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| ===== वर्तमान में ये बातें होती क्यों नहीं हैं ? ===== | | ===== वर्तमान में ये बातें होती क्यों नहीं हैं ? ===== |
− | एक तो सारी शिक्षा यांत्रिक बन गई है। ऐसा भ्रम निर्माण हुआ है कि शिक्षा पुस्तकें पढ़ना, प्रश्नों के उत्तर लिखना और परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही है। ऐसे सीमित | + | एक तो सारी शिक्षा यांत्रिक बन गई है। ऐसा भ्रम निर्माण हुआ है कि शिक्षा पुस्तकें पढ़ना, प्रश्नों के उत्तर लिखना और परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही है। ऐसे सीमित अर्थ में सार्थक शिक्षा हो ही नहीं सकती है। |
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| + | वास्तव में विद्यालय का पाठ्यक्रम भी क्रियात्मक स्वरूप का बनाना चाहिए ताकि विद्यार्थी सैद्धांतिक और व्यावहारिक आयाम साथ साथ सीख सकें। |
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| + | बड़ी कक्षाओं में तो छात्रों का सहभाग और अधिक क्रियात्मक रहेगा । विद्यालय के लिए धनसंग्रह करना, समाज सम्पर्क करना, सामाजिक उत्सवों और आयोजनों में सहभागी बनना, प्राकृतिक आपदाओं जैसे समय पर उसमें सेवाकार्य करना, विद्यालय में कार्यक्रमों का आयोजन करना आदि अनेक काम विद्यार्थी कर सकते हैं । यह सब सार्थक शिक्षा है, हमने अपने अज्ञानवश इसे अतिरिक्त काम मान लिया है । |
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| + | प्रश्न यह होगा कि विद्यालय का समय कम होता है,उतने समय में यह सब करेंगे कैसे । प्रश्न तो सरल है परन्तु यह केवल समय का विषय नहीं है। समय का ही विषय होता तो आवासीय विद्यालयों में शिक्षायोजना इसके अनुकूल बनती । आज भी कई विद्यालय पूरे दिन के चलते हैं, कई आठ घण्टे के चलते हैं परन्तु उन विद्यालयों में व्यवहार के साथ जोड़कर शिक्षा नहीं दी जाती। प्रश्न शिक्षाशास्त्र की समझ का है। शिक्षा को भी तन्त्रज्ञान की शिक्षा की तरह तान्त्रिक बना दिया जाता है और भौतिक पदार्थ ही मानकर उसके विषय में बोला जाता है तब ऐसा होता है । अत: पर्याप्त विमर्श और प्रबोधन की आवश्यकता है। |
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| + | ===== विद्यालय का रंगमंच कार्यक्रम ===== |
| + | रंगमंच कार्यक्रम की आज जो दुर्गति हुई है वह कल्पनातीत है। उसमें अब शैक्षिक पक्ष का विचार लेशमात्र भी नहीं रह गया है। |
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| + | कुछ बातें इस प्रकार समझने योग्य हैं ... |
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| + | रंगमंच कार्यक्रम को अब मनोरंजन का ही विषय माना जाता है, शैक्षिक या सांस्कृतिक नहीं । ऐसा मानने के बाद भी उसमें कला का आविष्कार नहीं दिखाई देता है । अतिशय निम्न स्तर का मनोरंजन ही उसमें होता है। विद्या के धाम में अभिजात कला और श्रेष्ठ कोटी की रसिकता दिखाई देनी चाहिए उसका कहीं दर्शन नहीं होता है। |
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| परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी | | परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी |