझसे झूठ क्‍यों बोले ? जाता है । बुरा नहीं है तो बोलने में कया हानि है ? दूसरों
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२०२
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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का विश्वास नहीं करना यह भी उन्हें व्यवहार ही लगता है
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==== विश्वास का जतन करना ====
दूसरे मेरे पर विश्वास नहीं करेंगे यह पहले पहले तो ध्यान में
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विश्वास-अविश्वास के मामले में इन पहलुओं का विचार करना चाहिये...
नहीं आता परन्तु ध्यान में आने के बाद वह बहुत अखरता
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# विश्वास करना
नहीं है यही दुनियादारी है ऐसा उनका निश्चय हो जाता
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# विश्वास करना सिखाना
है।
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# विश्वसनीयता बनाना
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# विश्वसनीय बनना
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# विश्वास भंग नहीं करना
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छोटे बच्चे स्वभाव से विश्वास करने वाले ही होते हैं। बड़े होते होते विश्वास करना छोड देते हैं। इसका कारण उसके आसपास के बडे ही होते हैं । वे झूठ बोलते हैं, बच्चों के विश्वास का भंग करते हैं इससे झूठ बोलना और विश्वास नहीं करना दोनों बातों के संस्कार होते हैं
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इसे दुनियादारी कहते हैं
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एक परिवार में छोटा बेटा, मातापिता और दादीमाँ ऐसे चार लोग होते थे । रात्रि में भोजन आदि से निपटकर पतिपत्नी कुछ चलने के लिये जाते थे। उस समय छोटा बालक भी साथ जाना चाहता था । उसे साथ लेकर घूमने जाना मातापिता को सुविधाजनक नहीं लगता था । वह चल नहीं सकता था, उसे उठाना पड़ेगा । वह रास्ते में ही सो जाता था। इसलिये उन्होंने सोचा कि वह सो जायेगा फिर जायेंगे । दादीमां ने ही यह उपाय सुझाया था । परन्तु बालक ने सुन लिया । इसलिये वह मातापिता नहीं सोते थे तब तक सोने के लिये भी तैयार नहीं था। फिर माता कपडे बदल लेती, साथ में सुलाती और कहानी बताती । बालक सो जाता तब फिर दोनों घूमने के लिये जाते । कुछ दिन यह क्रम ठीक चला । एक दिन बालक पूरा नहीं सोया था और माता को लगा कि सो गया, तब वे दोनों घूमने गये । इधर कहानी की आवाज बन्द हो गई इसलिये बालक जागा । उसने देखा कि माँ नहीं है । वह रोने लगा । दादीमाँ ने कहा कि घूमने गये हैं, अभी आ जायेंगे । बालक और जोर से रोने लगा। थोड़ी ही देर में मातापिता आ गये । बालक ने यह नहीं पूछा कि मुझे छोडकर क्यों गये । उसने पूछा कि मुझसे झूठ क्यों बोले ?
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आगे का चरण मैं सत्य बोलता हूँ, मेरे पर विश्वास
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अविश्वास का प्रारम्भ ऐसे होता है । इन मातापिता ने किया ऐसा व्यवहार तो लोग हमेशा करते हैं, निर्दोषता से करते हैं । इसे झूठ नहीं कहते, व्यवहार कहते हैं । परन्तु इससे विश्वसनीयता गँवाते हैं और विश्वास नहीं करना सिखाते हैं ।
करो यह समझाने का होता है और सत्य बोलने के प्रमाण
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देने का होता है । सब एक दूसरे के समक्ष खुलासे देते हैं,
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प्रमाण देते हैं, साक्षी प्रस्तुत करते हैं । झूठ बोलकर भी
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सत्य सिद्ध करने हेतु झूठे प्रमाण और साक्षी देने जितने
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चतुर भी हो जाते हैं ।
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इसी में से आगे चल कर वकीलों का व्यवसाय
