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| इन सब का पालन करने वाले को ही विद्या प्राप्त होती है और उत्तम फल प्राप्त होता है । आज के समय में भी यदि परिवार और विद्यालयों में विद्यार्थियों में इन गु्णों का आग्रह रखा जाता है और विद्यार्थी को इनमें शिक्षित करने में प्रेरणा, मार्गदर्शन और सहयोग दिया जाता है तो - हमारे विद्यालय सही अर्थ में ज्ञानसाधना केन्द्र बन सकते है | | इन सब का पालन करने वाले को ही विद्या प्राप्त होती है और उत्तम फल प्राप्त होता है । आज के समय में भी यदि परिवार और विद्यालयों में विद्यार्थियों में इन गु्णों का आग्रह रखा जाता है और विद्यार्थी को इनमें शिक्षित करने में प्रेरणा, मार्गदर्शन और सहयोग दिया जाता है तो - हमारे विद्यालय सही अर्थ में ज्ञानसाधना केन्द्र बन सकते है |
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− | विद्यार्थियों की शरीर सम्पदा | + | === विद्यार्थियों की शरीर सम्पदा === |
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− | मनुष्य शरीर विशेष है | + | ==== मनुष्य शरीर विशेष है ==== |
| + | भगवानने मनुष्य को शरीर दिया है । मनुष्य की तरह अन्य सभी प्राणियों को भी शरीर दिया है परन्तु मनुष्य और अन्य प्राणियों में बहुत बडा अन्तर है। मनुष्य एकमेकाद्वितीय ऐसा विशिष्ट प्राणी है । इसलिये मनुष्य के शरीर का भी विशेष विचार करना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं.... |
| + | # मनुष्य के शरीर में और अन्य प्राणियों के शरीर में एक खास अन्तर यह है कि अन्य सभी प्राणियों का मेरुदण्ड भूमि के समान्तर होता है जबकि मनुष्य का भूमि से समकोण बनाता है । वह सीधा खडा रहता है। मनुष्य के समान पक्षी भी दो पैरों पर टिकते है परन्तु उनका मेरुदण्ड खडा नहीं होता । मनुष्य का मेरुदण्ड खडा होने से उसके व्यवहार में बहुत बडा अन्तर आता है । शरीर के सारे तन्त्र अलग ही पद्धति से काम करते हैं । |
| + | # मनुष्य का शरीर एक अजब यंत्र है विश्व में मनुष्य ने अनेक प्रकार के यंत्र बनाये है। परन्तु मनुष्य के शरीर की तुलना कर सके ऐसा एक भी यंत्र नहीं बनाया जा सका है । |
| + | # मनुष्य को सक्रिय मन, बुद्धि और अहंकार मिले हैं । इच्छाशक्ति, भावनाशक्ति, विचारशक्ति, विवेकशक्ति, निर्णयशक्ति, संस्कारशक्ति आदि इनकी शक्तियाँ हैं । अन्य किसी भी प्राणी में इनमें से एक भी शक्ति नहीं है । मनुष्य के इन सभी अंगों की शक्तियों को प्रकट होने के लिये शरीर ही साधन के रूप में काम में आता है । शरीर के बिना मन अपनी इच्छाओं या विचारों को, बुद्धि अपनी कल्पना या निर्माणशीलता को, अहंकार अपने कर्तृत्व को मूर्त स्वरूप नहीं दे सकते । ये स्वयं मूर्तरूप धारी नहीं हैं इसलिये इनकी शक्तियाँ भी स्वयं मूर्त नहीं हैं । वे शरीर के माध्यम से ही मूर्त रूप धारण कर सकती हैं । इसलिये शरीर को साधन कहा गया है, यंत्र कहा गया हैं । |
| + | # इन सभी की शक्तियों को मूर्त रूप देने के लिये शरीर को प्राण से युक्त होना होता है । प्राण ही शरीर की उर्जा अर्थात् कार्यशक्ति है । इस कारण से शरीर रूपी यंत्र मनुष्य की अमूल्य सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति को प्राप्त करना, उसका रक्षण करना, उसकी शक्ति का संवर्धन करना और उस शक्ति का समुचित उपयोग करना हम सब का परम कर्तव्य है । शिक्षा को इस सम्पत्ति का रक्षण और वर्धन करने की चिन्ता करनी चाहिये । |
| + | # शरीर सम्पत्ति को लेकर आज अनेक समस्यायें निर्माण हुई हैं। इनके विषय में जाग्रत होकर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिये । |
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− | भगवानने मनुष्य को शरीर दिया है । मनुष्य की तरह
| + | ==== समस्यायें कैसी हैं ? ==== |
| + | # बच्चों को बहुत छोटी आयु में चश्मा लग जाता है । यह इतना सामान्य हो गया है कि चश्मा लगना लज्जा की बात नहीं लगती । यह दुर्बलता धीरे धीरे फैल रही है । |
| + | # छोटी आयु में ही दाँत दुर्बल हो जाते हैं । हम लोगों ने दाँत से सुपारी तोडने के किस्से सुने हैं । अब दाँत से छीलना, गन्ना चूसना या छुहारा तोडकर खाना असम्भव सा है । चॉकलेट खाने से मेरे दाँत सड गये हैं ऐसा कहने में बच्चों को संकोच नहीं लगता । युवा होने तक दाँत निकालकर नकली दाँत पहनने की नौबत आ जाती है । |
| + | # वजन कम होना, पाचनशक्ति दुर्बल होना, भूख कम होना, कम खाना आदि की मात्रा बढ गई है । पाचन की बीमारियाँ भी बढी है । इसके साथ किशोरवयीन लड़कियों की पतले रहने हेतु डायेटिंग करने और कम खाने का पागलपन बढ गया है । |
| + | # ग्यारह या बारह वर्ष के छात्र मुट्ठी में नरम वस्तु को भी दबा नहीं सकते, नारियेल पटककर तोड नहीं सकते, पत्थर से चटनी पीस नहीं सकते, आटा गूँध नहीं सकते । उनके हाथों में इतना दम ही नहीं है । |
| + | # चलने की, भागने की, काम करने की क्षमता बहुत कम होती है । हमने उदयपुर के संग्रहालय में महाराणा प्रताप का भाला देखा है जो ४० सेर वजन का था । वे इस भाले को फैंक सकते थे । परन्तु आज के युवकों में ऐसी ताकत नहीं है । दो पीढ़ी पूर्व के विद्यार्थी गाँव से नगर में रोज पैदल चलकर विद्यालय आते थे जो पाँच से दस किलोमीटर दूरी पर होता था । आज के विद्यार्थी एक किलोमीटर भी नहीं चलते । चलने की मानसिकता भी नहीं होती और क्षमता भी नहीं । |
| + | बच्चे या तो दुबले पतले होते हैं या नहीं खाने के पदार्थ खाकर मोटे हो जाते हैं । दोनों ही अस्वास्थ्य की निशानी है । छोटी आयु में डायाबीटीज भी लग जाती है । |
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− | अन्य सभी प्राणियों को भी शरीर दिया है परन्तु मनुष्य और
| + | अर्थात् शरीर में बल नहीं और स्वास्थ्य भी नहीं । ये दोनों चिन्ता के ही विषय हैं । यदि शरीर ही ठीक नहीं रहा तो वे जीवन में कौन सा बडा काम कर सकेंगे ? या सुख का अनुभव भी कैसे करेंगे ? |
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− | अन्य प्राणियों में बहुत बडा अन्तर है। मनुष्य
| + | ==== कठिनाई के कारण क्या हैं ? ==== |
| + | # असन्तुलित आहार इसका मुख्य कारण है । इसका प्रारम्भ उनकी माता ने सगर्भावसथा में जो खाया है इससे होता है । जन्म के बाद दूध, पौष्टिक आहार के नाम पर दिया गया आहार और पेय, चॉकलेट, बिस्कीट, केक, थोडा बडा होने के बाद खाये हुए वेफर, कुरकुरे आदि बाजार के पदार्थ ही उसका मुख्य कारण है । फल, सब्जी, रोटी आदि न खाने के कारण भी शरीर दुर्बल रहता है। आज बाजार में मिलने वाले अनाज, दूध, फल, सब्जी, मसाले आदि पोषकता की दृष्टि से बहुत कम या तो विपरीत परिणाम करने वाले होते हैं । बच्चों को बहुत छोटी आयु से होटेल का चस्का लग जाता है और मातापिता स्वयं उन्हें खाने का चसका लगाते है या तो खाने का मना नहीं कर सकते । संक्षेप में आहार की अत्यन्त अनुचित व्यवस्था के कारण से शरीर दुर्बल रह जाता है । |
