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परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है । अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है । प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है । प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है । बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है । अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है । ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना भारतीय शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है ।
परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है । अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है । प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है । प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है । बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है । अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है । ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना भारतीय शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है ।
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==== तक्षशिला विद्यापीठ ====
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“चाणक्य' धारावाहिक जब देखते हैं तब एक बात की ओर ध्यान आकर्षित होता है । राज्यसभा में हो या विद्रतसभा में, तक्षशिला विद्यापीठ का नामोट्लेख होता है तब सबके हाथ श्रद्धा और आदर के भाव से जुड़ जाते हैं । यह श्रद्धा और आदर किस बात के लिये हैं ? वहाँ की श्रेष्ठ ज्ञान साधना और ज्ञानपरम्परा के लिये । काल के प्रवाह में तक्षशिला विद्यापीठ एक ऐसा एकमेवाद्धितीय विद्यापीठ है, एक ऐसा सार्वकालीन विक्रम स्थापित करनेवाला विद्यापीठ है जिसने लगभग ग्यारहसौ वर्षों तक अपनी श्रेष्ठ ज्ञानपरम्परा बनाये रखी और सम्पूर्ण विश्व में अपनी श्रेष्ठता स्थापित की । देशविदेश के विद्वज्जन इस विद्यापीठ में अध्ययन हेतु आते थे ।
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तक्षशिला विद्यापीठ
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अर्थात् विद्यालय की प्रतिष्ठा का सबसे पहला मापदण्ड उसकी ज्ञान साधना है, उसका अध्ययन और अध्यापन है ।
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“चाणक्य' धारावाहिक जब देखते हैं तब एक बात
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आज भी विद्यालय जाने जाते हैं उनकी पढाई से । वर्तमान समय के अनुसार ये मानक बोर्ड और युनिवर्सिटी की परीक्षाओं के परिणाम पढाई के मानक हैं । कितने अधिक संख्या में विद्यार्थी कितने अधिक अंकों से परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए इस बात को प्रसिद्धि दी जाती है क्योंकि उसीसे प्रतिष्ठा होती है, उसीसे मान्यता होती है, उसीसे पुरस्कार प्राप्त होते हैं । कितने विविध प्रकार के विषय पढाये जाते हैं, कितनी विद्याशाखायें हैं, इसकी भी दखल ली जाती है । कितना और कैसा अनुसन्धान होता है, देश- विदेश की शोधपत्रिकाओं में कितने शोधपत्र छपते हैं, कितने आन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्रप्त होते हैं यह प्रतिष्ठा का विषय है ।
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की ओर ध्यान आकर्षित होता है । राज्यसभा में हो या
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यह सारा शोधकार्य, विभिन्न विद्याशाखायें, परीक्षा के परिणाम, पुरस्कार आदि सब अध्यापकों के कारण से होता है । अतः विद्यालय की प्रतिष्ठा उसके शिक्षकों से होती है । तक्षशिला विद्यापीठ भी चाणक्य और जीवक जैसे शिक्षकों के कारण प्रतिष्ठित हुआ ।
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विद्रतसभा में, तक्षशिला विद्यापीठ का नामोट्लेख होता है
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शिक्षकों की प्रतिष्ठा उनके ज्ञान, चरित्र और कर्तृत्व के कारण होती है, होनी चाहिये ।
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तब सबके हाथ श्रद्धा और आदर के भाव से जुड़ जाते हैं ।
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अध्यापन कौशल जिसके कारण समर्थ विद्यार्थी तैयार होते हैं, जिस समर्थ समाज का निर्माण करते हैं और ज्ञान का एक पीढी से हस्तान्तरण होकर ज्ञान परम्परा बनती है और ज्ञानधारा नित्य प्रवाहित रहती है; स्वाध्याय, जिसके कारण अध्यापक अधिकाधिक ज्ञानवान बनते हैं और अनुसन्धान, जिसके कारण ज्ञान परिष्कृत होता रहता है, समृद्ध बनता है और युगानुकूल बनता है शिक्षक की प्रतिष्ठा के विषय हैं । अर्थात् जो अध्यापन कला में कुशल नहीं वह विद्वान भले ही हो, शिक्षक नहीं; जो स्वाध्याय न करता हो वह न अच्छा विद्वान है न अच्छा शिक्षक, और जो अनुसन्धान नहीं करता वह श्रेष्ठ शिक्षक नहीं बन सकता ।
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यह श्रद्धा और आदर किस बात के लिये हैं ? वहाँ की श्रेष्ठ
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==== श्रेष्ठ शिक्षक विद्यालय की प्रतिष्ठा है । ====
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विद्यालय की प्रतिष्ठा इसमें है कि श्रेष्ठ शिक्षकों का आदर होता है, जहाँ शिक्षकों का सम्मान नहीं, स्वतन्त्रता नहीं वह विद्यालय अच्छा नहीं माना जाता । जो शिक्षक नौकरी करने के लिये तैयार हो जाते हैं वे शिक्षक शिक्षक नहीं और जो शिक्षकों को नौकर बनने के लिये मजबूर करती है वह व्यवस्था श्रेष्ठ व्यवस्था नहीं । ऐसी व्यवस्था में शिक्षकों का सम्मान भी नौकरों के सम्मान की तरह किया जाता है । ऐसे विद्यालय की भारतीय मानकों के अनुसार कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाश्चात्य मानकों के अनुसार भले ही हो ।
