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| == संस्कार विचार == | | == संस्कार विचार == |
| संस्कार को तीन प्रकार से समझ सकते हैं । | | संस्कार को तीन प्रकार से समझ सकते हैं । |
− | | + | # मनोवैज्ञानिक परिभाषा के रूप में |
− | (१) मनोवैज्ञानिक परिभाषा के रूप में
| + | # सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में |
− | | + | # पारंपरिक कर्मकांड के रुप में |
− | (२) सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में
| + | चित्त पर होने वाले संस्कार तीन प्रकार के होते हैं: |
− | | + | # कर्मजसंस्कार |
− | (३) पारंपरिक कर्मकांड के रुप में
| + | # भावज संस्कार और |
− | | + | # ज्ञानज संस्कार। अर्थात् क्रिया के परिणाम स्वरुप, भावना के परिणाम स्वरुप और समझ के परिणाम स्वरूप बनने वाले संस्कार । |
− | चित्त पर होने वाले संस्कार तीन प्रकार के होते हैं । | + | संस्कारों के वर्गीकरण का एक दूसरा भी पहलू है । इसके अनुसार संस्कार चार प्रकार के होते हैं: |
− | | + | # पूर्वजन्म के संस्कार |
− | १, कर्मजसंस्कार २. भावज संस्कार और ३. ज्ञानज
| + | # आनुवंशिक संस्कार |
− | | + | # संस्कृति के संस्कार और |
− | संस्कार । अर्थात् क्रिया के परिणाम स्वरुप, भावना के
| + | # वातावरण के संस्कार |
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− | परिणाम स्वरुप और समझ के परिणाम स्वरूप बनने वाले | |
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− | संस्कार । | |
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− | संस्कारों के वर्गीकरण का एक दूसरा भी पहलू है । | |
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− | इसके अनुसार संस्कार चार प्रकार के होते हैं । | |
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− | (१) पूर्वजन्म के संस्कार (२) आनुवंशिक संस्कार
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− | (३) संस्कृति के संस्कार और (४) वातावरण के संस्कार
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| === पूर्वजन्म के संस्कार === | | === पूर्वजन्म के संस्कार === |
− | संस्कार सूक्ष्म शरीर में रहते हैं । मृत्यु के बाद स्थूल | + | संस्कार सूक्ष्म शरीर में रहते हैं । मृत्यु के बाद स्थूल शरीर छूट जाता है, किन्तु सूक्ष्म शरीर दूसरे जन्म में भी जीव के साथ ही रहता है । इसलिए संस्कार भी एक जन्म से दूसरे जन्म में सूक्ष्म शरीर के साथ ही जाते हैं । संस्कार कर्मफल निःशेष भोगने पर लुप्त हो जाते हैं परन्तु कर्मफल भोगते समय ही नये संस्कार बनते रहते हैं । इस प्रकार संस्कार परंपरा तो बनी ही रहती है । संस्कार अनुरूप निमित्त मिलते ही प्रकट होते रहते हैं । केवल निर्विकल्प समाधि से ही इन संस्कारों का पूर्ण लोप होता है ।एक बार बने हुए संस्कार बदल नहीं सकते । |
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− | शरीर छूट जाता है, किन्तु सूक्ष्म शरीर दूसरे जन्म में भी जीव | |
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− | के साथ ही रहता है । इसलिए संस्कार भी एक जन्म से दूसरे | |
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− | जन्म में सूक्ष्म शरीर के साथ ही जाते हैं । संस्कार कर्मफल | |
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− | निःशेष भोगने पर लुप्त हो जाते हैं परन्तु कर्मफल भोगते | |
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− | समय ही नये संस्कार बनते रहते हैं । इस प्रकार संस्कार | |
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− | परंपरा तो बनी ही रहती है । संस्कार अनुरूप निमित्त मिलते | |
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− | ही प्रकट होते रहते हैं । केवल निर्विकल्प समाधि से ही इन | |
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− | संस्कारों का पूर्ण लोप होता है । एक बार बने हुए संस्कार | |
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− | बदल नहीं सकते । | |