| + | २. बच्चों की जीवनचर्या से खेल, व्यायाम और श्रम गायब हो गये हैं । घर में एक ही बालक, पासपडौस में सम्पर्क और सम्बन्ध का अभाव, घर से बाहर जाकर खेलने की कोई सुविधा नहीं - न मैदान, न मिट्टी, वाहनों का या कोई उठाकर ले जायेगा उसका भय, विद्यालय की दूरी के कारण बढता हुआ समय, गृहकार्य, ट्यूशन आदि के कारण खेलने के लिये समय का अभाव, टीवी और विडियो गेम, मोबाइल पर चैटिंग आदि के कारण से शिशु से लेकर युवाओं तक खेलने का समय और सुविधा ही नहीं है । हाथ से काम करने के प्रति हीनता का भाव, यंत्रों का अनावश्यक उपयोग, वाहनों की अतिशयता, घर के कामों का तिरस्कार आदि कारणों से श्रम कभी होता ही नहीं है । व्यायाम करने में रुचि नहीं है । गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और संगणक ही महत्त्वपूर्ण विषय रह गये हैं इस कारण से विद्यालयों में व्यायाम का आग्रह कम हो गया है । विद्यालयों में व्यायाम हेतु स्थान और सुविधा का अभाव है। इन कारणों से विद्यार्थियों के शरीर दुर्बल रह जाते हैं । |
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− | vetoes ऐसा विशिष्ट प्राणी है । इसलिये मनुष्य के
| + | ३. घर में या विद्यालयों में हाथों के लिये कोई काम नहीं रह गया है । घर में न झाड़ू पकडना है, न बिस्तर समेटने या बिछाने हैं, न पानी भरना है, न पोंछा लगाना है, न कपडों की तह करना है न चटनी पीसना है। स्वेटर गूँथना, रंगोली बनाना, कील ठोकना, कपडे सूखाने के लिए रस्सी बाँधना जैसे काम भी नहीं करना है। या तो नौकर हैं, या मातापिता हैं या यन्त्र हैं जो ये काम करते हैं । बच्चों को इन कामों से दूर ही रखा जाता है । लिखने का काम भी धीरे धीरे कम होता जा रहा है । इस कारण से हाथ काम करने की कुशलता गँवा रहे हैं । |
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− | शरीर का भी विशेष विचार करना चाहिये । कुछ बिन्दु इस | + | टी.वी., मोबाईल, कम्प्यूटर, वाहन, फ्रीज, होटेल, एसी आदि सब शरीर स्वास्थ्य के प्रबल शत्रु हैं परन्तु हमने उन्हें प्रेमपूर्वक अपना संगी बनाया है। हम उनके आश्रित बन गये हैं । |
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− | प्रकार हैं....
| + | ४... बातबात में दवाई खाने की आदत एक और कारण है । खाँसी, जुकाम, साधारण सा बुखार, सरदर्द, पेटर्द्द आदि में दवाई खाना, डॉक्टर के पास जाना, मूल कारण को नष्ट नहीं करना शरीर पर भारी विपरीत परिणाम करता है । बिमारी तो दूर होती नहीं उल्टे शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है । छोटे मोटे कारणों से होने वाली इन छोटी मोटी बिमारियों के उपचार भी घर में होते हैं जो सस्ते, सुलभ, प्राकृतिक और शरीर के अनुकूल होते हैं । इनके विषय में ज्ञान और आस्था दोनों का अभाव होता है इसलिये हम संकट मोल लेते हैं । |
− | | |
− | १... मनुष्य के शरीर में और अन्य प्राणियों के शरीर में एक
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− | | |
− | अन्तर a अन्य प्राणियों
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− | | |
− | खास अन्तर यह है कि अन्य सभी प्राणियों का
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− | | |
− | बस कस a 3 जबकि
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− | | |
− | मेरुदण्ड भूमि के समान्तर होता है जबकि मनुष्य का
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− | | |
− | भूमि से समकोण बनाता है । वह सीधा खडा रहता
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− | | |
− | S \ \ AWN fad EN
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− | | |
− | है। मनुष्य के समान पक्षी भी दो पैरों पर टिकते है
| |
− | | |
− | परन्तु उनका मेरुदण्ड खडा नहीं होता । मनुष्य का
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− | | |
