Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 110: Line 110:  
* इसी प्रकार कारखाने में बने तैयार कपड़े नहीं अपितु दर्जी द्वारा सिले गये कपड़े ही गणवेश के लिये अपनाने चाहिये । कारखाने में बिकने वाले कपड़े भी किसी न किसी दर्जीने ही सिले होते हैं परन्तु कारखाने के कपड़ों के लिये दर्जी नौकर होता है, मालिक नहीं । दर्जी जहाँ मालिक है, ऐसी व्यवस्था में बने कपड़े ही गणवेश के लिये प्रयोग में लाने चाहिये । जहाँ कारीगर नौकर होते हैं वहाँ समाज दरिद्र  बनता है, जहाँ मालिक होते हैं वहाँ सुख और समृद्धि दोनों आते हैं । विद्यालय समाज को सुख और समृद्धि का मार्ग दिखाने के लिये ही है । अतः कारखानों में बना गणवेश नहीं चाहिये ।
 
* इसी प्रकार कारखाने में बने तैयार कपड़े नहीं अपितु दर्जी द्वारा सिले गये कपड़े ही गणवेश के लिये अपनाने चाहिये । कारखाने में बिकने वाले कपड़े भी किसी न किसी दर्जीने ही सिले होते हैं परन्तु कारखाने के कपड़ों के लिये दर्जी नौकर होता है, मालिक नहीं । दर्जी जहाँ मालिक है, ऐसी व्यवस्था में बने कपड़े ही गणवेश के लिये प्रयोग में लाने चाहिये । जहाँ कारीगर नौकर होते हैं वहाँ समाज दरिद्र  बनता है, जहाँ मालिक होते हैं वहाँ सुख और समृद्धि दोनों आते हैं । विद्यालय समाज को सुख और समृद्धि का मार्ग दिखाने के लिये ही है । अतः कारखानों में बना गणवेश नहीं चाहिये ।
 
* गणवेश यदि खादी का हो तो और भी अच्छा है । यदि दो जोड़ी गणवेश हो तो एक खादी का हो सकता है । वस्त्रोद्योग में खादी का महत्त्वपूर्ण स्थान है यह भूलना नहीं चाहिये ।
 