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| === आनुवंशिक संस्कार === | | === आनुवंशिक संस्कार === |
− | सूक्ष्म शरीर जब जन्म धारण करता है तब माता और | + | सूक्ष्म शरीर जब जन्म धारण करता है तब माता और पिता के रज और वीर्य के माध्यम से संस्कार प्राप्त होते हैं । माता और पिता के रज और वीर्य के माध्यम से मातापिता के संपूर्ण चरित्र के साथ साथ पिता की चौदह पीढ़ियों और माता की पाँच पीढ़ियों के पूर्वजों के संस्कार जीव को प्राप्त होते हैं, अर्थात् संस्कार उसके सूक्ष्म शरीर के अंग बनते हैं। इसे कुल के संस्कार भी कहते हैं। ये संस्कार भी सूक्ष्म शरीर के साथ हमेशा रहते हैं और मृत्यु तक उनमें परिवर्तन नहीं आता अथवा नष्ट भी नहीं होते । पूर्वजन्म के संस्कार की भाँति केवल निर्विकल्प समधि के द्वारा ही उनका लोप होता है। |
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− | पिता के रज और वीर्य के माध्यम से संस्कार प्राप्त होते हैं । | |
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− | माता और पिता के रज और वीर्य के | |
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− | माध्यम से मातापिता के संपूर्ण चरित्र के साथ साथ पिता की | |
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− | चौदह पीढ़ियों और माता की पाँच पीढ़ियों के पूर्वजों के | |
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− | संस्कार जीव को प्राप्त होते हैं, अर्थात् संस्कार उसके सूक्ष्म | |
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− | शरीर के अंग बनते हैं । इसे कुल के संस्कार भी कहते हैं । | |
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− | ये संस्कार भी सूक्ष्म शरीर के साथ हमेशा रहते हैं और मृत्यु | |
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− | तक उनमें परिवर्तन नहीं आता अथवा नष्ट भी नहीं होते । | |
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− | पूर्वजन्म के संस्कार की भाँति केवल निर्विकल्प समधि के | |
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− | द्वारा ही उनका लोप होता है । | |
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| === संस्कृति के संस्कार === | | === संस्कृति के संस्कार === |
− | जीव जिस जाति में पैदा होता है उस जाति का | + | जीव जिस जाति में पैदा होता है उस जाति का स्वभाव, उसकी संस्कृति के संस्कार उसे जन्मजात प्राप्त होते हैं। उसका स्वभाव, उसकी आकृति, उसके वर्तन की पद्धति, उसका दृष्टिकोण आदि उसे संस्काररूप में मिलते हैं। |
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− | स्वभाव, उसकी संस्कृति के संस्कार उसे जन्मजात प्राप्त होते | |
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− | हैं । उसका स्वभाव, उसकी आकृति, उसके वर्तन की
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− | पद्धति, उसका दृष्टिकोण आदि उसे संस्काररूप में मिलते हैं । | |
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− | भिन्न भिन्न संस्कृतियों के लोग भिन्नभिन्न स्वभाव के, भिन्न
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− | भिन्न आकृति के होते हैं इसका कारण संस्कृति के संस्कार
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− | अथवा जातिगत संस्कार भेद का ही है ।
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− | ये संस्कार भी आजन्म रहते हैं । केवल समाधि से ही
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− | उनका लोप होता है । | + | भिन्न भिन्न संस्कृतियों के लोग भिन्नभिन्न स्वभाव के, भिन्न भिन्न आकृति के होते हैं इसका कारण संस्कृति के संस्कार अथवा जातिगत संस्कार भेद का ही है । ये संस्कार भी आजन्म रहते हैं। केवल समाधि से ही उनका लोप होता है। |
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| === वातावरण के संस्कार === | | === वातावरण के संस्कार === |