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==== साधन-सामग्री के बारे में करणीय बातें ====
==== साधन-सामग्री के बारे में करणीय बातें ====
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हमें इस दिशा में दृढतापूर्वक प्रयास करने की आवश्यकता है । कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है
+
हमें इस दिशा में दृढतापूर्वक प्रयास करने की आवश्यकता है । कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है...
−
−
8. बहुत बड़े पैमाने पर अभिभावक प्रबोधन करने की
−
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आवश्यकता है । लोक प्रबोधन की भी उतनी ही
−
−
आवश्यकता है। शिक्षकों ने, शिक्षाशाखियों ने
−
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अभिभावक सम्मेलनों, अखबारों में लेखों, टीवी
−
−
चैनलों पर वार्तालापों तथा ऐसे ही अन्य माध्यमों से
−
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ये तथ्य प्रस्तुत करने चाहिये कि :-
−
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शिक्षा साधनों से नहीं, साधना से होती है ।
−
−
पढने के साधन शरीर, मन, बुद्धि आदि हैं, इन्हें
−
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सक्षम बनाने चाहिये, कमजोर नहीं ।
−
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जिनके मन, बुद्धि आदि कमजोर होते हैं उन्हें अधिक
−
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साधनों की आवश्यकता होती है ।
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जिस प्रकार बिना पैर के जूते, बिना बाल के कंघी
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निरूपयोगी और हास्यास्पद् हैं, उसी प्रकार बिना
−
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बुद्धि के पुस्तक, कापी आदि निरुपयोगी हैं ।
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1 . बहुत बड़े पैमाने पर अभिभावक प्रबोधन करने की आवश्यकता है । लोक प्रबोधन की भी उतनी ही आवश्यकता है। शिक्षकों ने, शिक्षाशाखियों ने अभिभावक सम्मेलनों, अखबारों में लेखों, टीवी चैनलों पर वार्तालापों तथा ऐसे ही अन्य माध्यमों से ये तथ्य प्रस्तुत करने चाहिये कि :-
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* शिक्षा साधनों से नहीं, साधना से होती है ।
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* पढने के साधन शरीर, मन, बुद्धि आदि हैं, इन्हें सक्षम बनाने चाहिये, कमजोर नहीं ।
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* जिनके मन, बुद्धि आदि कमजोर होते हैं उन्हें अधिक साधनों की आवश्यकता होती है ।
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* जिस प्रकार बिना पैर के जूते, बिना बाल के कंघी निरूपयोगी और हास्यास्पद् हैं, उसी प्रकार बिना बुद्धि के पुस्तक, कापी आदि निरुपयोगी हैं ।
इस प्रकार के प्रबोधन की आज बहुत आवश्यकता है ।
इस प्रकार के प्रबोधन की आज बहुत आवश्यकता है ।
−
कक्षाकक्षों में कम से कम सामग्री से अध्ययन करना
+
2. कक्षाकक्षों में कम से कम सामग्री से अध्ययन करना सिखाना चाहिये । विद्यार्थियों को अपनी स्मरणशक्ति, ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति, कार्यकौशल बढ़ाने हेतु अवसर दिये जाने चाहिये, उनका अपनी शक्ति में विश्वास बढ़ाना चाहिये और शक्तियों का विकास करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये ।
−
सिखाना चाहिये । विद्यार्थियों को अपनी स्मरणशक्ति,
+
3. साधनसामग्री को लेकर आर्थिक चिन्तन विकसित करना चाहिये । अभिभावकों के साथ इस विषयमें बात करनी चाहिये । विद्यार्थियों में इस दृष्टि का विकास करना चाहिये ।
−
ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति, कार्यकौशल बढ़ाने हेतु
+
कुल मिलाकर साधन-सामग्री के उपयोग का विवेक ही सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है । शिक्षक के अनेक गुणों में यह भी एक महत्त्वपूर्ण गुण है ।
−
अवसर दिये जाने चाहिये, उनका अपनी शक्ति में
+
