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इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है  कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" />
 
इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है  कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" />
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=== संहिता स्कन्ध के मुख्य विषय विभाग ===
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प्रभाव की दृष्टि से संहिता के मुख्य तीन भाग हैं-
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# '''दिव्य प्रभाव -''' सूर्य, द्वादशादित्य, एकादशरुद्र, अष्तवसु दो अश्विनी तथा नक्षत्रमण्डलीय दिव्य प्रभाव तथा दिव्य केतु मण्डलीय प्रभाव। द्युलोक अर्थात् नक्षत्र मण्डल, सौर क्रान्तिक्षेत्रीय नक्षत्रपुञ्जों का साक्षात् प्रभाव। ग्रह, नक्षत्र तथा केतु ये दिव्य प्रभावोत्पादक हैं।
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# '''नाभस प्रभाव -''' अन्तरिक्ष जन्य प्रभाव इसके अनेक प्रभेद बनते हैं।
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# '''भौम प्रभाव -''' पृथ्वी का प्रभाव-गर्भीय प्रभाव तथा पृष्ठीय प्रभाव।
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ये तीन मुख्य प्रभेद हैं। पञ्चमहाभूत, ग्रहर्क्षसंरचना संचरण, उदयास्त, युति, भेद, लोप, ग्रहण आदि प्रभावोत्पादक हैं। पञ्चमहाभूत समस्त प्रभावों का आश्रय भूत है। भूतत्व के आश्रय से भौमप्रभाव व्यक्त होते हैं।
    
== रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश ==
 
== रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश ==
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