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| ==== अभिमत : ==== | | ==== अभिमत : ==== |
− | हम सब एक ही परमात्मा के अंश हैं, इस लिए | + | हम सब एक ही परमात्मा के अंश हैं, इस लिए एकात्म हैं । इस मूल एकात्म भावना को ध्यान में न रखकर वसख्रों के आधार पर समानता लाने का विचार संकुचित लगा । इस ऊपरी समानता लाने के विचार का कभी-कभी इतना अधिक अतिरेक दिखाई देता है कि कुछ विद्यालयों में छात्र-छात्राओं दोनों के लिए समान हाफ पेन्ट का गणवेश है । अभिभावकों को भी इसमें कुछ अटपटा नहीं लगता । बचपन से हाफ पेन्ट पहनने वाली इन छात्राओं को बड़े होकर पुरुष वस्त्र पहनने में कुछ भी संकोच नहीं होता । स्त्री पुरुष भेद के पीछे प्रकृति का रहस्य न समझने वाले, वस्त्र ट्वारा समानता लाने का प्रयास जब करते हैं, तो गणवेश विचित्रता का एक नमूना बनकर रह जाता है । |
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− | एकात्म हैं । इस मूल एकात्म भावना को ध्यान में न रखकर
| + | ==== विमर्श ==== |
| + | वास्तविकता में तो गणवेश और ज्ञानार्जन का सीधा सीधा कोई सम्बन्ध नहीं है । गलत विचारों के कारण गलत बातें करने में हमारी बाध्यता कैसी गलत होती हैं, इसका भान ही नहीं है । आज ऐसी परिस्थिति व मनःस्थिति है कि गणवेश में यदि छूट दी जाय तो पार्टियों में जैसे विचित्र पहनावे पहने जाते हैं, वैसे ही विद्यालय में पहनकर आ जाते हैं । आज अनुभव में आता है कि बाहर मेहेंगे कपड़ों में स्मार्ट दिखने वाले हमारे ही बालक गणवेश के विषय में लापरवाह और दृब्बु दिखते हैं । आजकल गणवेश में कपड़ों के साथ जूते मोजे, टाई, बस्ता, बोटल आदि सबका समावेश होने लगा है । गणवेश की अनिवार्यता और कठोरता के परिणाम स्वरूप इन सभी सामग्रियों का व्यापार बहुत अधिक बढ़ गया है । शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के महत्त्व से भी इतर शैक्षिक सामग्री के व्यापार का महत्त्व अधिक हो गया है । फलस्वरूप शिक्षा गौण हो गई है । |
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− | वसख्रों के आधार पर समानता लाने का विचार संकुचित
| + | आज कोई भी विद्यालय ऐसा नहीं होगा, जिसमें छात्रों के लिये गणवेश न हो । यहाँ तक कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में भी गणवेश होता है । |
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− | लगा । इस ऊपरी समानता लाने के विचार का कभी-कभी
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− | इतना अधिक अतिरेक दिखाई देता है कि कुछ विद्यालयों में
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− | छात्र-छात्राओं दोनों के लिए समान हाफ पेन्ट का गणवेश
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− | है । अभिभावकों को भी इसमें कुछ अटपटा नहीं लगता ।
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− | बचपन से हाफ पेन्ट पहनने वाली इन छात्राओं को बड़े
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− | होकर पुरुष वस्त्र पहनने में कुछ भी संकोच नहीं होता । स्त्री
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− | पुरुष भेद के पीछे प्रकृति का रहस्य न समझने वाले, वस्त्र
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− | ट्वारा समानता लाने का प्रयास जब करते हैं, तो गणवेश
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− | विचित्रता का एक नमूना बनकर रह जाता है ।
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− | विमर्श
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− | वास्तविकता में तो गणवेश और ज्ञानार्जन का सीधा
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− | सीधा कोई सम्बन्ध नहीं है । गलत विचारों के कारण गलत
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− | बातें करने में हमारी बाध्यता कैसी गलत होती हैं, इसका
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− | भान ही नहीं है । आज ऐसी परिस्थिति व मनःस्थिति है कि
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− | गणवेश में यदि छूट दी जाय तो पार्टियों में जैसे विचित्र
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− | पहनावे पहने जाते हैं, वैसे ही विद्यालय में पहनकर आ
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− | गणवेश के विषय में लापरवाह और दृब्बु दिखते हैं ।
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− | आजकल गणवेश में कपड़ों के साथ जूते मोजे, टाई, बस्ता,