अनेकों लोगों को अपने महाविद्यालयीन दिनों का स्मरण होगा जब अनेक प्राध्यापक अपने विषय के नोट्स लिखवाते थे और विद्यार्थी लिखते थे । रट्टा मार कर परीक्षा में लिख देते थे और उत्तीर्ण हो जाते थे । अनेक प्राध्यापक ऐसे थे जो विद्यार्थियों को गाइड बुक्स में से प्रश्नों के उत्तर तैयार कर लेने का परामर्श देते थे ।
−
विश्वास बढ़ाना चाहिये और शक्तियों का विकास
+
माध्यमिक विद्यालयों में भी प्रश्नों के उत्तर लिखवाना सहज बात थी । अनेक चतुर अथवा आलसी विद्यार्थी पाठ्यपुस्तकों में ही प्रश्नों के उत्तरों पर निशानी कर लेते हैं ।
−
करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये ।
+
आज तो इतना भी कष्ट करने की आवश्यकता किसी को नहीं लगती है । नोटस तैयार कर, उनकी प्रतियाँ बनाकर उचित दाम लेकर वितरित कर देने से कार्य सम्पन्न हो जाता है।
−
साधनसामग्री को लेकर आर्थिक चिन्तन विकसित
+
भाषणों की सी.डी. बन जाती है, उसे मोबाइल में डाउनलोड कर दी जाती है और आते-जाते सुनकर याद कर लिया जाता है । ग्रन्थालय में जाने की, चिन्तन-मन्थन करने की, लिखने की झंझट ही नहीं है । कम्प्यूटर, इण्टरनेट, वोट्सएप, सी.डी., ई-बुक्स आदि ने अध्ययन को बहुत सुविधापूर्ण बना दिया है ।
−
करना चाहिये । अभिभावकों के साथ इस विषयमें
+
अध्यापकों का दूसरा बहुत आवश्यक और प्रिय साधन है पावर पोइण्ट प्रेजण्टेशन । व्याख्यान वक्ता और श्रोता दोनो के लिये बहुत सरल हो जाता है । वक्ता को मुद्दे याद रखने की आवश्यकता नहीं और श्रोताओं को लिखने की आवश्यकता नहीं, सीधी प्रिण्ट मिल जाती है ।
−
बात करनी चाहिये । विद्यार्थियों में इस दृष्टि का
+
वेबसाइट पर लिंक देने से भी विद्यार्थियों तक जानकारी पहुँचाई जा सकती है । फेसबुक, वोट्सएप, एसएमएस से भी विद्यार्थियों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है । स्काइप से कॉन्फरन्स कॉल द्वारा विद्यार्थियों को पढ़ाया जा सकता है । इतनी सुविधा है कि सब अपने-अपने घरों में एक दूसरे से दूर रहकर भी पढ़ाई कर सकते हैं ।
−
विकास करना चाहिये ।
+
ई-लर्निंग एक ऐसी सुविधा है, जिससे अध्यापक और विद्यार्थी एकदूसरे से दूर रहकर भी पढ़ाई करवा सकते हैं, कर सकते हैं । प्राथमिक विद्यालयों के सारे विषय सी.डी. और कम्प्यूटर का उपयोग कर पढ़े जाते हैं, शिक्षक को केवल मोनिटरिंग करना है ।
−
कुल मिलाकर साधन-सामग्री के उपयोग का विवेक
+
संगणक के आविष्कार के बाद की यह सारी सामग्री है, जो शिक्षक की बहुत सहायता करती है । कभी-कभी यह इतनी स्वयंपूर्ण लगती है कि कक्षाकक्ष में शिक्षक की प्रासंगिकता पर भी प्रश्नचचिह्न लगने लगे हैं ।
−
ही सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है । शिक्षक के अनेक गुणों में
+
संगणक के आविष्कार से पूर्व भी अध्यापक की सहायता के लिये पर्याप्त सामग्री थी । पुस्तकालय की पुस्तकें, पाठ्यपुस्तकें, गणित के विभिन्न प्रकार के सवालों का संग्रह, भूगोल हेतु मानचित्र, एटलास, पृथ्वी का गोल, खगोल हेतु विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों आदि के मोडेल, इतिहास हेतु अनेक चित्र, चित्रावली, चरित्र-पुस्तिकायें, प्रदर्शनी, आलेख, विज्ञान हेतु सज्ज प्रयोगशाला, संगीत के साधन, उद्योग सिखाने के साधन आदि अनेक प्रकार से सज्जता होती थी । कहीं-कहीं तो भाषा की प्रयोगशाला भी होती थी, आज भी होती है ।
−
यह भी एक महत्त्वपूर्ण गुण है ।
+
अर्थात् विभिन्न प्रकार की साधन-सामग्री से सज्ज होना शिक्षक के लिये आवश्यक है ।
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अनेकों लोगों को अपने महाविद्यालयीन दिनों का
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विद्यार्थी के लिये जहाँ कम से कम सामग्री चाहिये वहाँ शिक्षक के लिये पर्याप्त सामग्री होना सहज है ।
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−
स्मरण होगा जब अनेक प्राध्यापक अपने विषय के नोट्स
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शूट
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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लिखवाते थे और विद्यार्थी लिखते थे । रट्टा मार कर परीक्षा
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में लिख देते थे और sitet at जाते थे । अनेक प्राध्यापक
