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| ==== शिक्षक के मन को पुनर्जीवित करना ==== | | ==== शिक्षक के मन को पुनर्जीवित करना ==== |
| शिक्षक का मन मर गया है इसके लक्षण कौन से हैं ? वह अब कहने लगा है कि... | | शिक्षक का मन मर गया है इसके लक्षण कौन से हैं ? वह अब कहने लगा है कि... |
− | | + | * अब इस तंत्र में कुछ नहीं हो सकता । प्राथमिक.विद्यालय का शिक्षक भी यह कहता है और विश्व-विद्यालय का भी । विद्वान भी कहते हैं और बुद्धिमान भी। |
− | अब इस तंत्र में कुछ नहीं हो सकता । प्राथमिक.विद्यालय का शिक्षक भी यह कहता है और विश्व-विद्यालय का भी । विद्वान भी कहते हैं और बुद्धिमान भी। | + | * हमारे करने से क्या होने वाला है ? सरकार जब तक. कुछ नहीं करती तब तक कुछ नहीं हो सकता । सब कुछ सरकार के ही हाथ में है । |
− | | + | * मुझे क्या पडी है कि मैं कुछ करूँ ? बडे बडे नहीं करते तो मुझे क्यों कहा जाता है कि कुछ करो ? |
− | ०... हमारे करने से क्या होने वाला है ? सरकार जब तक. कुछ नहीं करती तब तक कुछ नहीं हो सकता । सब कुछ सरकार के ही हाथ में है ।
| + | * अपना काम पढ़ाने का है, और किसी झंझट में पड़ने की क्या आवश्यकता है ? चरित्रनिर्माण, प्रामाणिकता आदि सब पुरानी बातें हो गई । आज यह सब नहीं चलता । आज भलाई का जमाना नहीं है। कुछ करने जाओ तो स्वयं ही परेशानी में पड जायेंगे । |
− | | + | * विद्यार्थी सुनते नहीं, अभिभावकों को पडी नहीं है, कुछ भले के लिये करो तो उल्टी शिकायत कर देते हैं, संचालक डाँटते हैं अथवा कार्यवाही करते हैं । तो फिर कुछ भी करने की क्या आवश्यकता है ? अपना वेतन लो, पाठ्यक्रम पूरा करो और मौज करो । |
− | ०... मुझे क्या पडी है कि मैं कुछ करूँ ? बडे बडे नहीं करते तो मुझे क्यों कहा जाता है कि कुछ करो ?
| + | * सारी अपेक्षा शिक्षक से ही क्यों की जाती है ? और लोग भी तो अपना काम ठीक नहीं करते । उनसे जाकर कहो । पहले इन राजनीति वालों को ठीक करो । अर्थात् उसने पराधीनता का स्वीकार कर लिया और जान लिया की स्वाधीन और स्वतन्त्र नहीं हुआ जा सकता तो वह बेपरवाह भी हो गया । प्रयास करना छोड दिया और जैसा रखा जाता है वैसा रहने लगा । दुनिया ऐसी ही है, जीवन ऐसा ही है, अब किसी के लिये कुछ करने की आवश्यकता नहीं, अपने में रहो, अपने से रहो । |
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− | अपना काम पढ़ाने का है, और किसी झंझट में पड़ने की क्या आवश्यकता है ? चरित्रनिर्माण, प्रामाणिकता आदि सब पुरानी बातें हो गई । आज यह सब नहीं चलता । आज भलाई का जमाना नहीं है। कुछ करने जाओ तो स्वयं ही परेशानी में पड जायेंगे । | |
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− | विद्यार्थी सुनते नहीं, अभिभावकों को पडी नहीं है, कुछ भले के लिये करो तो उल्टी शिकायत कर देते हैं, संचालक डाँटते हैं अथवा कार्यवाही करते हैं । तो फिर कुछ भी करने की क्या आवश्यकता है ? अपना वेतन लो, पाठ्यक्रम पूरा करो और मौज करो । | |
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− | सारी अपेक्षा शिक्षक से ही क्यों की जाती है ? और लोग भी तो अपना काम ठीक नहीं करते । उनसे जाकर कहो । पहले इन राजनीति वालों को ठीक करो । अर्थात् उसने पराधीनता का स्वीकार कर लिया और जान लिया की स्वाधीन और स्वतन्त्र नहीं हुआ जा सकता तो वह बेपरवाह भी हो गया । प्रयास करना छोड दिया और जैसा रखा जाता है वैसा रहने लगा । दुनिया ऐसी ही है, जीवन ऐसा ही है, अब किसी के लिये कुछ करने की आवश्यकता नहीं, अपने में रहो, अपने से रहो । | |
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| ऐसी स्थिति में उसका मन अब स्वतन्त्रता की नहीं, उपभोग की ही चाह रखता है और बुद्धि किसीकी भलाई के लिये नहीं, अपनी ही “भलाई' के लिये प्रयुक्त होती है । | | ऐसी स्थिति में उसका मन अब स्वतन्त्रता की नहीं, उपभोग की ही चाह रखता है और बुद्धि किसीकी भलाई के लिये नहीं, अपनी ही “भलाई' के लिये प्रयुक्त होती है । |
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