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| 12. पूरे दिन के विद्यालय में समयसारिणी और पाठन पद्धति में विशेष प्रयोग करने की सुविधा रहती है । इसका पूरा लाभ उठाना चाहिये । क्रियात्मक पद्धति से अध्ययन करने के अवसर विद्यार्थियों को मिलने चाहिये । ग्रन्थालय, विज्ञान प्रयोगशाला और उद्योगशाला में क्रियात्मक अध्ययन करने के अवसर मिलने चाहिये । | | 12. पूरे दिन के विद्यालय में समयसारिणी और पाठन पद्धति में विशेष प्रयोग करने की सुविधा रहती है । इसका पूरा लाभ उठाना चाहिये । क्रियात्मक पद्धति से अध्ययन करने के अवसर विद्यार्थियों को मिलने चाहिये । ग्रन्थालय, विज्ञान प्रयोगशाला और उद्योगशाला में क्रियात्मक अध्ययन करने के अवसर मिलने चाहिये । |
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− | 13. पूरे दिन के विद्यालय में जीवन व्यवहार की शिक्षा देने की व्यवस्था भी हो सकती है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि विद्यार्थियों को पढाई के बोझ से ही लाद दिया जाय । वास्तव में पूरे दिन के विद्यालय में सामान्य विद्यालय से दो घण्टे ही अधिक मिलते | + | 13. पूरे दिन के विद्यालय में जीवन व्यवहार की शिक्षा देने की व्यवस्था भी हो सकती है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि विद्यार्थियों को पढाई के बोझ से ही लाद दिया जाय । वास्तव में पूरे दिन के विद्यालय में सामान्य विद्यालय से दो घण्टे ही अधिक मिलते हैं । अतः अनेक प्रकार की और अत्यधिक अपेक्षयें नहीं करनी चाहिये । वैसे तो विद्यालय और घर दोनों स्थानों पर जो पढाई होती है वह इस व्यवस्था में एक ही स्थान पर होती है इतना ही अन्तर मानना चाहिये । केवल यहाँ सब कुछ शिक्षकों के मार्गदर्शन में होता है यह विशेष है । |
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− | परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
| + | 14. पूरे दिन के विद्यालय का समय प्रातःकाल सात बजे से शुरू होता है तो उत्तम। इससे विद्यार्थियों को प्रातः काल जल्दी उठने का अभ्यास सहज ही होता है। सायंकाल खेलने के बाद यदि छ: बजे वापस जाना है तो वह भी सही होगा। अभिभावकों और शिक्षकों की सहमति से समय का निर्धारण होना आवश्यक है। |
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− | © विद्यालय की आन्तरिक व्यवस्थाओं का मामला
| + | 15. आवासीय विद्यालय से अधिक व्यापक रूप में, अधिक संख्या में पूरे दिन के विद्यालय का प्रयोग हो सकता है। आवासी विद्यालय जैसी अधिक व्यवस्थायें नहीं करनी पडतीं यह एक सुविधा है और विद्यार्थी विद्यालय में अधिक समय तक रहने पर भी अपने परिवार में ही रह सकते हैं । |
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− | प्रथम हाथ में लेना चाहिये । जो शिक्षकों के हाथ में
| + | इस दृष्टि से पूरे दिन के विद्यालयों का शैक्षिक दृष्टि से अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है । |
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− | है वह पहले करना चाहिये । उदाहरण के लिये
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− | | |
− | समयसारिणी में परिवर्तन कर सकते हैं । विद्यालय के
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− | | |
− | समय में भी परिवर्तन हो सकता है । गृहकार्य,
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− | | |
− | पाठ्यपुस्तक से बाहर की शैक्षिक तथा अन्य
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− | | |
− | गतिविधियाँ आदि में बदल कर सकते हैं । इनमें
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− | मौलिकता, सृजनशीलता, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास
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− | | |
− | आदि को अधिकाधिक अवसर दिया जा सकता है |
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− | | |
− | धीरे धीरे इस विषय की चर्चा अभिभावकों के साथ
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− | | |
− | करते हुए यथासम्भव परिवर्तन किया जा सकता है ।
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− | | |
− | उन्हें ही अपने बालक के मूल्यांकन का अवसर दिया
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− | | |
− | जा सकता है, उसकी सम्भावनाओं की चर्चा की जा
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− | सकती है ।
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− | | |
− | यह प्रश्न बहुत धीरे धीरे हल होने
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− | | |
− | वाला प्रश्न है यह व्यवस्था का नहीं, समझ का प्रश्न है । समझ
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− | | |
− | धीरे धीरे खुलती जाती है, विकसित होती जाती है ।
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− | | |
− | यह केवल एक विद्यालय का विषय नहीं है । केवल
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− | | |
− | प्राथमिक या उच्च शिक्षा का विषय नहीं है । देखा जाय तो
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− | | |
− | सम्पूर्ण जीवन का विषय है । यह भारतीय और अभारतीय
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− | | |
− | जीवनदृष्टि का विषय है ।
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− | | |
− | परन्तु परिवर्तन का प्रारम्भ मूल से और बहुत छोटी बातों
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− | | |
− | से किया जाता है । केवल चिन्तन के स्तर पर परिवर्तन होने
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− | | |
− | से काम नहीं चलता, व्यवहार में होने की आवश्यकता होती
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− | | |
− | है । तत्त्व कितना भी श्रेष्ठ हो, जब तक वह व्यवहार का रूप
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− | | |
− | धारण नहीं करता, परिणामकारी नहीं होता ।
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− | | |
− | इस मुद्दे को ध्यान में रखकर विद्यालय में परिवर्तन करने
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− | | |
− | का प्रारम्भ करना चाहिये ।
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− | विद्यालयीन शिष्टाचार
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− | व्यवहार कैसा होना चाहिये ?
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− | | |
− | अच्छे लोग एक दूसरे से बहुत शालीन ढंग से पेश
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− | | |
− | आते हैं । उनकी भाषा, उनकी देहबोली (atest as),
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− | | |
− | उनका सर्व प्रकार का व्यवहार संयत, शिष्ट और संस्कारी
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− | | |
− | होता है ।
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− | | |
− | विद्यालय भी सज्जनों जैसे व्यवहार की अपेक्षा करता
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− | | |
− | है। शिक्षकों का शिक्षकों, मुख्याध्यापक, संचालकों ,
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− | | |
− | अभिभावकों के साथ, विद्यार्थियों का विद्यार्थियों और
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− | | |
− | शिक्षकों के साथ, अभिभावकों का शिक्षकों के साथ,
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− | | |
− | संचालकों के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिये ?
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− | | |
− | कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं
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− | | |
− | १, संचालक, मुख्यध्यापक, शिक्षक, विद्यार्थी और
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− | अभिभावक मिलकर विद्यालय परिवार बनता है । इस
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− | | |
− | परिवार का मुखिया मुख्याध्यापक है यह बात
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− | | |
− | सर्वस्वीकृत बनने की आवश्यकता है । वर्तमान में
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− | | |
− | संचालक अपने आपको बडे मानते हैं, संचालक
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− | | |
− | मंडल का अध्यक्ष सबसे बडा माना जाता है और
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− | | |
− | Range, tra मुख्याध्यापक भी इस व्यवस्था का
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− | | |
− | ge
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− | | |
− | स्वीकार कर लेते हैं ।
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− | परन्तु यह मामला ठीक तो कर ही लेना चाहिये ।
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− | भारतीय शिक्षा संकल्पना तो यह स्पष्ट कहती है कि
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− | शिक्षा शिक्षकाधीन होती है । यह केवल सिद्धान्त
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− | नहीं है, केवल प्राचीन व्यवस्था नहीं है, उन्नीसवीं
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− | शताब्दी तक इसी व्यवस्था में हमारे विद्यालय चलते
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− | | |
− | आये हैं । अतः यह अभी अभी तक चलती रही
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− | हमारी दीर्घ परम्परा भी है। ब्रिटिशों ने इसे
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− | उल्टापुल्टा कर दिया । उसे अभी दो सौ वर्ष ही हुए
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− | | |
− | हैं। हम बीच के दो सौ वर्ष लाॉँघकर अपनी परम्परा
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− | | |
− | से चलें यह आवश्यक है । थोडा विचारशील बनने से
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− | | |
− | यह हमारे लिये स्वाभाविक बन सकता है ।
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− | २... अतः समस्त विद्यालय परिवार मुख्याध्यापक का
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− | | |
− | आदर करे और आदरपूर्वक अभिवादन करे यह
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− | | |
− | आवश्यक है । आदर दशनि का सम्बोधन क्या हो
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− | | |
− | और अभिवादन के शब्द क्या हों यह विद्यालय
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− | | |
− | अपनी पद्धति से निश्चित कर सकते हैं । अभिवादन
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− | | |
− | की पद्धति क्या हो यह भी विद्यालय स्वतः निश्चित
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− | कर सकता है । परन्तु अंग्रेजी के सर या
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− | मेडम, गुड मोर्निंग, हलो, हस्तधूनन आदि न हों यही
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− | | |
− | उचित है ।
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− | 3. शिक्षकों का आपस में सम्बोधन और अभिवादन के
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− | शब्द तथा पद्धति क्या हो यह भी विचारणीय है ।
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− | | |
− | यहाँ भी सर, मैडम, हाय, हलो, हस्तधूनन अच्छा
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− | नहीं है ।
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− | विद्यार्थी शिक्षकों को क्या सम्बोधन करें ? कैसे
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− | | |
− | अभिवादन करें ? क्या पद्धति अपनायें ? विद्यार्थियों
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− | | |
− | को केवल अभिवादन नहीं करना है, सम्मान भी
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− | | |
− | करना है । कैसे सम्मान करें ? विद्यार्थी यदि प्रणाम
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− | | |
− | या चरणस्पर्श करें तो शिक्षक उन्हें क्या आशीर्वाद
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− | | |
− | दें ? विद्यार्थी को कैसे सम्बोधित करें ?
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− | | |
− | क्या महाविद्यालय के विद्यार्थियों की पद्धति प्राथमिक
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− | | |
− | विद्यालय के विद्यार्थियों से भिन्न होगी ? या वैसी ही
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− | | |
− | होगी ? क्या उन्हें दिया जानेवाला आशीर्वाद भी
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− | | |
− | भिन्न होगा ? या एक ही होगा ?
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− | कक्षा में शिक्षक आयें तब विद्यार्थी उनका कैसे
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− | सम्मान करें ? शिक्षक कक्षा में हैं तब तक कैसे
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− | विनय दृशायिं ? कक्षा के बाहर जायें तब कैसे सम्मान
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− | | |
− | करें ? विद्यालय के बाहर कहीं शिक्षक सामने आ
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− | जायें तो विद्यार्थी कया करें ?
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− | अपनी सन्तान के शिक्षक के साथ अभिभावक कैसे
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− | व्यवहार करें ? अभिभावक यदि मन्त्री है अधिकारी
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− | है या उद्योजक है तो उसका शिक्षक के साथ और
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− | शिक्षक का अभिभावक के साथ कैसा व्यवहार
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− | होगा ?
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− | विद्यार्थी आपस में कैसे अभिवादन करें ?
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− | | |
− | विद्यालय में क्या करना चाहिये क्या नहीं करना
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− | | |
− | चाहिये इन सारी बातों का बडा शास्त्र बन सकता है,
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− | | |
− | पद्धतियों का विस्तृत विवरण किया जा सकता है ।
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− | कुल मिलाकर यह अत्यन्त आवश्यक विषय है ।
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− | शिक्षक के लिये सम्बोधन गुरुजी या आचार्य होना
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− | स्वाभाविक है । परापूर्व से यही चलता आया है । शिक्षक
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− | | |
− | विद्यार्थी को छात्र कहे यह भी स्वाभाविक है । छात्र का
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− | GC
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | अर्थ है शिक्षक के छत्र के नीचे रहकर जो अध्ययन करता
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− | | |
− | है वह छात्र । जो स्वयं अध्ययन करता है वह विद्यार्थी
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− | | |
− | अवश्य होता है, छात्र नहीं होता । आचार्य उस शिक्षक को
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− | | |
− | कहा जाता है जो स्वयं आचारवान है और छात्रों को
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− | | |
− | आचार सिखाता है । इस सम्बोधन में ही शिक्षा आचरण में
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− | | |
− | उतरने से ही सार्थक होती है यह भाव है । आचरण से ही
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− | | |
− | तो व्यवहार चलता है ।
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− | विनयशील व्यवहार का अर्थ
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− | | |
− | विद्यार्थी का शिक्षक के प्रति विनयशील व्यवहार
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− | होना चाहिये इसका अर्थ क्या है ?