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ऐसे थे जो विद्यार्थियों को गाइड बुक्स में से प्रश्नों के उत्तर
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तैयार कर लेने का परामर्श देते थे ।
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माध्यमिक विद्यालयों में भी प्रश्नों के उत्तर लिखवाना
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सहज बात थी । अनेक चतुर अथवा आलसी विद्यार्थी
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पाठ्यपुस्तकों में ही प्रश्नों के उत्तरों पर निशानी कर लेते हैं ।
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आज तो इतना भी कष्ट करने की आवश्यकता किसी
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को नहीं लगती है । नोटस तैयार कर, उनकी प्रतियाँ बनाकर
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उचित दाम लेकर वितरित कर देने से कार्य सम्पन्न हो जाता
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भाषणों की सी.डी. बन जाती है, उसे मोबाइल में
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डाउनलोड कर दी जाती है और आते-जाते सुनकर याद कर
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लिया जाता है । ग्रन्थालय में जाने की, चिन्तन-मन्थन करने
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की, लिखने की झंझट ही नहीं है । कम्प्यूटर, इण्टरनेट,
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वोट्सएप, सी.डी., ई-बुक्स आदि ने अध्ययन को बहुत
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सुविधापूर्ण बना दिया है ।
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अध्यापकों का दूसरा बहुत आवश्यक और प्रिय
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साधन है पावर पोइण्ट प्रेजण्टेशन । व्याख्यान वक्ता और
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श्रोता दोनो के लिये बहुत सरल हो जाता है । वक्ता को मुद्दे
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याद रखने की आवश्यकता नहीं और श्रोताओं को लिखने
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की आवश्यकता नहीं, सीधी प्रिण्ट मिल जाती है ।
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वेबसाइट पर लिंक देने से भी विद्यार्थियों तक जानकारी
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पहुँचाई जा सकती है । फेसबुक, वोट्सएप, एसएमएस से भी
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विद्यार्थियों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है ।
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स्काइप से कॉन्फरन्स कॉल द्वारा विद्यार्थियों को पढ़ाया जा
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सकता है । इतनी सुविधा है कि सब अपने-अपने घरों में
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एक दूसरे से दूर रहकर भी पढ़ाई कर सकते हैं ।
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ई-लर्निंग एक ऐसी सुविधा है, जिससे अध्यापक
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और विद्यार्थी एकदूसरे से दूर रहकर भी पढ़ाई करवा सकते
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हैं, कर सकते हैं । प्राथमिक विद्यालयों के सारे विषय
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सी.डी. और कम्प्यूटर का उपयोग कर पढ़े जाते हैं, शिक्षक
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को केवल मोनिटरिंग करना है ।
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संगणक के आविष्कार के बाद की यह सारी सामग्री
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है, जो शिक्षक की बहुत सहायता करती है । कभी-कभी
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
−
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यह इतनी स्वयंपूर्ण लगती है कि कक्षाकक्ष में शिक्षक की
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प्रासंगिकता पर भी प्रश्नचचिह्न लगने लगे हैं ।
