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| : पुलस्त्यश्च वशिष्ठश्च सप्तैते ब्रह्मणः सुताः ॥” | | : पुलस्त्यश्च वशिष्ठश्च सप्तैते ब्रह्मणः सुताः ॥” |
| '''पुलहः''', पुं, सप्तर्षीणां मध्ये ऋषिविशेषः । इति शब्दरत्नावली ॥ स च ब्रह्मणो नाभितो जातः तस्य भार्य्या कर्द्दममुनिकन्या गतिः । तस्य पुत्त्राः कर्म्मश्रेष्ठः यवीयान् सहिष्णुश्च । इति | | '''पुलहः''', पुं, सप्तर्षीणां मध्ये ऋषिविशेषः । इति शब्दरत्नावली ॥ स च ब्रह्मणो नाभितो जातः तस्य भार्य्या कर्द्दममुनिकन्या गतिः । तस्य पुत्त्राः कर्म्मश्रेष्ठः यवीयान् सहिष्णुश्च । इति |
− | : श्रीभागवतम् ॥ | + | :[[Category:Rishis]] श्रीभागवतम् ॥ |
− | [[Category:Rishis]] | |
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| == Verses and Meanings == | | == Verses and Meanings == |
− | {| class="wikitable"
| + | भीष्म उवाच |
− | |भीष्म उवाच
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| + | विज्ञाय यातुधानीं तां कृत्यामृषिवधैषिणीम्। अत्रिः क्षुधापरीतात्मा ततो वचनमब्रवीत्॥ 13-93-85 |
− | |विज्ञाय यातुधानीं तां कृत्यामृषिवधैषिणीम्।
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| + | अत्रिरुवाच |
− | |अत्रिः क्षुधापरीतात्मा ततो वचनमब्रवीत्॥ 13-93-85
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| + | अरात्रिरत्रिः सा रात्रिर्यां नाधीते त्रिरद्य वै। अरात्रिरत्रिरित्येव नाम मे विद्धि शोभने॥ 13-93-86 |
− | |अत्रिरुवाच
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− | |-
| + | यातुधान्युवाच |
− | |अरात्रिरत्रिः सा रात्रिर्यां नाधीते त्रिरद्य वै।
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| + | यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महाद्युते। दुर्धार्यमेतन्मनसा गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-87 |
− | |अरात्रिरत्रिरित्येव नाम मे विद्धि शोभने॥ 13-93-86
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− | |-
| + | वसिष्ठ उवाच |
− | |यातुधान्युवाच
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− | |-
| + | वसिष्ठोऽस्मि वरिष्ठोऽस्मि वसे वासगृहेष्वपि। वसिष्ठत्वाच्च वासाच्च वसिष्ठ इति विद्धि माम्॥ 13-93-88 |
− | |यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महाद्युते।
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| + | यातुधान्युवाच |
− | |दुर्धार्यमेतन्मनसा गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-87
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| + | नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्। नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-89 |
− | |वसिष्ठ उवाच
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| + | कश्यप उवाच |
− | |वसिष्ठोऽस्मि वरिष्ठोऽस्मि वसे वासगृहेष्वपि।
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| + | कुलं कुलं च कुवमः कुवमः कश्यपो द्विजः। काश्यः काशनिकाशत्वादेतन्मे नाम धारय॥ 13-93-90 |
− | |वसिष्ठत्वाच्च वासाच्च वसिष्ठ इति विद्धि माम्॥ 13-93-88
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| + | यातुधान्युवाच |
− | |यातुधान्युवाच
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| + | यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महाद्युते। दुर्धार्यमेतन्मनसा गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-91 |
− | |नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्।
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| + | भरद्वाज उवाच |
− | |नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-89
| + | |
− | |-
| + | भरेऽसुतान्भरेऽशिष्यान्भरे देवान्भरे द्विजान्। भरे भार्यां भरे द्वाजं भरद्वाजोऽस्मि शोभने॥ 13-93-92 |
− | |कश्यप उवाच
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| + | यातुधान्युवाच |
− | |कुलं कुलं च कुवमः कुवमः कश्यपो द्विजः।
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| + | नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्। नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-93 |
− | |काश्यः काशनिकाशत्वादेतन्मे नाम धारय॥ 13-93-90
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− | |-
| + | गौतम उवाच |
− | |यातुधान्युवाच
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− | |-
| + | गोदमो दमतोऽधूमोऽदमस्ते समदर्शनात्। गांभिस्तमो ममध्वस्तं जातमात्रस्य देहतः। विद्धि मां गौतमं कृत्ये यातुधानि निबोध माम्॥ 13-93-94 |
− | |यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महाद्युते।
| + | |
− | |-
| + | यातुधान्युवाच |
− | |दुर्धार्यमेतन्मनसा गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-91
| + | |
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| + | यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महामुने। नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-95 |
− | |भरद्वाज उवाच
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− | |-
| + | विश्वामित्र उवाच |
− | |भरेऽसुतान्भरेऽशिष्यान्भरे देवान्भरे द्विजान्।
