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विद्यार्थी जिस प्रकार का प्रयोग करते हैं, उसे तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है । १. आवश्यक, २. अनावश्यक, ३. निर्रर्थक और अनर्थक ।
विद्यार्थी जिस प्रकार का प्रयोग करते हैं, उसे तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है । १. आवश्यक, २. अनावश्यक, ३. निर्रर्थक और अनर्थक ।
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===== १, आवश्यक सामग्री =====
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===== 1. आवश्यक सामग्री =====
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१, पाठ्यपुस्तकें, सन्दर्भ पुस्तकें, लेखन सामग्री
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१, पाठ्यपुस्तकें, सन्दर्भ पुस्तकें, लेखन सामग्री आवश्यक सामग्री हैं । गणित और विज्ञान के सन्दर्भ में कम्पास पेटिका, मापनपट़िका आवश्यक सामग्री हैं। पेन्सिल के साथ रबड़ आवश्यक है । स्लेट के साथ खड़िया पेन और स्लेट पोंछने का कपडा आवश्यक है । चित्र बनाने हेतु पेन्सिल, रंग आदि आवश्यक है । भूगोल के लिये स्लेट के साथ-साथ लेखन पुस्तिका भी आवश्यक है ।
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१्ढद
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आवश्यक सामग्री किसे कहते हैं ? जिसके बिना पढ़ना सम्भव ही नहीं हो, वह अनिवार्य सामग्री है । शिक्षा का शास्त्र कहता है कि पढने के लिये शिक्षक और विद्यार्थी के अलावा और कुछ भी अनिवार्य नहीं है । दोनों को एक ही शब्द प्रयोग लागू करना है तो विद्यार्थी संज्ञा ही उपयुक्त है। पढाना भी पढ़ने का ही प्रगत रूप है । विद्या प्राप्त करने के लिये इच्छुक व्यक्ति विद्यार्थी है और शिक्षक भी अपने मूल रूप में विद्यार्थी ही है । विद्यार्थी को विद्या प्राप्त करने के लिये उपयोगी साधन उसे जन्मजात मिले हैं । वे हैं कर्मन्द्रियाँ, ज्ञानेन्द्रिया, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । ये साधन प्राथमिक हैं, मुख्य हैं और अनिवार्य हैं । स्मृति, धारणा, ग्रहणशीलता, समझ, कौशल आदि इनके गुण हैं । इन मुख्य साधनों की सहायता के लिये उनके द्वारा उपयोग किये जाने के लिये जो सामग्री है, वह आवश्यक सामग्री है । प्राचीन काल में जब लेखन कला का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक पढ़ाई के लिये किसी भी प्रकार की सामग्री का प्रयोग नहीं करना पड़ता था । शिक्षक का बोलना और विद्यार्थी का सुनना ही पर्याप्त होता था । इससे भी अदूभुत बातों का उल्लेख मिलता है । पढाई के ईश्वरप्रदतत साधन जब सर्वाधिक सक्षम होते हैं, तब बिना कहे भी बातें सुनी और समझी जाती हैं ।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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दो उदाहरण देखें...<blockquote>१, चित्रं वटतरोमूँले वृद्धा शिष्याः गुररु्युवा ।</blockquote><blockquote>गुरोइस्तु मौन॑ व्याख्यानं शिष्याइस्तु छिन्न संशया: ।।</blockquote>अर्थात् अहो, आश्चर्य है ! वटवृक्ष के नीचे वृद्ध शिष्य और युवा गुरु बैठे हैं । गुरु का मौन ही व्याख्यान है और शिष्यों के संशय दूर हो जाते हैं ।
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आवश्यक सामग्री हैं । गणित और विज्ञान के सन्दर्भ में
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अर्थात् पढ़ने के लिये उपयोगी ईश्वरप्रदत्त साधनों की क्षमता कितनी अधिक है इसका यहाँ वर्णन किया गया है ।
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कम्पास पेटिका, मापनपट़िका आवश्यक सामग्री हैं।
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पेन्सिल के साथ रबड़ आवश्यक है । स्लेट के साथ खड़िया
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पेन और स्लेट पोंछने का कपडा आवश्यक है । चित्र बनाने
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हेतु पेन्सिल, रंग आदि आवश्यक है । भूगोल के लिये स्लेट
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के साथ-साथ लेखन पुस्तिका भी आवश्यक है ।
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आवश्यक सामग्री किसे कहते हैं ? जिसके बिना
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पढ़ना सम्भव ही नहीं हो, वह अनिवार्य सामग्री है । शिक्षा
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का शास्त्र कहता है कि पढने के लिये शिक्षक और विद्यार्थी
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के अलावा और कुछ भी अनिवार्य नहीं है । दोनों को एक
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ही शब्द प्रयोग लागू करना है तो विद्यार्थी संज्ञा ही उपयुक्त
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है। पढाना भी पढ़ने का ही प्रगत रूप है । विद्या प्राप्त
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करने के लिये इच्छुक व्यक्ति विद्यार्थी है और शिक्षक भी
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अपने मूल रूप में विद्यार्थी ही है । विद्यार्थी को विद्या प्राप्त
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करने के लिये उपयोगी साधन उसे जन्मजात मिले हैं । वे हैं
