Line 129: |
Line 129: |
| 2. स्वतन्त्र बनना तो कोई भी चाहेगा परन्तु स्वतन्त्रता के साथ जो दायित्व होता है वह कोई नहीं चाहता । प्रबोधन का दूसरा मुद्दा दायित्व का भी है । शिक्षा को ठीक करने का दायित्व शिक्षक का है। पूर्व उदाहरण भी हैं, परम्परा भी है और तर्क भी इसी बात को कहता है । | | 2. स्वतन्त्र बनना तो कोई भी चाहेगा परन्तु स्वतन्त्रता के साथ जो दायित्व होता है वह कोई नहीं चाहता । प्रबोधन का दूसरा मुद्दा दायित्व का भी है । शिक्षा को ठीक करने का दायित्व शिक्षक का है। पूर्व उदाहरण भी हैं, परम्परा भी है और तर्क भी इसी बात को कहता है । |
| | | |
− | 3. “अपना घर है और हमें उस | + | 3. "अपना घर है और हमें उसे चलाना है " ऐसा मानने में स्वतन्त्रता है जहाँ अधिकार भी है और दायित्व भी। घर में काम करने के लिये आनेवाला न अधिकारपूर्वक काम करता है न दायित्वबोध से । घर उसका नहीं है । वेतन देने वाले और वेतन लेने वाले दोनों यह बात समझते हैं । शिक्षाक्षेत्र में आज यही स्थिति हुई है। और भी बढकर, क्योंकि इसमें तो शिक्षा वेतन देनेवाले की भी नहीं है । |
| | | |
− | े चलाना है' ऐसा मानने
| + | 4. व्यवस्थातन्त्र स्वभाव से ही जड होता है । उसने शिक्षा को भी जड बना दिया है । शिक्षक से अपेक्षा है कि वह शिक्षा को जडता और जडतन्त्र से मुक्त करे । |
| | | |
− | में स्वतन्त्रता है जहाँ अधिकार भी है और दायित्व | + | 5. अर्थनिष्ठ समाज में ज्ञान, संस्कार, चरित्र, भावना आदि की कोई प्रतिष्ठा नहीं होती । वहाँ वेतन देनेवाला सम्माननीय होता है, वेतन लेनेवाला नौकर माना जाता है, फिर वह चाहे शिक्षक हो, पूजारी हो, उपदेशक हो, धर्माचार्य हो, स्वजन हो या पिता हो | इस स्थिति से मुक्त वेतन लेने वाले को करना होता है । उसमें मुक्त होने की चाह निर्माण किये बिना उसे मुक्त करना सम्भव नहीं है । |
| | | |
− | भी। घर में काम करने के लिये आनेवाला न
| + | 6. शिक्षा को और शिक्षक को स्वतन्त्र होना चाहिये यह तो ठीक है परन्तु कोई भी शिक्षक आज अपनी नौकरी कैसे छोड सकता है ? उसे भी तो अपने परिवार का पोषण करना है । समाज उसकी कदर तो करनेवाला नहीं है । आज बडी मुश्किल से शिक्षक का वेतन कुछ ठीक हुआ है। अब उसे नौकरी छोडकर स्वतन्त्र होने को कहना तो उसे भूखों मारना है । यह कैसे सम्भव है ? |
| | | |
− | अधिकारपूर्वक काम करता है न दायित्वबोध से । घर
| + | ऐसा ही कहते रहने से तो प्रश्न का कोई हल हो ही नहीं सकता है । |
| | | |
− | उसका नहीं है । वेतन देने वाले और वेतन लेने वाले
| + | 7. शिक्षा के लिये नौकरी छोडने वाले को समाज सम्मान नहीं देगा, उल्टे उसे नासमझ कहेगा, इसलिये उस दिशा में भी कुछ नहीं हो सकता । |
| | | |
− | दोनों यह बात समझते हैं । शिक्षाक्षेत्र में आज यही
| + | 8. फिर भी करना तो यही होगा । |
| | | |
− | स्थिति हुई है। और भी बढकर, क्योंकि इसमें तो
| + | 9. कया ऐसा हो सकता है कि दस-पन्द्रह -बीस वर्ष तक अर्थात् ३५ से ५० वर्ष की आयु तक नौकरी करना, सांसारिक जिम्मेदारियों से आधा मुक्त हो जाना और फिर शिक्षा की सेवा करने हेतु सिद्ध हो जाना । यदि देश के एक प्रतिशत शिक्षक ऐसा करते हैं तो बात बन सकती है । |
| | | |
− | शिक्षा वेतन देनेवाले की भी नहीं है । | + | 10. क्या देश के हजार में एक शिक्षक प्रारम्भ से ही बिना वेतन के अध्यापन के काम में लग जाय और स्वतन्त्र विद्यालय शुरू करे जहाँ शिक्षा पूर्ण रूप से स्वतन्त्र हो ? यह तो बहुत बडी बात है । |