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संगणक के आविष्कार से पूर्व भी अध्यापक की
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सहायता के लिये पर्याप्त सामग्री थी । पुस्तकालय की
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पुस्तकें, पाठ्यपुस्तकें, गणित के विभिन्न प्रकार के सवालों
−
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का संग्रह, भूगोल हेतु मानचित्र, एटलास, पृथ्वी का गोल,
−
−
खगोल हेतु विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों आदि के मोडेल, इतिहास
−
−
हेतु अनेक चित्र, चित्रावली, चरित्र-पुस्तिकायें, प्रदर्शनी,
−
−
आलेख, विज्ञान हेतु सज्ज प्रयोगशाला, संगीत के साधन,
−
−
उद्योग सिखाने के साधन आदि अनेक प्रकार से सज्जता
−
−
होती थी । कहीं-कहीं तो भाषा की प्रयोगशाला भी होती
−
−
थी, आज भी होती है ।
−
−
अर्थात् विभिन्न प्रकार की साधन-सामग्री से सज्ज
−
−
होना शिक्षक के लिये आवश्यक है ।
−
−
विद्यार्थी के लिये जहाँ कम से कम सामग्री चाहिये
−
−
वहाँ शिक्षक के लिये पर्याप्त सामग्री होना सहज है ।
मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं
मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं
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५. आवश्यक सामग्री का निर्माण कर लेना
५. आवश्यक सामग्री का निर्माण कर लेना
−
१, शिक्षक के पास पर्याप्त सामग्री होना
+
===== १, शिक्षक के पास पर्याप्त सामग्री होना =====
−
+
विभिन्न विषयों का अध्यापन प्रभावी ढंग से करने के लिये विद्यालय में विभिन्न प्रकार की सामग्री चाहिये । परन्तु अनेक विद्यालयों में ऐसी सामग्री होती ही नहीं । पुस्तकालय, प्रयोगशाला, क्रीडांगण आदि के लिये पैसे खर्च नहीं किये जाते हैं । न तो सामग्री होती है, न उसे रखने की व्यवस्था । पढ़ाई केवल कक्षाकक्षों में बैठकर बोलकर, सुनकर, पढ़कर, लिखकर ही होती है। यहाँ तक कि संगीत भी बिना हास्मोनियम - तबला के सिखाया जाता है, भूगोल बिना नक्शे के सिखाई जाती है ।
−
विभिन्न विषयों का अध्यापन प्रभावी ढंग से करने के
−
−
लिये विद्यालय में विभिन्न प्रकार की सामग्री चाहिये । परन्तु
−
−
अनेक विद्यालयों में ऐसी सामग्री होती ही नहीं । पुस्तकालय,
−
−
प्रयोगशाला, क्रीडांगण आदि के लिये पैसे खर्च नहीं किये
−
−
जाते हैं । न तो सामग्री होती है, न उसे रखने की व्यवस्था ।
−
−
पढ़ाई केवल कक्षाकक्षों में बैठकर बोलकर, सुनकर, पढ़कर,
−
−
लिखकर ही होती है। यहाँ तक कि संगीत भी बिना
−
−
हास्मोनियम - तबला के सिखाया जाता है, भूगोल बिना
−
−
नक्शे के सिखाई जाती है ।
−
−
यदि सामग्री होती भी है तो वह उत्तम गुणवत्ता की
−
−
ak vate नहीं होती । उदाहरण के लिये हार्मोनियम बेसूरा
−
−
2x8
−
−
और तबला उतरा हुआ रहता है।
−
−
पुस्तकें सबके हाथ में जा सकें इतनी नहीं होतीं । नक्शे
−
−
आदि भी पर्याप्त नहीं होते । यही बात शब्दकोश, विज्ञान के
−
−
प्रयोग के साधनों की है ।
−
−
२. शिक्षकों द्वारा सामग्री का समुचित उपयोग
−
−
अनेक बार ऐसा होता है कि विद्यालय में अनेक
−
−
प्रकार की साधन सामग्री खरीदी जाती है, परन्तु शिक्षक उसे
−
−
देखते तक नहीं । पुस्तकों के गट्ढे बिना खोले, प्रयोग के
−
−
साधनों के बक्से बिना खोले रहते हैं । शब्दकोश, नक्शे,
−
−
पुस्तकें नये नये ओर कोरे ही रहते हैं। कोई भी बात
−
−
शिक्षकों को इनका उपयोग करने के लिये प्रेरित नहीं कर
−
−
सकती ।
−
−
अनेक शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें साधनों का प्रयोग करना
−
−
आता ही नहीं । शब्दकोश से शब्द ढूँढना, पुस्तकों से
−
−
सन्दर्भ ढूँढना, पृथ्वी के गोले पर देश ढूँढना उसके लिये
−
−
अजनबी बात होती है । ऐसे विद्यालयों में सामग्री होना न
−
−
होना एक ही बात है ।
−
−
सामग्री का उपयोग कैसे करना, यह विद्यार्थियों को
−
−
सिखाना भी महत्त्वपूर्ण है । जब स्वयं को ही नहीं आता तो
−
−
विद्यार्थियों को कैसे सिखायेंगे ? इसका कारण यह है कि ये
−
−
शिक्षक जब विद्यार्थी होते थे, तब उन्होंने कभी
−
−
साधनसामग्री को न देखा न छुआ था |
−
−
३. केवल सामग्री पर निर्भर नहीं रहा जाता
−
−
सामग्री कितनी भी अच्छी हो तो भी वह निर्जीव