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कर्मन्द्रियाँ, ज्ञानेन्द्रिया, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । ये
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साधन प्राथमिक हैं, मुख्य हैं और अनिवार्य हैं । स्मृति,
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धारणा, ग्रहणशीलता, समझ, कौशल आदि इनके गुण हैं ।
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इन मुख्य साधनों की सहायता के लिये उनके द्वारा उपयोग
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किये जाने के लिये जो सामग्री है, वह आवश्यक सामग्री
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है । प्राचीन काल में जब लेखन कला का आविष्कार नहीं
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हुआ था, तब तक पढ़ाई के लिये किसी भी प्रकार की
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सामग्री का प्रयोग नहीं करना पड़ता था । शिक्षक का
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बोलना और विद्यार्थी का सुनना ही पर्याप्त होता था । इससे
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भी अदूभुत बातों का उल्लेख मिलता है । पढाई के ईश्वरप्रदतत
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साधन जब सर्वाधिक सक्षम होते हैं, तब बिना कहे भी बातें
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सुनी और समझी जाती हैं ।
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दो उदाहरण देखें...
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१, चित्रं वटतरोमूँले वृद्धा शिष्याः गुररु्युवा ।
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गुरोइस्तु मौन॑ व्याख्यानं शिष्याइस्तु छिन्न संशया: ।।
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अर्थात् अहो, आश्चर्य है ! वटवृक्ष के नीचे वृद्ध शिष्य
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और युवा गुरु बैठे हैं । गुरु का मौन ही व्याख्यान है और
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शिष्यों के संशय दूर हो जाते हैं ।
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अर्थात् पढ़ने के लिये उपयोगी ईश्वरप्रदत्त साधनों की
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क्षमता कितनी अधिक है इसका यहाँ वर्णन किया गया है ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
यह वर्णन काल्पनिक नहीं है, सत्य है ।
यह वर्णन काल्पनिक नहीं है, सत्य है ।
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२. गर्भावस्था में तथा सद्योजात, बहुत छोटे बच्चे
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२. गर्भावस्था में तथा सद्योजात, बहुत छोटे बच्चे बड़ों के द्वारा अनकही बातें भी समझ जाते हैं, जिन्हें वे संस्कारों के रूप में ग्रहण करते हैं ।
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बड़ों के द्वारा अनकही बातें भी समझ जाते हैं, जिन्हें वे
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संस्कारों के रूप में ग्रहण करते हैं ।
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ये उदाहरण दृशते हैं कि पढ़ने के लिये ये साधन
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अनिवार्य हैं । इनके बिना अध्ययन सम्भव नहीं । हम इन
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साधनों की चर्चा यहाँ नहीं कर रहे हैं । इन साधनों द्वारा
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उपयोग में लिये जाने वाले साधन, आवश्यक साधन हैं ।
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लेखन का आविष्कार हुआ है तब से लेखन से
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सम्बन्धित सारी सामग्री आवश्यक बन गई है । शर्त केवल
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यह है कि पढ़ाई के मुख्य साधनों की शक्ति में अवरोध रूप
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न बने और उनका काम सुकर बनाये, ऐसी सामग्री
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आवश्यक मानी जानी चाहिये । ईश्वर प्रदत्त साधनों पर हम
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ये उदाहरण दृशते हैं कि पढ़ने के लिये ये साधन अनिवार्य हैं । इनके बिना अध्ययन सम्भव नहीं । हम इन साधनों की चर्चा यहाँ नहीं कर रहे हैं । इन साधनों द्वारा उपयोग में लिये जाने वाले साधन, आवश्यक साधन हैं ।
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अधिकाधिक निर्भर रह सर्के, उनकी क्षमता बढ़ाये, ऐसी
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लेखन का आविष्कार हुआ है तब से लेखन से सम्बन्धित सारी सामग्री आवश्यक बन गई है । शर्त केवल यह है कि पढ़ाई के मुख्य साधनों की शक्ति में अवरोध रूप न बने और उनका काम सुकर बनाये, ऐसी सामग्री आवश्यक मानी जानी चाहिये । ईश्वर प्रदत्त साधनों पर हम अधिकाधिक निर्भर रह सर्के, उनकी क्षमता बढ़ाये, ऐसी सामग्री उपयोगी और आवश्यक मानी जानी चाहिये । कौन सी सामग्री कब कितनी आवश्यक है यह निश्चित करना शिक्षक के विवेक का काम है, उसके सर्व सामान्य नियम नहीं बनाये जा सकते ।