− | मेरुदण्ड खडा होने से उसके व्यवहार में बहुत बडा
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− | | |
− | 2x
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− | | |
− | अन्तर आता है । शरीर के सारे तन्त्र अलग ही पद्धति
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− | | |
− | से काम करते हैं ।
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− | | |
− | २... मनुष्य का शरीर एक अजब यंत्र है विश्व में मनुष्य ने
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− | अनेक प्रकार के यंत्र बनाये है। परन्तु मनुष्य के शरीर
| |
− | | |
− | की तुलना कर सके ऐसा एक भी यंत्र नहीं बनाया जा
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− | | |
− | सका है ।
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− | | |
− | ३२... मनुष्य को सक्रिय मन, बुद्धि और अहंकार मिले हैं ।
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− | | |
− | इच्छाशक्ति, भावनाशक्ति, विचारशक्ति, विवेकशक्ति,
| |
− | | |
− | निर्णयशक्ति, संस्कारशक्ति आदि इनकी शक्तियाँ हैं ।
| |
− | | |
− | अन्य किसी भी प्राणी में इनमें से एक भी शक्ति नहीं
| |
− | | |
− | है । मनुष्य के इन सभी अंगों की शक्तियों को प्रकट
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− | | |
− | होने लिये शरीर ही साधन के रूप में काम में आता
| |
− | | |
− | है । शरीर के बिना मन अपनी इच्छाओं या विचारों
| |
− | | |
− | को, बुद्धि अपनी कल्पना या निर्माणशीलता को,
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− | | |
− | ............. page-31 .............
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− | | |
− | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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− | | |
− | अहंकार अपने कर्तृत्व को मूर्त स्वरूप नहीं दे
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− | | |
− | सकते । ये स्वयं मूर्तरूप धारी नहीं हैं इसलिये इनकी
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− | | |
− | शक्तियाँ भी स्वयं मूर्त नहीं हैं । वे शरीर के माध्यम से
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− | | |
− | ही मूर्त रूप धारण कर सकती हैं । इसलिये शरीर को
| |
− | | |
− | साधन कहा गया है, यंत्र कहा गया हैं ।
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− | | |
− | इन सभी की शक्तियों को मूर्त रूप देने के लिये शरीर
| |
− | | |
− | को प्राण से युक्त होना होता है । प्राण ही शरीर की
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− | | |
− | उर्जा अर्थात् कार्यशक्ति है ।
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− | | |
− | इस कारण से शरीर रूपी यंत्र मनुष्य की अमूल्य
| |
− | | |
− | सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति को प्राप्त करना, उसका
| |
− | | |
− | रक्षण करना, उसकी शक्ति का संवर्धन करना और
| |
− | | |
− | उस शक्ति का समुचित उपयोग करना हम सब का
| |
− | | |
− | परम कर्तव्य है । शिक्षा को इस सम्पत्ति का रक्षण
| |
− | | |
− | और वर्धन करने की चिन्ता करनी चाहिये ।
| |
− | | |
− | शरीर सम्पत्ति को लेकर आज अनेक समस्यायें
| |
− | | |
− | निर्माण हुई हैं। इनके विषय में जाग्रत होकर
| |
− | | |
− | गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिये ।
| |
− | | |
− | समस्यायें कैसी हैं ?