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− | | |
− | १, शिक्षक कक्षा में आयें उससे पूर्व सभी विद्यार्थियों
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− | | |
− | को उपस्थित हो जाना चाहिये । बाद में आना ठीक नहीं ।
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− | | |
− | शिक्षक आयें तब विद्यार्थियों ने खडे होकर सम्मान करना
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− | | |
− | चाहिये । दोनों हाथ जोडकर प्रणाम कर “प्रणाम आचार्यजी'
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− | | |
− | कहना चाहिये । कहीं कहीं “Ane? ar “AAT गुरुभ्यः'
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− | | |
− | कहने का भी प्रचलन है । यह अपना अपना शिष्टाचार है,
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− | | |
− | विद्यालय स्वयं तय कर सकता है।. जब विद्यार्थी
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− | | |
− | अभिवादन करते हैं तब शिक्षक को भी प्रत्युत्तर में
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− | | |
− | आशीर्वाद देने चाहिये । आजकल विद्यार्थी “गुड मोर्निंग'
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− | | |
− | कहते हैं तो शिक्षक भी वही कहते हैं, विद्यार्थी “नमस्ते'
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− | | |
− | कहते हैं तो शिक्षक भी “नमस्ते” कहते हैं । इस समानता के
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− | | |
− | स्थान पर शिक्षक बडप्पन दिखा सकते हैं । उन्हें आशीर्वाद
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− | | |
− | सूचक “शुभं भवतु' कहना चाहिये । और भी समानार्थी शब्द
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− | | |
− | हो सकते हैं । कक्षा पूर्ण होने पर शिक्षक जब जाते हैं तब
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− | | |
− | भी विद्यार्थियों ने खडे होकर “प्रणाम आचार्यजी' कहना
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− | | |
− | चाहिये । कहीं कहीं बैठे बैठे भूमि पर माथा टेककर “नमो
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− | | |
− | Tea: कहने का भी प्रचलन है । इस समय शिक्षक ने भी
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− | | |
− | आशीर्वाद देने चाहिये ।
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− | | |
− | २. शिक्षक के जाने तक विद्यार्थियों को रुकना
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− | | |
− | चाहिये । शिक्षक से पहले कक्षा नहीं छोडनी चाहिये ।
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− | | |
− | कक्षा चल रही है तब तक बीच में से छोड़कर नहीं जाना
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− | | |
− | चाहिये ।
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− | | |
− | ३. कक्षा चल रही हो तब विद्यार्थी आपस में बातें न
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− | | |
− | करें । अपना और कोई काम न करें, खायें पीयें नहीं यह भी
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− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | | |
− | आवश्यक है । आजकल पानी की बोतल सबके साथ रहती
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− | | |
− | है और प्यास लगे तब पानी पीना सबको स्वाभाविक लगता
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− | | |
− | है । लघुशंका के लिये भी बीच में ही जाना स्वाभाविक माना
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− | | |
− | जाता है। आवेगों को नहीं रोकना चाहिये ऐसा शास्त्रीय
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− | | |
− | कारण भी दिया जाता है । यह सब तो ठीक है परन्तु कक्षा
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− | | |
− | प्रारम्भ होने से पूर्व ही इन कामों को निपट लेने की सावधानी
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− | | |
− | सिखाना चाहिये । एक साथ कम से कम दो घण्टे बिना पानी
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− | | |
− | के, बिना लघुशंका गये काम कर सकें ऐसा अभ्यास होना
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− | | |
− | चाहिये । यह तो सभाओं और कार्यक्रमों में पालन किया
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− | | |
− | जाना चाहिये ऐसा शिष्टाचार है। कक्षाकक्षों में ही इसके
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− | | |
− | संस्कार होते हैं । यहाँ नहीं हुए तो जीवन में भी नहीं आते ।
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− | | |
− | घरों में और समाज में कक्षाकक्षों से ही पहुँचते हैं ।
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− | | |
− | ४. अनिवार्य कारण से यदि बीच में ही कक्षा के
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− | | |
− | अन्दर आना पडे या बाहर जाना पडे, बिना अनुमति के
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− | | |
− | नहीं आना चाहिये । अनुमति माँगने पर मिलेगी ही या देनी
| |
− | | |
− | ही चाहिये ऐसा नियम नहीं है । अनुमति देना या नहीं देना
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− | | |
− | शिक्षक के विवेक पर निर्भर करता है । (मर्जी पर नहीं) ।
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− | | |
− | ५. कक्षा चल रही है तब शिक्षक की अनुमति के
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− | | |
− | बिना विद्यार्थी तो क्या कोई भी नहीं आ सकता, यहाँ तक
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− | | |
− | कि मुख्याध्यापक भी नहीं । जिस प्रकार मुख्याध्यापक
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− | | |
− | विद्यालय का मुखिया है, शिक्षक अपनी कक्षा का मुखिया
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− | | |
− | है। उसकी आज्ञा या अनुमति के बिना कुछ नहीं हो
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− | | |
− | सकता । आजकल निरीक्षण करने के लिये आये हुए
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− | | |
− | सरकारी शिक्षाविभाग के अधिकारी अनुमति माँगने की
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− | | |
− | शिष्टता नहीं दर्शाते, परवाह भी नहीं करते । परन्तु यह होना
| |
− | | |
− | अपेक्षित है ।
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− | | |
− | ६. कक्षा में शिक्षक के आसन पर और कोई नहीं
| |
− | | |
− | बैठ सकता । कक्षा के बाहर अनेक व्यक्ति आयु में, ज्ञान
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− | | |
− | में, अधिकार में शिक्षक से बडे हो सकते हैं, वहाँ शिक्षक
| |
− | | |
− | उनका उचित सम्मान करेगा परन्तु कक्षा के अन्दर सब
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− | | |
− | शिक्षक का ही सम्मान करेंगे ।
| |
− | | |
− | विद्यार्थियों को भी इस बात की जानकारी होनी
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− | | |
− | चाहिये, अन्यथा वे स्वयं ही खडे हो जाते हैं । शिक्षक का
| |
− | | |
− | सम्मान करना है यह विषय शिक्षक स्वयं नहीं बतायेंगे,
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− | | |
− | मुख्याध्यापक ने स्वयं विद्यालय के सभी छात्रों को सिखानी
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− | | |
− | &S
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− | | |
− | कक्षा में यदि मुख्याध्यापक या कोई वरिष्ठ अधिकारी
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− | | |
− | या कोई सन्त आते हैं तब शिक्षक स्वयं विद्यार्थियों को खडे
| |
− | | |
− | होकर प्रणाम करने की आज्ञा दे यही उचित पद्धति है ।
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− | | |
− | ७. कभी कभी मुख्याध्यापक, अन्य शिक्षक,
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− | | |
− | अभिभावक या निरीक्षक भिन्न भिन्न कारणों से कक्षा देखना
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− | | |
− | चाहते हैं । तब शिष्टाचार यह कहता है कि वे सब
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− | | |
− | विद्यार्थियों की तरह कक्षा शुरु होने से पूर्व, शिक्षक कक्षा में
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− | | |
− | आने से पूर्व कक्षा में पीछे जाकर बैठें और शिक्षक जब
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− | | |
− | आयें, विद्यार्थियों की तरह शिक्षक को आदर दें और कक्षा
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− | | |
− | के अनुशासन का पालन करें । विद्यार्थियों को यह अनुभव
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− | | |
− | न होने दें कि कक्षा में शिक्षक से भी बडा कोई होता है ।
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− | | |
− | ८. कक्षा में शिक्षक जब तक खडे हों विद्यार्थी बैठने
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− | | |
− | में संकोच करेंगे । वे बैठें यह उचित भी नहीं है। वह
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− | | |
− | अशिष्ट आचरण है । अतः बैठकर पढाना, उत्तर आदि
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− | | |
− | जाँचने की आवश्यकता हो तो विद्यार्थी का उठकर शिक्षक
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− | | |
− | के पास जाना उचित है । शिक्षक खडे होकर पढ़ायें । स्वयं
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− | | |
− | विद्यार्थी के पास जायें ऐसी व्यवस्था उचित नहीं है । एक
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− | | |
− | बार इस सिद्धान्त का स्वीकार हुआ तो उसके अनुकूल सारी
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− | | |
− | व्यवस्थायें हो सकती हैं। आजकल तो हम पाश्चात्य
| |
− | | |
− | सिद्धान्त के अनुसार चलते हैं इसलिये शिक्षक से खडे खडे
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− | | |
− | पढ़ाने की अपेक्षा करते हैं, फिर उसमें सुविधा देखते हैं ।
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− | | |
− | वास्तव में सभाओं में भाषण भी बैठकर होने चाहिये ।
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− | | |
− | निवेदन करना है तभी खडा होकर किया जाता है, प्रवचन,
| |
− | | |
− | विषय प्रस्तुति, उपदेश, आदि खडे होकर नहीं दिये जातें ।
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− | | |
− | ९. कक्षा में या कक्षा के बाहर विद्यालय परिसर में
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− | | |
− | शिक्षक आज्ञा करें, सूचना दें और विद्यार्थी उसका पालन न
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− | | |
− | करें यह सम्भव ही नहीं है । जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी
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− | | |
− | अच्छे हों वहाँ देर से आये, अशिष्ट आचरण किया, गृहकार्य
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− | | |
− | नहीं किया, सूचना या आज्ञा का पालन नहीं किया ऐसा हो
| |
− | | |
− | ही नहीं सकता । दोनों का अच्छा होना पहली आवश्यकता
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− | | |
− | है । दोनों अच्छे नहीं हैं तब तक अध्ययन अध्यापन हो ही
| |
− | | |
− | नहीं सकता । इसलिये अच्छाई प्रथम सिखाना चाहिये, बाद
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− | | |
− | में विषय ।
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− | | |
− | ये तो आचरण के विषय हैं । विद्यार्थी छोटे होते हैं
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | तब तो वे सरलता से यह सब करते हैं... साथ अविनयशील व्यवहार करते हैं, मातापिता घर में
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− | | |
− | परन्तु अच्छे और सही आचरण का स्रोत हृदय के भाव होते. शिक्षक के सन्दर्भ में अविनयशील सम्भाषण करते हैं,
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− | | |
− | हैं। शिक्षक के हृदय में विद्यार्थियों के प्रति प्रेम और सरकार विद्यार्थियों के पक्ष में होती है, न्यायालय में शिक्षक
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− | | |
− | विद्यार्थियों के हृदय में शिक्षक के प्रति श्रद्धा ही विनयशील और विद्यार्थी समान माने जाते हैं - ऐसे अनेक कारणों से
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− | | |
− | आचरण का स्रोत है । विद्यार्थियों में श्रद्धा के भाव का स्रोत... विद्यार्थी विनय छोड़कर उद्दण्ड बन जाते हैं । वास्तव में
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− | | |
− | भी शिक्षक के हृदय का प्रेम ही है । जब यह होता है तब. पढने के लिये पात्रता प्राप्त करना और जब तक वह पात्रता
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− | | |
− | विद्यार्थी बडे होते हैं तब विनयशील बने रहते हैं, नहीं तो. प्राप्त नहीं करता तब तक उसे नहीं पढाना विद्यार्थी और
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− | | |
− | किशोर आयु के विद्यार्थियों के लिये विनयशील होना कठिन... शिक्षक का धर्म है । शिक्षक और विद्यार्थी के बीच अन्य
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− | | |
− | हो जाता है । महाविद्यालय के विद्यार्थी विनयशील बने रहें... अनेक व्यवस्थायें आ गई हैं इसलिये इस धर्म की भी
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− | | |
− | इसके लिये शिक्षक में प्रेम और आचारनिष्ठा के साथ साथ... अवज्ञा होने लगी है । परन्तु शिक्षाक्षेत्र में चिन्ता करने योग्य
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− | | |
− | ज्ञाननिष्ठा भी आवश्यक होती है । शिक्षक में यदि ये तीन... ये भी बातें हैं और पर्याप्त महत्त्व रखती हैं यह मानकर कुछ
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− | | |
− | नहीं हैं तो युवा विद्यार्थियों का विनयशील होना कठिन हो... उपाय किये जाने चाहिये ।
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− | | |
− | जाता है ।
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− | | |
− | 2. शिक्षक और मुख्याध्यापक के आपसी व्यवहार
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− | | |
− | 9. शिक्षक के हृदय में प्रेम, आचारनिष्टा व में भी शिष्ट आचरण अपेक्षित है ।
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− | | |
− | ज्ञाननिष्ठा का अभाव विद्यालय मुख्याध्यापक का है और सारे शिक्षक तथा
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− | | |
− | आज का शिक्षाक्षेत्र का संकट हम समझ सकते हैं ।... अन्य कर्मचारी उसके सहयोगी हैं यह व्यवस्था है । परन्तु
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− | | |
− | शिक्षकों के हृदय में प्रेम, आचार निष्ठा और ज्ञाननिष्ठा का... सबको सहयोगी के स्थान पर सहभागी बनाना और मानना
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− | | |
− | अभाव लगभग सार्वत्रिक बन गया है और वही विद्यार्थियों... मुख्याध्यापक का काम है । मुख्याध्यापक का ज्ञान में,
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− | | |
− | में उद्ण्डता बनकर प्रकट होता है । आचार में, निष्ठा में वरिष्ठ होना अपेक्षित है इसलिये
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− | | |
− | शिक्षक ऐसे गुणवान हों तब भी यदि विद्यार्थी शिक्षकों को केवल आज्ञा करने का ही नहीं तो मार्गदर्शन
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− | | |
− | अविनयशील हो तो वह दण्ड के पात्र हैं । कई कारणों से... करने का भी अधिकार मुख्याध्यापक का है ।
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− | शिक्षक गुणवान होने पर भी विद्यार्थी विद्यार्थी के लक्षण से शिक्षक मुख्याध्यापक को क्या सम्बोधन करें ?
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− | | |
− | युक्त नहीं रहते । तब वे दण्ड के पात्र तो हैं ही, साथ ही सामान्यतः: आचार्यजी कहने का ही प्रचलन है।
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− | | |
− | पढ़ने के भी अधिकारी नहीं रहते । मुख्याध्यापक शिक्षकों को भी आचार्य कहकर ही सम्बोधित
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− | | |
− | विद्यालय परिसर के बाहर भी विद्यार्थी शिक्षक के... करते हैं ।
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− | प्रति विनयशील रहे यह अपेक्षित ही है । यदि नहीं रहता है शिक्षकों की बैठक में, सम्पूर्ण विद्यालय के कार्यक्रमों
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− | | |
− | तो उसके संस्कार और अध्ययन में ही कहीं कमी है ऐसा. में मुख्याध्यापक का स्थान सबसे ऊपर होता है । उनके
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− | | |
− | मान सकते हैं । आने पर सब वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा शिक्षक के
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− | | |
− | अपना पुत्र या पुत्री अपने शिक्षक का सम्मान करे. कक्षा में आने पर विद्यार्थी करते हैं । केवल शिक्षकों को
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− | | |
− | इसके संस्कार घर में मिलने चाहिये । अभिभावकों में भी. मुख्याध्यापक के चरणस्पर्श करना अपेक्षित नहीं है ।
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− | | |
− | शिक्षक के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिये । विनयशील अतिथि, अधिकारी, सन्त, महापुरुष विद्यालय में
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− | | |
− | व्यवहार तो होना ही चाहिये । आजकल अखबारों में. आते हैं तब मुख्याध्यापक ही परिवार के मुखिया के रूप में
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− | | |
− | अनेक प्रकार से शिक्षकों को उपालम्भ और उपदेश दिये. उनका स्वागत और सम्मान करते हैं ।
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− | | |
− | जाते हैं, अधिकारी विद्यार्थियों के सामने ही शिक्षकों के अभिभावक, संचालक, निरीक्षक विद्यालय के
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− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | शिक्षकों और मुख्याध्यापक से बडे नहीं हैं यह उनके हृदय
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− | | |
− | में, मस्तिष्क में और व्यवहार में बिठाना विद्यालय के सभी
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− | | |
− | शिक्षकों का ही काम है । विनय और शिष्टता न छोड़ते हुए
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− | | |
− | ft georges यह बात प्रस्थापित करनी चाहिये ।
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− | | |
− | अभिभावकों के साथ आदर, सम्मान, स्नेह और
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− | | |
− | विनयपूर्वक व्यवहार करते हुए भी यह बात स्पष्ट होनी
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− | चाहिये कि वे कोई ग्राहक नहीं है और विद्यालय कोई
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− | बाजार नहीं है कि उनकी मर्जी को माना जाय या उनका
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− | | |
− | अविनय भी सहा जाय । उन्हें विद्यालय के अनुकूल बनाना
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− | | |
− | है न कि विद्यालय को उनके अनुकूल ।
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− | | |
− | संचालकों के साथ भी इसी प्रकार आदर, सम्मान
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− | | |
− | और विनयपूर्वक व्यवहार करते हुए भी यह बात प्रस्थापित
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− | | |
− | होनी चाहिये कि यह विद्या का क्षेत्र है, ज्ञान का क्षेत्र है,
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− | | |
− | यहाँ ज्ञान की उपासना होती है और वे ज्ञान के उपासकों
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− | | |
− | की सहायता और सहयोग करने वाले हैं, उनके मालिक
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− | | |
− | नहीं है । ज्ञान की प्रतिष्ठा सत्ता या धन से अधिक होती है ।
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− | | |
− | सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मन-
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− | | |
− | मस्तिष्क में यह बात स्पष्ट होनी चाहिये कि वे भी शिक्षक
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− | की तरह व्यवहार करें, शासकीय कर्मचारी की तरह नहीं ।
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− | | |
− | वे शिक्षक ही हैं और उनकी शिक्षक की योग्यता शासकीय
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− | | |
− | कर्मचारी की योग्यता से अधिक है । यदि वे शिक्षक की
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− | | |
− | तरह व्यवहार करते हैं तो समानधर्मी शिक्षक के योग्य आदर
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− | | |
− | सम्मान करेंगे तो उन्हें ही शिक्षकों का सम्मान करना होगा ।
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− | | |
− | सरकार के सचिव, मंत्री आदि जब विद्यालय में आते
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− | | |
− | हैं तब पूरा विद्यालय उनकी सेवा के लिये तत्पर हो जाता
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− | | |
− | है । विश्वविद्यालय के कुलपति भी ऐसा ही करते हैं । मंत्री
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− | | |
− | ही क्यों पार्षद, विधायक या सांसद जैसे जनप्रतिनिधि भी
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− | | |
− | विद्यालय में आते हैं तब उनका व्यवहार ऐसा ही होता है ।
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− | | |
− | वास्तव में होना तो उल्टा चाहिये । हमारी परम्परा तो
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− | | |
− | कहती है कि राजा भी यदि गुरुकुल में आता है तो विनीत
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− | | |
− | वेश धारण करके आता है अर्थात् अपने शासक होने के
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− | | |
− | सारे चिह्न गुरुकुल के बाहर ही छोड़कर आता है । फिर
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− | | |
− | आज क्या हो गया है ? हम कौन सी परम्परा का अनुसरण
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− | | |
− | कर रहे हैं ?