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सामग्री उपयोगी और आवश्यक मानी जानी चाहिये । कौन
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===== 2. अनावश्यक सामग्री =====
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शैक्षिक दृष्टि से जिससे न लाभ होता न हानि होती है परन्तु आर्थिक दृष्टि से हानि होती है और जिसका निर्र्थक बोझ उठाना पड़ता है, वह अनावश्यक सामग्री है ।
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सी सामग्री कब कितनी आवश्यक है यह निश्चित करना
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लिखने के लिये स्लेट के स्थान पर कागज का प्रयोग करना अनावश्यक है । एक पेन्सिल पर्याप्त है तब दो तीन साथ में लाना अनावश्यक है, सस्ती सामग्री से काम होता है तब महँगी लाना अनावश्यक है । पेन्सिल से लिखा हुआ मिटाने के लिये जो रबड़ होता है वह सुगन्धित हो यह अनावश्यक है, विभिन्न आकृतियों की कम्पास पेटिका होना अनावश्यक है, आकर्षक परन्तु महँगे बस्ते अनावश्यक हैं । कौन सी सामग्री कब अनावश्यक है, इसका विवेक शिक्षक को करना चाहिये । विद्यार्थियों को प्रथम अनावश्यक, अतिरिक्त सामग्री रखने से परावृत्त करना चाहिये । सामग्री का संयमित उपयोग करना भी एक सदगुण है, मूल्य है । उसके बाद सामग्री कम करते जाना शैक्षिक विकास है, यह बात अभिभावकों, विद्यार्थियों और समाज को सिखानी चाहिये ।
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शिक्षक के विवेक का काम है, उसके सर्व सामान्य नियम
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===== 3. निरर्थक और अनर्थक सामग्री =====
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जो सामग्री शरीर, मन, बुद्धि आदि को हानि पहुँचाती है और शैक्षिक विकास को अवस्द्ध करती है, वह अनर्थक सामग्री है । गाइड बुक्स अनर्थक हैं क्योंकि वे पढ़ने के लिये आवश्यक बौद्धिक पुरुषार्थ करने से रोकती हैं ।
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नहीं बनाये जा सकते ।
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सी.डी., संगणक आदि अनर्थक होते हैं क्योंकि उनसे स्मरणशक्ति कम होती है, आँख-कान की शक्ति क्षीण होती है और ज्ञान का रक्षण करने के प्रति लापरवाह बनाते हैं । नसों-नाडियों को भी उनसे नुकसान होता है ।
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२, अनावश्यक सामग्री
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संगणक के उपयोग से लेखन कौशल कम होता है । कहानी की फिल्म देखने से कल्पनाशक्ति कम होती है, कल्पनाशक्ति कम होने से सृजनशीलता भी कम होती है ।
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शैक्षिक दृष्टि से जिससे न लाभ होता न हानि होती है
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अन्तर्जाल (इण्टरनेट) से सामग्री इकट्टी करने के अभ्यास से पुस्तक पढ़ने का आनन्द अदृश्य होता है, स्वाध्याय कम होता है, जानकारी को ही हम ज्ञान मानने लगते हैं ।
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परन्तु आर्थिक दृष्टि से हानि होती है और जिसका निर्र्थक
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संगणक, मोबाइल, अन्तर्जाल आदि अपने अन्य माध्यमों - खेल, चित्र, फिल्म आदि से हमारे मन को भटका देते हैं, अनेक प्रकार की उत्तेजनाओं से मन को अशान्त बना देते हैं । इसका परिणाम बुद्धि की शक्तियों का हास होने में ही होता है। पढ़ाई अत्यन्त सतही और अल्पजीवी हो जाती है ।
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बोझ उठाना पड़ता है, वह अनावश्यक सामग्री है ।
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लिखने के लिये स्लेट के स्थान पर कागज का प्रयोग
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करना अनावश्यक है । एक पेन्सिल पर्याप्त है तब दो तीन
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साथ में लाना अनावश्यक है, सस्ती सामग्री से काम होता है
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तब महँगी लाना अनावश्यक है । पेन्सिल से लिखा हुआ
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मिटाने के लिये जो रबड़ होता है वह सुगन्धित हो यह
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अनावश्यक है, विभिन्न आकृतियों की कम्पास पेटिका होना
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अनावश्यक है, आकर्षक परन्तु महँगे बस्ते अनावश्यक हैं ।
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कौन सी सामग्री कब अनावश्यक है, इसका विवेक शिक्षक
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को करना चाहिये । विद्यार्थियों को प्रथम अनावश्यक,
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अतिरिक्त सामग्री रखने से परावृत्त करना चाहिये । सामग्री
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का संयमित उपयोग करना भी एक Aa है, मूल्य है ।
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उसके बाद सामग्री कम करते जाना शैक्षिक विकास है,