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एक व्यापारी पिता की कथा पढ़ी थी । अपने छोटे पुत्र को वह ऊँचाई से छलाँग लगाने के लिये प्रेरित कर रहे
पूरबहार में चलता है और न्यायालयों तथा न्यायाधीशों की
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थे । पुत्र डर रहा था । पिता बार बार कह रहे थे कि मैं हूँ, तुम्हें गिरने नहीं दूँगा, झेल लूँगा तीन चार बार ऐसा सुनने
संख्या कम पड़ती है
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जिस समाज में वकीलों और न्यायालयों की संख्या
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पर एक बार पुत्रने अपने भय पर काबू पाकर छलाँग लगाई। पिताने नहीं पकड़ा और गिरने दिया । ऐसा क्यों किया यह पूछने पर पिताने बताया कि वह व्यापारी का पुत्र है। व्यापार में सगे बाप पर भी विश्वास नहीं करना सिखा रहा हूँ।
अधिक हो और उनका व्यवसाय अच्छा चलता हो तो
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समझना चाहिये कि उस समाज में झूठ बोलने वाले और
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कलह करने वाले लोग अधिक हैं ।
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शिक्षकों का दायित्व
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यह अनाडीपन की हद है ।
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विद्यालय को विश्वास के वातावरण से युक्त बनाने
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तात्पर्य यह है कि ऐसी सैंकडों छोटी छोटी बातें होती हैं जिससे बच्चे विश्वास नहीं करना सीख जाते हैं, और फिर किसी का विश्वास नहीं करते
का दायित्व शिक्षकों का है । किसी और को दायित्व देने
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से या और का दायित्व बताने से काम होगा नहीं ।
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पहली बात है सब पर विश्वास करना, भले ही कुछ
+
==== बच्चे मन के सच्चे ====
हानि उठानी पडे । शत प्रतिशत पता है कि सामने वाला
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बच्चे स्वभाव से झूठ नहीं बोलते परन्तु बडे ‘झूठ मत बोलो', 'झूठ मत बोलो' कहा करते हैं अथवा 'तुम जूठ बोलते हो' ऐसा आरोप लगाया करते हैं। यह सनते सुनते वे झूठ बोलना सीख जाते हैं और विश्वसनीयता गँवाते हैं ।  
व्यक्ति झूठ बोल रहा है तो भी उसे यह नहीं कहना कि
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मुझे तुम्हारा विश्वास नहीं है, या मुझे पता है कि तुम झूठ
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बोल रहे हो । सामने वाला कितना भी माने कि मैं ने
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इनके सामने झूठ बोलकर इन्हें मूर्ख बनाया और फायदा
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उठाया, तो भी विश्वास ही करना, विश्वास नहीं है अथवा
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विश्वास करने योग्य नहीं है ऐसा मालूम है तो भी विश्वास
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करना मुझे तुम पर विश्वास नहीं है ऐसा कभी भी नहीं
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कहना । तुम सत्य बोल रहे हो इसका प्रमाण दो यहभी
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२०३
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अनेक बार बडे ही उन्हें झूठ बोलना सिखाते हैं। आसपास लोग एकदूसरे से झूठ बोल रहे हैं यह देखते हैं । स्वयं झूठ बोलते हैं इसलिये दूसरे भी बोलते होंगे ऐसा समझकर विश्वास नहीं करते । इस वातावरण में वे अपने आप विश्वसनीय नहीं रहना और विश्वास नहीं करना सीख जाते हैं।
   −
       
+
झूठ बोलना सिखाने के लिये टीवी और मोबाइल तो हैं ही। असंख्य उदाहरण झूठ बोलने के देखने सुनने को मिलते हैं। झूठ बोलना बुरा नहीं है यही उनके मन में बैठ जाता है। बुरा नहीं है तो बोलने में क्या हानि है ? दूसरों
    
नहीं कहना । यह तो अविश्वास करने
 
नहीं कहना । यह तो अविश्वास करने
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