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− | | |
− | आज यदि सही परम्परा को, अपनी परम्परा को
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− | ७१
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− | प्रस्थापित करना है तो शिक्षकों और
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− | विद्यार्थियों ने मिलकर जनप्रतिनिधियों को, मन्त्रियों को,
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− | सचिवों को अतिथि के रूप में आदर और सम्मान तो
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− | | |
− | अवश्य देना चाहिये । उनका स्वागत भी उचित पद्धति से
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− | | |
− | करना चाहिये, हमारी भाषा भी शिष्ट ही होनी चाहिये परन्तु
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− | | |
− | यह भी स्पष्ट होना चाहिये कि उन सबको मुख्याध्यापक,
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− | | |
− | प्राचार्य या कुलपति का अधिक सम्मान करना चाहिये ।
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− | कहने की आवश्यकता नहीं कि शिक्षक समाज को
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− | | |
− | अपने ज्ञान, तप, आचरण, सेवाभाव, सद्भाव और निष्ठा से
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− | | |
− | ही यह पात्रता और अधिकार प्राप्त होता है केवल व्यवस्था
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− | से नहीं । व्यवस्था गुणों का अनुसरण करती है, गुण
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− | | |
− | व्यवस्था का नहीं । बिना गुण के केवल व्यवस्था से प्राप्त
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− | | |
− | अधिकार समय बीतते मजाक और उपेक्षा के योग्य बन
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− | | |
− | जाता है ।
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− | | |
− | ३. समस्या का हल करना मुख्याध्यापक का दायित्व है
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− | | |
− | विद्यालय में व्यवहार या व्यवस्था के सन्दर्भ में यदि
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− | | |
− | कोई समस्या निर्माण होती है तब उसे अपने बलबूते पर उसे
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− | | |
− | हल करना मुख्याध्यापक का दायित्व है उसमें सहभागी
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− | बनना शिक्षकों का ।
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− | विद्यार्थियों की उद्दण्डता बिना अभिभावक को बुलाये
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− | शिक्षकों द्वारा ही ठीक की जानी चाहिये । अपने विद्यार्थियों
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− | | |
− | की उद्दण्डता की जिम्मेदारी अभिभावकों पर नहीं डालनी
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− | | |
− | चाहिये । हाँ, विद्यार्थियों के व्यवहार से यह ध्यान में आये
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− | | |
− | कि अभिभावक भी दोषी है तो उन्हें मार्गदर्शन देने हेतु
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− | | |
− | विद्यालय में बुलाया जा सकता है अथवा औचित्य के
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− | | |
− | अनुसार उनके पास भी जाया जा सकता है। परन्तु
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− | | |
− | विद्यार्थियों की उद्दण्डता हेतु अभिभावकों को जामीन नहीं
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− | | |
− | बनाना चाहिये । अपने विद्यार्थियों के दोषों की जिम्मेदारी
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− | | |
− | शिक्षकों को लेनी चाहिये ।
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− | | |
− | अभिभावकों की शिक्षा अलग बात है और
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− | | |
− | विद्यार्थियों के अपराध या दोष के निवारण का हवाला
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− | | |
− | अभिभावकों को सौंपना अलग बात है ।
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− | | |
− | इसी प्रकार से विद्यालय परिसर में पुलीस को बुलाना,
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− | | |
− | न्यायालय में केस दर्ज करना आदि नहीं होना चाहिये । यह
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− | | |
− | मुख्याध्यापक की वरिष्ठता समाप्त कर देता है । विद्यार्थी,
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | शिक्षक, अभिभावक या समाज से अन्य... व्यक्तिगत जीवन और विद्यालय व्यवहार का क्या सम्बन्ध है
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− | | |
− | कोई न्यायालय में शिकायत करे ऐसी नौबत नहीं आने देना... ऐसा तर्क भारतीय मानसिकता तो नहीं करती । एक शिक्षक
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− | | |
− | यह विद्यालय के मुख्याध्यापक और शिक्षकों की गुणवत्ता और... सर्वत्र शिक्षक है, एक विद्यार्थी सर्वत्र विद्यार्थी । इस दृष्टि से
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− | | |
− | व्यवहार दक्षता पर निर्भर करता है । यह बात ठीक है कि. विद्यालय परिसर में शेअर बाजार, चुनाव, व्यवसाय आदि की
| |
− | | |
− | विद्यालय स्वयं पुलिस या न्यायालय के सामने नहीं जायेगा... मन्त्रणायें भी नहीं होना अपेक्षित है ।
| |
− | | |
− | परन्तु कोई यदि उन्हें घसीटता है तो उन्हें जाना पडेगा । परन्तु विद्यालय परिसर में अशिष्ट वेश धारण करके आना,
| |
− | | |
− | स्थितियों का ठीक से आकलन करना शिक्षकों को आना ही... अशिष्ट भाषा बोलना, झगडा करना भी निषिद्ध होना
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− | | |
− | चाहिये । शिक्षक बनना आसान नहीं है, विद्याक्रत भी आसान... चाहिये । विद्यालय परिसर में कोलाहल करना, नारेबाजी
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− | | |
− | व्रत नहीं है, शिक्षक के नाते सम्मान सस्ते में नहीं मिलता है ।.... करना आदि भी नहीं होना चाहिये ।
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− | | |
− | विद्यालय में हडताल, धरना, विरोधप्रदर्शन होना भी
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− | | |
− | नं . विद्यालय को शोभा नहीं देता । ये सब बातें अचानक नहीं
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− | | |
− | विद्यालयीन शिष्टाचार में विद्यालय संस्था की गरिमा. हो जातीं । वर्षों तक वातावरण बिगडते बिगडते बात यहाँ
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− | | |
− | और पवित्रता की रक्षा करने के व्यवहार का भी समावेश. तक पहुँचती है । मुख्याध्यापक और शिक्षकों ने ऐसा होने
| |
− | | |
− | ४. विद्यालय की गरिमा व पवित्रता की रक्षा
| |
− | | |
− | होता है । जैसे कि - दिया ऐसा ही उसका अर्थ है । विद्यालय को अनिष्ट तत्त्वों
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− | | |
− | विद्यालय परिसर में माँस, मदिरा, तम्बाकु आदि... से बचाने का दायित्व तो शिक्षकों का ही है ।
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− | | |
− | वस्तुओं को लेकर नहीं आना और उनका सेवन नहीं करना । शिक्षक जब कहने लगते हैं कि हम क्या कर सकते
| |
− | | |
− | परिसर के बाहर भी उनका सेवन नहीं करना ही अपेक्षित है ।. हैं, तभी सब कुछ दुर्गति की और जाता है ।
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− | | |
− | विद्यालय संचालन में विद्यार्थियों का सहभाग
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− | | |
− | विद्यालय क्या है परिभाषा मान्य नहीं है। हम सहजतापूर्वक मानते हैं कि
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− | | |
− | क्या विद्यालय एक कार्यालय है ? क्या विद्यालय एक... विद्यालय एक परिवार है और उसका संचालन परिवार की
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− | | |
− | कारखाना है ? क्या विद्यालय एक व्यापारी संस्थान है ? Me Ta
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− | | |
− | क्या विद्यालय एक न्यायालय है ? क्या विद्यालय एक
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− | | |
− | कैदखाना है ? क्या विद्यालय एक दुकान हैं ? वर्तमान -
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− | | |
− | विद्यालयों को देखते हैं तब विभिन्न सन्दर्भों में उपरिलिखित विद्यालय परिवार के दो ही प्रमुख अंग हैं । एक है
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− | | |
− | संज्ञायें देने को ही मन करता है। कभी लगता है कि शिक्षक और दूसरा है विद्यार्थी । शिक्षाक्षेत्र की वर्तमान
| |
− | | |
− | विद्यालय एक कार्यालय ही है जहाँ विभिन्न नियमों और... नस्था में और दो पक्ष Gs गये हैं। ये हैं सरकार और
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− | | |
− | कानूनों के तहत प्रवेश, शुल्क, उपस्थिति, अध्यापन, परीक्षा संचालक । मूल भारतीय व्यवस्था में नियन्त्रण और संचालन
| |
− | | |
− | प्रमाणपत्र आदि बातें संचालित होती हैं । कभी लगता है कि करन की व oe eee ही रहती थी, बाहर
| |
− | | |
− | वह एक कारखाना है जहाँ जीवन्त मनुष्य नहीं अपितु डॉक्टर, सी प्रकार का नियन र नियमन नहीं होता था ।
| |
− | | |
− | विद्यालय एक परिवार है
| |
− | | |
− | वकील, बाबू, मजदूर आदि उत्पन्न किये जाते हैं । कभी विद्यालय यदि परिवार है तो उसका संचालन भी
| |
− | | |
− | लगता है कि यह एक बडा मॉल हैं जहाँ पैसे के बदले में जो... परिवार की ही रीतिनीति से होता है । परिवार संचालन के
| |
− | | |
− | चाहें मिलता है । सूत्र हैं स्वतन्त्रता, स्वजिम्मेदारी और स्वपुरुषार्थ । परिवार
| |
− | | |
− | परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी... का नियन्त्रण आन्तरिक व्यवस्था से ही होता है, परिवार
| |
− | | |
− | ७२
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− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | | |
− | चलाना परिवार के सभी सदस्यों की सामूहिक जिम्मेदारी है
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− | | |
− | और अपनी क्षमता के अनुसार ही परिवार अपनी व्यवस्थायें
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− | | |
− | चलाता है ।
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− | | |
− | विद्यालय संचालन में भी शिक्षकों की मुख्य जिम्मेदारी
| |
− | | |
− | होती है और विद्यार्थी उनके सहयोगी होते हैं । आज ऐसी
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− | | |
− | व्यवस्था नहीं दिखाई देती । आज विद्यार्थी केवल लाभार्थी
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− | | |
− | है, वे केवल पढ़ने के लिये आते हैं । पढने हेतु वे शुल्क देते
| |
− | | |
− | हैं इसलिये पढाई के अतिरिक्त कोई काम करना उन्हें अपना
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− | | |
− | काम नहीं लगता । यदि पढाई के अलावा कुछ भी काम
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− | | |
− | किया तो अभिभावकों को भी आपत्ति होती है ।
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− | | |
− | परन्तु हमें विद्यालय के भारतीय स्वरूप का विचार
| |
− | | |
− | करना है । उसके लिये वर्तमान स्वरूप में यदि परिवर्तन करने
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− | | |
− | की आवश्यकता है तो वह कैसे हो सकता है इसका ही
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− | | |
− | विचार करना चाहिये ।
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− | | |
− | वर्तमान में विद्यालय की आर्थिक व्यवस्था भी शिक्षकों
| |
− | | |
− | के जिम्मे नहीं होती । वे केवल पढ़ाने के लिये होते हैं ।
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− | | |
− | पढ़ाने के लिये उन्हें वेतन मिलता है । विद्यालय की आर्थिक
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− | | |
− | जिम्मेदारी संचालकों की अथवा सरकार की होती है । भवन,
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− | | |
− | साधनसामग्री, फर्नीचर आदि सब उनकी जिम्मेदारी में है और
| |
− | | |
− | उसका स्वामित्व भी उनका ही है ।
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− | | |
− | विद्यालय में सफाई, मरम्मत आदि करने हेतु सफाई
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− | | |
− | कर्मचारी होते हैं । वह भी शिक्षकों को नहीं करना है।
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− | | |
− | कार्यालयीन काम करने हेतु बाबू होते हैं । शिक्षक, बाबू,
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− | | |
− | सफाई कर्मचारी आदि से काम करवाने की जिम्मेदारी
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− | | |
− | मुख्याध्यापक की होती है ।
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− | | |
− | वर्तमान विद्यालयों की यह एक प्रकार से विशृंखल
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− | | |
− | व्यवस्था है । यह परिवार की व्यवस्था नहीं है ।
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− | | |
− | हम यदि विद्यालय को परिवार मानें तो विद्यालय
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− | | |
− | संचालन की जिम्मेदारी शिक्षकों और विद्यार्थियों की है ।
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− | | |
− | मुख्याध्यापक विद्यालय का मुखिया है, शेष सारे सहयोगी ।
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− | | |
− | सब मिलकर स्वतन्त्रतापूर्वक विद्यालय चलाते हैं ।
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− | | |
− | विद्यार्थी क्या कर सकते हैं
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− | | |
− | 2. स्वच्छता आदि से सम्बन्धित व्यवस्थाओं में सहभाग :
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− | | |
− | सम्पूर्ण विद्यालय की स्वच्छता, व्यवस्था, सुशोभन,
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− | | |
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− | | |
− | मस्म्मत आदि सारे काम शिक्षकों
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− | | |
− | के साथ मिलकर विद्यार्थी कर सकते हैं। आयु के
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− | | |
− | अनुसार उन्हें अलग अलग प्रकार के काम दिये जा
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− | | |
− | सकते हैं । ये काम केवल पैसा बचाने के लिये ही नहीं
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− | | |
− | करने हैं । उन्हें शिक्षा का अभिन्न अंग बनाना है । ये
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− | | |
− | क्रियात्मक शिक्षा के ही अंग हैं । योगशास्त्र में दूसरा
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− | | |
− | अंग नियम है । पाँच नियम हैं, उनमें पहला अंग शौच
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− | | |
− | है। शौच का ही अर्थ स्वच्छता है । अर्थात् जहाँ
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− | | |
− | अध्ययन करना है वह स्थान आन्तबद्धि स्वच्छ होना
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− | | |
− | चाहिये और अध्ययन करने वालों को ही स्वच्छता का
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− | | |
− | कार्य भी करना चाहिये । ऐसी मानसिकता भी प्रथम
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− | | |
− | निर्माण करनी चाहिये । यह मजदूरी नहीं है, पवित्र
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− | | |
− | कार्य है ऐसी व्यापक समझ विकसित करने की
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− | आवश्यकता है ।
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− | | |
− | कार्यालयीन कार्य : विद्यालय के सन्दर्भ में अनेक
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− | | |
− | प्रकार का पत्रव्यवहार करना होता है, अनेक प्रकार की
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− | पंजिकायें होती है, अनेक प्रकार की जानकारी
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− | | |
− | संकलित करनी होती है । खरीदी, बैंक, डाक, सरकार
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− | | |
− | आदि अनेकों के साथ व्यवहार करना होता है।
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− | | |
− | कार्यालय के इस काम में भी विद्यार्थी सहभागी हो
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− | सकते हैं । खरीदी करने का काम कर सकते हैं । इन
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− | | |
− | सारे कामों को भी शिक्षा का अंग बनाना चाहिये ।
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− | | |
− | विद्यालय में अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं । सभा,
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− | | |
− | सम्मेलन, गोष्ठी, बैठक, कार्यशाला, रंगमंच कार्यक्रम,
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− | | |
− | व्याख्यान, वादविवाद, प्रदर्शनी आदि विविध प्रकार
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− | | |
− | होते हैं । इन कार्यक्रमों के लिये मंच, बैनर, साजसज्जा,
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− | | |
− | बैठक व्यवस्था, चायपान, भोजन आदि अनेक
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− | | |
− | व्यवस्थायें होती है । विद्यार्थियों की आयु और क्षमता
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− | | |
− | के अनुसार इन सभी कामों में सहभाग हो सकता है ।
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− | | |
− | ग्रन्थालय, प्रयोगशाला, कर्मशाला, रसोई, बगीचा
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− | | |
− | आदि की देखभाल करना, वहाँ की व्यवस्था बनाये
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− | | |
− | रखना भी एक बडा काम है ।
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− | | |
− | कार्यक्रमों का संचालन करना, पूर्व तैयारी करना,
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− | | |
− | परिचय, प्रस्तावना, स्वागत आदि करना भी विद्यार्थी
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− | | |
− | के लायक काम हैं । वृत्त तैयार करके अखबारों में
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− | | |
− | Ro.