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यह बात अभिभावकों, विद्यार्थियों और
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समाज को सिखानी चाहिये ।
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3. Prete और अनर्थक सामग्री
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जो सामग्री शरीर, मन, बुद्धि आदि को हानि पहुँचाती
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है और शैक्षिक विकास को अवस्द्ध करती है, वह अनर्थक
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सामग्री है । गाइड बुक्स अनर्थक हैं क्योंकि वे पढ़ने के
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लिये आवश्यक बौद्धिक पुरुषार्थ करने से रोकती हैं ।
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सी.डी., संगणक आदि अनर्थक होते हैं क्योंकि उनसे
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स्मरणशक्ति कम होती है, आँख-कान की शक्ति क्षीण होती
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है और ज्ञान का रक्षण करने के प्रति लापरवाह बनाते हैं ।
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नसों-नाडियों को भी उनसे नुकसान होता है ।
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संगणक के उपयोग से लेखन कौशल कम होता है ।
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कहानी की फिल्म देखने से कल्पनाशक्ति कम होती है,
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कल्पनाशक्ति कम होने से सृजनशीलता भी कम होती है ।
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अन्तर्जाल (इण्टरनेट) से सामग्री इकट्टी करने के
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अभ्यास से पुस्तक पढ़ने का आनन्द अदृश्य होता है,
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स्वाध्याय कम होता है, जानकारी को ही हम ज्ञान मानने
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संगणक, मोबाइल, अन्तर्जाल आदि अपने अन्य
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माध्यमों - खेल, चित्र, फिल्म आदि से हमारे मन को
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भटका देते हैं, अनेक प्रकार की उत्तेजनाओं से मन को
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अशान्त बना देते हैं । इसका परिणाम बुद्धि की शक्तियों का
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हास होने में ही होता है। पढ़ाई अत्यन्त सतही और
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अल्पजीवी हो जाती है ।
ये महान अनर्थ हैं ।
ये महान अनर्थ हैं ।
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ये तो शैक्षिक अनर्थ हैं । आर्थिक और पर्यावरणीय
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ये तो शैक्षिक अनर्थ हैं । आर्थिक और पर्यावरणीय अनर्थ कम गम्भीर नहीं हैं । इनके चलते स्वास्थ्य खराब होता है, प्रदूषण बढ़ता है, शिक्षा महँगी होती है । अनर्थक साधनों का आकर्षण अधिक है । यही बौद्धिक हास का प्रमाण है । बाजार और विज्ञापन को बुद्धि परास्त नहीं कर सकती, यही आज की वास्तविकता है । जो अनर्थकारी है उन्हीं को हम उपयोगी मानते हैं ।
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अनर्थ कम गम्भीर नहीं हैं । इनके चलते स्वास्थ्य खराब
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होता है, प्रदूषण बढ़ता है, शिक्षा महँगी होती है । अनर्थक
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साधनों का आकर्षण अधिक है । यही बौद्धिक हास का
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प्रमाण है । बाजार और विज्ञापन को बुद्धि परास्त नहीं कर
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सकती, यही आज की वास्तविकता है । जो अनर्थकारी है
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उन्हीं को हम उपयोगी मानते हैं ।
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साधनसामग्री से भी अधिक सामग्री को उपयोगी
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बताने वाली बुद्धि हमारी चिन्ता का विषय बननी चाहिये ।
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साधन-सामग्री के बारे में करणीय बातें
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हमें इस दिशा में दृढतापूर्वक प्रयास करने की
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आवश्यकता है । कुछ इस प्रकार से विचार किया जा
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साधनसामग्री से भी अधिक सामग्री को उपयोगी बताने वाली बुद्धि हमारी चिन्ता का विषय बननी चाहिये ।
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सकता है
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==== साधन-सामग्री के बारे में करणीय बातें ====
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हमें इस दिशा में दृढतापूर्वक प्रयास करने की आवश्यकता है । कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है
8. बहुत बड़े पैमाने पर अभिभावक प्रबोधन करने की
8. बहुत बड़े पैमाने पर अभिभावक प्रबोधन करने की