−
−
होती है । शिक्षा जीवमान व्यक्तियों के मध्य होने वाली
−
−
जीवमान प्रक्रिया है । इसलिये उसका उपयोग जिन्दा लोगों
−
−
द्वारा होता है । किसी भी विषय का ज्ञान होने के बाद उस
−
−
विषय की सामग्री का प्रयोग होना उचित है ।
−
−
४. सामग्री से शिक्षक का महत्त्व अधिक होना
−
−
सामग्री का समुचित उपयोग वही शिक्षक कर सकता
−
−
है जब शिक्षक विषय को अच्छी तरह जानता है, उसे
−
−
विषय में, अध्यापन में और विद्यार्थियों में रुचि होती है ।
−
−
शिक्षा सामग्री से नहीं होती है, शिक्षक से होती है । विद्वान,
−
−
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−
−
जानकार, कुशल, सहदयी, कल्पनाशील
−
−
शिक्षक ही सामग्री का समुचित उपयोग कर सकता है।
−
−
इसलिये अच्छा शिक्षक विद्यालय की प्रथम आवश्यकता
−
−
है । अतः विद्यालयों को चाहिये कि प्रथम शिक्षकों की ओर
−
−
ध्यान दें बाद में सामग्री की ओर । शिक्षक अच्छा हो और
−
−
सामग्री पर्याप्त हो तो शिक्षा अच्छी होती है ।
−
−
५. आवश्यक सामग्री का निर्माण कर लेना
−
−
सामग्री आवश्यक है, वह अनेक कठिन बातों को
−
−
सरल बनाती है, परन्तु उसके प्रयोग में कुशलता और
−
−
मौलिकता होने की आवश्यकता है । यान्त्रिक या भौतिक,
−
−
गाणितिक विषयों के लिये कदाचित बनी बनाई सामग्री चल
−
−
जाती है परन्तु तात्त्विक, संकल्पनात्मक विषयों के लिये
−
−
मौलिकता की आवश्यकता होती है । भौतिक बातों के लिये
−
−
भी मौलिकता उपकारक होती है ।
−
−
दो उदाहरण देखने लायक हैं
−
−
(१) ज्योर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक महान नीग्रो
−
−
कृषितज्ञ एक ऐसे संस्थान में नियुक्त हुए जिसकी
−
−
आर्थिक स्थिति अत्यन्त विकट थी । विज्ञान की कोई
−
−
प्रयोगशाला ही नहीं थी । बिना प्रयोग किये कोई
−
−
अनुसन्धान कैसे हो सकता है ? डॉ. कार्वरने पहले
−
−
ही दिन अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर नगर भ्रमण
−
−
किया और लोगोंने कूडे में फेंके हुए डिब्बे, शीशियाँ
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
आदि इकट्टे कर, उन्हें साफ कर प्रयोगशाला के सारे
−
−
साधन बनाये और प्रयोगशाला सज्ज की । आज भी
−
−
वह प्रयोगशाला “कार्वर्स म्यूजियम' के रूप में हम
−
−
देख सकते हैं ।
−
−
मुनि उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु को बता रहे थे कि
−
−
ब्रह्म है और इस सृष्टि में सर्वत्र है । श्वेतकेतुने कहा कि
−
−
कैसे मानें, ब्रह्म तो दिखाई नहीं देता । पिताने उसे पानी
−
−
से भरा हुआ लोटा और नमक लाने को कहा । श्वेतकेतु
−
−
दोनों वस्तुयें लेकर आया, पिताने उसे नमक को पानी
−
−
में डालने के लिये और पानी को हिलाने के लिये
−
−
कहा । पुत्रने वैसा ही किया । पिताने पूछा कि नमक
−
−
कहाँ है । पुत्रने पानी में है ऐसा कहा । पिता ने कहा
−
−
कि कैसे पता चलता है, जरा चख कर देखो । पुत्रने
−
−
कहा कि नमक पानी में है यद्यपि वह दिखाई नहीं
−
−
देता । पिताने पुत्र को पानी को ऊपर से, मध्य से और
−
−
नीचे से चखने को कहा । श्वेतकेतु ने चखकर कहा कि
−
−
नमक पानी में है और सर्वत्र है । पिता ने कहा कि उसी
−
−
प्रकार से ब्रह्म भी सृष्टि में है और सर्वत्र है ।
−
−
यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही
−
−
तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक,
−
−
विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई
−
−
जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही
−
−
अधिक महत्त्वपूर्ण होता है ।
−
−
(२
−
−
enero”
−
−
गृहकार्य
−
−
छात्रों को गृहकार्य क्यों देना चाहिये ?
−
−
गृहकार्य का अर्थ क्या होता है ?
−
−
गृहकार्य कितना देना चाहिये ?
−
−
गृहकार्य कितने प्रकार का हो सकता है ?
−
−
गृहकार्य के लाभालाभ कौनसे हैं ?
−
−
गुृहकार्य की जांच किसने करनी चाहिये ?
−
−
गृहकार्य की जांच कैसे करनी चाहिये ?
−
−
गृहकार्य की जांच करने के लिये कितना समय
−
−
लगाना चाहिये ?
−
−
a © MM LF Kw BD ०-७
−
−
9. गृहकार्य के सम्बन्ध में अभिभावक की भूमिका
−
−
क्या होती है ? कैसी होनी चाहिये ?
−
−
१०. गृहकार्य के सम्बन्ध में छात्र की वृत्ति, प्रवृत्ति
−
−
कैसी होती है ? कैसी होनी चाहिये ?