| |
− | | |
− | श्,
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− | | |
− | बच्चों को बहुत छोटी आयु में चश्मा लग जाता है ।
| |
− | | |
− | यह इतना सामान्य हो गया है कि चश्मा लगना लज्जा
| |
− | | |
− | की बात नहीं लगती । यह दुर्बलता धीरे धीरे फैल
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− | | |
− | रही है ।
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− | | |
− | छोटी आयु में ही दाँत दुर्बल हो जाते हैं । हम लोगों
| |
− | | |
− | ने दाँत से सुपारी तोडने के किस्से सुने हैं । अब दाँत
| |
− | | |
− | से छीलना, गन्ना चूसना या छुहारा तोडकर खाना
| |
− | | |
− | असम्भव सा है । चॉकलेट खाने से मेरे दाँत सड गये
| |
− | | |
− | हैं ऐसा कहने में बच्चों को संकोच नहीं लगता । युवा
| |
− | | |
− | होने तक दाँत निकालकर नकली दाँत पहनने की
| |
− | | |
− | नौबत आ जाती है ।
| |
− | | |
− | वजन कम होना, पाचनशक्ति दुर्बल होना, भूख कम
| |
− | | |
− | होना, कम खाना आदि की मात्रा बढ गई है । पाचन
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− | | |
− | की बीमारियाँ भी बढी है । इसके साथ किशोरवयीन
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− | | |
− | लड़कियों की पतले रहने हेतु डायेटिंग करने और कम
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− | | |
− | ga
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− | | |
− | खाने का पागलपन बढ गया है ।
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− | | |
− | ग्यारह या बारह वर्ष के छात्र मुट्ठी में नरम वस्तु को
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− | | |
− | भी दबा नहीं सकते, नारियेल पटककर तोड नहीं
| |
− | | |
− | सकते, पत्थर से चटनी पीस नहीं सकते, आटा गूँध
| |
− | | |
− | नहीं सकते । उनके हाथों में इतना दम ही नहीं है ।
| |
− | | |
− | चलने की, भागने की, काम करने की क्षमता बहुत
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− | | |
− | कम होती है । हमने उदयपुर के संग्रहालय में महाराणा
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− | | |
− | प्रताप का भाला देखा है जो ४० सेर वजन का था । वे
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− | | |
− | इस भाले को फैंक सकते थे । परन्तु आज के युवकों में
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− | | |
− | ऐसी ताकत नहीं है । दो पीढ़ी पूर्व के विद्यार्थी गाँव से
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− | | |
− | नगर में रोज पैदल चलकर विद्यालय आते थे जो पाँच
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− | | |
− | से दस किलोमीटर दूरी पर होता था । आज के विद्यार्थी
| |
− | | |
− | एक किलोमीटर भी नहीं चलते । चलने की
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− | | |
− | मानसिकता भी नहीं होती और क्षमता भी नहीं ।
| |
− | | |
− | बच्चे या तो दुबले पतले होते हैं या नहीं खाने के
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− | | |
− | पदार्थ खाकर मोटे हो जाते हैं । दोनों ही अस्वास्थ्य की
| |
− | | |
− | निशानी है । छोटी आयु में डायाबीटीज भी लग जाती है ।
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− | | |
− | अर्थात् शरीर में बल नहीं और स्वास्थ्य भी नहीं । ये
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− | | |
− | दोनों चिन्ता के ही विषय हैं । यदि शरीर ही ठीक नहीं रहा
| |
− | | |
− | तो वे जीवन में कौन सा बडा काम कर सकेंगे ? या सुख
| |
− | | |
− | का अनुभव भी कैसे करेंगे ?
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− | | |
− | कठिनाई के कारण क्या हैं ?
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− | | |
− | श्,
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− | | |
− | असन्तुलित आहार इसका मुख्य कारण है । इसका
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− | | |
− | प्रारम्भ उनकी माता ने सगर्भावसथा में जो खाया है
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− | | |
− | इससे होता है । जन्म के बाद दूध, पौष्टिक आहार के
| |
− | | |
− | नाम पर दिया गया आहार और पेय, चॉकलेट,
| |
− | | |
− | बिस्कीट, केक, थोडा बडा होने के बाद खाये हुए
| |
− | | |
− | वेफर, कुरकुरे आदि बाजार के पदार्थ ही उसका मुख्य
| |
− | | |
− | कारण है । फल, सब्जी, रोटी आदि न खाने के
| |
− | | |
− | कारण भी शरीर दुर्बल रहता है। आज बाजार में
| |
− | | |
− | मिलने वाले अनाज, दूध, फल, सब्जी, मसाले आदि
| |
− | | |
− | पोषकता की दृष्टि से बहुत कम या तो विपरीत
| |
− | | |
− | परिणाम करने वाले होते हैं । बच्चों को बहुत छोटी
| |
− | | |
