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अध्याय ४
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== आदर्श विद्यार्थी ==
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जो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखता है, जो जिज्ञासु है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं । ज्ञान श्रेष्ठ है । ऐसे श्रेष्ठ ज्ञान को प्रतिष्ठा, धन या सत्ता प्राप्ति के लिए प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता, क्यों कि पैसा, प्रतिष्ठा या सत्ता की अपेक्षा ज्ञान अधिक श्रेष्ठ है । श्रेष्ठ वस्तु का उपयोग कनिष्ठ वस्तु की प्राप्ति के लिए नहीं किया जा सकता यह सामान्य समझदारी की बात है । अतः जो अपने और जगत के कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं ।
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आदर्श विद्यार्थी
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विद्या प्राप्ति के लिए साधना करनी पड़ती है । सुख और आराम में रहकर विद्या प्राप्त नहीं की जा सकती । इस संदर्भ में एक सुभाषित है -  
 
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जो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखता है, जो जिज्ञासु है
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उसे ही विद्यार्थी कहते हैं । ज्ञान श्रेष्ठ है । ऐसे श्रेष्ठ ज्ञान को
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प्रतिष्ठा, धन या सत्ता प्राप्ति के लिए प्राप्त करने की इच्छा
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रखने वाला विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता, क्यों कि पैसा,
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प्रतिष्ठा या सत्ता की अपेक्षा ज्ञान अधिक श्रेष्ठ है । श्रेष्ठ वस्तु
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का उपयोग कनिष्ठ वस्तु की प्राप्ति के लिए नहीं किया जा
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सकता यह सामान्य समझदारी की बात है । अतः जो अपने
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और जगत के कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त करना चाहता है
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उसे ही विद्यार्थी कहते हैं ।
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विद्या प्राप्ति के लिए साधना करनी पड़ती है । सुख
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और आराम में रहकर विद्या प्राप्त नहीं की जा सकती । इस
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संदर्भ में एक सुभाषित है -
      
सुखार्थी चेत्‌ त्यजेत्‌ विद्यां विद्यार्थी चेत्‌ त्यजेत सुखम्‌ ।
 
सुखार्थी चेत्‌ त्यजेत्‌ विद्यां विद्यार्थी चेत्‌ त्यजेत सुखम्‌ ।
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सुखार्थिन कुतो विद्या विद्यार्थिन: कुत्तो सुखम्‌ ।।
 
सुखार्थिन कुतो विद्या विद्यार्थिन: कुत्तो सुखम्‌ ।।
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अर्थात्‌ सुख की कामना करने वाले ने विद्याप्राप्ति को
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अर्थात्‌ सुख की कामना करने वाले ने विद्याप्राप्ति को छोड देना चाहिये और अगर विद्याप्राप्ति की कामना है तो सुख की कामना छोड़ देनी चाहिये, क्योंकि सुखार्थी को विद्या और विद्या के अर्थी को सुख कैसे प्राप्त हो सकता है?
 
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छोड देना चाहिये और अगर विद्याप्राप्ति की कामना है तो
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सुख की कामना छोड़ देनी चाहिये, क्योंकि सुखार्थी को
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विद्या और विद्या के अर्थी को सुख कैसे प्राप्त हो सकता है
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विद्यार्थी सुखशैय्या पर नहीं सोता, मिष्टान्न या भाँति
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विद्यार्थी सुखशैय्या पर नहीं सोता, मिष्टान्न या भाँति भाँति के भोजन नहीं करता, मनोरंजन के पीछे समय बर्बाद नहीं करता । यही उपदेश उसे दिया जाता है ।
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भाँति के भोजन नहीं करता, मनोरंजन के पीछे समय बर्बाद
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ज्ञान प्राप्त करने के लिए धन की नहीं अपितु कुछ विशेष गुर्णों की आवश्यकता होती है । इन गुणों के कारण ज्ञानप्राप्ति की पात्रता प्राप्त होती है । श्रीमदू भगवदू गीता में कहा है -
 
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नहीं करता । यही उपदेश उसे दिया जाता है ।
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ज्ञान प्राप्त करने के लिए धन की नहीं अपितु कुछ
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विशेष गुर्णों
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की आवश्यकता होती है । इन गुणों के कारण ज्ञानप्राप्ति की
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पात्रता प्राप्त होती है । श्रीमदू भगवदू गीता में कहा है -
      
श्रद्धावान्‌ लभते ज्ञान तत्पर: संयतेन्द्रिय: ।
 
श्रद्धावान्‌ लभते ज्ञान तत्पर: संयतेन्द्रिय: ।
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ज्ञान प्राप्त कर सकता है ।
 