−
−
प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर
−
−
गृहकार्य विषयक यह प्रश्नावली भुसावल (महाराष्ट्र)
−
−
के महाविद्यालय के अरुण महाजन ने ४९ शिक्षकों,
−
−
अभिभावकों एवं प्राध्यापकों से भरवाकर भेजी है ।
−
−
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−
−
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
−
−
१, विद्यालय में पढ़ाये हुए पाठ को दूढ करने हेतु
−
−
गृहकार्य की आवश्यकता होती है, ऐसा सबका मत है ।
−
−
२. गृहकार्य की जाँच करना विषय शिक्षक एवं अभिभावकों
−
−
की जिम्मेदारी है, ऐसा सबने माना है । ३. गृहकार्य कितना
−
−
और किस प्रकार का हो ? इस प्रश्न के उत्तर में सबने
−
−
लिखा है कि विद्यार्थी कर सके उतना एवं विविध प्रकार का
−
−
होना चाहिए । गृहकार्य की विविधता के सम्बन्ध में किसी
−
−
ने भी स्पष्टता नहीं की । शिक्षकों द्वारा गृहकार्य देने का
−
−
प्रकार जैसे : पाठ ३ के प्रश्न २, ५ व ९ करना । ऐसा ही
−
−
रहता है । इस यान्त्रिकता के कारण विविधता का लोप हो
−
−
जाता है । शिक्षक में कल्पनाशीलता के अभाव के कारण
−
−
रोचकता नहीं आ पाती । विविध प्रकार के गृहकार्य देने के
−
−
लाभालाभ क्या होते हैं जैसे प्रश्न अनुत्तरित रहे । मिला हुआ
−
−
गृहकार्य कैसे भी पूरा करने की छात्रों की वृत्ति होती है,
−
−
जबकि अभिभावक चाहते हैं कि छात्र उत्साह व जिज्ञासा
−
−
से गृहकार्य पूर्ण करे । अनेक बार अत्यधिक दिया गया
−
−
गृहकार्य सहानुभूति पूर्वक अभिभावक स्वयं ही पूरा कर देते
−
−
हैं । गृहकार्य पूरा नहीं किया तो सजा मिलेगी, इसलिए उसे
−
−
मात्र पूरा करने का उद्देश्य छात्रों का रहता है ।
−
−
अभिमत :
−
−
शिक्षक के अध्यापन का उत्तरार्ध छात्रों द्वारा किया
−
−
हुआ गृहकार्य है, ऐसा भी कह सकते हैं । विद्यालय में
−
−
आज जो पढ़ाया है उसका पुनरावर्तन, स्वअध्ययन करने के
−
−
लिए गृहकार्य दिया जाता है । गृहकार्य में विविधता हो,
−
−
रुचि जाग्रत हो, कुछ अनुभव प्राप्त हो आदि उद्देश्यों का
−
−
समावेश होना चाहिए । कंठस्थीकरण हेतु शिक्षा के मूलभूत
−
−
सूत्र, स्पेलिंग, पहाड़े, श्लोक-सुभाषित, स्तोत्रादि अनिवार्य
−
−
रूप से नित्य करने का गृहपाठ होना चाहिए । इस गृहकार्य
−
−
को घर पर अभिभावकों को करवाना चाहिए ।
−
−
विमर्श
−
−
गृहकार्य कैसा हो
−
−
विद्यालय में गणित विषय के अन्तर्गत मापन करना
−
−
सिखाया है तो घर पर गृहपाठ के रूप में घर के टेबल-कुर्सी
−
−
की लम्बाई-चौड़ाई नापना, खिड़कियों व दरवाजों को
−
−
श्५१
−
−
नापना, साड़ी-धोती, चहदर-नेपकिन
−
−
आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना । इसी प्रकार घर में उपलब्ध
−
−
भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना ।
−
−
बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन
−
की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के
+
यदि सामग्री होती भी है तो वह उत्तम गुणवत्ता की और पर्याप्त नहीं होती । उदाहरण के लिये हार्मोनियम बेसूरा और तबला उतरा हुआ रहता है।
−
सवाल बनाना । घर में किराणा के समान की सूची वजन
+
पुस्तकें सबके हाथ में जा सकें इतनी नहीं होतीं । नक्शे आदि भी पर्याप्त नहीं होते । यही बात शब्दकोश, विज्ञान के प्रयोग के साधनों की है ।
−
सहित लिखना । दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की
+
==== २. शिक्षकों द्वारा सामग्री का समुचित उपयोग ====
+
अनेक बार ऐसा होता है कि विद्यालय में अनेक प्रकार की साधन सामग्री खरीदी जाती है, परन्तु शिक्षक उसे देखते तक नहीं । पुस्तकों के गट्ढे बिना खोले, प्रयोग के साधनों के बक्से बिना खोले रहते हैं । शब्दकोश, नक्शे, पुस्तकें नये नये ओर कोरे ही रहते हैं। कोई भी बात शिक्षकों को इनका उपयोग करने के लिये प्रेरित नहीं कर सकती ।
−
जाँच करना । घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का
+
अनेक शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें साधनों का प्रयोग करना आता ही नहीं । शब्दकोश से शब्द ढूँढना, पुस्तकों से सन्दर्भ ढूँढना, पृथ्वी के गोले पर देश ढूँढना उसके लिये अजनबी बात होती है । ऐसे विद्यालयों में सामग्री होना न होना एक ही बात है ।
−
हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना । अपने घर का
+
सामग्री का उपयोग कैसे करना, यह विद्यार्थियों को सिखाना भी महत्त्वपूर्ण है । जब स्वयं को ही नहीं आता तो विद्यार्थियों को कैसे सिखायेंगे ? इसका कारण यह है कि ये शिक्षक जब विद्यार्थी होते थे, तब उन्होंने कभी साधनसामग्री को न देखा न छुआ था |
−
मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित
+
==== ३. केवल सामग्री पर निर्भर नहीं रहा जाता ====
+
