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| यह प्रश्नावली छत्तीसगढ के प्रधानाचार्य श्री हंसा रागीजी के द्वारा भरकर भेजी है। उनके उत्तरों का आशय | | यह प्रश्नावली छत्तीसगढ के प्रधानाचार्य श्री हंसा रागीजी के द्वारा भरकर भेजी है। उनके उत्तरों का आशय |
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| + | की, उन पर कवर चढ़ाया और पूरा संच विद्यालय में जमा करवा दिया । अगले वर्ष नई पुस्तकें खरीदकर उन्हें घर पर ही अध्ययन के लिए रखा । और विद्यालय में पूर्व छात्रों द्वारा जमा की हुई पुस्तकें उपयोग में ली। इस उपक्रम से पूरे विद्यालय के सभी बालकों के बस्तों में से पुस्तकों का बोझ दूर हो गया । |
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− | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
| + | ==== विमर्श ==== |
| + | लम्बे अरसे से बस्ते के बोज की बहुत चर्चा हो रही है । उच्च पदस्थ अधिकारी, शिक्षाशास्त्री, अभिभावक बस्ते के बोझ से चिन्तित हैं । डॉक्टर और मनोविज्ञानी भी चिन्ता कर रहे हैं । |
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− | इस प्रकार है :-
| + | इधर बस्ता भारी से और भारी होता जा रहा है । विद्यार्थी परेशान हैं, अभिभावक त्रस्त हैं और व्यापारी खुश हैं। परेशानी भले ही बढ़े, बस्ता हल्का होने का नाम ही नहीं लेता । |
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− | १, बस्ते में क्या-क्या होना चाहिए ?
| + | विद्यालयीन के विद्यार्थियों की ही कहानी है। प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में ही बस्ते के बोझ की समस्या है । जैसे ही विद्यार्थी महाविद्यालय में आते हैं, उन्हें बस्ते की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती । प्रगत अध्ययन करने वाले अनेक विद्यार्थी छात्रावास में रहते हैं । उन्हें बस्ता उठाना नहीं पड़ता । अधिकांश विद्यार्थी ऐसे हैं जो कम से कम पुस्तकें और लेखन सामग्री लेकर महाविद्यालय में जाते हैं । हाँ, इधर टेबलेट या लेपटॉप ले जाने लगे हैं । |
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− | इसके उत्तर में कॉपी, कम्पास, किताबें और साथ में
| + | प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थी तो अपना बस्ता उठा भी नहीं सकते, ऐसा भारी होता है । |
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− | पानी की बोटल की अनिवार्यता सबने बताई ।
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− | २. बस्ते में अनावश्यक सामग्री के उत्तर में चॉकलेट
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− | व खिलौने बताये । निरीक्षण में कुछ बालकों के बस्ते में
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− | रिमोट, मोबाइल भी मिल जाते हैं । एक बार कक्षा तीन के
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− | छात्रों के बस्ते देखे गये, उसमें काम की १५ वस्तुएँ, काम
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− | की वस्तुएँ जो भूल गये १०, और जो किसी काम की नहीं
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− | थी, ऐसी ४० वस्तुएँ थीं । इनके अतिरिक्त वस्तुओं में गत
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− | वर्ष की कॉपी-किताबें कहानियों की पुस्तकें, शंख-शीप,
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− | कंचे, भँवरे, १०-१५ पैन तथा प्लास्टिक की थैलियाँ भी
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− | of | cent ar निरीक्षण करने से ध्यान में आता है कि वे
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− | व्यर्थ में ही फालतू वस्तुओं का बोझ लादकर लाते हैं ।
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− | और काम की वस्तुओं को भूलकर आते हैं । आजकल
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− | हाईस्कूल के बड़े छात्र के aed में चाकू जैसी अनर्थकारी
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− | वस्तुएँ दिखाई दे जाती हैं ।
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− | ३. बस्ते में इन सभी वस्तुओं के कारण बोझ बढ़ना
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− | तो स्वाभाविक है । बोझ बढ़ने का दूसरा कारण यह बताया
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− | जाता है कि प्रतिदिन सभी विषयों की कॉपी-किताबें ले
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− | जानी पड़ती हैं, क्योंकि समय सारिणी के अनुसार अध्यापन
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− | नहीं होता ।
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− | ४. बस्ता किसे कहते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में सबने
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− | एक ही मत व्यक्त किया है कि बस्ता कॉपी-किताब ले
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− | जाने का साधन मात्र है ।
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− | ५. थैला कैसा होना चाहिए ? इस प्रश्न के उत्तर में
