यह सब होता है इसलिये विद्यालयों को ‘सामाजिक चेतना के केन्द्र' कहा जाता है ।
यह सब होता है इसलिये विद्यालयों को ‘सामाजिक चेतना के केन्द्र' कहा जाता है ।
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==== पुरे दिन का विद्यालय ====
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===== कैसे विचार करना चाहिए =====
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आठ नौ या दस घण्टे के विद्यालय भी कुछ मात्रा में चलते हैं । यद्यपि इनकी संख्या कम ही है। इन विद्यालयों के बारे में कैसे विचार करना चाहिये ?
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1. इन विद्यालयों में दो समय का अल्पाहार, एक समय का भोजन और भोजन के बाद की विश्रान्ति की व्यवस्था होती है। इन बातों को यदि शिक्षा के अंग के रूप में स्वीकार किया जाय तो आहारशास्त्र की ज्ञानात्मक, भावनात्मक और क्रियात्मक शिक्षा बहुत अच्छे से हो सकती है । ज्ञानात्मक शिक्षा से तात्पर्य है, विद्यार्थियों को आहारविषयक शास्त्रीय अर्थात् वैज्ञानिक ज्ञान देना, भावनात्मक शिक्षा से तात्पर्य है विद्यार्थियों को आहारविषयक सांस्कृतिक ज्ञान देना और क्रियात्मक शिक्षा से तात्पर्य है विद्यार्थियों को भोजन बनाने और करने का कौशल सिखाना । आज समाज में आहार के विषय में घोर अज्ञान और विपरीत ज्ञान फैल गया है। विद्यालय में यदि इस प्रकार की शिक्षा दी जाती है तो उनके माध्यम से घरों में भी पहुँच सकती है। समाज के स्वास्थ्य और संस्कार में वृद्धि हो सकती है।