आवासीय विद्यालय यदि गुरुकुलों के समान और विशेष सांस्कृतिक उद्देश्य और पद्धति से नहीं चलाये गये तो दो पीढियों में अन्तर निर्माण करने के निमित्त बन जाते हैं । वैसे भी वर्तमान वातावरण में मातापिता और सन्तानों में दूरत्व निर्माण करने वाले अनेक साधन उत्पन्न हो ही गये हैं उनमें यह एक बडा निमित्त जुड़ जाता है। दो पीढियों में समरस सम्बन्ध निर्माण नहीं होने से सांस्कृतिक परम्परा खण्डित होती है । परम्परा खण्डित होना किसी भी समाज के लिये घाटे का ही सौदा होता है । इसलिये समाज हितचिन्तक हमेशा परम्परा को बनाये रखने हेतु हर सम्भव प्रयास करने का ही परामर्श देते हैं। | आवासीय विद्यालय यदि गुरुकुलों के समान और विशेष सांस्कृतिक उद्देश्य और पद्धति से नहीं चलाये गये तो दो पीढियों में अन्तर निर्माण करने के निमित्त बन जाते हैं । वैसे भी वर्तमान वातावरण में मातापिता और सन्तानों में दूरत्व निर्माण करने वाले अनेक साधन उत्पन्न हो ही गये हैं उनमें यह एक बडा निमित्त जुड़ जाता है। दो पीढियों में समरस सम्बन्ध निर्माण नहीं होने से सांस्कृतिक परम्परा खण्डित होती है । परम्परा खण्डित होना किसी भी समाज के लिये घाटे का ही सौदा होता है । इसलिये समाज हितचिन्तक हमेशा परम्परा को बनाये रखने हेतु हर सम्भव प्रयास करने का ही परामर्श देते हैं। |