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7. पूरे दिन के विद्यालय में या तो शिक्षकों की संख्या अधिक होती है अथवा उनका वेतन अधिक होता है। अधिकांश शिक्षक अधिक काम और अधिक वेतन चाहते हैं परन्तु वास्तव में अधिक शिक्षक होना शैक्षिक दृष्टि से अधिक उचित है। ऐसा होने से शिक्षक - विद्यार्थी का अनुपात कम हो जाता है, साथ ही शिक्षकों को शारीरिक और मानसिक थकान कम होती है। शिक्षक - विद्यार्थी का अनुपात कम होने से अध्ययन-अध्यापन की गुणवत्ता बढती है । यदि शिक्षक अधिक समय तक काम करते हैं तो उन्हें स्वाध्याय करने के लिये समय नहीं मिलता और शक्ति भी नहीं बचती।।  
 
7. पूरे दिन के विद्यालय में या तो शिक्षकों की संख्या अधिक होती है अथवा उनका वेतन अधिक होता है। अधिकांश शिक्षक अधिक काम और अधिक वेतन चाहते हैं परन्तु वास्तव में अधिक शिक्षक होना शैक्षिक दृष्टि से अधिक उचित है। ऐसा होने से शिक्षक - विद्यार्थी का अनुपात कम हो जाता है, साथ ही शिक्षकों को शारीरिक और मानसिक थकान कम होती है। शिक्षक - विद्यार्थी का अनुपात कम होने से अध्ययन-अध्यापन की गुणवत्ता बढती है । यदि शिक्षक अधिक समय तक काम करते हैं तो उन्हें स्वाध्याय करने के लिये समय नहीं मिलता और शक्ति भी नहीं बचती।।  
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8. पूरे दिन के विद्यालयों में सप्ताह में दो दिन का अवकाश होता है तो अधिक सुविधा रहती है। विद्यार्थियों और शिक्षकों में सामाजिकता का विकास हो इस दृष्टि से इस समय का उपयोग किया जाना चाहिये । विद्यार्थियों और शिक्षकों में सामाजिकता का विकास हो इस दृष्टि से शिक्षा भी दी जानी चाहिये । आज ऐसा दिखाई देता है कि पढाई जिनके पीछे लग गई है ऐसे विद्यार्थी सामाजिक व्यवहार में शून्य होते
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8. पूरे दिन के विद्यालयों में सप्ताह में दो दिन का अवकाश होता है तो अधिक सुविधा रहती है। विद्यार्थियों और शिक्षकों में सामाजिकता का विकास हो इस दृष्टि से इस समय का उपयोग किया जाना चाहिये । विद्यार्थियों और शिक्षकों में सामाजिकता का विकास हो इस दृष्टि से शिक्षा भी दी जानी चाहिये । आज ऐसा दिखाई देता है कि पढाई जिनके पीछे लग गई है ऐसे विद्यार्थी सामाजिक व्यवहार में शून्य होते हैं । काम में अति व्यस्त शिक्षक सामाजिक व्यवहार में समय ही नहीं दे पाते । दोनों को यदि सामाजिकता की शिक्षा नहीं दी गई तो अवकाश का समय टीवी या अन्य व्यक्तिगत रुचि के काम या मनोरंजन में ही बीत जाता है । ऐसा न हो इसका ध्यान रखना चाहिये ।
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परन्तु दो दिन का अवकाश है इसलिये विद्यालय का ही काम गृहकार्य के रूप में करने के लिये नहीं देना चाहिये, नहीं तो अन्य किसी भी प्रकार के कामों के लिये समय ही नहीं रहेगा।
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9. पूरे दिन के विद्यालय की व्यवस्था ऐसी तो नहीं होनी चाहिये कि विद्यार्थियों को बाद में खेलने का समय ही न रहे । या तो विद्यालय में खेलने की व्यवस्था हो या खेलने का ही गृहकार्य दिया जाय । घर में खेलने की व्यवस्था होना आवश्यक है। यदि घर में ऐसी व्यवस्था नहीं है तो विद्यालय में खेलना चाहिये ।
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10. पूरे दिन के विद्यालय में बस्ता विद्यालय में ही रखकर जाने की व्यवस्था होना स्वाभाविक है। इससे विद्यार्थियों को बस्ते का बोझ उठाना नहीं पडता ।
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11. दस वर्ष की आयु तक पूरे दिन का विद्यालय होने की कोई आवश्यकता नहीं । पन्द्रह वर्ष के बाद भी ऐसी आवश्यकता नहीं । यह ग्यारह से पन्द्रह ऐसे पाँच वर्षों के लिये ही सबसे अधिक लाभदायी व्यवस्था हो सकती है । इस दौरान विद्यार्थी यदि साइकिल लेकर ही विद्यालय जाते हैं तो हर दृष्टि से अच्छा रहेगा।
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12. पूरे दिन के विद्यालय में समयसारिणी और पाठन पद्धति में विशेष प्रयोग करने की सुविधा रहती है । इसका पूरा लाभ उठाना चाहिये । क्रियात्मक पद्धति से अध्ययन करने के अवसर विद्यार्थियों को मिलने चाहिये । ग्रन्थालय, विज्ञान प्रयोगशाला और उद्योगशाला में क्रियात्मक अध्ययन करने के अवसर मिलने चाहिये ।
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13. पूरे दिन के विद्यालय में जीवन व्यवहार की शिक्षा देने की व्यवस्था भी हो सकती है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि विद्यार्थियों को पढाई के बोझ से ही लाद दिया जाय । वास्तव में पूरे दिन के विद्यालय में सामान्य विद्यालय से दो घण्टे ही अधिक मिलते
    
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
 
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
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