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− | देना, कार्यक्रम के समय ध्वनिव्यवस्था
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− | | |
− | का संचालन करना, दृश्य और श्राव्य मुद्रण करना,
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− | | |
− | छाया चित्र लेना आदि भी उनका ही काम है । ये सारे
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− | | |
− | तो शिक्षा का अंग हैं ही ।
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− | विद्यालय के काम से समाज को परिचित करवाने हेतु
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− | | |
− | प्रचार और प्रसार करना, सामाजिक सार्वजनिक
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− | | |
− | व्यवस्थाओं में सेवा करना, प्राकृतिक आपदाओं में
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− | | |
− | सेवा करना, विद्यालय के अन्यान्य कामों के लिये
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− | | |
− | निधिसंकलन करना, समाज प्रबोधन करना शिक्षक
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− | | |
− | और विद्यार्थी मिलकर कर सकते हैं ।
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− | | |
− | विद्यालय के कार्यकलापों का नियोजन और आयोजन
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− | | |
− | करना, उसके क्रियान्वयन के परिणामों की समीक्षा
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− | | |
− | करना भी साथ मिलकर हो सकता है ।
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− | | |
− | विद्यालय का शैक्षिक स्तर अच्छा रखना, विद्यालय
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− | | |
− | की प्रतिष्ठा समाज में स्थापित होनी चाहिये, विद्यालय
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− | | |
− | समाज में एक अच्छा विद्यालय माना जाना चाहिये यह
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− | | |
− | भी विद्यार्थी और शिक्षकों की ही आकांक्षा होनी
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− | | |
− | चाहिये । इस दृष्टि से अच्छे से अध्यापन और अध्ययन
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− | | |
− | का कार्य चलना चाहिये ।
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− | | |
− | अध्यापन कार्य में विद्यार्थियों का बहुत महत्त्वपूर्ण
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− | योगदान होता है । कंठस्थीकरण का और अभ्यास का
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− | | |
− | कार्य विद्यार्थी स्वयं कर सकते हैं । एक अग्रणी
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− | | |
− | विद्यार्थी इस कार्य में नेतृत्व कर सकता है । मेघावी
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− | | |
− | विद्यार्थी नीचे की कक्षाओं को पढाने का काम भी कर
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− | | |
− | सकते हैं । केवल नीचली कक्षाओं को ही नहीं तो
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− | | |
− | पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों को पढ़ाने का काम भी
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− | मेघावी विद्यार्थी कर सकते हैं । शिक्षकों की सेवा
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− | | |
− | करना भी मेघावी विद्यार्थीयों का काम है । ग्रन्थालय
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− | से, प्रयोगशाला से आवश्यक सामग्री ले आना और
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− | | |
− | वापस रखना, खेलों के लिये मैदानों का अंकन करना,
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− | | |
− | संगीत, कला आदि की सामग्री सुरक्षित रखना आदि
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− | विद्यार्थियों के काम हैं ।
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− | | |
− | विद्यालय में अध्ययन पूर्ण होने के बाद भी विद्यार्थी का
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− | | |
− | विद्यालय के साथ सम्बन्ध बना रहता है । मेघावी
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− | विद्यार्थियों को तो विद्यालय में शिक्षक बनकर
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− | ov
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | विद्यालय की ज्ञानपरम्परा का निर्वहण करना चाहिये
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− | और उस रूप में शिक्षकों का ऋण चुकाना चाहिये ।
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− | | |
− | जो विद्यार्थी शिक्षक नहीं बनते अपितु see
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− | | |
− | व्यवसायों में जाते हैं उन्होंने विद्यालय के निर्वाह की
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− | आर्थिक जिम्मेदारी वहन करनी चाहिये । अन्य भी
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− | | |
− | अनेक व्यावहारिक काम होते हैं जिनमें पूर्व विद्यार्थी
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− | सहभागी हो सकते हैं । इन विद्यार्थियों के कारण भी
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− | | |
− | समाज में विद्यालय की छवी बनती है । जिस प्रकार
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− | अपने घर के साथ व्यक्ति आजीवन जुडा रहता है उसी
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− | | |
− | प्रकार अपने विद्यालय के साथ भी वह आजीवन जुड़ा
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− | रहना चाहिये ।
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− | | |
− | इसे सम्भव बनाने के उपाय
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− | इस प्रकार यहाँ विद्यार्थी और शिक्षक मिलकर
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− | | |
− | विद्यालय का संचालन करें इस विषय में कुछ विवरण दिया
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− | गया है । परन्तु ऐसा होना इतना सरल नहीं है । इसे सम्भव
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− | | |
− | बनाने हेतु भी योजना पूर्वक कुछ प्रयास करने होंगे । ये प्रयास
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− | कुछ इस प्रकार हो सकते हैं
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− | श्,
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− | इस संकल्पना की स्वीकृति लोकमानस में होना और
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− | अभिभावकों की समझ में आना आवश्यक है । आज
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− | केवल परीक्षा में अंक लाना ही शिक्षा का उद्देश्य माना
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− | जाता है तब शेष सारी बातें निर्स्थक लगना स्वाभाविक
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− | है । अतः सार्थक शिक्षा की कल्पना लेकर व्यापक
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− | | |
− | समाजप्रबोधन करना होगा । अभिभावकों की स्वीकृति
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− | | |
− | के बिना कोई काम होना असम्भव है । इस दृष्टि से
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− | | |
− | अनेक शिक्षण चिंतकों ने विभिन्न स्वरूपों में
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− | | |
− | लोकमानस से संवाद करने की आवश्यकता होगी ।
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− | | |
− | बहुत कुछ लिखा जाना चाहिये और प्रचलित और
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− | | |
− | प्रसारित होना चाहिये ।
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− | | |
− | हाथ से काम करने को आज हेय माना जाने लगा है ।
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− | | |
− | विद्यार्थी को घर में भी किसी प्रकार का काम करने का
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− | | |
− | अभ्यास नहीं है । हर मातापिता की आकांक्षा होती है
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− | | |
− | कि उनकी सन्तान पढलिखकर ऐसा व्यवसाय करे जहाँ
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− | | |
− | उसे हाथ से काम न करना पडे । इस स्थिति में विद्यार्थी
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− | | |
− | को हर काम सिखाना होगा और घर में भी करने के
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− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | | |
− | लिये उसे प्रेरित करना होगा । फिर हाथों को काम
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− | | |
− | करना सिखाना होगा यह एक बहुत बडा काम है और
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− | | |
− | धैर्यपूर्वक करने की आवश्यकता है ।
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− | | |
− | ३. . विद्यालय. की. अध्ययन अध्यापन. पद्धति,
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− | | |
− | समयविभाजन, परीक्षा पद्धति, व्यवस्थायें आदि सब
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− | | |
− | इस संकल्पना के अनुरूप बदलना होगा । गणवेश भी
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− | | |
− | बदल सकता है । हर विषय को क्रियात्मक पद्धति से
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− | | |
− | ढालना होगा । हर विषय का मूल्यांकन क्रियात्मक
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− | | |
− | बनाना होगा । यही नहीं तो अनेक बातों को परीक्षा से
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− | | |
− | परे रखना होगा । परीक्षा की पद्धति, परीक्षा का
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− | | |
− | महत्त्व, परीक्षा विषयक मानसिकता में बडा बदल
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− | | |
− | करना होगा । पुस्तकों का और लेखन का महत्त्व कम
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− | | |
− | करना होगा । पढाई को जीवन के साथ जोडना होगा |
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− | | |
− | किसी एक विद्यालय में इस प्रकार की शिक्षा होगी तो
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− | | |
− | वह विद्यालय एक प्रयोग के रूप में चल तो जायेगा ।
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− | | |
− | प्रयोग के रूप में उसे प्रतिष्ठा भी कदाचित मिलेगी,
| |
− | | |
− | उसके विषय में कहीं कोई लेख भी लिखा जायेगा
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− | | |
− | परन्तु मुख्य धारा की शिक्षा में कोई परिवर्तन नहीं
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− | | |
− | होगा । प्रयोग तो आज भी बहुत अच्छे हो रहे हैं,
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− | | |
− | अच्छे से अच्छे हो रहे हैं परन्तु आवश्यकता मुख्य
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− | | |
− | धारा की शिक्षा में परिवर्तन होने की है । मुख्य धारा
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− | | |
− | जब भारतीय होगी तब भारत की शिक्षा भारतीय होगी
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− | | |
− | और शिक्षा जब भारतीय होगी तब
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− | | |
− | भारत भी भारत बनेगा ।
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− | | |
− | मुख्य धारा की शिक्षा में इस प्रकार का परिवर्तन हो
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− | | |
− | इस दृष्टि से देश के मूर्धन्य शिक्षाविदों ने इस पर चिन्तन
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− | | |
− | करना होगा और बडे बडे देशव्यापी सामाजिक-
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− | | |
− | सांस्कृतिक-शैक्षिक संगठनों ने इसे अपनाना होगा ।
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− | | |
− | जब यह परिवर्तन देशव्यापी बनता है तभी अर्थपूर्ण भी
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− | | |
− | बनता है । एक और शिक्षण चिन्तन, दूसरी और
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− | | |
− | समाज प्रबोधन और तीसरी ओर प्रत्यक्ष कार्य ऐसे तीनों
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− | | |
− | एक साथ होंगे तभी परिवर्तन होने की सम्भावना
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− | | |
− | बनेगी ।
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− | | |
− | विद्यार्थी की अपेक्षा शिक्षकों की मानसिकता अत्यन्त
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− | | |
− | महत्त्वपूर्ण है । वेतन की अपेक्षा, अध्यापन का
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− | | |
− | अत्यन्त संकुचित अर्थ और दायित्वबोध का अभाव
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− | | |
− | समाज के अन्य घटकों की तरह शिक्षक समुदाय को भी
| |
− | | |
− | ग्रस रहे हैं । वास्तव में शिक्षकों की भूमिका इसमें
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− | | |
− | केन्द्रर्ती है । उनका प्रबोधन, प्रशिक्षण और सज्जता
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− | | |
− | बढाने के प्रभावी प्रयास करने होंगे ।
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− | | |
− | यह कार्य त्वरित गति से तो नहीं होगा । धैर्यपूर्वक और
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− | | |
− | निरन्तरतापूर्वक इस कार्य में लगे रहने की आवश्यकता
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− | | |
− | है। भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा हेतु यह करना
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− | | |
− | अनिवार्य है यह निश्चित है ।
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− | | |
− | विद्यालय और पूर्व छात्र
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− | | |
− | विद्यालय और पूर्व छात्र का सम्धबन्ध
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− | | |
− | विद्यालय से तात्पर्य है प्राथमिक, माध्यमिक या
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− | | |
− | महाविद्यालय ऐसा कोई भी विद्यालय । छात्र जब तक
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− | | |
− | विद्यालय में पढ़ाई करते हैं तब तक तो उनका विद्यालय के
| |
− | | |
− | साथ सीधा सम्बन्ध रहता है । अब अध्ययन पूर्ण कर जब
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− | | |
− | घर जाते हैं तब आगे के जीवन में उनका विद्यालय के साथ
| |
− | | |
− | कैसा सम्बन्ध रहेगा ?
