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4. कई सेवाभावी संस्थायें सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में भोजन, शैक्षिक सामग्री, कपडे आदि की सहायता करते हैं । कई संस्थायें यहाँ के विद्यार्थियों के लिये पढाने की और संस्कार देने की अतिरिक्त व्यवस्था करते हैं । यह इसी कारण से करते हैं क्योंकि सब जानते हैं कि इन विद्यालयों में पढाई होती नहीं है। यह अच्छा है, परन्तु इससे भी अच्छा यह है कि सब मिलकर शिक्षकों को पढाने हेतु प्रेरित करें । अभिभावक और अन्य संस्थायें मूल प्रश्न की ओर ध्यान न देकर बीच में से रास्ता निकालने का प्रयास करते हैं। इससे तो कुल मिलाकर लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक होती है ।
 
4. कई सेवाभावी संस्थायें सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में भोजन, शैक्षिक सामग्री, कपडे आदि की सहायता करते हैं । कई संस्थायें यहाँ के विद्यार्थियों के लिये पढाने की और संस्कार देने की अतिरिक्त व्यवस्था करते हैं । यह इसी कारण से करते हैं क्योंकि सब जानते हैं कि इन विद्यालयों में पढाई होती नहीं है। यह अच्छा है, परन्तु इससे भी अच्छा यह है कि सब मिलकर शिक्षकों को पढाने हेतु प्रेरित करें । अभिभावक और अन्य संस्थायें मूल प्रश्न की ओर ध्यान न देकर बीच में से रास्ता निकालने का प्रयास करते हैं। इससे तो कुल मिलाकर लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक होती है ।
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5. एक ओर तो सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को प्रबोधन और प्रेरणा के माध्यम से पुष्ट करने का काम करना चाहिये, दूसरी ओर सरकार से मुक्त करने का भी प्रयास होना चाहिये । वास्तव में शिक्षा सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, अंग्रेजी शासन के प्रभाव में यह सरकार की बाध्यता बन गई है । सरकारी ढंग से चलने वाला कोई भी काम ऐसे ही चलेगा । इसमें सरकार का दोष नहीं है । लोकतन्त्र में भी ऐसे ही चलेगा । इसमें लोकतन्त्र का भी दोष नहीं है । वास्तव में शिक्षा यदि इस प्रकार चलनी है तो समाज शिक्षित होगा ऐसी अपेक्षा ही नहीं करनी चाहिये । सरकार से मुक्त होने पर ही कुछ किया जा सकता है।
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सरकार से शिक्षा को मुक्त करने के लिये समाज को इस दायित्व को स्वीकार करना होगा । समाज आज इस मानसिकता में नहीं है। निजी संस्थायें कुछ विद्यालय तो चला लेंगी परन्तु देश की इतनी जनसंख्या के लिये आवश्यक है उतनी संख्या में विद्यालय चलाना उसके बस की बात नहीं। यह भी समाज प्रबोधन का ही बहुत बडा विषय है। शिक्षा की स्वायत्तता की माँग करने वाले लोगों और संगठनों को इस विषय में विचार करना होगा।
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6. कुछ इस प्रकार उपाय हो सकते हैं।
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1. सभी शिक्षित मातापिता अपने बच्चों को स्वयं पढायेंगे, साथ ही जो स्वयं अपने बच्चों को नहीं पढा सकते ऐसे मातापिता को बच्चों को भी पढायेंगे ऐसा विचार प्रस्तुत करना चाहिये । भोजन, वस्त्र, औषध आदि की व्यवस्था जिस प्रकार अपनी जिम्मेदारी पर की जाती है उसी प्रकार शिक्षा की भी व्यवस्था की जाय इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं लगना चाहिये ।
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2. दस वर्ष की आयु तक की शिक्षा तो इसी प्रकार से चल सकती है । चलनी भी चाहिये । एक शिक्षक को पाँच विद्यार्थी होना शिक्षा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अच्छा होगा दस वर्ष की आयु के बाद कुछ सामूहिक शिक्षा की व्यवस्था का विचार करना होगा । हर सोसाइटी अपना अपना विद्यालय भी चलाये ऐसा
    
कानून, सुविधा, सामग्री, fem, (२) पढ़ाने न पढ़ाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त
 
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