ज्ञान प्राप्त कर सकता है ।
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श्रद्धा अर्थात्‌ ज्ञान में श्रद्धा, अपने आप में श्रद्धा और ज्ञान देने वाले में श्रद्धा होनी चाहिये |
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श्रद्धा अर्थात्‌ ज्ञान में श्रद्धा, अपने आप में श्रद्धा और
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तत्परता अर्थात्‌ नित्यसिद्धता, अर्थात्‌ ज्ञानप्राप्ति के लिए कुछ भी करने के लिए हंमेशा तैयार, तत्पर रहना ।
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ज्ञान देने वाले में श्रद्धा होनी चाहिये |
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इन्ट्रियसंयम अर्थात्‌ मौजशौक का संपूर्ण त्याग । यह ज्ञान प्राप्ति की सबसे बड़ी पात्रता है ।
 
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तत्परता अर्थात्‌ नित्यसिद्धता, अर्थात्‌ ज्ञानप्राप्ति के
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लिए कुछ भी करने के लिए हंमेशा तैयार, तत्पर रहना ।
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इन्ट्रियसंयम अर्थात्‌ मौजशौक का संपूर्ण त्याग । यह
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ज्ञान प्राप्ति की सबसे बड़ी पात्रता है ।
      
श्रीमदू भगवदू गीता में कहा है -
 
श्रीमदू भगवदू गीता में कहा है -
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तद्रिद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।
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'''तद्रिद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।'''
 
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अर्थात्‌ ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रणिपात करना
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चाहिये, प्रश्न पूछने चाहिये और सेवा करनी चाहिये ।
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प्रणिपात करना चाहिये अर्थात्‌ विनयशीलता होनी
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अर्थात्‌ ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रणिपात करना चाहिये, प्रश्न पूछने चाहिये और सेवा करनी चाहिये ।
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चाहिये । विनम्रता होनी चाहिये । वेशभूषा, भाषा, हलचल
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प्रणिपात करना चाहिये अर्थात्‌ विनयशीलता होनी चाहिये । विनम्रता होनी चाहिये । वेशभूषा, भाषा, हलचल और व्यवहार में विनम्रता प्रकट होती है । विनम्र होने से ही ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है। परिप्रश्न का अर्थ है उत्सुकता, अर्थात्‌ जानने के लिए किए गए प्रश्न । भारतीय परंपरा में जिज्ञासा अर्थात्‌ जानने की इच्छा और उसके लिये पूछे गये प्रश्न ही ज्ञानसरिता के प्रवाह का उद्गम है । साथ ही साथ सेवा भी ज्ञानप्राप्ति के लिए आवश्यक है । ज्ञान देने वाले के प्रति नम्रता के साथ साथ उसकी सक्रिय सेवा भी जरुरी है ।
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और व्यवहार में विनम्रता प्रकट होती है । विनम्र होने से ही
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नम्रता मन का भाव है । जिज्ञासा बुद्धि का गुण है और सेवा शरीर का कार्य है । इस प्रकार विद्यार्थी शरीर, मन, बुद्धि तीनों से ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए लायक बनता है । विद्यार्थी के व्यवहार के लिए एक सुभाषित है -
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ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है। परिप्रश्न का अर्थ है
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'''काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।'''
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उत्सुकता, अर्थात्‌ जानने के लिए किए गए प्रश्न । भारतीय
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'''अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्‌ ।।'''
 
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परंपरा में जिज्ञासा अर्थात्‌ जानने की इच्छा और उसके
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लिये पूछे गये प्रश्न ही ज्ञानसरिता के प्रवाह का उद्गम है ।
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साथ ही साथ सेवा भी ज्ञानप्राप्ति के लिए आवश्यक है ।
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ज्ञान देने वाले के प्रति नम्रता के साथ साथ उसकी सक्रिय
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सेवा भी जरुरी है ।
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नम्रता मन का भाव है । जिज्ञासा बुद्धि का गुण है
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और सेवा शरीर का कार्य है । इस प्रकार विद्यार्थी शरीर,
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मन, बुद्धि तीनों से ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए लायक
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बनता है ।
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विद्यार्थी के व्यवहार के लिए एक सुभाषित है -
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काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।
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अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्‌ ।।
      
अर्थात्‌ ज्ञानप्राप्ति की पात्रता रखनेवाले विद्यार्थी के
 
अर्थात्‌ ज्ञानप्राप्ति की पात्रता रखनेवाले विद्यार्थी के
    
पाँच लक्षण हैं -
 
पाँच लक्षण हैं -
 
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# वह कौए की तरह तत्पर होता है । उसकी दृष्टि से कुछ भी छूटता नहीं है ।
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# वह मछली पकडने के लिए एकाग्र बगुले के समान एकाग्रता का धनी है ।
 
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# उसकी निद्रा धान जैसी है अर्थात्‌ जरा सी आहट में वह जग जाता है । वह कम खाने वाला होता है ।
५ ८ ५ ५
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# वह कम खाने वाला होता है।
 
