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विद्यार्थी समयसारिणी देखते ही नहीं और जितनी पुस्तकें तथा अन्य सामग्री होती है, सारी बस्ते में भर देते हैं और उठाकर ले आते हैं । वाहन के कारण से उन्हें बहुत दूर तक उठाने की आवश्यकता भी नहीं होती है, इसलिये उन्हें चिन्ता नहीं होती ।
विद्यार्थी समयसारिणी देखते ही नहीं और जितनी पुस्तकें तथा अन्य सामग्री होती है, सारी बस्ते में भर देते हैं और उठाकर ले आते हैं । वाहन के कारण से उन्हें बहुत दूर तक उठाने की आवश्यकता भी नहीं होती है, इसलिये उन्हें चिन्ता नहीं होती ।
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इस विषय में कभी-कभी विद्यालय की समयसारिणी में भी अचानक परिवर्तन हो जाता है और विद्यार्थी नहीं लाये हैं, ऐसी सामग्री की आवश्यकता पड जाती है । तब विद्यार्थियों का मानस सबकुछ एक साथ उठा कर लाने का बन जाता है ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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विद्यार्थियों के बस्ते में विद्यालय के कार्य से सम्बन्धित नहीं हैं, ऐसी भी चीजें होती हैं । गेंद, कंचे, सी.डी., स्टीकर, एक्टरों और क्रिकेटरों के चित्र, फिल्म की पत्रिकायें, मोबाइल आदि हम कल्पना भी न कर सकें, ऐसी वस्तुरयें वे साथ लेकर आते हैं । इन वस्तुओं के कारण भी बोझ बढ जाता है । साथ में पानी की बोतल, भोजन का डिब्बा, तौलिया, कम्पासपेटिका, चित्रपुस्तिका आदि भी बोझ बढ़ाते हैं ।
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इस विषय में कभी-कभी विद्यालय की समयसारिणी
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वास्तव में बस्ते के शारीरिक बोझ की नहीं अपितु इस अव्यवस्थितता की चिन्ता करने की आवश्यकता है । शारीरिक बोझ के सम्बन्ध में तो लोग सैद्धान्तिक रूप से ही परेशान हैं । वह खास किसी को उठाना नहीं पड़ता इसलिये कोई चिन्ता भी नहीं करता । अव्यवस्थितता दूर करना मुख्य विषय है ।
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में भी अचानक परिवर्तन हो जाता है और विद्यार्थी नहीं
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लाये हैं, ऐसी सामग्री की आवश्यकता पड जाती है । तब
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विद्यार्थियों का मानस सबकुछ एक साथ उठा कर लाने का
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बन जाता है ।
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विद्यार्थियों के बस्ते में विद्यालय के कार्य से
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सम्बन्धित नहीं हैं, ऐसी भी चीजें होती हैं । गेंद, कंचे,
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सी.डी., स्टीकर, एक्टरों और क्रिकेटरों के चित्र, फिल्म की
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पत्रिकायें, मोबाइल आदि हम कल्पना भी न कर सकें, ऐसी
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वस्तुरयें वे साथ लेकर आते हैं । इन वस्तुओं के कारण भी
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बोझ बढ जाता है । साथ में पानी की बोतल, भोजन का
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डिब्बा, तौलिया, कम्पासपेटिका, चित्रपुस्तिका आदि भी
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बोझ बढ़ाते हैं ।
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वास्तव में बस्ते के शारीरिक बोझ की नहीं अपितु
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इस अव्यवस्थितता की चिन्ता करने की आवश्यकता है ।
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शारीरिक बोझ के सम्बन्ध में तो लोग सैद्धान्तिक रूप से ही
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परेशान हैं । वह खास किसी को उठाना नहीं पड़ता इसलिये
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कोई चिन्ता भी नहीं करता । अव्यवस्थितता दूर करना मुख्य
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विषय है ।
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बोझ कम करने के उपाय
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विद्यालय और माता-पिता को मिलकर कुछ इस
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प्रकार उपाय करने चाहिये
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०. विद्यार्थियों को समझ में आये उस पद्धति से क्या
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लाना है और क्या नहीं लाना है, यह समय-समय पर
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सूचित किया जाना चाहिये । सूचना एक ही बार देने
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से काम नहीं चलेगा । आवश्यकता के अनुसार
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उसका पुनरावर्तन करना चाहिये |
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०"... कौन सी सामग्री क्यों लाना है और क्यों नहीं लाना
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है, यह भी उचित समय पर समझाना चाहिये ।
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०... केवल सूचना देना पर्याप्त नहीं है । सबके पास अपनी