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− | |-
| + | विश्वे देवाश्च मे मित्रं मित्रमस्मि गवां तथा। विश्वामित्रमिति ख्यातं यातुधानि निबोध माम्॥ 13-93-96 |
− | |भरे भार्यां भरे द्वाजं भरद्वाजोऽस्मि शोभने॥ 13-93-92
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| + | यातुधान्युवाच |
− | |यातुधान्युवाच
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| + | नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्। नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-97 |
− | |नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्।
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| + | जमदग्निरुवाच |
− | |नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-93
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| + | जाजमद्य जजानेऽहं जिजाहीह जिजायिषि। जमदग्निरिति ख्यातस्ततो मां विद्धि शोभने॥ 13-93-98 |
− | |गौतम उवाच
| + | |
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| + | यातुधान्युवाच |
− | |गोदमो दमतोऽधूमोऽदमस्ते समदर्शनात्।
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| + | यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महामुने। नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-99 |
− | |गांभिस्तमो ममध्वस्तं जातमात्रस्य देहतः।
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| + | धरान्धरित्रीं वसुधां भर्तुस्तिष्ठाम्यनन्तरम्। मनोऽनुरुन्धती भर्तुरिति मां विद्ध्यरुन्धतीम्॥ 13-93-100 |
− | |विद्धि मां गौतमं कृत्ये यातुधानि निबोध माम्॥ 13-93-94
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| + | यातुधान्युवाच |
− | |यातुधान्युवाच
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| + | नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्। नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-101 |
− | |यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महामुने।
| + | |
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| + | गण्डोवाच |
− | |नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-95
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| + | वक्त्रैकदेशे गण्डेति धातुमेतं प्रचक्षते। तेनोन्नतेन गण्डेति विद्धि मानलसम्भवे॥ 13-93-102 |
− | |विश्वामित्र उवाच
| + | |
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| + | यातुधान्युवाच |
− | |विश्वे देवाश्च मे मित्रं मित्रमस्मि गवां तथा।
| + | |
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| + | नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्। नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-103 |
− | |विश्वामित्रमिति ख्यातं यातुधानि निबोध माम्॥ 13-93-96
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− | |यातुधान्युवाच
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− | |नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्।
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− | |नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-97
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− | |जमदग्निरुवाच
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− | |जाजमद्य जजानेऽहं जिजाहीह जिजायिषि।
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− | |जमदग्निरिति ख्यातस्ततो मां विद्धि शोभने॥ 13-93-98
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− | |यातुधान्युवाच
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− | |यथोदाहृतमेतत्ते मयि नाम महामुने।
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− | |नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-99
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− | |अरुन्धत्युवाच
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− | |धरान्धरित्रीं वसुधां भर्तुस्तिष्ठाम्यनन्तरम्।
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− | |मनोऽनुरुन्धती भर्तुरिति मां विद्ध्यरुन्धतीम्॥ 13-93-100
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− | |यातुधान्युवाच
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− | |नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्।
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− | |नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-101
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− | |गण्डोवाच
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− | |वक्त्रैकदेशे गण्डेति धातुमेतं प्रचक्षते।
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− | |तेनोन्नतेन गण्डेति विद्धि मानलसम्भवे॥ 13-93-102
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− | |यातुधान्युवाच
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− | |नामनैरुक्तमेतत्ते दुःखव्याभाषिताक्षरम्।
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− | |नैतद्धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम्॥ 13-93-103
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| == References == | | == References == |