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− | यह मत उभरकर आया कि अध्ययन से सम्बन्धित सारी
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− | शैक्षिक सामग्री थैले में समा जाय इतना बड़ा हो, सामग्री
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− | भीगे नहीं इसलिए प्लास्टिक कॉटेड हो । बिना बस्ते के
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− | अध्ययन संभव नहीं है, यह समीकरण सबके मन में गहरा
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− | बैठ गया है ।
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− | ६. बस्तों की कीमतें भी ७०० से १००० रुपये तक
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− | होती हैं। जो बस्ते में रखी हुई कॉपी किताबों से भी
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− | अधिक होती है। कुल मिलाकर बस्ते बहुत अधिक
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− | खर्चीले हो गये हैं; जो वास्तव में अनावश्यक खर्च है ।
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− | फिर भी प्रतिवर्ष नया बस्ता चाहिए, नई
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− | कक्षा, नया बस्ता की माँग बनी ही रहती है । एक शिक्षक
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− | ने यह सुझाव अवश्य दिया है कि यदि बस्ता घर पर ही
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− | सिलाया जाय तो बहुत सस्ता पड़ सकता है ।
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− | बस्ते का बोझ कम करने के उपायों में ये सुझाव
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− | आये - १. समय सारिणी के अनुसार किताबें-कॉपियाँ ले
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− | जाना । २. संगणक, टेब आदि इलेक्ट्रोनिक साधनों का
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− | उपयोग । है. स्लेट-पेंसिल, कृष्णफलक का अधिकाधिक
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− | मात्रा में उपयोग । कुल मिलाकर कहें तो शिक्षा माने भारी
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− | बस्ता, यह गृहीत आज सर्वसामान्य होने के कारण, इतना
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− | बोझ अच्छा नहीं यह समझते हुए भी व्यवहार में यही चल
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− | रहा है ।
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− | अभिमत :
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− | शिक्षा के बारे में जो चित्र-विचित्र धारणायें मन में
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− | बैठ गई हैं उनका ही परिपाक उत्तरों में दिखाई देता है ।
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− | साध्य-साधन विवेक न होने के कारण साधन को श्रेष्ठ मानने
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− | का अविवेकी व्यवहार सर्वत्र दिखाई देता है । विद्या के बारे
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− | में एक सुभाषित में कहा गया है - “न चौर्यहार न च
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− | भारकारी' फिर भी बस्तों का महत्त्व आज अकारण बढ़ गया
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− | है। के. जी. कक्षा से ही बालक ज्ञानवाही (ज्ञान को वहन
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− | करने वाला) न होकर भारवाही बन गया है । शालेय
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− | वस्तुओं का व्यवसाय होने के कारण आकर्षक छूट,
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− | कमिशन, रंग-रूप में नवीनता एवं विविधता ये सब
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− | अभिभावकों पर भारी पड़ रहे हैं, ऐसा लगता है ।
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− | शिशु वाटिका में डिब्बे के लिए थैली पर्याप्त होती
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− | है। और प्राथमिक कक्षाओं में स्लेट पेंसिल एवं एक दो
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− | किताब कॉपी बहुत होती हैं । आज भारी बस्ता उठाना
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− | कठिन है, इसलिए बस, रिक्शा, दादा-दादी या नौकर
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− | चाहिए । छात्रों के मन में बस्ते के प्रति आदर व पवित्रता
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− | का भाव न होने के कारण वे उसे मालगाड़ी के सामान की
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− | तरह फेंक देते हैं । बस्ते के पाँव लग जाने पर सौरी शब्द
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− | बोलकर उसका परिमार्जन कर लेते हैं ।
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− | aed al बोझ कम करने के लिए एक विद्यालय ने
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− | अच्छा उपक्रम किया । प्रत्येक छात्र ने अपनी वार्षिक