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− | | |
− | आयु से होटेल का चस्का लग जाता है
| |
− | | |
− | और मातापिता स्वयं उन्हें खाने का चसका लगाते है
| |
− | | |
− | या तो खाने का मना नहीं कर सकते । संक्षेप में
| |
− | | |
− | आहार की अत्यन्त अनुचित व्यवस्था के कारण से
| |
− | | |
− | शरीर दुर्बल रह जाता है ।
| |
− | | |
− | बच्चों की जीवनचर्या से खेल, व्यायाम और श्रम
| |
− | | |
− | गायब हो गये हैं । घर में एक ही बालक, पासपडौस
| |
− | | |
− | में सम्पर्क और सम्बन्ध का अभाव, घर से बाहर
| |
− | | |
− | जाकर खेलने की कोई सुविधा नहीं - न मैदान, न
| |
− | | |
− | मिट्टी, वाहनों का या कोई उठाकर ले जायेगा उसका
| |
− | | |
− | भय, विद्यालय की दूरी के कारण बढता हुआ समय,
| |
− | | |
− | गृहकार्य, ट्यूशन आदि के कारण खेलने के लिये
| |
− | | |
− | समय का अभाव, टीवी और विडियो गेम, मोबाइल
| |
− | | |
− | पर चैटिंग आदि के कारण से शिशु से लेकर युवाओं
| |
− | | |
− | तक खेलने का समय और सुविधा ही नहीं है । हाथ
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− | | |
− | से काम करने के प्रति हीनता का भाव, यंत्रों का
| |
− | | |
− | अनावश्यक उपयोग, वाहनों की अतिशयता, घर के
| |
− | | |
− | कामों का तिरस्कार आदि कारणों से श्रम कभी होता
| |
− | | |
− | ही नहीं है । व्यायाम करने में रुचि नहीं है । गणित,
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− | | |
− | विज्ञान, अंग्रेजी और संगणक ही महत्त्वपूर्ण विषय रह
| |
− | | |
− | गये हैं इस कारण से विद्यालयों में व्यायाम का आग्रह
| |
− | | |
− | कम हो गया है । विद्यालयों में व्यायाम हेतु स्थान
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− | | |
− | और सुविधा का अभाव है। इन कारणों से
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− | | |
− | विद्यार्थियों के शरीर दुर्बल रह जाते हैं ।
| |
− | | |
− | घर में या विद्यालयों में हाथों के लिये कोई काम नहीं
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− | | |
− | रह गया है । घर में न झाड़ू पकडना है, न बिस्तर
| |
− | | |
− | समेटने या बिछाने हैं, न पानी भरना है, न पोंछा
| |
− | | |
− | लगाना है, न कपडों की तह करना है न चटनी
| |
− | | |
− | पीसना है। स्वेटर गूँथना, रंगोली बनाना, कील
| |
− | | |
− | dima, HIS Ga के लिये रस्सी बाँधना जैसे
| |
− | | |
− | काम भी नहीं करना है। या तो नौकर हैं, या
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− | | |
− | मातापिता हैं या यन्त्र हैं जो ये काम करते हैं । बच्चों
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− | | |
− | को इन कामों से दूर ही रखा जाता है । लिखने का
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− | | |
− | काम भी धीरे धीरे कम होता जा रहा है । इस कारण
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− | | |
− | श्घ
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− | | |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | | |
− | से हाथ काम करने की कुशलता गँवा रहे हैं ।
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− | | |
− | टी.वी., मोबाईल, कम्प्यूटर, वाहन, फ्रीज, होटेल,
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− | | |
− | एसी आदि सब शरीर स्वास्थ्य के प्रबल शत्रु हैं परन्तु
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− | | |
− | हमने उन्हें प्रेमपूर्वक अपना संगी बनाया है। हम
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− | | |
− | उनके आश्रित बन गये हैं ।
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− | | |
− | ४... बातबात में दवाई खाने की आदत एक और कारण | |
− | | |
− | है । खाँसी, जुकाम, साधारण सा बुखार, सरदर्द, | |
− | | |
− | पेटर्द्द आदि में दवाई खाना, डॉक्टर के पास जाना, | |
− | | |
− | मूल कारण को नष्ट नहीं करना शरीर पर भारी विपरीत | |
− | | |
− | परिणाम करता है । बिमारी तो दूर होती नहीं उल्टे | |
− | | |
− | शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है । छोटे | |
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− | मोटे कारणों से होने वाली इन छोटी मोटी बिमारियों | |
− | | |
− | के उपचार भी घर में होते हैं जो सस्ते, सुलभ, | |
− | | |
− | प्राकृतिक और शरीर के अनुकूल होते हैं । इनके | |
− | | |
− | विषय में ज्ञान और आस्था दोनों का अभाव होता है | |
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− | इसलिये हम संकट मोल लेते हैं । | |
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| ५... अनुचित आहारविहार का सबसे पहला विपरीत | | ५... अनुचित आहारविहार का सबसे पहला विपरीत |