सामग्री कितनी भी अच्छी हो तो भी वह निर्जीव होती है । शिक्षा जीवमान व्यक्तियों के मध्य होने वाली जीवमान प्रक्रिया है । इसलिये उसका उपयोग जिन्दा लोगों द्वारा होता है । किसी भी विषय का ज्ञान होने के बाद उस विषय की सामग्री का प्रयोग होना उचित है ।
−
करना । अपने गाँव के नक्शे में महत्त्वपूर्ण स्थान यथा -
+
==== ४. सामग्री से शिक्षक का महत्त्व अधिक होना ====
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सामग्री का समुचित उपयोग वही शिक्षक कर सकता है जब शिक्षक विषय को अच्छी तरह जानता है, उसे विषय में, अध्यापन में और विद्यार्थियों में रुचि होती है । शिक्षा सामग्री से नहीं होती है, शिक्षक से होती है । विद्वान, जानकार, कुशल, सहदयी, कल्पनाशील शिक्षक ही सामग्री का समुचित उपयोग कर सकता है। इसलिये अच्छा शिक्षक विद्यालय की प्रथम आवश्यकता है । अतः विद्यालयों को चाहिये कि प्रथम शिक्षकों की ओर ध्यान दें बाद में सामग्री की ओर । शिक्षक अच्छा हो और सामग्री पर्याप्त हो तो शिक्षा अच्छी होती है ।
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मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना । गाँव
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==== ५. आवश्यक सामग्री का निर्माण कर लेना ====
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सामग्री आवश्यक है, वह अनेक कठिन बातों को सरल बनाती है, परन्तु उसके प्रयोग में कुशलता और मौलिकता होने की आवश्यकता है । यान्त्रिक या भौतिक, गाणितिक विषयों के लिये कदाचित बनी बनाई सामग्री चल जाती है परन्तु तात्त्विक, संकल्पनात्मक विषयों के लिये मौलिकता की आवश्यकता होती है । भौतिक बातों के लिये भी मौलिकता उपकारक होती है ।
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में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के
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दो उदाहरण देखने लायक हैं....
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गृहकार्य दिये जा सकते हैं । ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र
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(१) ज्योर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक महान नीग्रो कृषितज्ञ एक ऐसे संस्थान में नियुक्त हुए जिसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त विकट थी । विज्ञान की कोई प्रयोगशाला ही नहीं थी । बिना प्रयोग किये कोई अनुसन्धान कैसे हो सकता है ? डॉ. कार्वरने पहले ही दिन अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर नगर भ्रमण किया और लोगोंने कूडे में फेंके हुए डिब्बे, शीशियाँ आदि इकट्टे कर, उन्हें साफ कर प्रयोगशाला के सारे साधन बनाये और प्रयोगशाला सज्ज की । आज भी वह प्रयोगशाला “कार्वर्स म्यूजियम' के रूप में हम देख सकते हैं ।
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उत्साह से करेंगे और सीखेंगे । घर एवं शाला दोनों शिक्षा
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(२) मुनि उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु को बता रहे थे कि ब्रह्म है और इस सृष्टि में सर्वत्र है । श्वेतकेतुने कहा कि कैसे मानें, ब्रह्म तो दिखाई नहीं देता । पिताने उसे पानी से भरा हुआ लोटा और नमक लाने को कहा । श्वेतकेतु दोनों वस्तुयें लेकर आया, पिताने उसे नमक को पानी में डालने के लिये और पानी को हिलाने के लिये कहा । पुत्रने वैसा ही किया । पिताने पूछा कि नमक कहाँ है । पुत्रने पानी में है ऐसा कहा । पिता ने कहा कि कैसे पता चलता है, जरा चख कर देखो । पुत्रने कहा कि नमक पानी में है यद्यपि वह दिखाई नहीं देता । पिताने पुत्र को पानी को ऊपर से, मध्य से और नीचे से चखने को कहा । श्वेतकेतु ने चखकर कहा कि नमक पानी में है और सर्वत्र है । पिता ने कहा कि उसी प्रकार से ब्रह्म भी सृष्टि में है और सर्वत्र है ।
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के केन्द्र हैं । 'विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो
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यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक, विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही अधिक महत्त्वपूर्ण होता है ।
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घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है ।' विधिवत सही पद्धति
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=== गृहकार्य ===
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# '''छात्रों को गृहकार्य क्यों देना चाहिये ?'''