| | | |
− | व्यवस्थातन्त्र स्वभाव से ही जड होता है । उसने
| + | 11. क्या यह सम्भव है कि देश के हर राज्य में एक ऐसा शोध संस्थान हो जहाँ अध्ययन, अनुसंधान और पाठ्यक्रम निर्माण का कार्य शिक्षक अपनी जिम्मेदारी पर करते हों ? इसमें वेतन की कोई व्यवस्था न हो, समाज के सहयोग से ही सबकुछ चलता हो । इसमें जुडनेवालों के निर्वाह की व्यवस्था स्वतन्त्र रूप से ही की जाय और स्वयं शिक्षक ही करें यह आवश्यक है क्योंकि मूल बात शिक्षक के स्वनिर्भर होने की है । |
| | | |
− | शिक्षा को भी जड बना दिया है । शिक्षक से अपेक्षा | + | 12. आज भी देश में ऐसे लोग हैं जो स्वयंप्रेरणा से शिक्षा की इस प्रकार से सेवा कर रहे हैं । ऐसे लोगों की संख्या दस हजार में एक अवश्य होगी । परन्तु वे केवल व्यक्तिगत स्तर पर काम करते हैं । इनकी बहुत प्रसिद्धि भी नहीं होती । जो उन्हें जानता है वह उनकी प्रशंसा करता है परन्तु उनका शिक्षातन्त्र में परिवर्तन हो सके ऐसा प्रभाव नहीं है । इन्हें एक सूत्र में बाँधने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिये । इनके प्रयासों को “भारत में शिक्षा को भारतीय बनाओ' सूत्र का अधिष्ठान दिया जा सकता है । इनके प्रयासों की जानकारी समाज को दी जा सकती है । |
| | | |
− | है कि वह शिक्षा को जडता और जडतन्त्र से मुक्त | + | 13. शिक्षा मुक्त होनी चाहिय ऐसा जिनको भी लगता है उन्होंने स्वयं से शुरुआत करनी चाहिये । साथ ही अन्य शिक्षकों को मुक्त होने के लिये आवाहन करना चाहिये । जिस प्रकार स्वराज्य का बलिदान देकर सुराज्य नहीं हो सकता उसी प्रकार जडतन्त्र के अधीन रहकर भारतीय शिक्षा सम्भव नहीं है । इसी एक बात को समझाने में सबसे अधिक शक्ति खर्च करनी होगी । आज यही करने का प्रयास हो रहा है । |
| | | |
− | करे ।
| + | शिक्षक प्रबोधन का विषय सर्वाधिक महत्त्व रखता है । इसको सही पटरी पर लाये बिना और कुछ भी कैसे हो सकता है ? सबको मिलकर इस बात के लिये प्रयास करने की आवश्यकता है । |
− | | |
− | अर्थनिष्ठ समाज में ज्ञान, संस्कार, चरित्र, भावना
| |
− | | |
− | आदि की कोई प्रतिष्ठा नहीं होती । वहाँ वेतन
| |
− | | |
− | देनेवाला सम्माननीय होता है, वेतन लेनेवाला नौकर
| |
− | | |
− | माना जाता है, फिर वह चाहे शिक्षक हो, पूजारी हो,
| |
− | | |
− | उपदेशक हो, धर्माचार्य हो, स्वजन हो या पिता at |
| |
− | | |
− | इस स्थिति से मुक्त वेतन लेने वाले को करना होता
| |
− | | |
− | है । उसमें मुक्त होने की चाह निर्माण किये बिना उसे
| |
− | | |
− | मुक्त करना सम्भव नहीं है ।
| |
− | | |
− | शिक्षा को और शिक्षक को स्वतन्त्र होना चाहिये यह
| |
− | | |
− | तो ठीक है परन्तु कोई भी शिक्षक आज अपनी
| |
− | | |
− | नौकरी कैसे छोड सकता है ? उसे भी तो अपने
| |
− | | |
− | था;
| |
− | | |
− | १०,
| |
− | | |
− | Re.
| |
− | | |
− | x.
| |
− | | |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
| |
− | | |
− | परिवार का पोषण करना है । समाज उसकी कदर तो
| |
− | | |
− | करनेवाला नहीं है । आज बडी मुश्किल से शिक्षक
| |
− | | |
− | का वेतन कुछ ठीक हुआ है। अब उसे नौकरी
| |
− | | |
− | छोडकर स्वतन्त्र होने को कहना तो उसे भूखों मारना
| |
− | | |
− | है । यह कैसे सम्भव है ?