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− | | |
− | आज तो अध्ययन पूर्ण हुआ इसलिए छात्र एक बोझ
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− | | |
− | कम हुआ ऐसा मानते हैं । प्राथमिक या माध्यमिक विद्यालय
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− | | |
− | पूर्ण कर जब उच्च शिक्षा में जाते हैं तब अनेक प्रकार के
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− | | |
− | ७५
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− | | |
− | बंधनों से मुक्ति मिली ऐसा भी अनुभव करते हैं । गृहस्थ
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− | | |
− | जीवन में जब विद्यालय को याद करते हैं तब कुछ
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− | | |
− | भावात्मक बातें भी होती हैं । जिन शिक्षकों ने विशेष रूप
| |
− | | |
− | से प्रशंसा या सहायता की थी उन्हें और जिन्होंने विशेष रूप
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− | | |
− | से दंडित किया था उन्हें याद करते हैं । किस प्रकार शैतानी
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− | | |
− | करते थे या कौन शिक्षक कैसा था इसकी भी चर्चा कभी
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− | | |
− | कभी हो जाती है । अपने विद्यालय का गौरव अनुभव करने
| |
− | | |
− | के किस्से भी क्वचित होते हैं ।
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− | | |
− | कभी कभी विद्यालय के लिए आर्थिक सहायता की
| |
− | | |
− | आवश्यकता हुई तो अधिक कमाने वाले छात्रों को विद्यालय
| |
− | | |
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− | | |
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− | | |
− | याद करता है। कभी पूर्व छात्रों के
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− | | |
− | स्नेहमिलन जैसे कार्यक्रम भी बनते हैं । बहुत कम संख्या में
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− | | |
− | परंतु पूर्व छात्रसंघ भी बनता है । ये छात्र अपनी योजना से ही
| |
− | | |
− | मिलते हैं और कोई न कोई कार्यक्रम करते हैं ।
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− | | |
− | ऐसा विविध प्रकार का क्रम रहता हो तो भी एक
| |
− | | |
− | बात लक्षणीय है कि अध्ययन पूर्ण करने के बाद छात्रों और
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− | | |
− | विद्यालय का व्यवस्थित सम्बन्ध नहीं रहता ।
| |
− | | |
− | यह सम्बन्ध रहना चाहिए । कैसे रहेगा ? जरा सोचें ।
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− | | |
− | अध्ययन पूर्ण करने के बाद छात्र कायदे से तो विद्यालय
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− | | |
− | नहीं जाते यह सत्य है परन्तु छात्रों का जीवन गढ़ने में
| |
− | | |
− | विद्यालय की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। छात्रों की
| |
− | | |
− | बुद्धि, मानस, कौशल आदि का गठन विद्यालय के अध्ययन
| |
− | | |
− | के कारण ही हुआ है । विद्यालय में गया है वह छात्र जो
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− | | |
− | नहीं गया उससे सर्वथा भिन्न होगा । यह भिन्नता विद्यालय
| |
− | | |
− | के कारण ही है । यह समझ में आया और उसका स्मरण
| |
− | | |
− | रहा तो छात्र विद्यालय के प्रति कृतज्ञ रहेगा । आज ऐसी
| |
− | | |
− | कृतज्ञता की भावना नहीं दिखाई देती है यह भी सत्य है ।
| |
− | | |
− | इसका कारण यह है कि लोग मानते हैं कि छात्र शुल्क देता
| |
− | | |
− | है और शुल्क के बदले में शिक्षक पढ़ाते हैं । यह बहुत
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− | | |
− | यांत्रिक और व्यावसायिक व्यवहार हुआ । ऐसे व्यवहार में
| |
− | | |
− | भी शुल्क के बदले में तो ज्ञान नहीं ही मिला है । यदि
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− | | |
− | शुल्क के बदले में वस्तु की तरह ज्ञान मिलता तो सभी
| |
− | | |
− | छात्रों को एक जैसा ही मिलता । यदि पैसे से ही ज्ञान दिया
| |
− | | |
− | जाता तो सभी शिक्षक एक जैसा ही पढ़ाते । वास्तव में पैसे
| |
− | | |
− | से ज्ञान लिया और दिया नहीं जाता है यह आज के
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− | | |
− | बाजारीकरण के जमाने में भी समझ में आने वाली बात है ।
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− | | |
− | तात्पर्य यह है कि विद्यार्थी का पूरा जीवन विद्यालय ने ही
| |
− | | |
− | बनाया है । कृतज्ञतापूर्वक विद्यालय के साथ पेश आना हर
| |
− | | |
− | छात्र के लिए सम्भव बनना चाहिए ।
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− | | |
− | विद्यालय के प्रति कृतज्ञता का भाव जगाना
| |
− | | |
− | विद्यालय ने ही इसका विचार करना चाहिए ।
| |
− | | |
− | विद्यार्थियों के साथ का व्यवहार ऐसा ही होना चाहिए कि
| |
− | | |
− | इनके विद्यालय के साथ आत्मीय सम्बन्ध बने । जिस प्रकार
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− | | |
− | घर के साथ घर के सदस्यों का सम्बन्ध हमेशा के लिए
| |
− | | |
− | ७६
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− | | |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | होता है, कहीं पर भी जाएँ तो भी मिटता नहीं है उसी प्रकार
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− | | |
− | विद्यालय के साथ का सम्बन्ध भी मिटना नहीं चाहिए ।
| |
− | | |
− | जिस प्रकार मातापिता और संतानों का सम्बन्ध आजीवन
| |
− | | |
− | रहता है उसी प्रकार शिक्षक और विद्यार्थी का सम्बन्ध भी
| |
− | | |
− | आजीवन रहेगा । कोई कह सकता है कि एक शिक्षक के
| |
− | | |
− | पास वर्षों तक असंख्य विद्यार्थी पढ़ते हैं । कभी विद्यालय
| |
− | | |
− | बदल बदल कर अनेक विद्यालयों में पढ़ाया या अनेक नगरों
| |
− | | |
− | में पढ़ाया या विद्यार्थी ही अनेक नगरों में बसे तो यह
| |
− | | |
− | सम्बन्ध कैसे रहेगा ? हम आज की स्थिति में ही विचार
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− | | |
− | कर रहे हैं इसलिए ऐसी बातें मन में आती हैं । यदि हम यह
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− | | |
− | निश्चित करें कि विद्यालय और विद्यार्थियों का सम्बन्ध
| |
− | | |
− | आजीवन रहना स्वाभाविक बनाना चाहिए तो हम उसके
| |
− | | |
− | अनुकूल व्यवस्था बनाएँगे ।
| |
− | | |
− | ये सारी भावात्मक बातें हैं । विद्यालय के प्रति स्नेह
| |
− | | |
− | होना, शिक्षकों का स्मरण करना, विद्यालय के कार्यक्रमों में
| |
− | | |
− | सहभागी होना आदि सबकी अपनी अपनी रुचि और स्थिति
| |
− | | |
− | के अनुसार होता रहता है । परन्तु एक बार का विद्यार्थी
| |
− | | |
− | हमेशा का विद्यार्थी इस रूप में विद्यालय के साथ सम्बन्ध
| |
− | | |
− | बनना अपेक्षित है ।
| |
− | | |
− | विद्यालय चलाने की जिम्मेदारी साँझी
| |
− | | |
− | बहुत बड़े महत्त्व का विषय यह है कि भारतीय
| |
− | | |
− | संकल्पना के अनुसार विद्यालय चलाने की ज़िम्मेदारी
| |
− | | |
− | शिक्षकों और विद्यार्थियों दोनों की है । जिस प्रकार घर घर
| |
− | | |
− | के लोग मिलकर चलाते हैं उसी प्रकार विद्यालय विद्यालय
| |
− | | |
− | के लोग मिलकर चलाएँगे यह स्वाभाविक माना जाना
| |
− | | |
− | चाहिए । विद्यालय चलाने के शैक्षिक और भौतिक ऐसे दो
| |
− | | |
− | पक्ष होते हैं । विद्यालय में पढ़ना और पढ़ाना होता है । यह
| |
− | | |
− | एक आयाम है । पढ़ने पढ़ाने की व्यवस्था के लिए स्थान,
| |
− | | |
− | भवन, फर्नीचर, शैक्षिक सामग्री आदि की आवश्यकता होती
| |
− | | |
− | है । अर्थात् विद्यालय चलाने के लिए अर्थव्यवस्था भी
| |
− | | |
− | करनी होती है। ये दोनों कार्य विद्यालय के पूर्व छात्र
| |
− | | |
− | करेंगे । कुछ बातें इस प्रकार सोची जा सकती हैं ...
| |
− | | |
− | ० जोविद्यार्थी अध्ययन में तेजस्वी हैं उन्हें विद्यालय में
| |
− | | |
− | शिक्षक बनना चाहिए । शिक्षक बनकर पैसे कितने
| |
− | | |
− | मिलते हैं यह स्वतन्त्र विषय है । हो सकता है कि न
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− | | |
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− | | |
− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
| |
− | | |
− | भी मिले या कम मिले । जिस प्रकार अच्छा वर या होते हैं । ये सारे काम शिक्षकों को
| |
− | | |
− | अच्छी वधू पाने के लिए गुण और कर्तृत्व देखे जाते करना चाहिए। शिक्षकों की नियुक्तियाँ करना
| |
− | | |
− | हैं, रूप या पैसा नहीं उसी प्रकार ज्ञानदान का पवित्र प्रधानाचार्य का काम है । प्रशासन की ज़िम्मेदारी
| |
− | | |
− | और श्रेष्ठ कार्य करने का भाग्य मिलता है तो पैसे नहीं शिक्षकों की है । इसमें भी विद्यार्थियों की सहभागिता
| |
− | | |
− | देखे जाते । अतः: विद्यालय के लिए शिक्षकों की अपेक्षित है ।
| |
− | | |
− | पीढ़ियाँ विद्यालय ही तैयार करेगा और वर्तमान... *. इस व्यवस्था हेतु विद्यालय स्वायत्त होने चाहिए ।
| |
− | | |
− | विद्यार्थी ही भावी शिक्षक होंगे। इस दृष्टि से आज की शेष व्यवस्था वैसी ही रखकर यह व्यवस्था
| |
− | | |
− | विद्यालय ने विद्यार्थियों का चयन करना होगा और नहीं हो सकती । फिर भी संचालक मंडल, शिक्षक,
| |
− | | |
− | विद्यार्थी तथा उनके अभिभावकों ने इस बात के लिए अभिभावक और शासन को साथ मिलकर यह प्रयोग
| |
− | | |
− | अपने आपको प्रस्तुत करना होगा। यह कार्य कैसे हो इसका विचार करना चाहिए । एक विद्यालय
| |
− | | |
− | विद्यालय की आवश्यकता और विद्यार्थियों की क्षमता यदि दस वर्ष की योजना बनाता है तो यह आज भी
| |
− | | |
− | और सिद्धता के अनुसार होगा । व्यावहारिक बन सकती है ।
| |
− | | |
− | ०... जो विद्यार्थी शिक्षक नहीं बनते हैं वे अपने घर चलाते... *. शिक्षकों को इस बात में अग्रसर होना चाहिए a
| |
− | | |
− | हैं और विभिन्न व्यवसाय करते हैं । विद्यालय की स्वयं विद्यालय शुरू करें । प्रथम कुछ वर्ष इसे समाज
| |
− | | |
− | आर्थिक आवश्यकतायें पूर्ण करने का दायित्व उनका के सहयोग से चलाएं । प्रारम्भ से गुरुदक्षिणा का विषय
| |
− | | |
− | है। विद्यालय को उनसे मांगना न पड़े परन्तु एक नहीं हो सकता । प्रयोग व्यावहारिक बन सके इसलिए
| |
− | | |
− | व्यवस्था यह बनी हो कि हर पूर्व छात्र को विद्यालय बारह वर्ष की आयु के विद्यार्थियों से शुरू करें । ये
| |
− | | |
− | के लिए निश्चित धनराशि नियमित रूप से देना है । यह विद्यार्थी बीस वर्ष के होते होते अथर्जिन शुरू करेंगे,
| |
− | | |
− | विद्यालय का शुल्क नहीं है, विद्यार्थियों की गुरुदक्षिणा साथ ही चयनित छात्र विद्यालय में अध्यापन शुरू
| |
− | | |
− | है । गुरुदक्षिणा केवल एक ही बार देनी होती है ऐसा करेंगे ।
| |
− | | |
− | नहीं है, वह नियमित रूप से भी दी जा सकती है । ०. किसी भी विचार को मुूर्त रूप देने के लिए बौद्धिक
| |
− | | |
− | ०... गुरुदक्षिणा देने का काम विद्यार्थी की आवश्यकता और मानसिक तैयारी करनी होती है वह इसमें भी
| |
− | | |
− | होना चाहिए, विद्यालय की नहीं । करनी चाहिए । शिक्षा के भारतीय प्रतिमान के लिए
| |
− | | |
− | ०... ऐसी व्यवस्था करने के लिए विद्यालय ने प्रथम तो यह करणीय कार्य है इसका बौद्धिक स्वीकार प्रथम
| |
− | | |
− | पढ़ाने हेतु शुल्क लेना बन्द करना चाहिए । शुल्क चरण है । सम्बन्धित लोगों की मानसिकता बनाना
| |
− | | |
− | और गुरुदक्षिणा दोनों एक साथ नहीं हो सकता । दूसरा चरण है। व्यावहारिक पक्ष की योजना बनाना
| |
− | | |
− | ०... इसका भावात्मक पक्ष दायित्वबोध का है । कृतज्ञ तीसरा चरण है ।
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− | | |
− | विद्यार्थियों को होना है, विद्यालय को नहीं । © इस प्रकार करने से विद्यालय परिवार की भी संकल्पना
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− | | |
− | e हम विद्यालय को भी परिवार कहते हैं तो उसका साकार हो सकती है । अनौपचारिक पद्धति से कहीं
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− | | |
− | व्यावहारिक पक्ष यही होना चाहिए । कहीं पर आज भी यह चलती है, परन्तु इसे एक
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− | | |
− | ०... विद्यालय में प्रशासन हेतु भी एक व्यवस्था होनी होती व्यवस्था में प्रस्थापित करने की आवश्यकता है ।
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− | | |
− | है। आज इसके लिए संचालक मंडल होता है।
| |
− | | |
− | नियुक्तियाँ करना, सरकार के साथ पत्रव्यवहार करना,
| |
− | | |
− | आवश्यक सामग्री की खरीदी करना, भवन आदि वर्तमान व्यवस्था में विद्यालय तंत्र में विद्यार्थी को
| |
− | | |
− | बनवाना, धनसंग्रह करना आदि काम प्रबन्ध समिति के .... लाभार्थी माना जाता है और विद्यालय पैसे के बदले में लाभ
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− | | |
− | विद्यालय तंत्र कैसा है ?
