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== स्तोत्र ==
 
== स्तोत्र ==
जिसमें किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाये उसे स्तोत्र कहते हैं। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है। स्तोत्र का शाब्दिक अर्थ- <blockquote>स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्।</blockquote>जिन कथनों के द्वारा किसी भी देवी या देवता की स्तुति की जाय उसे स्तोत्र कहते हैं। स्तोत्र संस्कृत भाषा का शब्द है। यह शब्द स्तुञ् धातु से बना है। स्तुति गान की क्रमबद्ध रचना यह स्तोत्र का अर्थ है।<ref>लोकेश शर्मा, ऋचा एवं स्तोत्र में संगीत एक अध्ययन उत्तर भारत के सन्दर्भ में, शोध गंगा सन् २०१४, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, अध्याय-१, (पृ०१५)।http://hdl.handle.net/10603/303622</ref>
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जिसमें किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाये उसे स्तोत्र कहते हैं। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है। स्तोत्र का शाब्दिक अर्थ- <blockquote>स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्।</blockquote>जिन कथनों के द्वारा किसी भी देवी या देवता की स्तुति की जाय उसे स्तोत्र कहते हैं। स्तोत्र संस्कृत भाषा का शब्द है। यह शब्द स्तुञ् धातु से बना है। स्तुति गान की क्रमबद्ध रचना यह स्तोत्र का अर्थ है।<ref>लोकेश शर्मा, ऋचा एवं स्तोत्र में संगीत एक अध्ययन उत्तर भारत के सन्दर्भ में, शोध गंगा सन् २०१४, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, अध्याय-१, (पृ०१५)।http://hdl.handle.net/10603/303622</ref> स्तोत्र इष्टदेव की स्तुति करना। भक्त की दीनता, कोमलता, अपराध स्वीकार, क्षमा याचना आदि की अभिव्यक्ति का एक माध्यम हैं। स्तोत्र को मुख्यतः चार प्रकार का बतलाया गया है-<blockquote>द्रव्य स्तोत्रं कर्म स्तोत्रं विधि स्तोत्रं तथैव च। तथैवाभिजनस्तोत्रं स्तोत्रमेतच्चतुष्टयम् ॥</blockquote>अर्थात- देवता-सम्बन्धी स्तोत्र, कर्म-सम्बन्धी स्तोत्र, विधि-सम्बन्धी स्तोत्र और महापुरुषों से सम्बन्धी स्तोत्र ये चार प्रकार के स्तोत्र होते हैं।<ref>सत्यदेव सिंह, पण्डितराज जगन्नाथ रचित स्तोत्र काव्यों का साहित्यिक अनुशीलन, शोध गंगा, सन् २०१७, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, अध्याय- ०१, (पृ०-१९)।http://hdl.handle.net/10603/313247</ref>
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स्तोत्र इष्टदेव की स्तुति करना। भक्त की दीनता, कोमलता, अपराध स्वीकार, क्षमा याचना आदि की अभिव्यक्ति का एक माध्यम हैं। स्तोत्र को मुख्यतः चार प्रकार का बतलाया गया है-<blockquote>द्रव्य स्तोत्रं कर्म स्तोत्रं विधि स्तोत्रं तथैव च। तथैवाभिजनस्तोत्रं स्तोत्रमेतच्चतुष्टयम् ॥</blockquote>अर्थात- देवता-सम्बन्धी स्तोत्र, कर्म-सम्बन्धी स्तोत्र, विधि-सम्बन्धी स्तोत्र और महापुरुषों से सम्बन्धी स्तोत्र ये चार प्रकार के स्तोत्र होते हैं।<ref>सत्यदेव सिंह, पण्डितराज जगन्नाथ रचित स्तोत्र काव्यों का साहित्यिक अनुशीलन, शोध गंगा, सन् २०१७, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, अध्याय- ०१, (पृ०-१९)।http://hdl.handle.net/10603/313247</ref>
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हम अपने मुँह से जो भी शब्द निकालते हैं वह वायुमण्डल में गुञ्जरित रहता है। क्योंकि इस वायुमण्डल में से उत्पन्न ध्वनि कभी भी समाप्त नहीं होती है। इसलिये वैज्ञानिक प्रयत्नशील हैं कि यदि ध्वनि समाप्त नहीं होती वह शाश्वत रहती तो श्रीकृष्णार्जुन संवाद तथा वह ध्वनि भी वायुमण्डलमें ही गतिशील होगी, यदि ध्वनि की वह तरंग पकडी जा सके तो संवाद को भी सुना जा सकता है। स्तोत्र भी एक विशेष प्रकार के शब्दों का संयोजन है, जिसके माध्यम से एक विशेष प्रकार का ध्वनि-संयोजन तैयार होकर प्रवाहित होता है और सामने वाले व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।<ref>अजय कुमार उत्तम, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/stotra-maharnavah-of-shri-maheshwaranand-devata-khand-nzm239/#mz-expanded-view-1667548395321 स्तोत्र महार्णव], देवता खण्ड, भूमिका, भारतीय विद्या संस्थान वाराणसी, (पृ० १/२)</ref>
    
== जप ==
 
== जप ==
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