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− | बोटल आदि सबका समावेश होने लगा है । गणवेश की
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− | अनिवार्यता और कठोरता के परिणाम स्वरूप इन सभी
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− | सामग्रियों का व्यापार बहुत अधिक बढ़ गया है । शिक्षा के
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− | क्षेत्र में शिक्षा के महत्त्व से भी इतर शैक्षिक सामग्री के
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− | व्यापार का महत्त्व अधिक हो गया है । फलस्वरूप शिक्षा
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− | आज कोई भी विद्यालय ऐसा नहीं होगा, जिसमें | |
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− | छात्रों के लिये गणवेश न हो । यहाँ तक कि सरकारी | |
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− | प्राथमिक विद्यालयों में भी गणवेश होता है । | |
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− | अन्य अनेक बातों की तरह गणवेश के सम्बन्ध में भी
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− | समुचित विचार करने की आवश्यकता है ।
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− | ०"... गणवेश का वास्तविक सम्बन्ध पढने के साथ नहीं
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− | है। किसी भी प्रकार के वस्त्रों में भी अध्ययन तो
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− | होता ही है । इसलिये गणवेश का सम्बन्ध अन्य
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− | बातों से जोड़ना चाहिये ।
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− | गणवेश का मुख्य उद्देश्य है समूहभावना और एकत्व
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− | की भावना । जहाँ एक होकर समन्वय कर काम
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− | खिलाड़ी, एनसीसी आदि में गणवेश होता है ।
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− | सेवक, डाकिया, मजदूर आदि का भी गणवेश होता
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− | कई कम्पनियों में तथा उद्योगगृहों में भी गणवेश होता
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− | विद्यालय में सामान्यतः विद्यार्थियों के लिये गणवेश
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− | होता है, कहीं-कहीं शिक्षकों के लिये भी होता है
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− | और बहुत ही अल्प संख्या में संचालकों के लिये भी
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− | गणवेश होता है । वास्तव में शिक्षकों के लिये तो
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− | गणवेश होना ही चाहिये ।
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− | गणवेश अपने-अपने कार्य की संस्कृति के अनुरूप
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− | होना चाहिये । विद्यार्थी और शिक्षकों के लिये
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− | अध्ययन के अनुरूप सादगी, व्यवस्थितता और
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− | RR
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | सुरुचिपूर्ण गणवेश होना चाहिये । गणवेश का रंग भी
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− | भड़कीला नहीं होना चाहिये ।
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− | गणवेश का आकार-प्रकार भी अध्ययन-अध्यापन
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− | करने वालों को शोभा देने वाला होना चाहिये ।
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− | गणवेश सूती ही होना चाहिये । कृत्रिम वस्त्रों वाला
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− | गणवेश स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिये
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− | हानिकारक है । आज सर्वत्र कृत्रिम वस्त्रों की भरमार
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− | हो रही है, तब विद्यालय को सूती वस्त्र अपनाकर
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− | समाज को विधायक सन्देश देना चाहिये ।
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− | इसी प्रकार कारखाने में बने तैयार कपड़े नहीं अपितु