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− | | |
− | 99
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− | | |
− | उपलब्ध कराने वाली संस्था है । जिस
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− | | |
− | प्रकार किसी बड़े डीपार्टमेंटल स्टोर में विभिन्न वस्तुओं को
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− | | |
− | बेचने के केन्द्र बने होते हैं और उन केन्द्रों पर बेचने का
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− | | |
− | काम करने वाले नौकर नियुक्त होते हैं उस प्रकार शिक्षक
| |
− | | |
− | विद्यालय में कर्मचारी हैं । भारत में विद्यालय का स्वरूप
| |
− | | |
− | इस प्रकार के बाजार का नहीं है । विद्यालय का स्वरूप
| |
− | | |
− | परिवार का है । अतः: विद्यालय चलाने का काम विद्यालय
| |
− | | |
− | परिवार का होता है ।
| |
− | | |
− | विद्यालय परिवार में शिक्षक और विद्यार्थी होते हैं ।
| |
− | | |
− | विद्यालय संचालन में शिक्षक और विद्यार्थी समान रूप से
| |
− | | |
− | सहभागी होने चाहिए । यद्यपि शिक्षक प्रथम और अधिक
| |
− | | |
− | जिम्मेदार हैं और विद्यार्थी उनके मार्गदर्शन में काम करते हैं ।
| |
− | | |
− | विद्यार्थी के मातापिता और समाज विद्यालय के सहयोगी हैं ।
| |
− | | |
− | विद्यालय में विद्यार्थियों का काम क्या होगा ?
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− | | |
− | ०... विद्यालय की नित्य स्वच्छता करना
| |
− | | |
− | ०... विद्यालय की खरीदी करना
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− | | |
− | ०... विद्यालय का सामान व्यवस्थित रखना
| |
− | | |
− | e विद्यालय के बेंक, यातायात, डाकघर आदि के
| |
− | | |
− | कामकाज करना
| |
− | | |
− | इन सभी कामों को शिक्षाक्रम के साथ जोड़ना
| |
− | | |
− | चाहिए । उदाहरण के लिए स्वच्छता का सामान कैसा होना
| |
− | | |
− | चाहिए, कितना होना चाहिए, उनका प्रयोग कैसे करना
| |
− | | |
− | चाहिए, कम समय में, कम परिश्रम से, कम वस्तुओं का
| |
− | | |
− | प्रयोग कर अच्छे से अच्छा काम कैसे करना चाहिए इसकी
| |
− | | |
− | शिक्षा विभिन्न विषयों की व्यावहारिक शिक्षा ही है।
| |
− | | |
− | व्यावहारिक आयाम सीखते सीखते सैद्धान्तिक समझ भी
| |
− | | |
− | स्पष्ट होती है । प्रत्यक्ष काम करते करते सर्व प्रकार की
| |
− | | |
− | शिक्षा होती है । ये सारी बातें घर और विद्यालय दोनों में
| |
− | | |
− | सीखी जाती हैं इसलिए कम समय में और अच्छी तरह
| |
− | | |
− | सीखना सम्भव होता है ।
| |
− | | |
− | वर्तमान में ये बातें होती क्यों नहीं हैं ?
| |
− | | |
− | एक तो सारी शिक्षा यांत्रिक बन गई है । ऐसा भ्रम
| |
− | | |
− | निर्माण हुआ है कि शिक्षा पुस्तकें पढ़ना, प्रश्नों के उत्तर
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− | | |
− | लिखना और परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही है । ऐसे सीमित
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− | | |
− | ७८
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− | | |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | अर्थ में सार्थक शिक्षा हो ही नहीं सकती है ।
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− | | |
− | वास्तव में विद्यालय का पाठ्यक्रम भी क्रियात्मक
| |
− | | |
− | स्वरूप का बनाना चाहिए ताकि विद्यार्थी सैद्धांतिक और
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− | | |
− | व्यावहारिक आयाम साथ साथ सीख सकें ।
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− | | |
− | बड़ी कक्षाओं में तो छात्रों का सहभाग और अधिक
| |
− | | |
− | क्रियात्मक रहेगा । विद्यालय के लिए धनसंग्रह करना, समाज
| |
− | | |
− | सम्पर्क करना, सामाजिक उत्सवों और आयोजनों में सहभागी
| |
− | | |
− | बनना, प्राकृतिक आपदाओं जैसे समय पर उसमें सेवाकार्य
| |
− | | |
− | करना, विद्यालय में कार्यक्रमों का आयोजन करना आदि
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− | | |
− | अनेक काम विद्यार्थी कर सकते हैं । यह सब सार्थक शिक्षा
| |
− | | |
− | है, हमने अपने अज्ञानवश इसे अतिरिक्त काम मान लिया है ।
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− | | |
− | प्रश्न यह होगा कि विद्यालय का समय कम होता है,उतने
| |
− | | |
− | समय में यह सब करेंगे कैसे । प्रश्न तो सरल है परन्तु यह केवल
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− | | |
− | समय का विषय नहीं है । समय का ही विषय होता तो
| |
− | | |
− | आवासीय विद्यालयों में शिक्षायोजना इसके अनुकूल बनती ।
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− | | |
− | आज भी कई विद्यालय पूरे दिन के चलते हैं, कई आठ घण्टे
| |
− | | |
− | के चलते हैं परन्तु उन विद्यालयों में व्यवहार के साथ जोड़कर
| |
− | | |
− | शिक्षा नहीं दी जाती । प्रश्न शिक्षाशास्र की समझ का है ।
| |
− | | |
− | शिक्षा को भी तन्त्रज्ञान की शिक्षा की तरह तान्त्रिक बना दिया
| |
− | | |
− | जाता है और भौतिक पदार्थ ही मानकर उसके विषय में बोला
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− | | |
− | जाता है तब ऐसा होता है । अत: पर्याप्त विमर्श और प्रबोधन
| |
− | | |
− | की आवश्यकता है।
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− | | |
− | विद्यालय का रंगमंच कार्यक्रम
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− | | |
− | रंगमंच कार्यक्रम की आज जो दुर्गति हुई है वह
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− | | |
− | कल्पनातीत है। उसमें अब शैक्षिक पक्ष का विचार
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− | | |
− | लेशमात्र भी नहीं रह गया है ।
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− | | |
− | कुछ बातें इस प्रकार समझने योग्य हैं ...
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− | | |
− | रंगमंच कार्यक्रम को अब मनोरंजन का ही विषय
| |
− | | |
− | माना जाता है, शैक्षिक या सांस्कृतिक नहीं । ऐसा
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− | | |
− | मानने के बाद भी उसमें कला का आविष्कार नहीं
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− | | |
− | दिखाई देता है । अतिशय निम्न स्तर का मनोरंजन ही
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− | | |
− | उसमें होता है । विद्या के धाम में अभिजात कला
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− | | |
− | और श्रेष्ठ कोटी की रसिकता दिखाई देनी चाहिए
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− | उसका कहीं दर्शन नहीं होता है ।
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− | | |
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− | | |
− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | | |
− | अधिकतर फिल्म ही रंगमंच कार्यक्रमों का आदर्श
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− | | |
− | होता है । फिल्मी गीतों की सीडी के साथ भॉंडा नाच
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− | | |
− | करना उसका मुख्य अंग होता है ।
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− | | |
− | कई विद्यालय ऐसे होते हैं जहां नाटक, नृत्य,रास,
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− | | |
− | लोककला आदि का प्रदर्शन होता है। वहाँ
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− | | |
− | विद्यार्थियों की कुशलता से भी अधिक व्यावसायिक
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− | | |
− | कलाकारों का निर्देशन ही मुख्य रहता है. अर्थात्
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− | | |
− | व्यावसायिक कलाकारों को ठेका दिया जाता है और
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− | | |
− | विद्यालय के छात्रों को सिखाने की व्यवस्था की
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− | | |
− | जाती है । इसका प्रदर्शन किया जाता है ।
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− | | |
− | वास्तव में रंगमंच कार्यक्रम शिक्षाक्रम से स्वतंत्र विषय
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− | | |
− | नहीं है । वह अध्ययन का एक अंग है और उसका
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− | | |
− | नियोजन उसी प्रकार होना चाहिए |
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− | | |
− | रंगमंच कार्यक्रम कक्षाकक्ष की शिक्षा का ही विस्तार
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− | | |
− | है । वह मौखिक और कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए
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− | | |
− | अवसर देता है ।
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− | | |
− | उदाहरण के लिए विद्यालय में भाषा के विषय में
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− | | |
− | कविता, नाटक या कहानी सीखी जाती है । नाटक
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− | | |
− | केवल पढ़ने के लिए नहीं होता है, वह अभिनय के
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− | | |
− | माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है । अतः: कक्षाकक्ष में
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− | | |
− | ही उसे प्रस्तुत करना उसे पढ़ने पढ़ाने की उत्तम विधि
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− | | |
− | है। पहले विद्यार्थी नाटक देखें और बाद में प्रस्तुत
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− | | |
− | करें यह क्रम होना चाहिए । ऐसी प्रस्तुति के समय
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− | | |
− | साजसज्जा, प्रसाधन, वेषभूषा आदि का कोई महत्त्व
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− | | |
− | नहीं है । अभिनय, संवाद बोलने का कौशल, वाणी
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− | | |
− | का प्रभुत्व, आवाज का नियमन, अंगविन्यास,
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− | | |
− | लिखित विषय को वाणी तथा अभिनय में परिवर्तित
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− | | |
− | करने का कौशल आदि शैक्षिक विषय हैं । इनकी
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− | | |
− | ओर ध्यान दिया जाय तभी वह शिक्षाक्रम का अंग
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− | | |
− | बनता है अन्यथा केवल मनोरंजन है। केवल
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− | | |
− | मनोरंजन के लिए विद्यालय में कोई अवकाश नहीं,
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− | | |
− | वह घर में और घर के बाहर भी बहुत है ।
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− | | |
− | साजसज्जा, वेषभूषा आदि नहीं होने से प्रेक्षक के रूप
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− | | |
− | में भी कल्पनाशक्ति का विकास होता है । अभिनय
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− | | |
− | देखकर ही चरित्र समझने की क्षमता बढ़ती है । पात्र
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− | | |
− | ७९
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− | | |
− | के साथ तादात्म्य निर्माण होता
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− | | |
− | है । कलाकृति का रसानुभव करना और उससे प्रेरणा
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− | | |
− | प्राप्त करना तभी सम्भव है । हम सुनते हैं कि महात्मा
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− | | |
− | गांधी ने राजा हरिश्वंद्र का नाटक देखा और उससे
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− | | |
− | प्रेरणा प्राप्त कर जीवन में सत्य ही बोलने का ब्रत
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− | | |
− | लिया । आज छोटे छोटे बच्चे भी फिल्म में जो देखते
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− | | |
− | हैं वह झूठ है ऐसा समझते हैं । उन्हें नट और नटियाँ
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− | | |
− | दिखती हैं, उनके चरित्र नहीं । वे चरित्रों के नाम नहीं
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− | | |
− | बोलते, नातों के ही नाम बोलते हैं । प्रेरणा लेते हैं
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− | | |
− | तो उनके श्ुँगार और वेषभूषा तथा केशभूषा की
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− | | |
− | क्योंकि कला अब अभिनय में नहीं अपितु साजसज्जा
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− | | |
− | और शुँगार के ऊपरी सतह पर आ गई है ।
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− | | |
− | इस छिछलेपन तथा कला के आभासी स्तर को सही
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− | | |
− | करने का स्थान विद्यालय का कक्षाकक्ष है जहां
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− | | |
− | कला का आस्वाद और कला की प्रस्तुति की सही
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− | | |
− | समझ दी जाती है ।
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− | | |
− | कला का क्षेत्र आज बहुत बड़ी मात्रा में अक्रिय
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− | | |
− | मनोरंजन का क्षेत्र बन गया है । लोग संगीत सुनते हैं,
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− | | |
− | स्वयं गाते नहीं, नाटक या नृत्य देखते हैं, स्वयं करते
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− | | |
− | नहीं, खेल भी देखते हैं, खेलते नहीं । बहुत ही
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− | | |
− | अल्प मात्रा में लोग यह सब करते हैं परन्तु संकट यह
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− | | |
− | है कि उनके लिए यह सब कमाई करने के साधन हैं,
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− | | |
− | आनन्द और रसास्वादन के नहीं । अच्छी से अच्छी
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− | | |
− | बातों को बिकाऊ बना देने की क्षुद्र वृत्ति आज चारों
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− | | |
− | ओर दिखाई दे रही है इसलिए आनन्द कला का नहीं
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− | | |
− | कला से मिलने वाले पैसे का रह गया है । यह
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− | | |
− | सांस्कृतिक अवनति है ।
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− | | |
− | ana st wed & प्रचलन के
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− | | |
− | परिणामस्वरूप एक ओर तो निष्क्रियता बढ़ी है, दूसरी
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− | | |
− | ओर जब भी विद्यार्थी नाचते गाते हैं तब उसमें किसी
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− | | |
− | भी प्रकार का सौंदर्य नहीं होता । संगीत, नृत्य या
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− | | |
− | अभिनय का उसमें दर्शन नहीं होता । एक प्रकार का
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− | | |
− | भोंडापन ही दिखाई देता है । या तो उसमें परा कोटी
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− | | |
− | का व्यावसायीकरण होता है । उसमें फिर सब लोग
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− | | |