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ज्ञान साधना और ज्ञानपरम्परा के लिये । काल के प्रवाह में
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शिक्षकों और विद्यार्थियों का चरित्र विद्यालय की प्रतिष्ठा का विषय है । शिक्षकों में शराब, जुआ, भ्रष्टाचार जैसे व्यसन न हों, अध्यापन कार्य में अप्रामाणिकता न हो और आचारविचार श्रेष्ठ हों यह शिक्षकों का चरित्र है और शिक्षकों के प्रति आदर और श्रद्धा हो, अध्ययन में तत्परता और परिश्रमशीलता हों तथा सद्गुण और सदाचार हों यह विद्यार्थियों का चरित्र है । इस विद्यालय में परीक्षा में कभी नकल नहीं होती, परीक्षा विषयक कोई भ्रष्टाचार नहीं होता, जिस विद्यालय के विद्यार्थियों को ट्यूशन या कोचिंग क्लास की आवश्यकता नहीं होती, जिस विद्यालय में विद्यार्थियों के प्रवेश या शिक्षकों की नियुक्ति हेतु डोनेशन नहीं लिया जाता, जिस विद्यालय में अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करवाकर कम वेतन नहीं दिया जाता आदि बातें जब सुनिश्चित होती हैं तब वह विद्यालय समाज में प्रतिष्ठित होता है ।
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तक्षशिला विद्यापीठ एक ऐसा एकमेवाद्धितीय विद्यापीठ है,
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इतिहास में तक्षशिला एक और बात के लिये प्रतिष्ठित है। समाज और शास्त्रों की रक्षा के लिये समाज को, विद्वानों को, शिक्षकों को और गणराज्यों को संगठित कर अत्याचारी सम्राट को पटुश्रष्ट कर उसके स्थान पर योग्य सम्राट को अभिषिक्त करने का दायित्व आचार्य चाणक्य के नेतृत्व में विद्यापीठ ने निभाया । यह ज्ञान की प्रतिष्ठा नहीं, ज्ञान का दायित्व और कर्तृत्व है । अपने इस दायित्व को निभानेवाला करनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ।
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एक ऐसा सार्वकालीन विक्रम स्थापित करनेवाला विद्यापीठ
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ज्ञान और चरित्र के साथ साथ समाज को मार्गदर्शन करना, समाज का संगठन करना और समाज की सेवा करना विद्यालय का काम है। प्राकृतिक आपदाओं के समय सेवाकार्य करना, सामाजिक-सांस्कृतिक संकटों में समाज को सही दिशा देना और समाज की सुस्थिति हेतु राज्य को सहायता करना विद्यालय की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है ।
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है जिसने लगभग ग्यारहसौ वर्षों तक अपनी श्रेष्ठ ज्ञानपरम्परा
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==== प्रतिष्ठा के आज के मापदण्ड ====
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परन्तु आजकल स्थिति कुछ विपरीत भी बनी है । आज विद्यालय उनके भवन, सुविधाओं और विद्यार्थी संख्या से जाने जाते हैं । विद्यालय परिसर जितना विशाल, विद्यालय का भवन जितना भव्य, भवनों की संख्या जितनी अधिक, वाहन जितने अधिक, विद्यालय की सुविधायें जितनी अद्यतन और इन सबके अनुपात में विद्यालय का शुल्क जितना ऊँचा उतनी विद्यालय की प्रतिष्ठा भी अधिक |
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बनाये रखी और सम्पूर्ण विश्व में अपनी श्रेष्ठता स्थापित
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अंग्रेजी माध्यम प्रतिष्ठा का और एक विषय है । जितनी कम आयु में अंग्रेजी पढाया जाता है उतनी अधिक प्रतिष्ठा होती है । अंग्रेजी के साथ साथ यदि अन्य विदेशी भाषायें भी सिखाई जाती हैं तो और भी अच्छा है। विद्यालय में यदि विदेशी छात्र पढ़ते हैं तो वह भी गौरव का विषय बनता है । विदेशी मेहमान आते हैं तो प्रतिष्ठा बढती है ।
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की । देशविदेश के fager इस विद्यापीठ में अध्ययन हेतु
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आते थे ।
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अर्थात् विद्यालय की प्रतिष्ठा का सबसे पहला
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मापदण्ड उसकी ज्ञान साधना है, उसका अध्ययन और
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अध्यापन है ।
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आज भी विद्यालय जाने जाते हैं उनकी पढाई से ।
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वर्तमान समय के अनुसार ये मानक बोर्ड और युनिवर्सिटी
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की परीक्षाओं के परिणाम पढाई के मानक हैं । कितने
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अधिक संख्या में विद्यार्थी कितने अधिक अंकों से परीक्षाओं
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में उत्तीर्ण हुए इस बात को प्रसिद्धि दी जाती है क्योंकि
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उसीसे प्रतिष्ठा होती है, उसीसे मान्यता होती है, उसीसे
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पुरस्कार प्राप्त होते हैं । कितने विविध प्रकार के विषय
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पढाये जाते हैं, कितनी विद्याशाखायें हैं, इसकी भी दखल
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ली जाती है । कितना और कैसा अनुसन्धान होता है, देश-
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विदेश की शोधपत्रिकाओं में कितने शोधपत्र छपते हैं,
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कितने आन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्रप्त होते हैं यह प्रतिष्ठा का
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विषय है ।
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यह सारा शोधकार्य, विभिन्न विद्याशाखायें, परीक्षा के
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परिणाम, पुरस्कार आदि सब अध्यापकों के कारण से होता
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है । अतः विद्यालय की प्रतिष्ठा उसके शिक्षकों से होती है ।
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तक्षशिला विद्यापीठ भी चाणक्य और जीवक जैसे शिक्षकों
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के कारण प्रतिष्ठित हुआ ।
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शिक्षकों की प्रतिष्ठा उनके ज्ञान, चरित्र और कर्तृत्व
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के कारण होती है, होनी चाहिये ।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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अध्यापन कौशल जिसके कारण समर्थ विद्यार्थी तैयार
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होते हैं, जिस समर्थ समाज का निर्माण करते हैं और ज्ञान
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का एक पीढी से हस्तान्तरण होकर ज्ञान परम्परा बनती है
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और ज्ञानधारा नित्य प्रवाहित रहती है; स्वाध्याय, जिसके
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कारण अध्यापक अधिकाधिक ज्ञानवान बनते हैं और
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अनुसन्धान, जिसके कारण ज्ञान परिष्कृत होता रहता है,
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समृद्ध बनता है और युगानुकूल बनता है शिक्षक की प्रतिष्ठा
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के विषय हैं । अर्थात् जो अध्यापन कला में कुशल नहीं
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वह विद्वान भले ही हो, शिक्षक नहीं; जो स्वाध्याय न
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करता हो वह न अच्छा विद्वान है न अच्छा शिक्षक, और
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जो अनुसन्धान नहीं करता वह श्रेष्ठ शिक्षक नहीं बन
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सकता ।
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श्रेष्ठ शिक्षक विद्यालय की प्रतिष्ठा है ।
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विद्यालय की प्रतिष्ठा इसमें है कि श्रेष्ठ शिक्षकों का
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आदर होता है, जहाँ शिक्षकों का सम्मान नहीं, स्वतन्त्रता
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नहीं वह विद्यालय अच्छा नहीं माना जाता । जो शिक्षक
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नौकरी करने के लिये तैयार हो जाते हैं वे शिक्षक शिक्षक
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नहीं और जो शिक्षकों को नौकर बनने के लिये मजबूर
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करती है वह व्यवस्था श्रेष्ठ व्यवस्था नहीं । ऐसी व्यवस्था में
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शिक्षकों का सम्मान भी नौकरों के सम्मान की तरह किया
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जाता है । ऐसे विद्यालय की भारतीय मानकों के अनुसार
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कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाश्चात्य मानकों के अनुसार भले ही हो ।
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शिक्षकों और विद्यार्थियों का चरित्र विद्यालय की
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प्रतिष्ठा का विषय है । शिक्षकों में शराब, जुआ, भ्रष्टाचार
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जैसे व्यसन न हों, अध्यापन कार्य में अप्रामाणिकता न हो
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और आचारविचार श्रेष्ठ हों यह शिक्षकों का चरित्र है और
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शिक्षकों के प्रति आदर और श्रद्धा हो, अध्ययन में तत्परता
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और परिश्रमशीलता हों तथा सद्गुण और सदाचार हों यह
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विद्यार्थियों का चरित्र है । इस विद्यालय में परीक्षा में कभी
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नकल नहीं होती, परीक्षा विषयक कोई भ्रष्टाचार नहीं होता,
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जिस विद्यालय के विद्यार्थियों को ट्यूशन या कोचिंग क्लास
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की आवश्यकता नहीं होती, जिस विद्यालय में विद्यार्थियों
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के प्रवेश या शिक्षकों की नियुक्ति हेतु डोनेशन नहीं लिया
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जाता, जिस विद्यालय में अधिक वेतन पर हस्ताक्षर
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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करवाकर कम वेतन नहीं दिया जाता आदि बातें