* गणवेश यदि खादी का हो तो और भी अच्छा है । यदि दो जोड़ी गणवेश हो तो एक खादी का हो सकता है । वस्त्रोद्योग में खादी का महत्त्वपूर्ण स्थान है यह भूलना नहीं चाहिये ।
गणवेश की छुट्टी
     −
०... लगभग सर्वत्र सप्ताह में एक दिन गणवेश की छुट्टी
+
==== गणवेश की छुट्टी ====
 +
लगभग सर्वत्र सप्ताह में एक दिन गणवेश की छुट्टी होती है । इसका कारण समझना कठिन है । मूलतः इसका कारण, जब एक दिन छुट्टी रखना शुरू हुआ तब का बहुत योग्य है । उस समय लोग वस्त्रों के लिये आज की तरह बहुत पैसे खर्च नहीं करते थे । इसलिये गाँवों और नगरों में प्रायः एक जोड़ी गणवेश ही होता था । तब सोमवार और मंगलवार को गणवेश पहनो, बुधवार को धोओ, फिर गुरुवार और शुक्रवार को पहनो, फिर शनिवार को आधा ही दिन होता था इसलिये तीसरे दिन पहनो, रविवार को फिर धोओ । इस प्रकार एक ही गणवेश वर्षभर चलाया जाता था । धुला हुआ भी पहना जा सकता था, एक ही कपड़ा दूसरे दिन पहनना है इसलिये मैला नहीं होने का अनुशासन भी सीखा जाता था, वर्षभर एक ही वस्त्र पहनने की मितव्ययिता भी सीखी जाती थी । उस समय बुधवार को गणवेश की छुट्टी आवश्यक थी । आज स्थिति ऐसी नहीं है । दो जोड़ी गणवेश कम से कम होता है । शनिवार को अलग गणवेश भी कहीं कहीं पर होता है । ऐसी स्थिति में एक दिन गणवेश की छुट्टी की आवश्यकता ही नहीं है। परन्तु आज की मानसिकता बदल गई है । अब एक ही एक प्रकार का कपड़ा पहनकर मजा नहीं आता है अतः वैविध्य के लिये, मन को अच्छा लगे इसलिये एक दिन गणवेश की छुट्टी माँगी जाती है ।
   −
होती है इसका कारण समझना कठिन है । मूलतः
+
जिस दिन गणवेश की छुट्टी होती है, उस दिन जिस प्रकार के कपड़े पहनकर विद्यार्थी आते हैं उसे देखकर संस्कार और सुरुचि की कितनी दुर्गति हुई है इसका पता चलता है ।  
   −
इसका कारण, जब एक दिन छुट्टी रखना शुरू हुआ तब
+
अतः गणवेश का प्रयोग उसकी मूल भावना को स्वीकार करके करना चाहिये ।
   −
का बहुत योग्य है । उस समय लोग वस्त्रों के लिये
+
गणवेश में केवल वस्त्र का ही समावेश नहीं होता, पदवेश अर्थात्‌ जूते और केशभूषा का भी होता है । कैशभूषा भी संयमित होनी चाहिये । अतिरिक्त अलंकार नहीं होने चाहिये । जूते कपडे अथवा चमडे के ही होने चाहिये, रबर प्लास्टिक के कदापि नहीं ।
   −
आज की तरह बहुत पैसे खर्च नहीं करते थे इसलिये
+
महाविद्यालय में पहुँचकर विद्यार्थी गणवेश से मुक्त होने का अनुभव करते हैं । माध्यमिक विद्यालय के अन्तिम वर्ष में कब गणवेश से मुक्ति मिले इसकी प्रतीक्षा करते हैं । इसका अर्थ यह है कि गणवेश को शिक्षकों और विद्यार्थियों ने सत्कार पूर्वक स्वीकार नहीं किया है, बन्धन की तरह, बोझ की तरह ही स्वीकार किया है । इस मनः स्थिति को तो आपग्रहपूर्वक बदलना चाहिये
   −
गाँवों और नगरों में प्रायः एक जोड़ी गणवेश ही होता
+
आज गणवेश को लेकर ही बडा बाजार चलता है । कहीं कहीं विद्यालय भी उस बाजार से जुड गये हैं । कहीं कहीं सबकी सुविधा के लिये विद्यालय ही गणवेश का प्रबन्ध करता है । विद्यालय सुविधा के लिये करता है तब तो ठीक है परन्तु बाजार का अंग बनता है तब उसका शैक्षिक प्रभाव कम हो जाता है । इससे बचना चाहिये ।
   −
था तब सोमवार और मंगलवार को गणवेश पहनो,
+
गणवेश में विद्यार्थियों के पैण्ट और विद्यार्थिनियों के पायजामे कमर से नीचे के शरीर के साथ घर्षण न करते हों अर्थात्‌ तंग न हों इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये । गणवेश के अलावा जो कपडे पहने जाते हैं उनमें भी यह ध्यान रखना चाहिये । इसका सम्बन्ध बालक बालिकाओं की जननक्षमता के साथ है ।
   −
............. page-139 .............
+
इस सन्दर्भ में एक गम्भीर समस्या की अन्यत्र की गई चर्चा का स्मरण करना उचित होगा । जननशाख्र के शोधकर्ताओं का कहना है कि आज के युवक युवतियों की जननक्षमता का चिन्ताजनक मात्रा में क्षरण हो रहा है । इसके तीन चार कारणों में से एक कारण है कमर के नीचे के तंग कपडे और मोटरसाइकिल की सवारी । इसका उपाय वस्त्रों का स्वरूप बदलना ही है । इसी कारण से हमारी परम्परा में पुरुषों के लिये धोती अथवा खुले पायजामे और खियों के लिये घाघरे, स्कर्ट और साडी का प्रचलन था । अन्य कई बातों की तरह हमने कपडों के सम्बन्ध में भी वैज्ञानिक पद्धति से विचार करना छोड दिया है ।
 