− | सहभागी नहीं हो सकते । हमारे लोकउत्सवों में छोटे
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− | | |
− | �
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− | | |
− | बड़े सबकी, सामान्य से लेकर महाजनों
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− | | |
− | की सहभागिता का बहुत महत्त्व रहा है । जिस प्रकार
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− | | |
− | सार्वजनिक उत्सवों में लोकसहभागिता का महत्त्व है
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− | | |
− | उसी प्रकार विद्यालय में शैक्षिक दृष्टि से सभी
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− | | |
− | विद्यार्थियों की सहभागिता का महत्त्व है । जिस प्रकार
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− | | |
− | भाषा, गणित, विज्ञान, इतिहास सबको आने चाहिए
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− | | |
− | उसी प्रकार गाना, नाचना, खेलना, अभिनय करना
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− | | |
− | भी सबको आना चाहिए । इस दृष्टि से कक्षाकक्ष ही
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− | | |
− | रंगमंच है, प्रार्थथासभा ही विशेष प्रस्तुति के लिए मंच
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− | | |
− | है, भाषाशुद्धि, स्वरशुद्धि, जिसका अभिनय कर रहे हैं
| |
− | | |
− | उस चरित्र के साथ का तादात्म्य, भाषाकीय
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− | | |
− | अभिव्यक्ति, अंगविन्यास आदि मूल्यांकन के मापदण्ड
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− | | |
− | हैं, शिक्षक ही मूल्यांकन करने वाले और सिखाने
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− | | |
− | वाले भी हैं ।
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− | | |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | महाविद्यालयों के रंगमंच कार्यक्रमों में रा्रीय समस्याओं
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− | | |
− | के सन्दर्भ में प्रबोधन और शिक्षाक्षेत्र के माध्यम से क्या
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− | | |
− | हल हो सकता है उसका विचार भी प्रस्तुत होना
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− | | |
− | चाहिए । उदाहरण के लिए देश की आर्थिक स्थिति
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− | | |
− | का विश्लेषण और उपाय, देश के गौरव का स्मरण
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− | | |
− | और जागरण,सांस्कृतिक श्रेष्ठता के जतन का आग्रह,
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− | | |
− | विश्व में भारत की भूमिका आदि महत्त्वपूर्ण विषयों का
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− | | |
− | समावेश रंगमंच कार्यक्रमों में होना चाहिए । संक्षेप में
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− | | |
− | रंगमंच कार्यक्रम शिशु से लेकर बड़ी कक्षाओं तक
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− | | |
− | शिक्षाप्रक्रिया का ही नियमित और अंगभूत हिस्सा
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− | | |
− | बनना चाहिए, अलग से कोई विशेष कार्यक्रम नहीं ।
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− | | |
− | यह पैसे का और मनोरंजन का विषय नहीं है, | |
− | | |
− | facts, Maca, कलात्मक, व्यावहारिक
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− | | |
− | शैक्षिक विषय है ।
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− | | |
− | विद्यालय सामाजिक चेतना का केन्द्र
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− | | |
− | समाज का अर्थ
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− | | |
− | समाज की अन्यान्य व्यवस्थाओं में विद्यालय का
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− | | |
− | स्थान अत्यन्त विशिष्ट है। इसे ठीक से समझने के लिये
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− | | |
− | प्रथम समाज से हमारा तात्पर्य क्या है यह समझना
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− | | |
− | आवश्यक है ।
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− | | |
− | समाज मनुष्यों का समूह है । परन्तु समूह तो प्राणियों
| |
− | | |
− | का भी होता है । कई प्राणी कभी भी अकेले नहीं रहते,
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− | | |
− | छोटे बडे समूह में ही रहते हैं और घूमते हैं । उनके समूह
| |
− | | |
− | को समाज नहीं कहते । जो मनुष्य प्राणियों की तरह केवल
| |
− | | |
− | आहार, निद्रा, मैथुन और भय से प्रेरित होकर उन वृत्तियों
| |
− | | |
− | को सन्तुष्ट करने के लिये ही जीते हैं उनके समूह को भी
| |
− | | |
− | समाज नहीं कहते । जो मनुष्य संस्कारयुक्त हैं, किसी उदत्त
| |
− | | |
− | लक्ष्य के लिये जीते हैं, उदार अन्तःकरण से युक्त हैं ऐसे
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− | | |
− | मनुष्यों के समूह को समाज कहते हैं ।
| |
− | | |
− | उदार अन्तःकरण से युक्त लोगों की एक जीवनशैली
| |
− | | |
− | होती है, एक रीति होती है । इस रीति को संस्कृति कहते
| |
− | | |
− | हैं। संस्कृति का प्रेरक तत्त्व धर्म होता है। वर्तमान
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− | | |
− | परिस्थिति में धर्म संज्ञा के सम्बन्ध में हमें बार बार खुलासा
| |
− | | |
− | go
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− | | |
− | करना पड़ता है । धर्म संज्ञा सम्प्रदाय, पंथ, मत, मजहब,
| |
− | | |
− | रिलिजन आदि में सीमित नहीं है । वह अत्यन्त व्यापक
| |
− | | |
− | है। धर्म एक ऐसी व्यवस्था है जो विश्वनियमों से बनी है
| |
− | | |
− | और सृष्टि को धारण करती है अर्थात् नष्ट नहीं होने देती ।
| |
− | | |
− | धर्म मनुष्य समाज के लिये भी ऐसी ही व्यवस्था देता है जो
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− | | |
− | उसे नष्ट होने से बचाती है । संस्कृति धर्म की ही व्यवहार
| |
− | | |
− | प्रणाली है ।
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− | | |
− | अर्थात् जो धर्म के अनुसार अपनी जीवन स्वना करते
| |
− | | |
− | हैं ऐसे मनुष्यों का समूह समाज कहा जाता है ।
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− | | |
− | परिवार भावना मूल आधार है
| |
− | | |
− | सामान्य अर्थ में साथ मिलकर रहनेवाला समूह समाज
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− | | |
− | है। साथ रहने की प्रेरणा और प्रकार भिन्न भिन्न होते हैं ।
| |
− | | |
− | एक प्रकार है परिवार के रूप में साथ रहना । स्त्री और पुरुष
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− | | |
− | ऐसा मूल ट्रन्द्र जब पतिपत्नी बनकर साथ रहता है तब
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− | | |
− | परिवार बनने का प्रारम्भ होता है । खत्री और पुरुष अन्य
| |
− | | |
− | प्राणियों में नर और मादा काम से प्रेरित होकर साथ नहीं
| |
− | | |
− | रहते । काम का उन्नयन प्रेम में करते हैं और अपने सम्बन्ध
| |
− | | |
− | को एकात्म सम्बन्ध तक ले जाते हैं । इनको जोडने वाला
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− | | |
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− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | | |
− | विवाह-संस्कार होता है। इस परिवार का ही विस्तार
| |
− | | |
− | मातापिता और सन्तान, भाईबहन आदि में होते होते वसुधैव
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− | | |
− | कुट्म्बकम् तक पहुँचता है । मनुष्य समाज की साथ मिलकर
| |
− | | |
− | रहने की यह एक व्यवस्था है । यह सर्व व्यवस्थाओं का
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− | | |
− | भावात्मक मूल है अर्थात् अन्य सभी व्यवस्थाओं में परिवार
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− | | |
− | भावना मूल आधारूूप रहती है ।
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− | | |
− | मनुष्य की अनेक आवश्यकतायें होती हैं । आहार तो
| |
− | | |
− | सभी प्राणियों की आवश्यकता है, उसी प्रकार से मनुष्य की
| |
− | | |
− | भी है । परन्तु मनुष्य प्राणी की तरह नहीं जीता । उसे मन,
| |
− | | |
− | बुद्धि, अहंकार आदि भी मिले हैं। इन सबकी
| |
− | | |
− | आवश्यकतायें भी होती हैं। अपनी इच्छायें, अपनी
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− | | |
− | जिज्ञासा, अपना mata आदि से प्रेरित होकर मनुष्य
| |
− | | |
− | अनेक प्रकार की वस्तुरयें चाहता है । इन्हें प्राप्त करने का
| |
− | | |
− | प्रयास करता है । अनेक वस्तुओं का निर्माण करता है ।
| |
− | | |
− | इसमें से विभिन्न वस्तुरयें निर्माण करनेवाले, अनेक प्रकार के
| |
− | | |
− | कार्य करनेवाले समूह निर्माण हुए जिन्हें जाति कहा जाने
| |
− | | |
− | लगा |
| |
− | | |
− | समाज धर्म व संस्कृति से चलता है
| |
− | | |
− | मनुष्य का मन बहुत सक्रिय है । रागद्रेष, लोभ, मोह,
| |
− | | |
− | मद, मत्सर आदि से उद्देलित होकर वह अनेक प्रकार के
| |
− | | |
− | उपद्रव करता है । इसमें से अनेक प्रकार की परेशानियाँ
| |
− | | |
− | निर्माण होती हैं । मनुष्य की बुद्धि में जिज्ञासा है । जिज्ञासा
| |
− | | |
− | से प्रेरित होकर वह असंख्य बातें जानना चाहता है और
| |
− | | |
− | जानने के लिये नये नये प्रयोग करता रहता है । अनेक
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− | | |
− | कलाओं का आविष्कार मनुष्य की सृजन करने की इच्छा में
| |
− | | |
− | से होता हैं । इन सबका एक बहुत बडा संसार बनता है ।
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− | | |
− | इन मनोव्यापारों और गतिविधियों के नियमन हेतु अनेक
| |
− | | |
− | प्रकार की. व्यवस्थायें बनती हैं।. अर्थव्यवस्था,
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− | | |
− | राज्यव्यवस्था, इनके अन्तर्गत न्यायव्यवस्था, दण्डव्यवस्था,
| |
− | | |
− | उत्पादन, वाणिज्य, विवाह आदि मनुष्यों को नियमन में
| |
− | | |
− | रखने के लिये ही बनी हैं । इन व्यवस्थाओं के चलते
| |
− | | |
− | अनेक प्रकार के समूह बनते हैं ।
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− | | |
− | इन सभी व्यवस्थाओं का मूल आधार है धर्म, धर्म के
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− | | |
− | अनुसार जो रीति बनती है वह है संस्कृति ।
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− | | |
− | cg
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− | | |
− | तात्पर्य यह है कि मनुष्य का
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− | | |
− | समाज धर्म और संस्कृति से चलता है ।
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− | | |
− | संस्कृति सनातन है
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− | | |
− | संस्कृति का प्रवाह पीढ़ी दर पीढ़ी अखण्ड चलता
| |
− | | |
− | है । नित्य प्रवाहित होने वाली सभी व्यवस्थाओं में परिवर्तन
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− | | |
− | होते ही रहते हैं । परिवर्तन के कारण ही उसकी सुस्थिति
| |
− | | |
− | बनी रहती है । जिस प्रकार बहती नदी का पानी कभी भी
| |
− | | |
− | एक स्थान पर नहीं टिकता, टिकते ही वह नदी नदी नहीं
| |
− | | |
− | रहती, टिकते ही उसकी शुद्धि की प्रक्रिया भी स्थगित हो
| |
− | | |
− | जाती है, उस प्रकार संस्कृति का प्रवाह भी पीढ़ी दर पीढ़ी
| |
− | | |
− | गतिमान रहने के कारण नित्य परिवर्तनशील भी रहता है
| |
− | | |
− | और नित्य परिवर्तनशील होने के कारण नित्य शुद्ध, नित्य
| |
− | | |
− | ताजा भी रहता है ।
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− | | |
− | नित्य परिवर्तित होने पर भी वह एक और अखण्ड
| |
− | | |
− | रहता है । यही संस्कृति की सनातनता है । नित्य परिवर्तन,
| |
− | | |
− | नित्य शुद्धि, नित्य नूतनता होने पर भी वही का वही रहता
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− | | |
− | है उसीको संस्कृति का प्रवाह कहते हैं ।
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− | | |
− | शिक्षा संस्कृति का हस्तान्तरण करती है
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− | | |
− | संस्कृति को एक पीढी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित
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− | | |
− | करते हुए नित्य प्रवाहित रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य शिक्षा
| |
− | | |
− | करती है । वह घर में मातापिता द्वारा सन्तानों को, विद्यालय
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− | | |
− | में शिक्षक ट्वारा विद्यार्थी को और समाज में धर्माचार्यों द्वारा
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− | | |
− | लोगों को हस्तान्तरित की जाती है ।
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− | | |
− | घर में भावात्मक, विद्यालय में ज्ञानात्मक और
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− | | |
− | धर्मचार्य द्वारा प्रबोधनात्मक पद्धति से शिक्षा संस्कृति का
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− | | |
− | हस्तान्तरण करती है । भावात्मक शिक्षा के आधार पर
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− | | |
− | ज्ञानात्मक शिक्षा होती है । विद्यालय में जो ज्ञान प्राप्त किया
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− | | |
− | उसे जीवनभर व्यवहार में प्रकट करना है । उस समय
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− | | |
− | निरन्तर प्रबोधन करने का काम विद्वान धर्माचार्य करते हैं ।
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− | | |
− | इस व्यवस्था में विद्यालय की भूमिका महत्त्वपूर्ण है ।
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− | | |
− | विद्यालय में जो शिक्षा दी जाती है उससे समाज की स्थिति
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− | | |
− | बनती है । विद्यालय में यदि अच्छी शिक्षा मिलती है तो
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− | | |
− | समाज अच्छा बनता है, विद्यालय में अच्छी शिक्षा नहीं
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− | | |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
| |
− | | |
− | मिलती है तो समाज अच्छा नहीं बनता... सामाजिक रीतियों का शोधन करना
| |
− | | |
− | है । समाज ही विद्यालय की शिक्षा का निकष है । अतः
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− | | |
− | शिक्षा विद्यार्थी के माध्यम से सम्पूर्ण समाज को लक्ष्य बनाकर... उसका शोधन करने का काम भी विद्यालय को करना होता
| |
− | | |
− | दी जानी चाहिये । है । विद्यालय की वह क्षमता है, अधिकार है और दायित्व
| |
− | | |
− | विद्यालय की भूमिका है। उदाहणों
| |
− | | |
− | <nowiki>;</nowiki> संस्कृति विभिन्न सन्दर्भ और उदाहरणों से इस प्रतिपादन को
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− | | |
− | समाज को सुसंस्कृत बनाने का और संस्कृति के . स्पष्ट करेंगे |
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− | | |
− | रखने कार्य
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− | | |
− | प्रवाह को निरन्तर प्रवाहित तथा शुद्ध रखने का का e होली, नवरात्रि, गणेश चतुर्थी आदि भारत के
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− | | |
− | करेगा ?