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# '''गृहकार्य का अर्थ क्या होता है ?'''
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# '''गृहकार्य कितना देना चाहिये ?'''
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# '''गृहकार्य कितने प्रकार का हो सकता है ?'''
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# '''गृहकार्य के लाभालाभ कौनसे हैं ?'''
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# '''गुृहकार्य की जांच किसने करनी चाहिये ?'''
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# '''गृहकार्य की जांच कैसे करनी चाहिये ?'''
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# '''गृहकार्य की जांच करने के लिये कितना समय लगाना चाहिये ?'''
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# '''गृहकार्य के सम्बन्ध में अभिभावक की भूमिका क्या होती है ? कैसी होनी चाहिये ?'''
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# '''गृहकार्य के सम्बन्ध में छात्र की वृत्ति, प्रवृत्ति कैसी होती है ? कैसी होनी चाहिये ?'''
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से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और
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==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
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गृहकार्य विषयक यह प्रश्नावली भुसावल (महाराष्ट्र) के महाविद्यालय के अरुण महाजन ने ४९ शिक्षकों, अभिभावकों एवं प्राध्यापकों से भरवाकर भेजी है ।
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# विद्यालय में पढ़ाये हुए पाठ को दूढ करने हेतु गृहकार्य की आवश्यकता होती है, ऐसा सबका मत है ।
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# गृहकार्य की जाँच करना विषय शिक्षक एवं अभिभावकों की जिम्मेदारी है, ऐसा सबने माना है ।
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# गृहकार्य कितना और किस प्रकार का हो ? इस प्रश्न के उत्तर में सबने लिखा है कि विद्यार्थी कर सके उतना एवं विविध प्रकार का होना चाहिए । गृहकार्य की विविधता के सम्बन्ध में किसी ने भी स्पष्टता नहीं की । शिक्षकों द्वारा गृहकार्य देने का प्रकार जैसे : पाठ ३ के प्रश्न २, ५ व ९ करना । ऐसा ही रहता है । इस यान्त्रिकता के कारण विविधता का लोप हो जाता है । शिक्षक में कल्पनाशीलता के अभाव के कारण रोचकता नहीं आ पाती । विविध प्रकार के गृहकार्य देने के लाभालाभ क्या होते हैं जैसे प्रश्न अनुत्तरित रहे । मिला हुआ गृहकार्य कैसे भी पूरा करने की छात्रों की वृत्ति होती है, जबकि अभिभावक चाहते हैं कि छात्र उत्साह व जिज्ञासा से गृहकार्य पूर्ण करे । अनेक बार अत्यधिक दिया गया गृहकार्य सहानुभूति पूर्वक अभिभावक स्वयं ही पूरा कर देते हैं । गृहकार्य पूरा नहीं किया तो सजा मिलेगी, इसलिए उसे मात्र पूरा करने का उद्देश्य छात्रों का रहता है ।
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सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर
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==== अभिमत : ====
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शिक्षक के अध्यापन का उत्तरार्ध छात्रों द्वारा किया हुआ गृहकार्य है, ऐसा भी कह सकते हैं । विद्यालय में आज जो पढ़ाया है उसका पुनरावर्तन, स्वअध्ययन करने के लिए गृहकार्य दिया जाता है । गृहकार्य में विविधता हो, रुचि जाग्रत हो, कुछ अनुभव प्राप्त हो आदि उद्देश्यों का समावेश होना चाहिए । कंठस्थीकरण हेतु शिक्षा के मूलभूत सूत्र, स्पेलिंग, पहाड़े, श्लोक-सुभाषित, स्तोत्रादि अनिवार्य रूप से नित्य करने का गृहपाठ होना चाहिए । इस गृहकार्य को घर पर अभिभावकों को करवाना चाहिए ।
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का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के
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==== विमर्श ====
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नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें
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==== गृहकार्य कैसा हो ====
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विद्यालय में गणित विषय के अन्तर्गत मापन करना सिखाया है तो घर पर गृहपाठ के रूप में घर के टेबल-कुर्सी की लम्बाई-चौड़ाई नापना, खिड़कियों व दरवाजों को नापना, साड़ी-धोती, चहदर-नेपकिन
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लागू करना ।
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आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना । इसी प्रकार घर में उपलब्ध भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना । बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के सवाल बनाना । घर में किराणा के समान की सूची वजन सहित लिखना । दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की जाँच करना । घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना । अपने घर का मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित करना । अपने गाँव के नक्शे में महत्त्वपूर्ण स्थान यथा - मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना । गाँव में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के गृहकार्य दिये जा सकते हैं । ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र उत्साह से करेंगे और सीखेंगे । घर एवं शाला दोनों शिक्षा के केन्द्र हैं । 'विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है ।' विधिवत सही पद्धति से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें लागू करना ।
इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की
इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की