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− | परीक्षाएँ पूर्ण होने के बाद अपनी सारी पुस्तकों की मरम्मत
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− | की, उन पर HA TET Bi WW Fa
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− | विद्यालय में जमा करवा दिया । अगले वर्ष नई पुस्तकें
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− | खरीदकर उन्हें घर पर ही अध्ययन के लिए रखा । और
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− | विद्यालय में पूर्व छात्रों द्वारा जमा की हुई पुस्तकें उपयोग में
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− | ली। इस उपक्रम से पूरे विद्यालय के सभी बालकों के
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− | बस्तों में से पुस्तकों का बोझ दूर हो गया ।
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− | विमर्श
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− | लम्बे अरसे से बस्ते के बोज की बहुत चर्चा हो रही
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− | है । उच्च पदस्थ अधिकारी, शिक्षाशास्त्री, अभिभावक बस्ते
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− | के बोझ से चिन्तित हैं । डॉक्टर और मनोविज्ञानी भी चिन्ता
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− | कर रहे हैं ।
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− | इधर बस्ता भारी से और भारी होता जा रहा है ।
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− | विद्यार्थी परेशान हैं, अभिभावक त्रस्त हैं और व्यापारी खुश
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− | हैं। परेशानी भले ही बढ़े, बस्ता हल्का होने का नाम ही
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− | नहीं लेता ।
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− | विद्यालयीन के विद्यार्थियों की ही कहानी है।
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− | प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में ही बस्ते के बोझ की
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− | समस्या है । जैसे ही विद्यार्थी महाविद्यालय में आते हैं, उन्हें
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− | aed की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती । प्रगत अध्ययन
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− | करने वाले अनेक विद्यार्थी छात्रावास में रहते हैं । उन्हें
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− | बस्ता उठाना नहीं पड़ता । अधिकांश विद्यार्थी ऐसे हैं जो
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− | कम से कम पुस्तकें और लेखन सामग्री लेकर महाविद्यालय
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− | में जाते हैं । हाँ, इधर टेबलेट या लेपटॉप ले जाने लगे हैं ।
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− | प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थी तो अपना बस्ता उठा | |
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− | भी नहीं सकते, ऐसा भारी होता है । | |
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| इसके उपाय के रूप में लोग क्या करते हैं ? | | इसके उपाय के रूप में लोग क्या करते हैं ? |
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− | बच्चों की मातायें बस्ता उठाकर वाहन तक छोड़ने के | + | बच्चों की मातायें बस्ता उठाकर वाहन तक छोड़ने के लिये जाती हैं । |
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− | लिये जाती हैं । | |
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− | कई विद्यालयों में बस्ता रखने की व्यवस्था की जाती
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− | है । वहाँ पुस्तकों और लेखन सामग्री के दो संच रखे जाते
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− | हैं । एक विद्यालय के लिये और दूसरा घर के लिये । इसमें
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− | सुविधा होती है, परन्तु खर्च बढ़ता है ।
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− | आश्चर्य इस बात का है कि आवासीय विद्यालय में
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− | श्र
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | पढ़ने वाले विद्यार्थी भी अपना पूरा बस्ता लेकर विद्यालय
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− | जाते हैं ।
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− | बस्ते के सम्बन्ध में विचारणीय बातें
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− | विद्यार्थियों के बस्ते के सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार
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− | विचार करना चाहिये ।
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− | शैक्षिक दृष्टि से विचार करें तो भाषा और गणित के
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− | अलावा एक भी विषय पुस्तकों से नहीं पढ़ा जाता ।