| |
− | | |
− | ऐसा ही कहते रहने से तो प्रश्न का कोई हल हो ही
| |
− | | |
− | नहीं सकता है ।
| |
− | | |
− | शिक्षा के लिये नौकरी छोडने वाले को समाज सम्मान
| |
− | | |
− | नहीं देगा, उल्टे उसे नासमझ कहेगा, इसलिये उस
| |
− | | |
− | दिशा में भी कुछ नहीं हो सकता ।
| |
− | | |
− | फिर भी करना तो यही होगा ।
| |
− | | |
− | कया ऐसा हो सकता है कि दस-पन्द्रह -बीस वर्ष
| |
− | | |
− | तक अर्थात् ३५ से ५० वर्ष की आयु तक नौकरी
| |
− | | |
− | करना, सांसारिक जिम्मेदारियों से आधा मुक्त हो जाना
| |
− | | |
− | और फिर शिक्षा की सेवा करने हेतु सिद्ध हो जाना ।
| |
− | | |
− | यदि देश के एक प्रतिशत शिक्षक ऐसा करते हैं तो
| |
− | | |
− | बात बन सकती है ।
| |
− | | |
− | क्या देश के हजार में एक शिक्षक प्रारम्भ से ही बिना
| |
− | | |
− | वेतन के अध्यापन के काम में लग जाय और स्वतन्त्र
| |
− | | |
− | विद्यालय शुरू करे जहाँ शिक्षा पूर्ण रूप से स्वतन्त्र
| |
− | | |
− | हो ? यह तो बहुत बडी बात है ।
| |
− | | |
− | क्या यह सम्भव है कि देश के हर राज्य में एक ऐसा
| |
− | | |
− | शोध संस्थान हो जहाँ अध्ययन, अनुसंधान और
| |
− | | |
− | पाठ्यक्रम निर्माण का कार्य शिक्षक अपनी जिम्मेदारी
| |
− | | |
− | पर करते हों ? इसमें वेतन की कोई व्यवस्था न हो,
| |
− | | |
− | समाज के सहयोग से ही सबकुछ चलता हो । इसमें
| |
− | | |
− | जुडनेवालों के निर्वाह की व्यवस्था स्वतन्त्र रूप से ही
| |
− | | |
− | की जाय और स्वयं शिक्षक ही करें यह आवश्यक है
| |
− | | |
− | क्योंकि मूल बात शिक्षक के स्वनिर्भर होने की है ।
| |
− | | |
− | आज भी देश में ऐसे लोग हैं जो स्वयंप्रेरणा से शिक्षा
| |
− | | |
− | की इस प्रकार से सेवा कर रहे हैं । ऐसे लोगों की
| |
− | | |
− | संख्या दस हजार में एक अवश्य होगी । परन्तु वे
| |
− | | |
− | केवल व्यक्तिगत स्तर पर काम करते हैं । इनकी बहुत
| |
− | | |
− | प्रसिद्धि भी नहीं होती । जो उन्हें जानता है वह
| |
− | | |
− | उनकी प्रशंसा करता है परन्तु उनका शिक्षातन्त्र में
| |
− | | |
− | ............. page-73 .............
| |
− | | |
− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
| |
− | | |
− | परिवर्तन हो सके ऐसा प्रभाव नहीं है । इन्हें एक सूत्र
| |
− | | |
− | में बाँधने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिये । इनके
| |
− | | |
− | प्रयासों को “भारत में शिक्षा को भारतीय बनाओ' सूत्र
| |
− | | |
− | का अधिष्ठान दिया जा सकता है । इनके प्रयासों की
| |
− | | |
− | जानकारी समाज को दी जा सकती है ।
| |
− | | |
− | १३. शिक्षा मुक्त होनी चाहिय ऐसा जिनको भी लगता है
| |
− | | |
− | उन्होंने स्वयं से शुरुआत करनी चाहिये । साथ ही
| |
− | | |
− | अन्य शिक्षकों को मुक्त होने के लिये आवाहन करना
| |
− | | |
− | चाहिये । जिस प्रकार स्वराज्य का बलिदान देकर
| |
− | | |
− | 2 ७
| |
− | | |
− | ७ ७८ १
| |
− | | |
− | ८ ७ ७ ४ ७/ ४
| |
− | | |
− | सुराज्य नहीं हो सकता उसी
| |
− | | |
− | प्रकार जडतन्त्र के अधीन रहकर भारतीय शिक्षा
| |
− | | |
− | सम्भव नहीं है । इसी एक बात को समझाने में सबसे
| |
− | | |
− | अधिक शक्ति खर्च करनी होगी । आज यही करने
| |
− | | |
− | का प्रयास हो रहा है ।
| |
− | | |
− | शिक्षक प्रबोधन का विषय सर्वाधिक महत्त्व रखता | |
− | | |
− | है । इसको सही पटरी पर लाये बिना और कुछ भी कैसे हो | |
− | | |
− | 3 \ \ लिये कस
| |
− | | |
− | सकता है ? सबको मिलकर इस बात के लिये प्रयास करने | |
− | | |
− | की आवश्यकता है । | |
| | | |
| आदर्श शिक्षक | | आदर्श शिक्षक |