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अपनी कक्षा की समयसारिणी है कि नहीं, यह देखना
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चाहिये । सबके पास हो इसका आग्रह भी रखा जाना
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चाहिये ।
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०... विद्यालय ने स्वयं एक बार अच्छी तरह से निश्चित
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कर लेना चाहिये कि हर कक्षा
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के विद्यार्थी के पास अधिक से अधिक और कम से
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कम कितनी सामग्री हो सकती है, उसमें से सप्ताह में
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कब सबसे अधिक सामग्री लाने की आवश्यकता
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पड़ती है और वह कितनी है । साथ ही एक साथ
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अधिक सामग्री न लानी पड़े इस प्रकार से नियोजन
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भी करना चाहिये |
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इसके बाद विद्यार्थियों को बस्ता कैसे जमाना यह भी
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प्रायोगिक पद्धति से सिखाना चाहिये । उत्तम पद्धति से
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बस्ता जमाना एक कुशलता है और सबको उसे प्राप्त
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करना ही चाहिये । विद्यार्थियों ने अपना बस्ता स्वयं
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जमाना चाहिये और स्वयं उठाना चाहिये । घर में
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माता-पिता ने इसका ध्यान रखना चाहिये |
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समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण
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होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं
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लाने के fed sega समझाना चाहिये ।
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==== बोझ कम करने के उपाय ====
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विद्यालय और माता-पिता को मिलकर कुछ इस प्रकार उपाय करने चाहिये
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* विद्यार्थियों को समझ में आये उस पद्धति से क्या लाना है और क्या नहीं लाना है, यह समय-समय पर सूचित किया जाना चाहिये । सूचना एक ही बार देने से काम नहीं चलेगा । आवश्यकता के अनुसार उसका पुनरावर्तन करना चाहिये |
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* कौन सी सामग्री क्यों लाना है और क्यों नहीं लाना है, यह भी उचित समय पर समझाना चाहिये ।
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* केवल सूचना देना पर्याप्त नहीं है । सबके पास अपनी अपनी कक्षा की समयसारिणी है कि नहीं, यह देखना चाहिये । सबके पास हो इसका आग्रह भी रखा जाना चाहिये ।
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* विद्यालय ने स्वयं एक बार अच्छी तरह से निश्चित कर लेना चाहिये कि हर कक्षा के विद्यार्थी के पास अधिक से अधिक और कम से कम कितनी सामग्री हो सकती है, उसमें से सप्ताह में कब सबसे अधिक सामग्री लाने की आवश्यकता पड़ती है और वह कितनी है । साथ ही एक साथ अधिक सामग्री न लानी पड़े इस प्रकार से नियोजन भी करना चाहिये |
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* इसके बाद विद्यार्थियों को बस्ता कैसे जमाना यह भी प्रायोगिक पद्धति से सिखाना चाहिये । उत्तम पद्धति से बस्ता जमाना एक कुशलता है और सबको उसे प्राप्त करना ही चाहिये । विद्यार्थियों ने अपना बस्ता स्वयं जमाना चाहिये और स्वयं उठाना चाहिये । घर में माता-पिता ने इसका ध्यान रखना चाहिये |
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* समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं लाने के लिए आग्रहपूर्वक समझाना चाहिये । यह स्वभाव फिर अन्य बातों में भी परिलक्षित होता है, जीवन में व्यवस्थितता आती है।
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* बस्ते का बोझ तो कम करना ही चाहिये, साथ में व्यवस्थितता भी आनी चाहिये । इसके अलावा अन्य छोटी बातें भी विचारणीय हैं।
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* आजकल बस्ता बहुत महँगा और सिन्थेटिक होता है। दोनों बातें हानिकारक हैं। इसका उपाय करना चाहिये । बस्ते के कद और आकार का विचार कर, उसे कितना भार उठाना है उसका विचार कर, उसकी डिजाइन कैसी होगी इसका विचार कर, योग्य कपड़े का चयन कर विद्यालय ने ही एक नमूना तैयार करना चाहिये । उसकी विशेषताओं को देखकर, समझकर, अपनी मौलिकता का विनियोग कर अभिभावक स्वयं बस्ता बनवा सकते हैं अथवा विद्यालय सबके लिये बस्ते की व्यवस्था कर सकते हैं । बस्तों की सिलाई के लिये दर्जी को बुलाया जा सकता है । यह भी एक बहुत अच्छा और उपयोगी कार्य ही होगा ।
अभिभावकों को भी ऐसा आग्रह रखना चाहिये । धीरे
अभिभावकों को भी ऐसा आग्रह रखना चाहिये । धीरे