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जब सुनिश्चित होती हैं तब वह विद्यालय समाज में प्रतिष्ठित
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होता है ।
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इतिहास में तक्षशिला एक और बात के लिये प्रतिष्ठित
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है। समाज और शास्त्रों की रक्षा के लिये समाज को,
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विद्वानों को, शिक्षकों को और गणराज्यों को संगठित कर
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अत्याचारी सम्राट को पटुश्रष्ट कर उसके स्थान पर योग्य
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सम्राट को अभिषिक्त करने का दायित्व आचार्य चाणक्य के
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नेतृत्व में विद्यापीठ ने निभाया । यह ज्ञान की प्रतिष्ठा नहीं,
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ज्ञान का दायित्व और कर्तृत्व है । अपने इस दायित्व को
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Parmar ak ager fs करनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा
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प्राप्त करता है ।
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ज्ञान और चरित्र के साथ साथ समाज को मार्गदर्शन
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करना, समाज का संगठन करना और समाज की सेवा करना
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विद्यालय का काम है। प्राकृतिक आपदाओं के समय
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सेवाकार्य करना, सामाजिक-सांस्कृतिक संकटों में समाज को
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सही दिशा देना और समाज की सुस्थिति हेतु राज्य को
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सहायता करना विद्यालय की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है ।
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प्रतिष्ठा के आज के मापदण्ड
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परन्तु आजकल स्थिति कुछ विपरीत भी बनी है ।
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आज विद्यालय उनके भवन, सुविधाओं और विद्यार्थी
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संख्या से जाने जाते हैं । विद्यालय परिसर जितना विशाल,
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विद्यालय का भवन जितना भव्य, भवनों की संख्या जितनी
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अधिक, वाहन जितने अधिक, विद्यालय की सुविधायें
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जितनी अद्यतन और इन सबके अनुपात में विद्यालय का
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शुल्क जितना ऊँचा उतनी विद्यालय की प्रतिष्ठा भी
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अधिक |
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अंग्रेजी माध्यम प्रतिष्ठा का और एक विषय है ।
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जितनी कम आयु में अंग्रेजी पढाया जाता है उतनी अधिक
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प्रतिष्ठा होती है । अंग्रेजी के साथ साथ यदि अन्य विदेशी
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भाषायें भी सिखाई जाती हैं तो और भी अच्छा है।
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विद्यालय में यदि विदेशी छात्र पढ़ते हैं तो वह भी गौरव
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का विषय बनता है । विदेशी मेहमान आते हैं तो प्रतिष्ठा
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बढती है ।
विदेशी खेल खेले जाते हैं,
विदेशी खेल खेले जाते हैं,
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विदेश में शैक्षिक भ्रमण के लिये जाना होता है, आन्तर्राष्ट्रीय
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विदेश में शैक्षिक भ्रमण के लिये जाना होता है, आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की मान्यता है, विदेशी वेश का गणवेश, विद्यालय के कैण्टीन में कण्टीनेन्टल नाश्ता मिलता है तो विद्यालय प्रतिष्ठित माना जाता है ।
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बोर्ड की मान्यता है, विदेशी वेश का गणवेश, विद्यालय के
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कैण्टीन में कण्टीनेन्टल नाश्ता मिलता है तो विद्यालय
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प्रतिष्ठित माना जाता है ।
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जिन विद्यालयों महाविद्यालयों में कैम्पस में ही नौकरी
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मिल जाती है उन विद्यालयों की प्रतिष्ठा बढती है । जहाँ
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मन्त्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों, wrest Al add
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जिन विद्यालयों महाविद्यालयों में कैम्पस में ही नौकरी मिल जाती है उन विद्यालयों की प्रतिष्ठा बढती है । जहाँ मन्त्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों, धनाढ्यो की संताने पढ़ती है वे विद्यालय प्रतिष्ठिट है।
पढ़ती हैं वे विद्यालय प्रतिष्टित हैं ।
पढ़ती हैं वे विद्यालय प्रतिष्टित हैं ।