  −
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
  −
 
  −
बुधवार को धोओ, फिर गुरुवार और शुक्रवार को
  −
 
  −
पहनो, फिर शनिवार को आधा ही दिन होता था
  −
 
  −
इसलिये तीसरे दिन पहनो, रविवार को फिर धोओ ।
  −
 
  −
इस प्रकार एक ही गणवेश वर्षभर चलाया जाता था ।
  −
 
  −
धुला हुआ भी पहना जा सकता था, एक ही कपड़ा
  −
 
  −
दूसरे दिन पहनना है इसलिये मैला नहीं होने का
  −
 
  −
अनुशासन भी सीखा जाता था, वर्षभर एक ही वस्त्र
  −
 
  −
पहनने की मितव्ययिता भी सीखी जाती थी । उस समय
  −
 
  −
बुधवार को गणवेश की छुट्टी आवश्यक थी । आज
  −
 
  −
स्थिति ऐसी नहीं है । दो जोड़ी गणवेश कम से कम
  −
 
  −
होता है । शनिवार को अलग गणवेश भी कहीं कहीं
  −
 
  −
पर होता है । ऐसी स्थिति में एक दिन गणवेश की छुट्टी
  −
 
  −
की आवश्यकता ही नहीं है। परन्तु आज की
  −
 
  −
मानसिकता बदल गई है । अब एक ही एक प्रकार का
  −
 
  −
कपड़ा पहनकर मजा नहीं आता है अतः वैविध्य के
  −
 
  −
लिये, मन को अच्छा लगे इसलिये एक दिन गणवेश
  −
 
  −
की छुट्टी माँगी जाती है ।
  −
 
  −
जिस दिन गणवेश की छुट्टी होती है, उस दिन जिस
  −
 
  −
प्रकार के कपड़े पहनकर विद्यार्थी आते हैं उसे देखकर संस्कार
  −
 
  −
और सुरुचि की कितनी दुर्गति हुई है इसका पता चलता है ।
  −
 
  −
अतः गणवेश का प्रयोग उसकी मूल भावना को
  −
 
  −
स्वीकार करके करना चाहिये ।
  −
 
  −
गणवेश में केवल वस्त्र का ही समावेश नहीं होता,
  −
 
  −
पदवेश अर्थात्‌ जूते और केशभूषा का भी होता है । कैशभूषा
  −
 
  −
भी संयमित होनी चाहिये । अतिरिक्त अलंकार नहीं होने
  −
 
  −
चाहिये । जूते कपडे अथवा चमडे के ही होने चाहिये, रबर
  −
 
  −
प्लास्टिक के कदापि नहीं ।
  −
 
  −
महाविद्यालय में पहुँचकर विद्यार्थी गणवेश से मुक्त होने
  −
 
  −
का अनुभव करते हैं । माध्यमिक विद्यालय के अन्तिम वर्ष में
  −
 
  −
कब गणवेश से मुक्ति मिले इसकी
  −
 
  −
प्रतीक्षा करते हैं । इसका अर्थ यह है कि गणवेश को शिक्षकों
  −
 
  −
और विद्यार्थियों ने सत्कार पूर्वक स्वीकार नहीं किया है,
  −
 
  −
बन्धन की तरह, बोझ की तरह ही स्वीकार किया है । इस
  −
 
  −
मनः स्थिति को तो आपग्रहपूर्वक बदलना चाहिये ।
  −
 
  −
०... आज गणवेश को लेकर ही बडा बाजार चलता है ।
  −
 
  −
कहीं कहीं विद्यालय भी उस बाजार से जुड गये हैं ।
  −
 
  −
कहीं कहीं सबकी सुविधा के लिये विद्यालय ही
  −
 
  −
गणवेश का प्रबन्ध करता है । विद्यालय सुविधा के
  −
 
  −
लिये करता है तब तो ठीक है परन्तु बाजार का अंग
  −
 
  −
बनता है तब उसका शैक्षिक प्रभाव कम हो जाता है ।
  −
 
  −
इससे बचना चाहिये ।
  −
 
  −
०"... गणवेश में विद्यार्थियों के पैण्ट और विद्यार्थिनियों के
  −
 
  −
पायजामे कमर से नीचे के शरीर के साथ घर्षण न करते
  −
 
  −
हों अर्थात्‌ तंग न हों इसका विशेष ध्यान रखना
  −
 
  −
चाहिये । गणवेश के अलावा जो कपडे पहने जाते हैं
  −
 
  −
उनमें भी यह ध्यान रखना चाहिये । इसका सम्बन्ध
  −
 
  −
बालक बालिकाओं की जननक्षमता के साथ है ।
  −
 
  −
इस सन्दर्भ में एक गम्भीर समस्या की अन्यत्र की गई
  −
 
  −
चर्चा का स्मरण करना उचित होगा । जननशाख्र के
  −
 
  −
शोधकर्ताओं का कहना है कि आज के युवक युवतियों की
  −
 
  −
जननक्षमता का चिन्ताजनक मात्रा में क्षरण हो रहा है । इसके
  −
 
  −
तीन चार कारणों में से एक कारण है कमर के नीचे के तंग
  −
 
  −
कपडे और मोटरसाइकिल की सवारी । इसका उपाय वस्त्रों का
  −
 
  −
स्वरूप बदलना ही है । इसी कारण से हमारी परम्परा में पुरुषों
  −
 
  −
के लिये धोती अथवा खुले पायजामे और खियों के लिये
  −
 
  −
घाघरे, स्कर्ट और साडी का प्रचलन था । अन्य कई बातों की
  −
 
  −
तरह हमने कपडों के सम्बन्ध में भी वैज्ञ
  −
 
  −
ानिक पद्धति से विचार
  −
 
  −
करना छोड दिया है ।
  −
 
  −
विद्यालय की बैठक व्यवस्था
      +
=== विद्यालय की बैठक व्यवस्था ===
 
2. बैठक व्यवस्था में भारतीय एवं अभारतीय ऐसे
 
2. बैठक व्यवस्था में भारतीय एवं अभारतीय ऐसे
  
1,815

edits

Navigation menu