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− | इसलिये इन पुस्तकों को विद्यालय में ले जाने की
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− | आवश्यकता ही नहीं है ।
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− | प्राथमिक विद्यालयों में प्रथम एक भाषा होती है,
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− | | |
− | क्रमशः बढ़ते-बढ़ते यह संख्या चार तक पहुँच जाती है ।
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− | कई विद्यालयों में सामान्य गणित के साथ वैदिक गणित
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− | पढ़ाया जाता है । यदि चार भाषा और गणित ऐसे पांच
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− | विषय दिन की समयसारिणी में हैं तो एक साथ पांच पुस्तकें
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− | ले जानी पड़ेंगी । समयसारिणी के नियोजन से यह संख्या
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− | आधी हो सकती है ।
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− | लेखन पुस्तिका के साथ-साथ स्वाध्याय पुस्तिका का
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− | प्रचलन भी बढ़ा है । यदि दिन की समयसारिणी में सात
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− | विषय हैं तो चौदह पुस्तिकायें ले जानी पढड़ेंगी । यह
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− | अत्याचार है ।
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− | स्वाध्याय पुस्तिका अनिवार्य नहीं है। अभ्यास
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− | पुस्तिका भी नहीं । इसे कम कर देने से बोझ आधा हो
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− | जायेगा । मानसिकता तो यह बनानी चाहिये कि इन सारी
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− | पुस्तकों तथा सामग्री की अध्ययन के लिये कोई
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− | आवश्यकता ही नहीं है ।
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− | लेखन पुस्तिकाओं के कद और संख्या भी कम की
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− | जा सकती है ।
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− | विद्यार्थियों का अनवधान भी बस्ता भारी होने का
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− | बड़ा कारण होता है ।
| + | कई विद्यालयों में बस्ता रखने की व्यवस्था की जाती है । वहाँ पुस्तकों और लेखन सामग्री के दो संच रखे जाते हैं । एक विद्यालय के लिये और दूसरा घर के लिये । इसमें सुविधा होती है, परन्तु खर्च बढ़ता है । |
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− | विद्यार्थी समयसारिणी देखते ही नहीं और जितनी | + | आश्चर्य इस बात का है कि आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी भी अपना पूरा बस्ता लेकर विद्यालय जाते हैं । |
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− | पुस्तकें तथा अन्य सामग्री होती है, सारी बस्ते में भर देते हैं
| + | ==== बस्ते के सम्बन्ध में विचारणीय बातें ==== |
| + | विद्यार्थियों के बस्ते के सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार विचार करना चाहिये । |
| + | * शैक्षिक दृष्टि से विचार करें तो भाषा और गणित के अलावा एक भी विषय पुस्तकों से नहीं पढ़ा जाता । इसलिये इन पुस्तकों को विद्यालय में ले जाने की आवश्यकता ही नहीं है । |
| + | प्राथमिक विद्यालयों में प्रथम एक भाषा होती है, क्रमशः बढ़ते-बढ़ते यह संख्या चार तक पहुँच जाती है । कई विद्यालयों में सामान्य गणित के साथ वैदिक गणित पढ़ाया जाता है। यदि चार भाषा और गणित ऐसे पांच विषय दिन की समयसारिणी में हैं तो एक साथ पांच पुस्तकें ले जानी पड़ेंगी । समयसारिणी के नियोजन से यह संख्या आधी हो सकती है । |
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− | और उठाकर ले आते हैं । वाहन के कारण से उन्हें बहुत
| + | लेखन पुस्तिका के साथ-साथ स्वाध्याय पुस्तिका का प्रचलन भी बढ़ा है । यदि दिन की समयसारिणी में सात विषय हैं तो चौदह पुस्तिकायें ले जानी पढड़ेंगी । यह अत्याचार है । |
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− | दूर तक उठाने की आवश्यकता भी नहीं होती है, इसलिये
| + | स्वाध्याय पुस्तिका अनिवार्य नहीं है। अभ्यास पुस्तिका भी नहीं । इसे कम कर देने से बोझ आधा हो जायेगा । मानसिकता तो यह बनानी चाहिये कि इन सारी पुस्तकों तथा सामग्री की अध्ययन के लिये कोई आवश्यकता ही नहीं है । |
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− | उन्हें चिन्ता नहीं होती । | + | लेखन पुस्तिकाओं के कद और संख्या भी कम की जा सकती है । |
| + | * विद्यार्थियों का अनवधान भी बस्ता भारी होने का बड़ा कारण होता है । |
| + | विद्यार्थी समयसारिणी देखते ही नहीं और जितनी पुस्तकें तथा अन्य सामग्री होती है, सारी बस्ते में भर देते हैं और उठाकर ले आते हैं । वाहन के कारण से उन्हें बहुत दूर तक उठाने की आवश्यकता भी नहीं होती है, इसलिये उन्हें चिन्ता नहीं होती । |
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