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1. सभी शिक्षित मातापिता अपने बच्चों को स्वयं पढायेंगे, साथ ही जो स्वयं अपने बच्चों को नहीं पढा सकते ऐसे मातापिता को बच्चों को भी पढायेंगे ऐसा विचार प्रस्तुत करना चाहिये । भोजन, वस्त्र, औषध आदि की व्यवस्था जिस प्रकार अपनी जिम्मेदारी पर की जाती है उसी प्रकार शिक्षा की भी व्यवस्था की जाय इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं लगना चाहिये ।  
 
1. सभी शिक्षित मातापिता अपने बच्चों को स्वयं पढायेंगे, साथ ही जो स्वयं अपने बच्चों को नहीं पढा सकते ऐसे मातापिता को बच्चों को भी पढायेंगे ऐसा विचार प्रस्तुत करना चाहिये । भोजन, वस्त्र, औषध आदि की व्यवस्था जिस प्रकार अपनी जिम्मेदारी पर की जाती है उसी प्रकार शिक्षा की भी व्यवस्था की जाय इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं लगना चाहिये ।  
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2. दस वर्ष की आयु तक की शिक्षा तो इसी प्रकार से चल सकती है । चलनी भी चाहिये । एक शिक्षक को पाँच विद्यार्थी होना शिक्षा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अच्छा होगा दस वर्ष की आयु के बाद कुछ सामूहिक शिक्षा की व्यवस्था का विचार करना होगा । हर सोसाइटी अपना अपना विद्यालय भी चलाये ऐसा
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2. दस वर्ष की आयु तक की शिक्षा तो इसी प्रकार से चल सकती है । चलनी भी चाहिये । एक शिक्षक को पाँच विद्यार्थी होना शिक्षा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अच्छा होगा दस वर्ष की आयु के बाद कुछ सामूहिक शिक्षा की व्यवस्था का विचार करना होगा । हर सोसाइटी अपना अपना विद्यालय भी चलाये ऐसा प्रचलन शुरू हो सकता है। । सोसाइटी में जिस प्रकार कॉमन प्लॉट होता है, कम्युनिटी हॉल होता है, कई कॉलनियों में तरणताल और जिम होते हैं उसी प्रकार से विद्यालय भी हो सकता है, होना चाहिये । पन्द्रह वर्ष की आयु तक ऐसा विद्यालय चल सकता है ।
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3. उद्योगगृहों को अपने कर्मचारियों की सन्तानों की शिक्षा की व्यवस्था करने का आग्रह होना चाहिये । ये प्राथमिक विद्यालय ही होंगे । दस वर्ष की आयु तक ऐसी शिक्षा दी जायेगी।
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4. अपने उद्योग के लिये आवश्यक कौशलों की शिक्षा का प्रबन्ध उद्योगगृह ही करे और उसके साथ सामान्य ज्ञान और संस्कारों की शिक्षा का प्रबन्ध भी किया जाय ऐसी व्यवस्था प्रचलित करनी चाहिये ।
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5. मन्दिरों में देश, धर्म, संस्कृति का ज्ञान देने की व्यवस्था अनिवार्यरूप से करनी चाहिये । मन्दिर विभिन्न सम्प्रदायों के हो सकते हैं । उनके साथ ही सामाजिक संगठन सम्प्रदाय-निरपेक्ष शिक्षा देने की व्यवस्था कर सकते हैं, उन्हें करनी भी चाहिये।
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6. किसे किस प्रकार की शिक्षा लेना इसकी बाध्यता नहीं होनी चाहिये । शिक्षित और संस्कारी होना यह कानूनी बाध्यता नहीं होनी चाहिये, सामाजिक और सांस्कृतिक आग्रह होना चाहिये।
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7. रोटरी क्लब जैसी संस्थायें, अनेक धार्मिक सांस्कृतिक संगठन भोजन, वस्त्र आदि का दान करते हैं उसी प्रकार से शिक्षा का दान भी करना चाहिये।
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8. सारी शिक्षा निःशुल्क दी जाय इसका भी आग्रह बढना चाहिये । शिक्षा देना पुण्य का काम है, इसके कोई पैसे लेगा नहीं, पैसे लेना हीनता है ऐसी भावना प्रचलित होनी चाहिये।
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9. शिक्षा पारिवारिक मामला है, साथ ही धर्मक्षेत्र का भी मामला है । देश के धार्मिक और सांस्कृतिक संगठनों को देश की शिक्षा का दायित्व लेना चाहिये । सरकार की सहायता की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये, सरकारी दखल भी नहीं होने देनी चाहिये । समाज का भला हो
    
कानून, सुविधा, सामग्री, fem, (२) पढ़ाने न पढ़ाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त
 
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