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| आवश्यक है ऐसे विषय कुछ इस प्रकार हैं | | आवश्यक है ऐसे विषय कुछ इस प्रकार हैं |
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− | === १, बालक की शिक्षा घर में भी होती है === | + | ===१, बालक की शिक्षा घर में भी होती है=== |
| शिक्षा व्यक्ति के साथ जन्मपूर्व से ही जुडी है। | | शिक्षा व्यक्ति के साथ जन्मपूर्व से ही जुडी है। |
| आजन्मशिक्षा का एक स्थान विद्यालय है । जीवन के भी | | आजन्मशिक्षा का एक स्थान विद्यालय है । जीवन के भी |
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| अपितु घर में ही सीखाई जाती हैं । ये बातें इस प्रकार हैं | | अपितु घर में ही सीखाई जाती हैं । ये बातें इस प्रकार हैं |
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− | १, गर्भावस्था के संस्कार : बालक का इस जन्म | + | ==== १, गर्भावस्था के संस्कार : ==== |
− | का जीवन गर्भाधान से शुरू होता है । इसमें निमित्त उसके | + | बालक का इस जन्म |
− | मातापिता होते हैं । मातापिता के माध्यम से उसे पिता की | + | का जीवन गर्भाधान से शुरू होता है । इसमें निमित्त उसके मातापिता होते हैं । मातापिता के माध्यम से उसे पिता की |
− | चौदह और माता की पाँच पीढ़ियों के संस्कार प्राप्त होते | + | चौदह और माता की पाँच पीढ़ियों के संस्कार प्राप्त होते हैं। इससे वंशपरम्परा अर्थात् कुल परम्परा बनती है। वंश-परम्परा बनाये रखने की, उसे समृद्ध करने की शिक्षा का केन्द्र घर ही है । विद्यालय उसमें सहयोग और मार्गदर्शन करता है परन्तु मुख्य कार्य तो घर ही करता है । इस दृष्टि से घर को बालक का प्रथम विद्यालय कहा गया है । |
− | हैं। इससे वंशपरम्परा अर्थात् कुल परम्परा बनती है। | |
− | वंश-परम्परा बनाये रखने की, उसे समृद्ध करने की शिक्षा | |
− | का केन्द्र घर ही है । विद्यालय उसमें सहयोग और मार्गदर्शन | |
− | करता है परन्तु मुख्य कार्य तो घर ही करता है । इस दृष्टि से | |
− | घर को बालक का प्रथम विद्यालय कहा गया है । | |
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− | घर में माता प्रथम शिक्षक होती है, पिता द्वितीय और | + | घर में माता प्रथम शिक्षक होती है, पिता द्वितीय और बाद में शेष सारे व्यक्ति शिक्षक की भूमिका में होते हैं । |
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− | शिक्षा और परिवार प्रबोधन
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− | श्०२
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | बाद में शेष सारे व्यक्ति शिक्षक की भूमिका में होते हैं । | |
| दादा, दादी, बडे भाईबहन, पिता के भाई, अर्थात् | | दादा, दादी, बडे भाईबहन, पिता के भाई, अर्थात् |
− | चाचाचाची, घर में समय समय पर आनेवाले सगे सम्बन्धी, | + | चाचाचाची, घर में समय समय पर आनेवाले सगे सम्बन्धी, अतिथि अभ्यागत बालक को सिखाने का काम करते हैं । यह विधिवत् दीक्षा देकर दी हुई शिक्षा नहीं है। यह अनौपचारिक शिक्षा है जो सहज रूप से निरन्तर चलती रहती है । अपने आसपास बालक हैं, उनपर हमारी वाणी, विचार और व्यवहार का प्रभाव पड़ेगा और वह उन बातों को सीखेगा ऐसी सजगता रही तो शिक्षा सजगता पूर्वक होती है अन्यथा बालक तो अपनी सजगता न रही तो भी सीख ही लेते हैं । |
− | अतिथि अभ्यागत बालक को सिखाने का काम करते हैं । | |
− | यह विधिवत् दीक्षा देकर दी हुई शिक्षा नहीं है। यह | |
− | अनौपचारिक शिक्षा है जो सहज रूप से निरन्तर चलती | |
− | रहती है । अपने आसपास बालक हैं, उनपर हमारी वाणी, | |
− | विचार और व्यवहार का प्रभाव पड़ेगा और वह उन बातों | |
− | को सीखेगा ऐसी सजगता रही तो शिक्षा सजगता पूर्वक | |
− | होती है अन्यथा बालक तो अपनी सजगता न रही तो भी | |
− | सीख ही लेते हैं । | |
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| २. परिवारजनों से सीखने की कालावधि बालक बडा | | २. परिवारजनों से सीखने की कालावधि बालक बडा |
| होकर अपने बालक को जन्म देता है तब तक की माननी | | होकर अपने बालक को जन्म देता है तब तक की माननी |
| चाहिये । यह पूरी पीढी की शिक्षा है । इसके मुख्य अंग इस | | चाहिये । यह पूरी पीढी की शिक्षा है । इसके मुख्य अंग इस |
− | प्रकार हैं... | + | प्रकार हैं |
| + | |
| शिशुअवस्था में कर्मन्ट्रियों, ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय | | शिशुअवस्था में कर्मन्ट्रियों, ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय |
| बनाना, चलना, बोलना, खाना, सीखना, चित्त के | | बनाना, चलना, बोलना, खाना, सीखना, चित्त के |
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| प्राप्त करने की शरुआत करना | | | प्राप्त करने की शरुआत करना | |
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− | बाल और किशोर अवस्था में चरित्र के अनेक | + | बाल और किशोर अवस्था में चरित्र के अनेक पहलुओं को सुदृढ़ बनाना, शरीर और मन को |
