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संहिता स्कन्ध गणित गोल तथा सतर्क यन्त्र निर्माण एवं शोध तथा प्रयोग के उच्चतम आधार से सम्बद्ध विस्तृत स्कन्ध है। इसके अन्तर्गत भूगोल, खगोल एवं भगोल से सम्बन्धित अनेक विश्वजनीन विषयों का अद्भुत संकलन एवं विश्लेषण किया गया है। इस स्कन्ध में अनेक विद्या शाखाएँ आज भी प्रयोग गम्य हैं। कुछ व्यवहार बाह्य हो गयी हैं, तो कुछ प्रयोग बाह्य हो रही हैं। भारतीय तथा पाश्चात्य अन्वेषणों के फलस्वरूप वर्त्तमान शताब्दी में संहिता के अनेक विषयों की प्रासंगिकता फिर से सिद्ध हो रही है। अतः ध्यानाकर्षण आवश्यक है।
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ज्योतिष शास्त्र के दूसरे स्कन्ध संहिता का भी विशेष महत्त्व है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः फलादेश संबंधी विषयों का बाहुल्य होता है। आचार्य वराहमिहिरने बृहत्संहिता में कहा है कि जो व्यक्ति संहिता के समस्त विषयों को जानता है, वही दैवज्ञ होता है। संहिता ग्रन्थों में भूशोधन, दिक् शोधन, मेलापक, जलाशय निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, वृक्षायुर्वेद, दर्कागल, सूर्यादि ग्रहों के संचार, ग्रहों के स्वभाव, विकार, प्रमाण, गृहों का नक्षत्रों की युति से फल, परिवेष, परिघ, वायु लक्षण, भूकम्प, उल्कापात, वृष्टि वर्षण, अंगविद्या, पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों के लक्षण पर विचार, रत्नपरीक्षा, दीपलक्षण नक्षत्राचार, ग्रहों का देश एवं प्राणियों पर आधिपत्य, दन्तकाष्ठ के द्वारा शुभ अशुभ फल का कथन आदि विषय वर्णित किये जाते हैं। संहिता ग्रन्थों में उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता होती है कि इन ग्रन्थों में व्यक्ति विषयक फलादेश के स्थान पर राष्ट्र विषयक फलादेश किया जाता है।
 
ज्योतिष शास्त्र के दूसरे स्कन्ध संहिता का भी विशेष महत्त्व है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः फलादेश संबंधी विषयों का बाहुल्य होता है। आचार्य वराहमिहिरने बृहत्संहिता में कहा है कि जो व्यक्ति संहिता के समस्त विषयों को जानता है, वही दैवज्ञ होता है। संहिता ग्रन्थों में भूशोधन, दिक् शोधन, मेलापक, जलाशय निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, वृक्षायुर्वेद, दर्कागल, सूर्यादि ग्रहों के संचार, ग्रहों के स्वभाव, विकार, प्रमाण, गृहों का नक्षत्रों की युति से फल, परिवेष, परिघ, वायु लक्षण, भूकम्प, उल्कापात, वृष्टि वर्षण, अंगविद्या, पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों के लक्षण पर विचार, रत्नपरीक्षा, दीपलक्षण नक्षत्राचार, ग्रहों का देश एवं प्राणियों पर आधिपत्य, दन्तकाष्ठ के द्वारा शुभ अशुभ फल का कथन आदि विषय वर्णित किये जाते हैं। संहिता ग्रन्थों में उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता होती है कि इन ग्रन्थों में व्यक्ति विषयक फलादेश के स्थान पर राष्ट्र विषयक फलादेश किया जाता है।
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# '''भौम प्रभाव -''' पृथ्वी का प्रभाव-गर्भीय प्रभाव तथा पृष्ठीय प्रभाव।
 
# '''भौम प्रभाव -''' पृथ्वी का प्रभाव-गर्भीय प्रभाव तथा पृष्ठीय प्रभाव।
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ये तीन मुख्य प्रभेद हैं। पञ्चमहाभूत, ग्रहर्क्षसंरचना संचरण, उदयास्त, युति, भेद, लोप, ग्रहण आदि प्रभावोत्पादक हैं। पञ्चमहाभूत समस्त प्रभावों का आश्रय भूत है। भूतत्व के आश्रय से भौमप्रभाव व्यक्त होते हैं।
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ये तीन मुख्य प्रभेद हैं। पञ्चमहाभूत, ग्रहर्क्षसंरचना संचरण, उदयास्त, युति, भेद, लोप, ग्रहण आदि प्रभावोत्पादक हैं। पञ्चमहाभूत समस्त प्रभावों का आश्रय भूत है। भूतत्व के आश्रय से भौमप्रभाव व्यक्त होते हैं।<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास, ज्योतिष खण्ड, संहिता स्कन्ध, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ,(पृ०२७४)। </ref>
    
== रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश ==
 
== रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश ==
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