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अब इस प्रश्न का क्या उत्तर है ? उसने उत्तर पुस्तिका में क्यों लिखना चाहिये ? शिक्षिका का उत्तर है परीक्षा है तो लिखना ही चाहिये । परन्तु बालक को परीक्षा क्या होती है इसका ज्ञान नहीं है और परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिये इसकी परवाह नहीं है। फिर लिखित परीक्षा क्यों होती है ?
 
अब इस प्रश्न का क्या उत्तर है ? उसने उत्तर पुस्तिका में क्यों लिखना चाहिये ? शिक्षिका का उत्तर है परीक्षा है तो लिखना ही चाहिये । परन्तु बालक को परीक्षा क्या होती है इसका ज्ञान नहीं है और परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिये इसकी परवाह नहीं है। फिर लिखित परीक्षा क्यों होती है ?
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शिक्षिका कहती है कि नहीं तो कैसे पता चलेगा कि उसको गणित आती है कि नहीं । रोज रोज जिसे पढा रहे हैं उस दूसरी कक्षा के विद्यार्थी को गणित आती है कि नहीं यह जानने के लिये क्या लिखित परीक्षा की आवश्यकता होती है ? शिक्षिका कहती है कि मुझे तो पता चलता है परन्तु अभिभावकों को लिखित प्रमाण चाहिये । अभिभावकों से पूछो कि लिखित प्रमाण क्यों चाहिये । तब वे कहते हैं कि शिक्षकों का क्या भरोसा, वे तो कुछ भी कहेंगे । हमे तो अपने बालक की चिन्ता करनी ही चाहिये । पते की बात यही है, शिक्षक पर भरोसा नहीं है।
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विद्यालय का समय दोपहर में ग्यारह बजे का है। समय पर आना है इतने नियम की जानकारी पर्याप्त नहीं है। समय से आना है इतनी सूचना भी पर्याप्त नहीं है। पंजिका में हस्ताक्षर करके समय लिखना है। क्यों ? विश्वास नहीं है कि समय से आयेंगे। अब पंजिका में हस्ताक्षर और समय लिखना भी पर्याप्त नहीं है। अंगूठा दबाने के यन्त्र हैं जिसमें आपकी उपस्थिति दर्ज होती है । अर्थात् अभिभावकों को ही नहीं तो संचालकों को भी शिक्षकों पर विश्वास नहीं है।
    
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