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होली, नवरात्रि, गणेश चर्थी आदि भारत के देशव्यापी सांस्कृतिक पर्व हैं। इनका आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक पद्धति से होना चाहिये । परन्तु वर्तमान में इसका बाजारीकरण, भौतिकीकरण और फिल्मीकरण हो गया है। ये सात्त्विक आनन्दप्रमोद के, उपासना के, राष्ट्र भावना जगाने के, समाज को संगठित करने के पर्व नहीं रह गये हैं। इन्हें यदि शुद्ध करना है तो कानून, पुलीस, बाजार, प्रशासन की क्षमता नहीं है। विद्यालय को ही अपने विद्यार्थियों की शिक्षा और उनके परिवारों के प्रबोधन के माध्यम से यह कार्य करना होगा। विद्यालय का यह कानूनी नहीं, स्वाभाविक कर्तव्य है।
 
होली, नवरात्रि, गणेश चर्थी आदि भारत के देशव्यापी सांस्कृतिक पर्व हैं। इनका आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक पद्धति से होना चाहिये । परन्तु वर्तमान में इसका बाजारीकरण, भौतिकीकरण और फिल्मीकरण हो गया है। ये सात्त्विक आनन्दप्रमोद के, उपासना के, राष्ट्र भावना जगाने के, समाज को संगठित करने के पर्व नहीं रह गये हैं। इन्हें यदि शुद्ध करना है तो कानून, पुलीस, बाजार, प्रशासन की क्षमता नहीं है। विद्यालय को ही अपने विद्यार्थियों की शिक्षा और उनके परिवारों के प्रबोधन के माध्यम से यह कार्य करना होगा। विद्यालय का यह कानूनी नहीं, स्वाभाविक कर्तव्य है।
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चुनावों में लेनदेन होता है, सांसद उद्योजकों के साथ
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चुनावों में लेनदेन होता है, सांसद उद्योजकों के साथ हाथ मिलाकर प्रजाविरोधी और देशविरोधी काम करते हैं तो विद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों को इन्हें ठीक करने का काम करना चाहिये ।
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परिवारो में जन्मदिन, विवाह, भोजनपद्धति यदि संस्कार हीन अथवा विदेशी हो गई है तो विद्यालय को ही इसे ठीक करना चाहिये ।
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छात्रों की अध्ययन पद्धति को समुचित रखना भी विद्यालय का ही काम है।
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प्राकृतिक या मानवनिर्मित आपत्तियों में सेवा कार्यों में जुटना, उनके लिये अर्थसंग्रह करना, विभिन्न प्रकार के अभियान चलाना विद्यालय का काम है। उदाहरण के लिये स्वदेशी जागरण अभियान, नवरात्रि सांस्कृतिकीकरण अभियान, सामाजिक समरसता अभियान आदि।
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वर्तमान में चले गाँव की ओर', भारत का ग्रामीणीकरण, गोरक्षा आन्दोलन, स्वतन्त्र उद्योगकरो, नौकरी छोडो, प्रबोधन कार्यक्रम ‘हाथ कुशल कारीगर' अभियान चलाने की आवश्यकता है।
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'भारतीयों, भारत में रहो, भारतीय बनो' भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय है। वैसा ही महत्त्वपूर्ण विषय ‘परिवार प्रथम पाठशाला' है।
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शिक्षा के क्षेत्र में ‘पाँच वर्ष से पहले विद्यालय नहीं' का विषय लेकर समाजप्रबोधन करने की आवश्यकता है।
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इस प्रकार संस्कृति, धर्म और । 3 ज्ञान के क्षेत्र में रक्षण, संवर्धन और शोधन का कार्य कर विद्यालय समाज को सुस्थिति में रखता है।
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विद्यालय का अर्थ है शिक्षक और विद्यार्थी । शिक्षकों के निर्देशन में शिक्षा और समाज का प्रबोधन दोनों काम साथ साथ चलते हैं ।
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यह सब होता है इसलिये विद्यालयों को ‘सामाजिक चेतना के केन्द्र' कहा जाता है ।
    
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
 
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
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