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− | | |
− | विद्यालय कैसे करेगा ! देशव्यापी सांस्कृतिक पर्व हैं। इनका आयोजन
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− | | |
− | ftw मो रा बल थी कि वि 3... पार्िक, सॉस्क्तिक पद्धति से होना चाहिगे। परत
| |
− | | |
− | वर्तमान में इसका बाजारीकरण, भौतिकीकरण और
| |
− | | |
− | प्रमुख कार्य है । सर्वे भवन्तु सुखिनः यह ae जीवनदृष्टि फिल््मीकरण हो गया है । ये सात्विक आनन्दप्रमोद
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− | | |
− | है । इस दृष्टि के अनुरूप राज्यव्यवस्था, अर्थव्यवस्था आदि जगाने के, समाज
| |
− | | |
− | राजशास्र, अर्थशास्र आदि के, उपासना के, राष्ट्र भावना जगाने के, समाज को
| |
− | | |
− | होनी चाहिये । इस दृष्टि से , अर्थशास््र आदि संगठित करने के पर्व नहीं रह गये हैं । इन्हें यदि
| |
− | | |
− | शास्त्रों की रचना करना विद्यालय का कार्य है । यह सही है SETS PET TS sel Xe बाजार ' इन्हें याद शुद्ध
| |
− | | |
− | कि यह अध्ययन, अनुसन्धान और ग्रन्थों के निर्माण का करना है तो कानून, पुलीस, # अशसन की
| |
− | | |
− | कार्य है और उच्चशिक्षा के केन्द्रों में होगा । परन्तु होगा तो ae नहीं है a विद्यालय परिवारों ae ne eae
| |
− | | |
− | विद्यालय में ही । इसके अध्यापन के माध्यम से विद्वान, का आर उनक TRAIT sh SSIS sh ATTA
| |
− | | |
− | दक्ष और कार्यकुशल लोग तैयार करने का काम भी से यह कार्य करना होगा । विद्यालय का यह कानूती
| |
− | | |
− | नहीं, स्वाभाविक कर्तव्य है ।
| |
− | | |
− | विद्यालय को ही करना है । मंत्री हो या प्रशासक, सैनिक चुनावों में wag उद्योजकों
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− | | |
− | ०"... चुनावों में लेनदेन होता है, सांसद उद्योजकों के साथ
| |
− | | |
− | हो या जासूस, व्यापारी हो या उत्पादक शिक्षक हो या
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− | | |
− | वैज्ञानिक, बाबू हो या मुकादम, ये सारे विद्यालय से ही हाथ मिलाकर प्रजाविरोधी और देशविरोधी काम करते
| |
− | | |
− | अपनी अपनी विद्या सीखते हैं । इन सभी क्षेत्रों में यदि हैं तो विद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों को इन्हें
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− | | |
− | ठीक करने का काम करना चाहिये ।
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− | | |
− | समाज की रीतियों में जब प्रदूषण फैलता है तब
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− | | |
− | गडबड है तो यह विद्यालय की अधूरी या अनुचित शिक्षा न
| |
− | | |
− | का ही परिणाम माना जाना चाहिये । देश के कानून, ... *... परिवारों में जन्मदिन, विवाह, भोजनपद्धति यदि
| |
− | | |
− | विभिन्न प्रकार के तन्त्र, यदि ठीक नहीं हैं तो हम मान सकते संस्कार हीन अथवा विदेशी हो गई है तो विद्यालय
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− | | |
− | हैं कि विद्यालय ने सही कानून, सही नीतियाँ, सही aa को ही इसे ठीक करना चाहिये ।
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− | | |
− | बनानेवाले लोग निर्माण नहीं किये हैं । ०". छात्रों की अध्ययन पद्धति को समुचित रखना भी
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− | | |
− | समाज में हिंसा, चोरी, Sarin, WIR, असत्य, विद्यालय का ही काम है ।
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− | | |
− | धोखाधडी आदि दिखाई देता है तो मानना चाहिये कि eee प्राकृतिक या मानवनिर्मित आपत्तियों में सेवा कार्यों में
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− | | |
− | के विद्यालयों में (तथा परिवार में) सद्गुण और सदाचार की जुटना, उनके लिये अर्थसंग्रह करना, विभिन्न प्रकार के
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− | | |
− | शिक्षा नहीं दी जाती है, शिक्षकों की तथा संचालकों की अभियान चलाना विद्यालय का काम है । उदाहरण
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− | नीयत ठीक नहीं है, मातापिता गैरजिम्मेदार हैं । विद्यालय के लिये स्वदेशी जागरण. अभियान, नवरात्रि
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− | | |
− | को समाज के संस्कारों का भी रक्षक और नियामक होना सांस्कृतिकीकरण अभियान, सामाजिक समरसता
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− | | |
− | चाहिये । अभियान आदि |
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− | aR
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− | | |
− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | | |
− | वर्तमान में “चले गाँव की an’, an a इस प्रकार संस्कृति, धर्म और
| |
− | | |
− | ग्रामीणीकरण, गोरक्षा आन्दोलन, स्वतन्त्र उद्योगकरो, . ज्ञान के क्षेत्र में रक्षण, संवर्धन और शोधन का कार्य कर
| |
− | | |
− | नौकरी छोडो, प्रबोधन कार्यक्रम 'हाथ कुशल कारीगर' .... विद्यालय समाज को सुस्थिति में रखता है ।
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− | | |
− | अभियान चलाने की आवश्यकता है | विद्यालय का अर्थ है शिक्षक और विद्यार्थी ।
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− | ०... “भारतीयों, भारत में रहो, भारतीय बनो' भी अत्यन्त. शिक्षकों के निर्देशन में शिक्षा और समाज का प्रबोधन दोनों
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− | महत्त्वपूर्ण विषय है । वैसा ही महत्त्वपूर्ण विषय. काम साथ साथ चलते हैं ।
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− | 'परिवार प्रथम पाठशाला' है । यह सब होता है इसलिये विद्यालयों को “सामाजिक
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− | ०". शिक्षा के क्षेत्र में पाँच वर्ष से पहले विद्यालय... चेतना के केन्द्र कहा जाता है ।
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− | नहीं' का विषय लेकर समाजप्रबोधन करने की
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− | आवश्यकता है ।
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− | पूरे दिन का विद्यालय
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− | कैसे विचार करना चाहिए चलाते हैं उन्हें भोजनादि की व्यवस्था में अधिक
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− | आठ नौ या दस घण्टे के विद्यालय भी कुछ मात्रा में कमाई दिखाई देती है और वे खुश होते हैं । ऐसे
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− | चलते हैं । यद्यपि इनकी संख्या कम ही है । इन विद्यालयों विद्यालयों में न तक और संचालकों में होटेल
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− | के बारे में कैसे विचार करना चाहिये ? और होटेल में खाने के लिये जानेवालों का परस्पर
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− | १... इन विद्यालयों में दो समय का अल्पाहार, एक समय जो व्यवहार होता है वैसा ही व्यवहार होता है । ऐसे
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− | का भोजन और भोजन के बाद की विश्रान्ति की विद्यालयों में आहारविषयक शिक्षा नहीं होती ।
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− | व्यवस्था होती है । इन बातों को यदि शिक्षा के अंग... रे. कई बार अधिक समय तक विद्यालय चलाने के पीछे
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− | के रूप में स्वीकार किया जाय तो आहारशास्र की शैक्षिक विचार होता है। विद्यार्थियों को अच्छी
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− | ज्ञानात्मक, भावनात्मक और क्रियात्मक शिक्षा बहुत शिक्षा दी जा सके, व्यक्तिगत मार्गदर्शन दिया जा सके
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− | अच्छे से हो सकती है । ज्ञानात्मक शिक्षा से तात्पर्य यह उद्देश्य होता है। अधिक समय विद्यालय में
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− | है, विद्यार्थियों को आहारविषयक शास्त्रीय अर्थात् रखना है तो भोजन आदि की व्यवस्था करनी ही
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− | वैज्ञानिक ज्ञान देना, भावनात्मक शिक्षा से तात्पर्य है होगी ऐसा विचार कर विद्यालय के संचालक ऐसी
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− | विद्यार्थियों को आहारविषयक सांस्कृतिक ज्ञान देना व्यवस्था करते हैं । यह केवल सुविधा की दृष्टि से
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− | और फक्रियात्मक शिक्षा से तात्पर्य है विद्यार्थियों को होता है । इसमें शैक्षिक या आर्थिक दृष्टि नहीं होती ।
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− | भोजन बनाने और करने का कौशल सिखाना । आज... ४... क्वचित पूरे दिन के विद्यालय में विद्यार्थी अपना
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− | समाज में आहार के विषय में घोर अज्ञान और भोजन घर से ही लेकर आते हैं, विद्यालय की ओर
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− | विपरीत ज्ञान फैल गया है । विद्यालय में यदि इस से व्यवस्था नहीं की जाती । अभिभावकों का पैसा
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− | प्रकार की शिक्षा दी जाती है तो उनके माध्यम से घरों बचता है और विद्यालय झंझट से बचते हैं ।
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− | में भी पहुँच सकती है। समाज के स्वास्थ्य और . ५. पूरे दिन का विद्यालय अभिभावकों के लिये
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− | संस्कार में वृद्धि हो सकती है । सुविधाजनक रहता है । विशेष रूप से महानगरों में
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− | २.. परन्तु जो लोग कमाई करने के लिये ही विद्यालय जहाँ पतिपत्नी दोनों काम के लिये बाहर जाते हैं और
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− | ६.
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− | 9.
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− | ८.
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− | बच्चों को देखनेवाला घर में और कोई
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− | नहीं होता तब इस व्यवस्था में बहुत सुविधा रहती
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− | है। यह केवल छोटे बच्चों की ही बात नहीं है,
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− | किशोर या तरुण आयु के बच्चों के लिये भी घर में
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− | अकेले रहना इष्ट नहीं लगता । इस दृष्टि से पूरे दिन
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− | के विद्यालय आशीर्वाद्रूप होते हैं । महानगरों या
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− | नगरों में जहाँ विद्यालय घर से पर्याप्त दूरी पर होते हैं
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− | वहाँ भी यह व्यवस्था बहुत सुविधाजनक होती है ।
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− | पूरे दिन के विद्यालय में पढने वाले विद्यार्थियों के
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− | लिये अतिरिक्त ट्यूशन या कोचिंग क्लास की
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− | आवश्यकता नहीं होती । होनी भी नहीं चाहिये ।
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− | यदि पूरे दिन का विद्यालय भी शिक्षक, विद्यार्थी या
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− | अभिभावकों को अपर्याप्त लगता है तो मानना चाहिये
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− | कि कहीं कुछ गडबड है। अतः समय का पूर्ण
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− | उपयोग करना चाहिये ।
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− | पूरे दिन के विद्यालय में या तो शिक्षकों की संख्या
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− | अधिक होती है अथवा उनका वेतन अधिक होता
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− | है । अधिकांश शिक्षक अधिक काम और अधिक
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− | वेतन चाहते हैं परन्तु वास्तव में अधिक शिक्षक होना
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− | शैक्षिक दृष्टि से अधिक उचित है। ऐसा होने से
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− | शिक्षक - विद्यार्थी का अनुपात कम हो जाता है,
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− | साथ ही शिक्षकों को शारीरिक और मानसिक थकान
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− | कम होती है । शिक्षक-विद्यार्थी का अनुपात कम
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− | होने से अध्ययन-अध्यापन की गुणवत्ता बढती है ।
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− | यदि शिक्षक अधिक समय तक काम करते हैं तो उन्हें
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− | स्वाध्याय करने के लिये समय नहीं मिलता और
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− | शक्ति भी नहीं बचती ।
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− | पूरे दिन के विद्यालयों में सप्ताह में दो दिन का
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− | अवकाश होता है तो अधिक सुविधा रहती है ।
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− | विद्यार्थियों और शिक्षकों में सामाजिकता का विकास
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− | हो इस दृष्टि से इस समय का उपयोग किया जाना
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− | चाहिये । विद्यार्थियों और शिक्षकों में सामाजिकता का
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− | विकास हो इस दृष्टि से शिक्षा भी दी जानी चाहिये ।
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− | आज ऐसा दिखाई देता है कि पढाई जिनके पीछे लग
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− | गई है ऐसे विद्यार्थी सामाजिक व्यवहार में शून्य होते
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− | 6%
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− | Ro.
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− | 8.
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− | x.
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− | 2.
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | हैं । काम में अति व्यस्त शिक्षक सामाजिक व्यवहार में
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− | समय ही नहीं दे पाते । दोनों को यदि सामाजिकता की
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− | शिक्षा नहीं दी गई तो अवकाश का समय टीवी या
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− | अन्य व्यक्तिगत रुचि के काम या मनोरंजन में ही बीत
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− | जाता है । ऐसा न हो इसका ध्यान रखना चाहिये ।
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− | परन्तु दो दिन का अवकाश है इसलिये विद्यालय
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− | का ही काम गृहकार्य के रूप में करने के लिये नहीं
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− | देना चाहिये, नहीं तो अन्य किसी भी प्रकार के कामों
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− | के लिये समय ही नहीं रहेगा ।
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− | पूरे दिन के विद्यालय की व्यवस्था ऐसी तो नहीं होनी
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− | चाहिये कि विद्यार्थियों को बाद में खेलने का समय ही
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− | न रहे । या तो विद्यालय में खेलने की व्यवस्था हो या
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− | खेलने का ही गृहकार्य दिया जाय । घर में खेलने की
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− | व्यवस्था होना आवश्यक है । यदि घर में ऐसी
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− | व्यवस्था नहीं है तो विद्यालय में खेलना चाहिये |
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− | पूरे दिन के विद्यालय में बस्ता विद्यालय में ही रखकर
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− | जाने की व्यवस्था होना स्वाभाविक है । इससे
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− | विद्यार्थियों को बस्ते का बोझ उठाना नहीं पडता |
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− | दस वर्ष की आयु तक पूरे दिन का विद्यालय होने की
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− | कोई आवश्यकता नहीं । पन्द्रह वर्ष के बाद भी ऐसी
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− | आवश्यकता नहीं । यह ग्यारह से पन्द्रह ऐसे पाँच वर्षों
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− | के लिये ही सबसे अधिक लाभदायी व्यवस्था हो
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− | सकती है । इस दौरान विद्यार्थी यदि साइकिल लेकर ही
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− | विद्यालय जाते हैं तो हर दृष्टि से अच्छा रहेगा ।
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− | पूरे दिन के विद्यालय में समयसारिणी और पाठन पद्धति
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− | में विशेष प्रयोग करने की सुविधा रहती है । इसका पूरा
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− | लाभ उठाना चाहिये । क्रियात्मक पद्धति से अध्ययन
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− | करने के अवसर विद्यार्थियों को मिलने चाहिये ।
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− | ग्रन्थालय, विज्ञान प्रयोगशाला और उद्योगशाला में
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− | क्रियात्मक अध्ययन करने के अवसर मिलने चाहिये ।
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− | पूरे दिन के विद्यालय में जीवन व्यवहार की शिक्षा
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− | देने की व्यवस्था भी हो सकती है । परन्तु इसका
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− | अर्थ यह नहीं है कि विद्यार्थियों को पढाई के बोझ से
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− | ही लाद दिया जाय । वास्तव में पूरे दिन के विद्यालय
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− | में सामान्य विद्यालय से दो घण्टे ही अधिक मिलते
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− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | हैं । अतः अनेक प्रकार की और अत्यधिक sari
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− | नहीं करनी चाहिये । वैसे तो विद्यालय और घर दोनों
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− | स्थानों पर जो पढाई होती है वह इस व्यवस्था में
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− | एक ही स्थान पर होती है इतना ही अन्तर मानना
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− | चाहिये । केवल यहाँ सब कुछ शिक्षकों के मार्गदर्शन
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− | में होता है यह विशेष है ।
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− | १४. पूरे दिन के विद्यालय का समय प्रातःकाल सात बजे से
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− | शिक्षकों की सहमति से समय का
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− | निर्धारण होना आवश्यक है ।
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− | आवासीय विद्यालय से अधिक व्यापक रूप में,
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− | अधिक संख्या में पूरे दिन के विद्यालय का प्रयोग हो
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− | सकता है। आवासी विद्यालय जैसी अधिक
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− | व्यवस्थायें नहीं करनी पडतीं यह एक सुविधा है और
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− | विद्यार्थी विद्यालय में अधिक समय तक रहने पर भी
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− | 4.
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− | शुरू होता है तो उत्तम । इससे विद्यार्थियों को अपने परिवार में ही रह सकते हैं ।
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− | प्रातत्काल जल्दी उठने का अभ्यास सहज ही होता इस दृष्टि से पूरे दिन के विद्यालयों का शैक्षिक दृष्टि से
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| है। सायंकाल खेलने के बाद यदि छः बजे वापस... अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है । | | है। सायंकाल खेलने के बाद यदि छः बजे वापस... अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है । |