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# वह घर की मोहमाया में फँसता नहीं है ।
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आज के समय में भी जिसे विद्या प्राप्त करनी है उसे ये सारी बातें स्मरण में रखना जरुरी है । आज के संदर्भ में इस प्रकार कह सकते हैं -
 
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* विद्यार्थी को प्रात: जल्दी उठने की, रात को जल्दी सोने की, नित्य व्यायाम करने की, श्रम करने की, मैदानी खेल खेलने की, पौष्टिक आहार लेने की, शरीर को स्वच्छ करने की आदतें डालकर अपना शरीर स्वस्थ और बलवान बनाना चाहिये ।
SOOO
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* टी.वी., मोबाइल, स्कूटर या अन्य वाहन, होटल, नए नए कपडे और गहने, मित्रों के साथ गपशप, मस्ती, व्यसन, तामसी भोजन, अश्लील हरकतों आदि को छोड़कर अपना मन सदूगुणयुक्त, बलवान और ज्ञान प्राप्ति के अनुकूल बनाना चाहिये ।
 
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* नित्य ॐकार उच्चारण , मंत्रपठन, ध्यान, आसन, प्राणायाम आदि का अभ्यास कर प्राणशक्ति बढानी चाहिये और \ और नियंत्रित चाहिये और मन को एकाग्र और नियंत्रित करना चाहिये ।
2. ade alu Al तरह तत्पर होता
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* नित्य स्वाध्याय, नित्य सेवा और आदरयुक्त व्यवहार से चित्त को शुद्ध बनाना चाहिये ।  
 
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इन सब का पालन करने वाले को ही विद्या प्राप्त होती है और उत्तम फल प्राप्त होता है । आज के समय में भी यदि परिवार और विद्यालयों में विद्यार्थियों में इन गु्णों का आग्रह रखा जाता है और विद्यार्थी को इनमें शिक्षित करने में प्रेरणा, मार्गदर्शन और सहयोग दिया जाता है तो - हमारे विद्यालय सही अर्थ में ज्ञानसाधना केन्द्र बन सकते है
है । उसकी दृष्टि से कुछ भी छूटता नहीं है ।
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मछली Nav \ av
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२... वह मछली पकडने के लिए एकाग्र बगुले के समान
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एकाग्रता का धनी है ।
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3. उसकी निद्रा धान जैसी है अर्थात्‌ जरा सी आहट में
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वह जग जाता है ।
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वह कम खाने वाला होता है ।
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५ Vv ७ नहीं NN
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वह घर की मोहमाया में फँसता नहीं है ।
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आज के समय में भी जिसे विद्या प्राप्त करनी है उसे
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~ x ~ जरुरी 33 आज कस संदर्भ ~
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ये सारी बातें स्मरण में रखना जरुरी है । आज के संदर्भ में
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इस प्रकार कह सकते हैं -
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०... विद्यार्थी को प्रात: जल्दी उठने की, रात को जल्दी
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सोने की, नित्य व्यायाम करने की, श्रम करने की,
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मैदानी खेल खेलने की, पौष्टिक आहार लेने की,
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शरीर को स्वच्छ करने की आदतें डालकर अपना
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शरीर स्वस्थ और बलवान बनाना चाहिये ।
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०... टी.वी., मोबाइल, स्कूटर या अन्य वाहन, होटल,
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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कर और \ मित्रों कस
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नए नए कपडे और गहने, मित्रों के साथ गपशप,
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मस्ती, व्यसन, तामसी भोजन, अश्लील हरकतों आदि
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को छोड़कर अपना मन सदूगुणयुक्त, बलवान और
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ज्ञान प्राप्ति के अनुकूल बनाना चाहिये ।
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०. नित्य SR FANT, WAG, aH, आसन,
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प्राणायाम आदि का अभ्यास कर प्राणशक्ति बढानी
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चाहिये और \ और नियंत्रित
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चाहिये और मन को एकाग्र और नियंत्रित करना
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चाहिये ।
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०... नित्य स्वाध्याय, नित्य सेवा और आदरयुक्त व्यवहार
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कस \ चाहिये
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से चित्त को शुद्ध बनाना चाहिये ।
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कस जन
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इन सब का पालन करने वाले को ही विद्या प्राप्त
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होती 3 और \ a आज XN xv
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होती है और उत्तम फल प्राप्त होता है । आज के समय में
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भी यदि परिवार और विद्यालयों में विद्यार्थियों में इन गु्णों
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का आग्रह रखा जाता है और विद्यार्थी को इनमें शिक्षित
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करने में प्रेरणा, मार्गदर्शन और सहयोग दिया जाता है तो -
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हमारे विद्यालय सही अर्थ में ज्ञानसाधना केन्द्र बन सकते
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विद्यार्थियों की शरीर सम्पदा
 
विद्यार्थियों की शरीर सम्पदा
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