− | पहलुओं को सुदृढ़ बनाना, शरीर और मन को | + | साधना, बुद्धि की सक्रियता का प्रास्भ करना, घरगृहस्थी चलाने हेतु आवश्यक सारे काम सीखना, परिवार का अंग बनने हेतु नियमन और अनुशासन में रहना । शिशु अवस्थामें माता की भूमिका प्रमुख होती है और शेष सभी सहयोगी होते हैं। बाल तथा किशोर अवस्था में पिता की भूमिका प्रमुख होती है |
− | साधना, बुद्धि की सक्रियता का प्रास्भ करना, | |
− | घरगृहस्थी चलाने हेतु आवश्यक सारे काम सीखना, | |
− | परिवार का अंग बनने हेतु नियमन और अनुशासन में | |
− | रहना । शिशु अवस्थामें माता की भूमिका प्रमुख होती | |
− | है और शेष सभी सहयोगी होते हैं। बाल तथा | |
− | किशोर अवस्था में पिता की भूमिका प्रमुख होती है | |
| और शेष सभी सहयोगी होते हैं । | | और शेष सभी सहयोगी होते हैं । |
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− | तरुण और युवावस्था में स्वतन्त्र होने की, | + | तरुण और युवावस्था में स्वतन्त्र होने की, दायित्वबोध की और समाज के साथ समायोजित होने की शिक्षा मुख्य विषय है। इस दृष्टि से निरीक्षण, चिन्तन, विचारविमर्श, मातापिता से मार्गदर्शन और परामर्श अत्यन्त उपयोगी होते हैं। इस आयु में |
− | दायित्वबोध की और समाज के साथ समायोजित होने | + | पुरुषत्व और सख्त्रीत्व का विकास, अथर्जिन तथा |
− | की शिक्षा मुख्य विषय है। इस दृष्टि से निरीक्षण, | + | गृहसंचालन की योग्यता और मातापिता के दायित्वों में सर्वप्रकार का सहभाग शिक्षा के प्रमुख अंग हैं । |
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− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | चिन्तन, विचारविमर्श, मातापिता से मार्गदर्शन और
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− | परामर्श अत्यन्त उपयोगी होते हैं। इस आयु में
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− | पुरुषत्व और सख्त्रीत्व का विकास, अथर्जिन तथा
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− | गृहसंचालन की योग्यता और मातापिता के दायित्वों
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− | में सर्वप्रकार का सहभाग शिक्षा के प्रमुख अंग हैं ।
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| युवक विवाह करके गृहस्थ बनता है और घर का | | युवक विवाह करके गृहस्थ बनता है और घर का |
− | दायित्व लेता है । अब पत्नी के साथ उसे मातापिता | + | दायित्व लेता है । अब पत्नी के साथ उसे मातापिता बनने की सिद्धता करनी है । उसे अपने मातापिता से जो मिला है उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाने हेतु समर्थ बनना है । यह शिक्षा भी उसे मातापिता से ही प्राप्त |
− | बनने की सिद्धता करनी है । उसे अपने मातापिता से | + | होती है । वे पतिपत्नी बालक को जन्म देते हैं और उनकी परिवार में होनेवाली औपचारिक शिक्षा पूर्णता को प्राप्त होती है । |
− | जो मिला है उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाने हेतु समर्थ | |
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− | होती है । वे पतिपत्नी बालक को जन्म देते हैं और | |
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− | श्रेष्ठ और सुसंस्कृत समाज के लिये घर में होनेवाली
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− | इस शिक्षा का महत्त्व बहुत है। आज इस बात का
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− | विस्मरण हो गया है । घर केवल भोजन और निवास की
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− | व्यवस्था के केन्द्र बन गये हैं । मकान के रूप में सम्पत्ति
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− | बन गया है। इसे पुनः संस्कृति का केन्द्र बनाना
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− | शिक्षाविषयक चिन्तन का महत्त्वपूर्ण मुद्दा है ।
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− | बालक की विद्यालयीन शिक्षा का प्रारम्भ उचित
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− | समय पर हो
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− | 2.
| + | श्रेष्ठ और सुसंस्कृत समाज के लिये घर में होनेवाली इस शिक्षा का महत्त्व बहुत है। आज इस बात का विस्मरण हो गया है । घर केवल भोजन और निवास की व्यवस्था के केन्द्र बन गये हैं । मकान के रूप में सम्पत्ति बन गया है। इसे पुनः संस्कृति का केन्द्र बनाना शिक्षाविषयक चिन्तन का महत्त्वपूर्ण मुद्दा है । |
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| + | === २. बालक की विद्यालयीन शिक्षा का प्रारम्भ उचित समय पर हो === |
| समाज में आम धारणा बन गई है कि शिक्षा विद्यालय | | समाज में आम धारणा बन गई है कि शिक्षा विद्यालय |
| में ही होती है । व्यक्ति के जीवन में शिक्षा अनिवार्य है, | | में ही होती है । व्यक्ति के जीवन में शिक्षा अनिवार्य है, |