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महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और शोधसंस्थानों में स्वतन्त्र छात्रालयों में रहनेवाले विद्यार्थी अनेक प्रकार के सांस्कृतिक संकटों से घिर जाते हैं, अनेक सांस्कृतिक संकट निर्माण भी करते हैं जिन्हें वे मुक्तता और सुख मानते हैं। धूम्रपान करने वाली लडकियाँ, युवकयुवतियों की मित्रता और पराकाष्ठा की उनकी निकटता, शराब जैसे व्यसन इस प्रकार के छात्रावासों में सहज होता है। इनमें गम्भीर अध्ययन कनरेवाले विद्यार्थी भी होते ही हैं परन्तु इन दूषणों से बचना अत्यन्त कठिन हो जाता है । इन युवाओं के लिये सारे उत्सव सांस्कृतिक नहीं अपितु मनोरंजन के साधन ही होते हैं ।
महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और शोधसंस्थानों में स्वतन्त्र छात्रालयों में रहनेवाले विद्यार्थी अनेक प्रकार के सांस्कृतिक संकटों से घिर जाते हैं, अनेक सांस्कृतिक संकट निर्माण भी करते हैं जिन्हें वे मुक्तता और सुख मानते हैं। धूम्रपान करने वाली लडकियाँ, युवकयुवतियों की मित्रता और पराकाष्ठा की उनकी निकटता, शराब जैसे व्यसन इस प्रकार के छात्रावासों में सहज होता है। इनमें गम्भीर अध्ययन कनरेवाले विद्यार्थी भी होते ही हैं परन्तु इन दूषणों से बचना अत्यन्त कठिन हो जाता है । इन युवाओं के लिये सारे उत्सव सांस्कृतिक नहीं अपितु मनोरंजन के साधन ही होते हैं ।
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आवासीय विद्यालय यदि गुरुकुलों के समान और विशेष सांस्कृतिक उद्देश्य और पद्धति से नहीं चलाये गये तो दो पीढियों में अन्तर निर्माण करने के निमित्त बन जाते हैं । वैसे भी वर्तमान वातावरण में मातापिता और सन्तानों में दूरत्व
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आवासीय विद्यालय यदि गुरुकुलों के समान और विशेष सांस्कृतिक उद्देश्य और पद्धति से नहीं चलाये गये तो दो पीढियों में अन्तर निर्माण करने के निमित्त बन जाते हैं । वैसे भी वर्तमान वातावरण में मातापिता और सन्तानों में दूरत्व निर्माण करने वाले अनेक साधन उत्पन्न हो ही गये हैं उनमें यह एक बडा निमित्त जुड़ जाता है। दो पीढियों में समरस सम्बन्ध निर्माण नहीं होने से सांस्कृतिक परम्परा खण्डित होती है । परम्परा खण्डित होना किसी भी समाज के लिये घाटे का ही सौदा होता है । इसलिये समाज हितचिन्तक हमेशा परम्परा को बनाये रखने हेतु हर सम्भव प्रयास करने का ही परामर्श देते हैं।
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आज समाज में धनवान लोगों की यह मानसिकता भी बढने लगी है कि अच्छी पढाई हेतु अपनी सन्तानों को बडे नगरों में या विदेशों में भेजना अच्छा है। ऐसा नहीं है कि ऐसी पढाई हेतु अपने ही स्थान पर कोई महाविद्यालय नहीं है। परन्तु महानगरों, दूर स्थित महानगरों और विदेशों का दोनों पीढियों को आकर्षण है । बडों को उसमें प्रतिष्ठा का अनुभव होता है और युवाओं को प्रतिष्ठा के साथ साथ मुक्ति का भी अनुभव होता है । अपनी सन्तानों के भले के लिये ही
आवासीय विद्यालयों में कुछ विद्यार्थियों को दिन में
आवासीय विद्यालयों में कुछ विद्यार्थियों को दिन में