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− | दर्जी द्वारा सिले गये कपड़े ही गणवेश के लिये
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− | अपनाने चाहिये । कारखाने में बिकने वाले कपड़े भी
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− | किसी न किसी दर्जीने ही सिले होते हैं परन्तु
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− | कारखाने के कपड़ों के लिये दर्जी नौकर होता है,
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− | मालिक नहीं । दर्जी जहाँ मालिक है, ऐसी व्यवस्था
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− | में बने कपड़े ही गणवेश के लिये प्रयोग में लाने
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− | चाहिये ।
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− | जहाँ कारीगर नौकर होते हैं वहाँ समाज alts
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− | बनता है, जहाँ मालिक होते हैं वहाँ सुख और समृद्धि
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− | दोनों आते हैं । विद्यालय समाज को सुख और समृद्धि
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− | का मार्ग दिखाने के लिये ही है । अतः कारखानों में
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− | बना गणवेश नहीं चाहिये ।
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− | गणवेश यदि खादी का हो तो और भी अच्छा है । यदि
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− | दो जोड़ी गणवेश हो तो एक खादी का हो सकता है ।
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− | वस्त्रोद्योग में खादी का महत्त्वपूर्ण स्थान है यह भूलना
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− | नहीं चाहिये ।
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| + | अन्य अनेक बातों की तरह गणवेश के सम्बन्ध में भी समुचित विचार करने की आवश्यकता है । |
| + | * गणवेश का वास्तविक सम्बन्ध पढने के साथ नहीं है। किसी भी प्रकार के वस्त्रों में भी अध्ययन तो होता ही है । इसलिये गणवेश का सम्बन्ध अन्य बातों से जोड़ना चाहिये । |
| + | * गणवेश का मुख्य उद्देश्य है समूहभावना और एकत्व की भावना । जहाँ एक होकर समन्वय कर काम करना है वहाँ गणवेश होता है। सैनिक, पुलीस, खिलाड़ी, एनसीसी आदि में गणवेश होता है । |
| + | * सेवक, डाकिया, मजदूर आदि का भी गणवेश होता है। |
| + | * कई कम्पनियों में तथा उद्योगगृहों में भी गणवेश होता है। |
| + | * विद्यालय में सामान्यतः विद्यार्थियों के लिये गणवेश होता है, कहीं-कहीं शिक्षकों के लिये भी होता है और बहुत ही अल्प संख्या में संचालकों के लिये भी गणवेश होता है । वास्तव में शिक्षकों के लिये तो गणवेश होना ही चाहिये । |
| + | * गणवेश अपने-अपने कार्य की संस्कृति के अनुरूप होना चाहिये । विद्यार्थी और शिक्षकों के लिये अध्ययन के अनुरूप सादगी, व्यवस्थितता और सुरुचिपूर्ण गणवेश होना चाहिये । गणवेश का रंग भी भड़कीला नहीं होना चाहिये । |
| + | * गणवेश का आकार-प्रकार भी अध्ययन अध्यापन करने वालों को शोभा देने वाला होना चाहिये । |
| + | * गणवेश सूती ही होना चाहिये । कृत्रिम वस्त्रों वाला गणवेश स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिये हानिकारक है । आज सर्वत्र कृत्रिम वस्त्रों की भरमार हो रही है, तब विद्यालय को सूती वस्त्र अपनाकर समाज को विधायक सन्देश देना चाहिये । |
| + | * इसी प्रकार कारखाने में बने तैयार कपड़े नहीं अपितु दर्जी द्वारा सिले गये कपड़े ही गणवेश के लिये अपनाने चाहिये । कारखाने में बिकने वाले कपड़े भी किसी न किसी दर्जीने ही सिले होते हैं परन्तु कारखाने के कपड़ों के लिये दर्जी नौकर होता है, मालिक नहीं । दर्जी जहाँ मालिक है, ऐसी व्यवस्था में बने कपड़े ही गणवेश के लिये प्रयोग में लाने चाहिये । जहाँ कारीगर नौकर होते हैं वहाँ समाज दरिद्र बनता है, जहाँ मालिक होते हैं वहाँ सुख और समृद्धि दोनों आते हैं । विद्यालय समाज को सुख और समृद्धि का मार्ग दिखाने के लिये ही है । अतः कारखानों में बना गणवेश नहीं चाहिये । |
| + | * गणवेश यदि खादी का हो तो और भी अच्छा है । यदि दो जोड़ी गणवेश हो तो एक खादी का हो सकता है । वस्त्रोद्योग में खादी का महत्त्वपूर्ण स्थान है यह भूलना नहीं चाहिये । |
| गणवेश की छुट्टी | | गणवेश की छुट्टी |
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